HI/Prabhupada 0529 - राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं: Difference between revisions

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तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह में किस तरह का आनंद होगा? इस बात को समझने की कोशिश करें । कृष्ण इतने महान हैं, ईश्वर महान हैं, हर कोई जानता है । तो महान जब आनंद चाहता है, तो उस भोग की गुणवत्ता क्या होगी? यही समझने की अावश्यकता है ।राधा कृष्ण ... इसलिए स्चरूप दामोदर गोस्वामी नेंi एक श्लोक लिखा, राधा कृष्ण-प्रनय-विक्रति: । राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं है यह भौतिक प्यार के मामले , हालांकि ये उस तरह से दिखाई देते हैं लेकिन जो कृष्ण को समझ नहीं सकता है , अवजानन्ति माम मूढा ([[Vanisource:BG 9.11|भ गी ९।११]]) मूढा, दुष्ट, मूर्ख, वे कृष्ण को आम आदमी के रूप में समझते हैं । जैसे ही हम कृष्ण को हम में से एक के रूप में लेते हैं ... मानुषिम तनुम अाश्रिताम, परम भावम अजानत: । ये दुष्ट, वे परम भावम को जानते नहीं हैं । वे श्री कृष्ण की लीला की नकल करने की कोशिश करते हैं, रास-लीला । कई दुष्ट हैं । तो यह बातें चल रही हैं । कृष्ण की कोई समझ नहीं है । कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल है
तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह किस तरह का आनंद होगा ? इस बात को समझने की कोशिश करें । कृष्ण इतने महान हैं, ईश्वर महान हैं, हर कोई जानता है । तो महान जब आनंद चाहता है, तो उस भोग की गुणवत्ता क्या होगी ? यही समझने की अावश्यकता है । राधा कृष्ण... इसलिए स्चरूप दामोदर गोस्वामी नें एक श्लोक लिखा, राधा कृष्ण-प्रणय-विकृति: । राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं, यह भौतिक प्यार के मामले, हालांकि ये उस तरह से दिखाई देते हैं लेकिन जो कृष्ण को समझ नहीं सकता है, अवजानन्ति माम मूढा([[HI/BG 9.11|भ.गी. ९.११]]) ।  


:मनुष्यानाम सहस्रेशु
मूढा, दुष्ट, मूर्ख, वे कृष्ण को आम आदमी के रूप में समझते हैं । जैसे ही हम कृष्ण को हम में से एक के रूप में लेते हैं... मानुषीम तनुम अाश्रिताम, परम भावम अजानन्त: । ये दुष्ट, वे परम भावम को जानते नहीं हैं । वे श्रीकृष्ण की लीला की नकल करने की कोशिश करते हैं, रास-लीला । कई दुष्ट हैं । तो यह बातें चल रही हैं । कृष्ण को कोई समझ नहीं है । कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल है ।
:कश्चिद यतति सिद्धये
:यतताम अपि सिद्धानाम
:कश्चिन माम वेत्ति तत्वत:
:([[Vanisource:BG 7.3|भ गी ७।३]])


लाखों लोगों में से कोई एक अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने के लिए प्रयास करता है । हर कोई जानवर की तरह काम कर रहा है । जीवन की पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है । पशु प्रवृत्ति:, खाना, सोना, संभोग और बचाव ... तो हर कोई जानवरों की तरह लगा हुअा है । उन्हे कोई अन्य काम ही नहीं, सिर्फ जानवर की तरह, सुअर, कुत्ते, पूरे दिन और रात काम करते रेहना : "मल कहां है? मल कहां है?" और जैसे ही वह कुछ मल मिलता है, कुछ मोटापा मिलता है, "सेक्स कहां है? सेक्स कहाँ है?" मां या बहन का कोई विचार नहीं । यह सूअर का जीवन है ।
:मनुष्याणाम सहस्रेशु
:कश्चिद यतति सिद्धये
:यतताम अपि सिद्धानाम
:कश्चिन माम वेत्ति तत्वत:
:([[HI/BG 7.3|भ.गी. ७.३]])


तो मानव जीवन का मतलब हॉग सभ्यता नहीं है । तो आधुनिक सभ्यता हॉग सभ्यता है, हालांकि यह सभ्य दिखता है शर्ट और कोट के साथ तो, हम समझने की कोशिश करते हैं । यह कृष्ण भावनाम्रत आंदोलन कृष्ण को समझने के लिए है । कृष्ण को समझने के लिए, थोड़ा परिश्रम, तपस्या की आवश्यकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । तपस्या । हमें तपस्या से गुजरना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य । अविवाहित जीवन । तपस्या । ब्रह्मचर्य का मतलब है सेक्स जीवन को रोकना या यौन जीवन को नियंत्रित करना । ब्रह्मचर्य । इसलिए वैदिक सभ्यता, शुरू से ही है, ब्रह्मचर्य बनने के लिए लड़कों को प्रशिक्षित करने के लिए, अविवाहित जीवन । आधुनिक दिन की तरह नहीं, स्कूल, लड़के और लड़कियॉ, दस साल, बारह साल, वे आनंद ले रहे हैं । दिमाग खराब हो गया है । वे उच्च बातें को नहीं समझ सकते हैं मस्तिष्क के ऊतक खो रहे हैं । तो ब्रह्मचारी बने बिना, कोई भी आध्यात्मिक जीवन को समझ नहीं सकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । सम का मतलब है मन को नियंत्रित करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना ; दमेन, इंद्रियों का नियंत्रिण, त्यागेन; शौचेन, सफाई; त्याग, त्याग का मतलब है दान । तो प्रक्रियाऍ हैं अपने को समझने के लिए, आत्म बोध । लेकिन इस युग में इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना बहुत मुश्किल है व्यावहारिक रूप से यह असंभव है । इसलिए भगवान चैतन्य, कृष्ण ही, खुद को आसानी से उपलब्ध कराया है एक प्रक्रिया से:
लाखों लोगों में से कोई एक अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने का प्रयास करता है । हर कोई जानवर की तरह काम कर रहा है । जीवन की पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है । पशु प्रवृत्ति:, खाना, सोना, संभोग और बचाव... तो हर कोई जानवर की तरह लगा हुअा है । उन्हें कोई अन्य काम नहीं है, सिर्फ जानवर, सूअर, कुत्तो, की तरह, पूरा दिन और रात काम करते रहना: "मल कहाँ है ? मल कहाँ है ?" और जैसे ही उसे कुछ मल मिलता है, कुछ फैट मिलता है, "मैथुन कहाँ है ? मैथुन कहाँ है ?" माँ या बहन का कोई विचार नहीं । यह सूअर का जीवन है । तो मानव जीवन सूअर सभ्यता के लिए नहीं है । तो आधुनिक सभ्यता सूअर सभ्यता है, हालांकि यह सभ्य दिखता है शर्ट और कोट के साथ । तो, हम समझने की कोशिश करेंगे । यह कृष्णभावनामृत आंदोलन कृष्ण को समझने के लिए है ।  


:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
कृष्ण को समझने के लिए, थोड़ा परिश्रम, तपस्या की आवश्यकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन । तपस्या । हमें तपस्या से गुजरना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य । अविवाहित जीवन । तपस्या । ब्रह्मचर्य का मतलब है यौन जीवन को रोकना या यौन जीवन को नियंत्रित करना । ब्रह्मचर्य । इसलिए वैदिक सभ्यता, शुरू से ही है, लड़कों को ब्रह्मचारी बनने के लिए प्रशिक्षित करना, अविवाहित जीवन । आधुनिक युग की तरह नहीं, स्कूल, लड़के और लड़कियाँ, दस साल, बारह साल, वे आनंद ले रहे हैं । दिमाग खराब हो गया है । वे उच्च चीज़ोको नहीं समझ सकते । मस्तिष्क के तंतु खो गए हैं । तो ब्रह्मचारी बने बिना, कोई भी आध्यात्मिक जीवन को समझ नहीं सकता है ।
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चै अादि १७।२१]])


इस युग में, कलि-युग ... कलि-युग सबसे गिरा हुसा युग माना जाता है । हम सोच रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा अग्रिम हो रहे हैं , लेकिन यह सबसे गिरा हुसा युग है । क्योंकि लोग जानवरों की तरह होते जा रहे हैं । जैसे जानवरों को कोई अन्य रुचि नहीं है चार सिद्धांत शारीरिक आवश्यकताओं के अलावा - खाना, सोना, संभोग और बचाव - तो इस युग में, लोग शारीरिक माँग के चार सिद्धांतों में रुचि रखते हैं । उन्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है, न तो वे महसूस करने के लिए तैयार हैं कि आत्मा है क्या । यही इस युग का दोष है । लेकिन मनुष्य जीवन विशेष रूप से खुद को पहचानने के लिए है, "मैं क्या हूँ?" मानव जीवन का यही मक्सद है ।
तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । सम का मतलब है मन को नियंत्रित करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना; दमेन, इंद्रियों का नियंत्रिण, त्यागेन; शौचेन, सफाई; त्याग, त्याग का मतलब है दान । तो प्रक्रियाऍ हैं ख़ुद को समझने के लिए, आत्म बोध । लेकिन इस युग में इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना बहुत मुश्किल है । व्यावहारिक रूप से यह असंभव है । इसलिए भगवान चैतन्य ने, स्वयं कृष्ण ने, खुद को आसानी से उपलब्ध कराया है एक प्रक्रिया से:
 
:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१]])
 
इस युग में, कलि-युग में... कलि-युग सबसे गिरा हुआ युग माना जाता है । हम सोच रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा सफल हो रहे हैं, लेकिन यह सबसे गिरा हुआ युग है । क्योंकि लोग जानवरों की तरह होते जा रहे हैं । जैसे जानवरों को कोई अन्य रुचि नहीं है शरीर की सैद्धांतिक चार आवश्यकताओं के अलावा, खाना, सोना, संभोग और बचाव - तो इस युग में, लोग शारीरिक माँग के चार सिद्धांतों में रुचि रखते हैं । उन्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है, न तो वे महसूस करने के लिए तैयार हैं कि आत्मा है क्या । यही इस युग का दोष है । लेकिन मनुष्य जीवन विशेष रूप से खुद को पहचानने के लिए है, "मैं क्या हूँ ?" मानव जीवन का यही लक्ष्य है ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह किस तरह का आनंद होगा ? इस बात को समझने की कोशिश करें । कृष्ण इतने महान हैं, ईश्वर महान हैं, हर कोई जानता है । तो महान जब आनंद चाहता है, तो उस भोग की गुणवत्ता क्या होगी ? यही समझने की अावश्यकता है । राधा कृष्ण... इसलिए स्चरूप दामोदर गोस्वामी नें एक श्लोक लिखा, राधा कृष्ण-प्रणय-विकृति: । राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं, यह भौतिक प्यार के मामले, हालांकि ये उस तरह से दिखाई देते हैं । लेकिन जो कृष्ण को समझ नहीं सकता है, अवजानन्ति माम मूढा: (भ.गी. ९.११) ।

मूढा, दुष्ट, मूर्ख, वे कृष्ण को आम आदमी के रूप में समझते हैं । जैसे ही हम कृष्ण को हम में से एक के रूप में लेते हैं... मानुषीम तनुम अाश्रिताम, परम भावम अजानन्त: । ये दुष्ट, वे परम भावम को जानते नहीं हैं । वे श्रीकृष्ण की लीला की नकल करने की कोशिश करते हैं, रास-लीला । कई दुष्ट हैं । तो यह बातें चल रही हैं । कृष्ण को कोई समझ नहीं है । कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल है ।

मनुष्याणाम सहस्रेशु
कश्चिद यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम
कश्चिन माम वेत्ति तत्वत:
(भ.गी. ७.३)

लाखों लोगों में से कोई एक अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने का प्रयास करता है । हर कोई जानवर की तरह काम कर रहा है । जीवन की पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है । पशु प्रवृत्ति:, खाना, सोना, संभोग और बचाव... तो हर कोई जानवर की तरह लगा हुअा है । उन्हें कोई अन्य काम नहीं है, सिर्फ जानवर, सूअर, कुत्तो, की तरह, पूरा दिन और रात काम करते रहना: "मल कहाँ है ? मल कहाँ है ?" और जैसे ही उसे कुछ मल मिलता है, कुछ फैट मिलता है, "मैथुन कहाँ है ? मैथुन कहाँ है ?" माँ या बहन का कोई विचार नहीं । यह सूअर का जीवन है । तो मानव जीवन सूअर सभ्यता के लिए नहीं है । तो आधुनिक सभ्यता सूअर सभ्यता है, हालांकि यह सभ्य दिखता है शर्ट और कोट के साथ । तो, हम समझने की कोशिश करेंगे । यह कृष्णभावनामृत आंदोलन कृष्ण को समझने के लिए है ।

कृष्ण को समझने के लिए, थोड़ा परिश्रम, तपस्या की आवश्यकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । तपस्या । हमें तपस्या से गुजरना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य । अविवाहित जीवन । तपस्या । ब्रह्मचर्य का मतलब है यौन जीवन को रोकना या यौन जीवन को नियंत्रित करना । ब्रह्मचर्य । इसलिए वैदिक सभ्यता, शुरू से ही है, लड़कों को ब्रह्मचारी बनने के लिए प्रशिक्षित करना, अविवाहित जीवन । आधुनिक युग की तरह नहीं, स्कूल, लड़के और लड़कियाँ, दस साल, बारह साल, वे आनंद ले रहे हैं । दिमाग खराब हो गया है । वे उच्च चीज़ोको नहीं समझ सकते । मस्तिष्क के तंतु खो गए हैं । तो ब्रह्मचारी बने बिना, कोई भी आध्यात्मिक जीवन को समझ नहीं सकता है ।

तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । सम का मतलब है मन को नियंत्रित करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना; दमेन, इंद्रियों का नियंत्रिण, त्यागेन; शौचेन, सफाई; त्याग, त्याग का मतलब है दान । तो प्रक्रियाऍ हैं ख़ुद को समझने के लिए, आत्म बोध । लेकिन इस युग में इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना बहुत मुश्किल है । व्यावहारिक रूप से यह असंभव है । इसलिए भगवान चैतन्य ने, स्वयं कृष्ण ने, खुद को आसानी से उपलब्ध कराया है एक प्रक्रिया से:

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१)

इस युग में, कलि-युग में... कलि-युग सबसे गिरा हुआ युग माना जाता है । हम सोच रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा सफल हो रहे हैं, लेकिन यह सबसे गिरा हुआ युग है । क्योंकि लोग जानवरों की तरह होते जा रहे हैं । जैसे जानवरों को कोई अन्य रुचि नहीं है शरीर की सैद्धांतिक चार आवश्यकताओं के अलावा, खाना, सोना, संभोग और बचाव - तो इस युग में, लोग शारीरिक माँग के चार सिद्धांतों में रुचि रखते हैं । उन्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है, न तो वे महसूस करने के लिए तैयार हैं कि आत्मा है क्या । यही इस युग का दोष है । लेकिन मनुष्य जीवन विशेष रूप से खुद को पहचानने के लिए है, "मैं क्या हूँ ?" मानव जीवन का यही लक्ष्य है ।