HI/Prabhupada 0517 - सिर्फ धनी परिवार में पैदा होने से, तुम्हे बीमारियों से प्रतिरक्षा नहीं मिलेगी

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Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968

तो योग के उस गुण के जवाब में, कृष्ण यहाँ सीधे बता रहे हैं: मयी अासक्त-मना: । अगर तुम अपना ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करते हो कृष्ण के रूप पर, इतना खूबसूरत... वे राधारानी और उनके सहयोगियों के साथ आनंद ले रहे हैं । फिर, मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम, अगर तुम इस योग का अभ्यास करते हो, मद-अाश्रय:, युञ्जन मद-अाश्रय:... तुम्हें इस योग का अभ्यास करना होगा, उसी समय, तम्हें कृष्ण की शरण लेनी होगी । मद-अाश्रय: । अाश्रय: का मतलब है, "मेरी सुरक्षा के तहत ।" इसे आत्मसमर्पण कहा जाता है ।

अगर तुम एक मुश्किल स्थिति में अपने दोस्त के पास जाते हो और तुम अपने दोस्त को समर्पण करते हो, "मेरे प्रिय मित्र, तुम इतने प्रभावशाली, इतने शक्तिशाली, इतने महान हो । मैं इस महान खतरे में हूँ । इसलिए मैं तुम्हें आत्मसमर्पण करता हूँ । तुम मुझे संरक्षण दो... " तो तुम कृष्ण के साथ ऐसा कर सकते हो । इस भौतिक दुनिया में, अगर तुम एक व्यक्ति को आत्मसमर्पण करते हो, वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह मना कर सकता है । वह कह सकता है,"ठीक, मैंं तुम्हें सुरक्षा देने में असमर्थ हूँ ।" यह स्वाभाविक उत्तर है ।

अगर तुम खतरे में हो और यदि तुम अपने अंतरंग दोस्त के पास भी जाते हो, "कृपया मुझे सुरक्षा दो," वह संकोच करता है, क्योंकि उसकी शक्ति बहुत सीमित है । वह सब से पहले सोचेगा कि, "अगर मैं इस व्यक्ति को संरक्षण देता हूँ, क्या मेरा हित खतरे में तो नहीं पड़ जाएगा ? " वह उस तरह से सोच सकता है, क्योंकि उसकी शक्ति सीमित है । लेकिन कृष्ण इतने अच्छे हैं कि वे इतने शक्तिशाली हैं, वे बहुत भव्य हैं... वे भगवद गीता में घोषणा करते हैं, हर किसी से, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]) "तुम सब कुछ छोड़ दो । तुम बस मुझे आत्मसमर्पण करो ।" और नतीजा क्या है ? परिणाम यह है अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिश्यामि: "मैं तुम्हें मुक्ति दिलाऊँगा पापी जीवन की प्रतिक्रियाओ से ।"

यह भौतिक दुनिया, हमारी गतिविधियाँ सब पापी गतिविधियाँ हैं । क्रिया और प्रतिक्रिया है । जो भी तुम कर रहे हो, क्रिया और प्रतिक्रिया होती है । अगर अच्छी प्रतिक्रिया भी होती है, तो फिर भी यह पाप है । फिर भी यह पाप है । जैसे वैदिक साहित्यों के अनुसार, धार्मिक गतिविधियाँ, धार्मिक गतिविधियों के परिणाम... जन्मैश्वर्य-श्रुत-श्रीभि: (श्रीमद भागवतम १.८.२६) । मान लो तुम इस जीवन में पाप नहीं कर रहे हो तुम हर मामले में बहुत पवित्र हो । तुम धर्मार्थ कर रहे हो, तुम उदार हो, सब कुछ ठीक है । लेकिन भगवद गीता कहती है कि यह कर्म-बंधन है । अगर तुम दान में कुछ देते हो, मान लो, कुछ धन, तुम्हें वह पैसा चार गुना, पाँच गुना, या अधिक दस गुना, वापस मिलेगा, अपने अगले जन्म में । यह एक तथ्य है ।

तो वैष्णव तत्वज्ञान कहता है कि यह भी पाप है । क्यों पाप ? क्योंकि तुम्हें जन्म लेना होगा इस चक्रवृद्धि ब्याज को प्राप्त करने के लिए । यह पाप है । अब अगर तुम एक बहुत धनी परिवार में पैदा होते हो । माँ के गर्भ में होने की मुसीबत, वह एक ही है । या तुम पुण्यवान हो या पापी हो, जब तुम अपनी माँ के गर्भ में हो... कठिनाइयाँ और दर्द मिलता है जो माँ के गर्भ के भीतर, वो तो वही है, या तुम काले हो या गोरे हो, या तुम भारतीय हो या अमरिकी हो या बिल्ली हो या कुत्ता हो या कुछ भी हो । जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोषानुदर्शनम (भ.गी. १३.९) ।

जन्म की परेशानियाँ, मौत की परेशानियाँ, और रोग की परेशानियाँ, और बुढ़ापे की मुसीबतें हर जगह एक ही हैं । यह नहीं है कि क्योंकि तुम एक बहुत धनी परिवार में पैदा होते हो, तो तुम्हें बीमारियों से प्रतिरक्षा मिलेगी । यह नहीं है कि तुम बूढे नही होअोगे । यह नहीं है कि तुम जन्म लेने की परेशानियों से बचा लिए जाअोगे, या तुम मौत की परेशानियों से बच जाअोगे । तो इन बातों को बहुत स्पष्ट रूप से समझना चाहिए । लेकिन लोग इतने मूर्ख बन गए हैं, वे परवाह नहीं करते हैं... "ओह, मौत, ठीक है । मौत । आने दो ।" जन्म... अब विशेष रूप से इन दिनों में, एक बच्चा माँ के गर्भ में है, इतनी सारी हत्याअों की प्रक्रियाएँ हैं । कई । तो क्यों ? लोग इतने उलझ रहे हैं, कि ऐसे व्यक्ति को जन्म भी नहीं मिलता । उन्हें रखा है माँ के गर्भ में, और वहीं मारा दिया जाता है, फिर से एक और माँ के गर्भ में रखा जाता है, फिर से वहाँ मार दिया जाता है ।

इस तरह से वह प्रकाश को नहीं देख पाता है । आप समझ रहे हो । तो माँ के गर्भ में अाना और फिर से मौत को स्वीकारना, बुढ़ापे को स्वीकार करना, रोग स्वीकारना, यह बहुत अच्छा कार्य नहीं है । अगर तुम अमीर आदमी हो, तुम्हें भी भौतिक अस्तित्व की इन परेशानियों को स्वीकार करना होगा, या अगर तुम गरीब आदमी हो... कोई फर्क नहीं पड़ता । जो कोई भी इस भौतिक शरीर में इस भौतिक दुनिया में आता है, उसे इन सब परेशानियों का सामना करना पडे़गा । यह हो सकता है कि तुम अमरीकी हो, दुनिया का सबसे अमीर देश । इसका मतलब यह नहीं है कि कोई बीमारी नहीं है, कोई बुढ़ापा नहीं है, कोई जन्म नहीं है और कोई मृत्यु नहीं है । तो बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो इन समस्याओं का समाधान कर सके । वह बुद्धिमान है । बाकी जो जोड़ रहे हैं, भौतिक जीवन की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं, हालाँकि वे असमर्थ हैं - यह संभव नहीं है ।