HI/Prabhupada 0515 - तुम खुश नहीं हो सकते हो, श्रीमान, जब तक तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है
Lecture on BG 2.25 -- London, August 28, 1973
हम सिद्धांत दे सकते हैं और हमारे सुखी जीवन के बहुत सारे तरीके हैं । लेकिन तुम खुश नहीं हो सकते हो, सर, जब तक तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है । यह एक तथ्य है । जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधी-दुक्ख-दोशानुदर्शनम (भ गी १३।९) इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति, उन्हे होना चाहिए ... कृष्ण हर किसी को बुद्धिमान बना रहे हैं: " बदमाश, तुम जीवन के शारीरिक अवधारणा के तहत हो । तुम्हारी सभ्यता का कोई मूल्य नहीं है । यह बदमाश सभ्यता है ।" मुद्दा यह है,
- यम हि न व्यथयन्ति ऐते
- पुरुषम पुरुशर्शभ
- सम-दुक्ख-सुक्खम धीरम्
- सो अमृतत्वाय कल्पते
- (भ गी २।१५)
तुम्हारी समस्या यह है कि कैसे फिर से पुनर्स्थापित हो जाऍ अनन्त में । क्योंकि हम अनन्त हैं । किसी न किसी तरस से, हम इस भौतिक दुनिया में गिर गए हैं । इसलिए, हमें जन्म और मृत्यु को स्वीकार करना होगा । तो हमारी समस्या यह कि फिर से हम कैसे अनन्त बनें । यही अमृतत्व है । लेकिन यह दुष्ट, वे नहीं जानते, कि अनन्त बनने की संभावना है । बस कृष्ण को समझने की कोशिश के द्वारा, एक अमर बन सकते हैं । जन्म कर्म च मे दिव्यम यो जानाति तत्वत: (भ गी ४।९) बस कृष्ण को समझने की कोशिश करो, कृष्ण क्या हैं । फिर त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति (भ गी ४।९) । बस कृष्ण को समझने के द्वारा, अगर तुम कृष्ण की सेवा नहीं करते हो तो भी । अगर तुम सेवा करते हो, तो तुम पहले से ही मुक्त हो । अगर तुम बस दार्शनिक दृष्टि से श्री कृष्ण की स्थिति को समझने का प्रयास करते हो । लेकिन नहीं, मूढा, दुष्ट, वे कहेंगे: "हम कृष्ण को एक महान व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं । हम कृष्ण को भगवान के रूप में स्वीकार नहीं करते ।" आर्य समाजी कहते हैं । ठीक है अगर तुम एक महान व्यक्ति को स्वीकार करते हो, महान व्यक्तित्व, क्यों तुम उनके शिक्षण को स्वीकार नहीं करते ? फिर एक महान व्यक्तित्व को स्वीकार करने का यह क्या तरीका है? अगर तुम वास्तव में कृष्ण को एक महान व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करते हो, तो कम से कम तुम्हे कृष्ण के निर्देशों का पालन करना चाहिए । लेकिन नहीं, यह भी वे नहीं करेंगे । और फिर भी वे आर्य समाज हैं । आर्य का मतलब है आगे बढ़ने वाली पार्टी । वे अपमानजनक पार्टी है । वास्तव में आगे बढ़ाने वाली पार्टी है कृष्ण के प्रति सचेत व्यक्तियों की श्री कृष्ण के भक्त । वे आर्य हैं । जैसे अर्जुन की तरह, जब वे कृष्ण की शिक्षा की उपेक्षा करने की कोशिश कर रहे थे, "सर, मैं लड़ूगा नहीं ।" उन्होंने कहा अनार्य-जुश्टम । जो कोई कृष्ण की शिक्षा की उपेक्षा करता है, वह अनार्यन है । और जो कोई भी कृष्ण के निर्देश का पालन करता है, वह आर्य है । यही अंतर है । इसलिए, तथाकथित आर्य समाज, वे कृष्ण के निर्देश की अवज्ञा कर रहे हैं, और फिर भी वे आर्य होने का दावा करते हैं । असल में वे अनार्य हैं । अनार्य-जुश्टम । ये बातें भगवद गीता में हैं । तो नानुशोचितुम अर्हसि । यहां कृष्ण ने कहा है, "तुम अनन्त हो । तुम्हारा काम है पता लगाना कि अनन्त की उस स्थिति को कैसे प्राप्त करना है । और जहॉ तक शरीर का सवाल है, यह नश्वर है, अन्तवन्त इमे देहा: । तो तुम्हे इस शरीर के बारे में बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होना चाहिए ।" यही वैदिक सभ्यता के बीच अंतर है, आर्य सभ्यता । वैदिक सभ्यता का मतलब है, आर्य । और अनार्य सभ्यता । अनार्य सभ्यता का मतलब है जीवन की शारीरिक अवधारणा, और आर्य सभ्यता का अर्थ है जीवन की आध्यात्मिक अवधारणा, आध्यात्मिक उन्नति कैसे करें । वह असली सभ्यता है । जो खुश हैं जीवन की शारीरिक आराम की सोच में, वे सब अनार्य हैं, और अब यह पदावनत है, नानुशोचितुम अर्हसि : "इम सारहीन बातों पर शोक मत करो । "
बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण ।