HI/Prabhupada 0528 - राधारानी कृष्ण की आनन्द शक्ति हैं

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Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

आज जन्म, अविर्भाव दिन है श्रीमती राधारानी का , राधाश्टमी पंद्रह दिन श्री कृष्ण के जन्म के बाद, राधारानी का जन्म हुअा । (तोड़) राधारानी कृष्ण की आनन्द शक्ति है । राधा कृष्ण-प्रनय-विक्रतिर ह्लादिनी-शक्ति: । प्रभु, देवत्व के परम व्यक्तित्व, की अनेक प्रकार की शक्तियॉ हैं जैसे वैदिक साहित्य में पुष्टि की है । परास्य शक्तिर विविधैव श्रुयते (चै च मध्य १३।६५, अभिप्राय). न तस्य कार्यम कारणम् च विद्यते । परम भगवान को व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं करना होता है । न तस्य कारणम । उन्हें कुछ नहीं करना होता है । जैसे इस भौतिक संसार में कई बड़े आदमी हैं, राजनीतिक अध्यक्ष या बिजनेस अध्यक्ष, व्यक्तिगत रूप से, वह कुछ नहीं करते हैं । क्योंकि उनके कई सहायक हैं, सचिव, कि व्यक्तिगत तौर पर उन्हें कुछ भी करना नहीं होता है । इसी तरह, देवत्व के परम व्यक्तित्व छह ऐश्वर्य के साथ पूर्ण हैं, क्यों उन्हें कुछ करना होगा? नहीं, उनके कई सहायक हैं । सर्वत: पाणि-पादस तत् भगवद गीता में: "हर जगह उनके हाथ और पैर हैं ।" तुम कृष्ण को पाअोगे, उन्हें कुछ नहीं है करने को । वह केवल गोपियों और राधारानी के साथ भोग में लगे हुए हैं । वे राक्षसों को मारने में नहीं लगे हुए हैं । जब कृष्ण राक्षसों को मारते हैं, वे वासुदेव कृष्ण हैं, वह मूल कृष्ण नहीं हैं । कृष्ण अपना विस्तार करते हैं । पहला विस्तार है बलदेव । बलदेव से - संकर्शन, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, वासुदेव । तो वासुदेव आकृति से वह काम करते हैं मथुरा और द्वारका में लेकिन कृष्ण अपनी मूल अाकृति में, वह वृन्दावन में रहते हैं । बंगाल के सबसे बड़ी कथा लेखकों में से एक, बंकिमचंद्र चटर्जी उन्होंने कृष्ण को गलत समझा कि, वृन्दावन कृष्ण, मथुरा के कृष्ण, द्वारका के कृष्ण, वे अलग व्यक्ति हैं । कृष्ण (है) एक ही है, एक, लेकिन वे लाखों अरबों रूपों में खुद का विस्तार कर सकते हैं । अद्वैतम अच्युतम अनादिम अनंत-रूपम अाद्यम पुराण-पुरुषम (ब्र स ५।३३) अद्वैत । हालांकि अनंत-रूपम, फिर भी, वह अाद्यम पुराण-पुरुषम, अद्वैत हैं । कोई भेद नहीं है ।

तो यह कृष्ण हैं, जब वे आनंद चाहते हैं , तो किस तरह का आनंद होगा उनका । यही श्रील जीव गोस्वामी नें चर्चा की है । कृष्ण परम ब्रह्मण हैं । ब्रह्मण, परमात्मा, तो परम ब्रह्मण । निरपेक्ष सत्य, तीन अलग विशेषताऍ । कोई अवैयक्तिक ब्रह्मण के रूप में निरपेक्ष सत्य को साकार कर रहा है । ज्ञानी, निरपेक्ष सत्य को समझने की जो कोशिश कर रहे हैं, मानसिक अटकलें द्वारा, अपने स्वयं के ज्ञान के सहारे, वह अवैयक्तिक ब्रह्मण के रूप में निरपेक्ष सत्य को साकार कर रहे हैं । और जो ध्यान द्वारा निरपेक्ष सत्य को समझने की कोशिश कर रहे हैं, योगि, वे परमात्मा के रूप में निरपेक्ष सत्य का एहसास करते हैं । परमात्मा हर किसी के दिल में स्थित हैं । ईष्वर: सर्व-भूतानाम ह्रद -देशे अर्जुन तिश्तठि (भ गी १८।६१) यही अाकृति, परमात्मा अाकृति । अंदान्तर-स्थम् परमाणु-चयान्तर-स्थम गोविन्दम आदि-पुरुषम् तम अहम् भजामि यह परमात्मा अाकृति कृष्ण का एक विस्तार है । यह भगवद गीता में कहा गया है, अथवा बहुनैतेन किम ज्ञातेन तवार्जुन एकाम्शेन विशतभ्याहम । एकाम्शेन । जब कृष्ण और अर्जुन कृष्ण के विभिन्न संभावित अस्तित्व के बारे में समझने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्होंने बारहवें अध्याय में विस्तार से बताया कि "मैं यह हूँ । उन में से, मैं यह हूँ । इनमें से ... " इस तरह । और उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि, "मैं कितना बताऊँ "? बेहतर है समझने की कोशिश करो कि मेरा केवल एक पूर्ण भाग, इस ब्रह्मांड में मौजूद होने के कारण, यह पूरा ब्रह्मांड अभिव्यक्त है ।" एकम्शेन स्थितो जगत (भ गी १०।४२) जगत । यह भौतिक दुनिया कृष्ण के एक पूर्ण भाग पर विद्यमान है । और कृष्ण प्रवेश करते हैं, अंदान्तर-स्थम परमाणु-चयान्तर-स्थम, वे इस ब्रह्मांड के भीतर प्रवेश करते हैं । उनके प्रवेश करे बिना, इस ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं है । जैसे आत्मा के इस शरीर के भीतर प्रवेश करे बिना, यह शरीर नहीं रह सकता है । जैसे ही आत्मा बाहर चली जाती है, तुरंत शरीर बेकार है । हालांकि शरीर, प्रधानमंत्री या कुछ और हो सकता है जैसे ही आत्मा इस शरीर से बाहर होती है, यह एक अत्यल्प धन भी लायक नहीं है । इसी प्रकार क्योंकि कृष्ण इस ब्रह्मांड के भीतर प्रवेश करते हैं , इसलिए ब्रह्मांड का महत्व है । अन्यथा यह बस एक पदार्थ है, कोई मूल्य नहीं है । एकम्शेन स्थितो जगत