HI/Prabhupada 0522 - अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जाप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा: Difference between revisions
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प्रभुपाद: हाँ । | प्रभुपाद: हाँ । | ||
विष्णुजन: इतने किस्से हैं भगवान चैतन्य के इतने सारे दुष्टों को परिवर्तित करने के । सिर्फ उनकी मौजूदगी से, वे हरे कृष्ण का | विष्णुजन: इतने किस्से हैं भगवान चैतन्य के इतने सारे दुष्टों को परिवर्तित करने के । सिर्फ उनकी मौजूदगी से, वे हरे कृष्ण का जप करते थे । हम कैसे उनकी दया प्राप्त कर सकते हैं ताकि हम हमारे आसपास के लोगों की मदद कर सके हरे कृष्ण का जप करने के लिए ? | ||
प्रभुपाद: अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का | प्रभुपाद: अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा । यह मार्जन की प्रक्रिया है । अगर तुम्हे कुछ खराब विचार अाते भी हैं, बदमाश संग, कोई बात नहीं । तुम बस मंत्र का जप करो... तुम व्यावहारिक रूप से जानते हो, हर कोई, कि यह जप की प्रक्रिया एकमात्र विधि है लोगों को उन्नत करने के लिए । तो यह विधि है, जप करना और सुनना । भगवद गीता या श्रीमद-भागवतम से व्याख्यान सुनो, समझने की कोशिश करो, और मंत्र का जप करो, और नियमों का पालन करो । तो नियम और विनियमन बाद में । सबसे पहले, तुम सुनने का प्रयास करो और मंत्र जपो । श्रृण्वताम स्व-कथाः कृष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: । पुण्य श्रवण कीर्तन: ([[Vanisource:SB 1.2.17|श्रीमद भागवतम् १.२.१७]])। | ||
जो भी हरे कृष्ण सुनता है, वह केवल सुनने से पवित्र हो जाता है । वह शुद्ध हो जाता है । तो एक समय पर, वह स्वीकार करेगा । लेकिन लोग सोचते हैं कि, "यह हरे कृष्ण का जप क्या है ?" तुम देखते हो ? अगर तुम उन्हें कुछ धोखा देते हो, कुंडलिनी योग और यह सब बकवास, वे बहुत ज्यादा खुश हो जाएँगे । तुम देखते हो ? तो वे धोखा खाना चाहते हैं । और कुछ धोकेबाज़ आते हैं, "हाँ, तुम मुझे पैंतीस डॉलर दो, यह मंत्र लो, और तुम छह महीने के भीतर भगवान बन जाअोगे, तुम्हारे चार हाथ अा जाएँगे । " (हँसी) | |||
तो हम धोखा खाना चाहते हैं । वह है, धोखा देने की प्रक्रिया बद्ध जीवन की वस्तुओं में से एक है । बद्ध जीवन के चार दोष हैं । एक दोष है कि हम गलती करते हैं, और एक अन्य दोष है कि हम कुछ स्वीकार करते हैं, जो नहीं है । जैसे गलती करना, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है । हममें से हर एक जानता है कि हम कैसे गलतियाँ, भूल करते हैं । महान पुरुष भी, वे भी बड़ी भूल करते हैं, तुम देखो । जैसे नेताओं में तो कई उदाहरण हैं, एक छोटी सी गलती या एक बड़ी भूल, महान भूल... तो गलती, "गलती करना मनुष्य है," गलती तो है । इसी तरह, एक तथ्य को स्वीकार करना जो तथ्य नहीं है । यह कैसे होता है ? | |||
जैसे बद्ध जीवन में हर कोई, वे सोचते हैं कि "मैं यह शरीर हूँ ।" लेकिन मैं यह नहीं हूँ । मैं यह शरीर नहीं हूँ । तो इसे भ्रम, प्रमाद कहा जाता है । सबसे अच्छा उदाहरण है एक रस्सी को स्वीकार करना एक साँप के रूप में । मान लो अंधेरे में वहाँ इस तरह की एक रस्सी है, और तुम कहते हो, "ओह, यहाँ एक साँप है ।" यह भ्रम का सबसे अच्छा उदाहरण है । कुछ स्वीकारना जो वह नहीं है । तो यह दोष बद्ध जीवन में है । और त्रुटि और गलती करना, यह दोष है । और तीसरा दोष है हम धोखा देना चाहते हैं और हम धोखा खाना चाहते हैं । हम बहुत निष्णात हैं । हम हमेशा सोच रहे हैं कि मैं कैसे किसी को धोखा दे सकता हूँ । और जाहिर है, वह भी मुझे धोखा देने की सोच रहा है । तो पूरा बद्ध जीवन धोखा देना वालों का और धोखा खाने वालों का संघ है । तो यह एक और दोष है । और चौथा दोष है कि हमारी इन्द्रियाँ अपूर्ण हैं । इसलिए जो भी ज्ञान हम प्राप्त करते हैं, वह अपूर्ण ज्ञान है । एक आदमी अटकलें लगा सकता है, लेकिन वह अपने मन के साथ अटकलें कर सकता है । बस । लेकिन उसका मन अपूर्ण है । कितनी भी वह अटकलें लगाए, वह कुछ बकवास का उत्पादन करेगा । क्योंकि उसका मन अपूर्ण है । कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर तुम हजारों शून्य जोड़ो, यह एक (नहीं) बनाता है । नहीं, यह अभी भी शून्य है । तो यह अटकलों की प्रक्रिया, परम को समझने के लिए, कुछ नहीं है पर शून्य । | |||
इसलिए हमारे बद्ध जीवन के इन सभी दोषों के साथ, इस वास्तविक जीवन में आना संभव नहीं है । इसलिए हमें कृष्ण जैसे व्यक्तित्व से इसे लेना होगा और उनके प्रमाणिक प्रतिनिधियों से । यही वास्तविक ज्ञान है । फिर तुम्हें पूर्णता मिलेगी । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968
प्रभुपाद: हाँ ।
विष्णुजन: इतने किस्से हैं भगवान चैतन्य के इतने सारे दुष्टों को परिवर्तित करने के । सिर्फ उनकी मौजूदगी से, वे हरे कृष्ण का जप करते थे । हम कैसे उनकी दया प्राप्त कर सकते हैं ताकि हम हमारे आसपास के लोगों की मदद कर सके हरे कृष्ण का जप करने के लिए ?
प्रभुपाद: अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा । यह मार्जन की प्रक्रिया है । अगर तुम्हे कुछ खराब विचार अाते भी हैं, बदमाश संग, कोई बात नहीं । तुम बस मंत्र का जप करो... तुम व्यावहारिक रूप से जानते हो, हर कोई, कि यह जप की प्रक्रिया एकमात्र विधि है लोगों को उन्नत करने के लिए । तो यह विधि है, जप करना और सुनना । भगवद गीता या श्रीमद-भागवतम से व्याख्यान सुनो, समझने की कोशिश करो, और मंत्र का जप करो, और नियमों का पालन करो । तो नियम और विनियमन बाद में । सबसे पहले, तुम सुनने का प्रयास करो और मंत्र जपो । श्रृण्वताम स्व-कथाः कृष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: । पुण्य श्रवण कीर्तन: (श्रीमद भागवतम् १.२.१७)।
जो भी हरे कृष्ण सुनता है, वह केवल सुनने से पवित्र हो जाता है । वह शुद्ध हो जाता है । तो एक समय पर, वह स्वीकार करेगा । लेकिन लोग सोचते हैं कि, "यह हरे कृष्ण का जप क्या है ?" तुम देखते हो ? अगर तुम उन्हें कुछ धोखा देते हो, कुंडलिनी योग और यह सब बकवास, वे बहुत ज्यादा खुश हो जाएँगे । तुम देखते हो ? तो वे धोखा खाना चाहते हैं । और कुछ धोकेबाज़ आते हैं, "हाँ, तुम मुझे पैंतीस डॉलर दो, यह मंत्र लो, और तुम छह महीने के भीतर भगवान बन जाअोगे, तुम्हारे चार हाथ अा जाएँगे । " (हँसी)
तो हम धोखा खाना चाहते हैं । वह है, धोखा देने की प्रक्रिया बद्ध जीवन की वस्तुओं में से एक है । बद्ध जीवन के चार दोष हैं । एक दोष है कि हम गलती करते हैं, और एक अन्य दोष है कि हम कुछ स्वीकार करते हैं, जो नहीं है । जैसे गलती करना, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है । हममें से हर एक जानता है कि हम कैसे गलतियाँ, भूल करते हैं । महान पुरुष भी, वे भी बड़ी भूल करते हैं, तुम देखो । जैसे नेताओं में तो कई उदाहरण हैं, एक छोटी सी गलती या एक बड़ी भूल, महान भूल... तो गलती, "गलती करना मनुष्य है," गलती तो है । इसी तरह, एक तथ्य को स्वीकार करना जो तथ्य नहीं है । यह कैसे होता है ?
जैसे बद्ध जीवन में हर कोई, वे सोचते हैं कि "मैं यह शरीर हूँ ।" लेकिन मैं यह नहीं हूँ । मैं यह शरीर नहीं हूँ । तो इसे भ्रम, प्रमाद कहा जाता है । सबसे अच्छा उदाहरण है एक रस्सी को स्वीकार करना एक साँप के रूप में । मान लो अंधेरे में वहाँ इस तरह की एक रस्सी है, और तुम कहते हो, "ओह, यहाँ एक साँप है ।" यह भ्रम का सबसे अच्छा उदाहरण है । कुछ स्वीकारना जो वह नहीं है । तो यह दोष बद्ध जीवन में है । और त्रुटि और गलती करना, यह दोष है । और तीसरा दोष है हम धोखा देना चाहते हैं और हम धोखा खाना चाहते हैं । हम बहुत निष्णात हैं । हम हमेशा सोच रहे हैं कि मैं कैसे किसी को धोखा दे सकता हूँ । और जाहिर है, वह भी मुझे धोखा देने की सोच रहा है । तो पूरा बद्ध जीवन धोखा देना वालों का और धोखा खाने वालों का संघ है । तो यह एक और दोष है । और चौथा दोष है कि हमारी इन्द्रियाँ अपूर्ण हैं । इसलिए जो भी ज्ञान हम प्राप्त करते हैं, वह अपूर्ण ज्ञान है । एक आदमी अटकलें लगा सकता है, लेकिन वह अपने मन के साथ अटकलें कर सकता है । बस । लेकिन उसका मन अपूर्ण है । कितनी भी वह अटकलें लगाए, वह कुछ बकवास का उत्पादन करेगा । क्योंकि उसका मन अपूर्ण है । कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर तुम हजारों शून्य जोड़ो, यह एक (नहीं) बनाता है । नहीं, यह अभी भी शून्य है । तो यह अटकलों की प्रक्रिया, परम को समझने के लिए, कुछ नहीं है पर शून्य ।
इसलिए हमारे बद्ध जीवन के इन सभी दोषों के साथ, इस वास्तविक जीवन में आना संभव नहीं है । इसलिए हमें कृष्ण जैसे व्यक्तित्व से इसे लेना होगा और उनके प्रमाणिक प्रतिनिधियों से । यही वास्तविक ज्ञान है । फिर तुम्हें पूर्णता मिलेगी ।