HI/Prabhupada 0529 - राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं: Difference between revisions
(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0529 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1971 Category:HI-Quotes - Lec...") |
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->") |
||
Line 6: | Line 6: | ||
[[Category:HI-Quotes - in United Kingdom]] | [[Category:HI-Quotes - in United Kingdom]] | ||
<!-- END CATEGORY LIST --> | <!-- END CATEGORY LIST --> | ||
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | |||
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0528 - राधारानी कृष्ण की आनन्द शक्ति हैं|0528|HI/Prabhupada 0530 - हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं|0530}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | <!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | ||
<div class="center"> | <div class="center"> | ||
Line 14: | Line 17: | ||
<!-- BEGIN VIDEO LINK --> | <!-- BEGIN VIDEO LINK --> | ||
{{youtube_right| | {{youtube_right|BYdgu1t_iTo|राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं<br />- Prabhupāda 0529}} | ||
<!-- END VIDEO LINK --> | <!-- END VIDEO LINK --> | ||
<!-- BEGIN AUDIO LINK --> | <!-- BEGIN AUDIO LINK --> | ||
<mp3player> | <mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/710829RA.LON_Radhastami_clip2.mp3</mp3player> | ||
<!-- END AUDIO LINK --> | <!-- END AUDIO LINK --> | ||
Line 26: | Line 29: | ||
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT --> | <!-- BEGIN TRANSLATED TEXT --> | ||
तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह | तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह किस तरह का आनंद होगा ? इस बात को समझने की कोशिश करें । कृष्ण इतने महान हैं, ईश्वर महान हैं, हर कोई जानता है । तो महान जब आनंद चाहता है, तो उस भोग की गुणवत्ता क्या होगी ? यही समझने की अावश्यकता है । राधा कृष्ण... इसलिए स्चरूप दामोदर गोस्वामी नें एक श्लोक लिखा, राधा कृष्ण-प्रणय-विकृति: । राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं, यह भौतिक प्यार के मामले, हालांकि ये उस तरह से दिखाई देते हैं । लेकिन जो कृष्ण को समझ नहीं सकता है, अवजानन्ति माम मूढा: ([[HI/BG 9.11|भ.गी. ९.११]]) । | ||
: | मूढा, दुष्ट, मूर्ख, वे कृष्ण को आम आदमी के रूप में समझते हैं । जैसे ही हम कृष्ण को हम में से एक के रूप में लेते हैं... मानुषीम तनुम अाश्रिताम, परम भावम अजानन्त: । ये दुष्ट, वे परम भावम को जानते नहीं हैं । वे श्रीकृष्ण की लीला की नकल करने की कोशिश करते हैं, रास-लीला । कई दुष्ट हैं । तो यह बातें चल रही हैं । कृष्ण को कोई समझ नहीं है । कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल है । | ||
:मनुष्याणाम सहस्रेशु | |||
:कश्चिद यतति सिद्धये | |||
:यतताम अपि सिद्धानाम | |||
:कश्चिन माम वेत्ति तत्वत: | |||
:([[HI/BG 7.3|भ.गी. ७.३]]) | |||
लाखों लोगों में से कोई एक अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने का प्रयास करता है । हर कोई जानवर की तरह काम कर रहा है । जीवन की पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है । पशु प्रवृत्ति:, खाना, सोना, संभोग और बचाव... तो हर कोई जानवर की तरह लगा हुअा है । उन्हें कोई अन्य काम नहीं है, सिर्फ जानवर, सूअर, कुत्तो, की तरह, पूरा दिन और रात काम करते रहना: "मल कहाँ है ? मल कहाँ है ?" और जैसे ही उसे कुछ मल मिलता है, कुछ फैट मिलता है, "मैथुन कहाँ है ? मैथुन कहाँ है ?" माँ या बहन का कोई विचार नहीं । यह सूअर का जीवन है । तो मानव जीवन सूअर सभ्यता के लिए नहीं है । तो आधुनिक सभ्यता सूअर सभ्यता है, हालांकि यह सभ्य दिखता है शर्ट और कोट के साथ । तो, हम समझने की कोशिश करेंगे । यह कृष्णभावनामृत आंदोलन कृष्ण को समझने के लिए है । | |||
कृष्ण को समझने के लिए, थोड़ा परिश्रम, तपस्या की आवश्यकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । तपस्या । हमें तपस्या से गुजरना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य । अविवाहित जीवन । तपस्या । ब्रह्मचर्य का मतलब है यौन जीवन को रोकना या यौन जीवन को नियंत्रित करना । ब्रह्मचर्य । इसलिए वैदिक सभ्यता, शुरू से ही है, लड़कों को ब्रह्मचारी बनने के लिए प्रशिक्षित करना, अविवाहित जीवन । आधुनिक युग की तरह नहीं, स्कूल, लड़के और लड़कियाँ, दस साल, बारह साल, वे आनंद ले रहे हैं । दिमाग खराब हो गया है । वे उच्च चीज़ोको नहीं समझ सकते । मस्तिष्क के तंतु खो गए हैं । तो ब्रह्मचारी बने बिना, कोई भी आध्यात्मिक जीवन को समझ नहीं सकता है । | |||
इस युग में, कलि-युग ... कलि-युग सबसे गिरा | तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । सम का मतलब है मन को नियंत्रित करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना; दमेन, इंद्रियों का नियंत्रिण, त्यागेन; शौचेन, सफाई; त्याग, त्याग का मतलब है दान । तो प्रक्रियाऍ हैं ख़ुद को समझने के लिए, आत्म बोध । लेकिन इस युग में इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना बहुत मुश्किल है । व्यावहारिक रूप से यह असंभव है । इसलिए भगवान चैतन्य ने, स्वयं कृष्ण ने, खुद को आसानी से उपलब्ध कराया है एक प्रक्रिया से: | ||
:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम | |||
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा | |||
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१]]) | |||
इस युग में, कलि-युग में... कलि-युग सबसे गिरा हुआ युग माना जाता है । हम सोच रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा सफल हो रहे हैं, लेकिन यह सबसे गिरा हुआ युग है । क्योंकि लोग जानवरों की तरह होते जा रहे हैं । जैसे जानवरों को कोई अन्य रुचि नहीं है शरीर की सैद्धांतिक चार आवश्यकताओं के अलावा, खाना, सोना, संभोग और बचाव - तो इस युग में, लोग शारीरिक माँग के चार सिद्धांतों में रुचि रखते हैं । उन्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है, न तो वे महसूस करने के लिए तैयार हैं कि आत्मा है क्या । यही इस युग का दोष है । लेकिन मनुष्य जीवन विशेष रूप से खुद को पहचानने के लिए है, "मैं क्या हूँ ?" मानव जीवन का यही लक्ष्य है । | |||
<!-- END TRANSLATED TEXT --> | <!-- END TRANSLATED TEXT --> |
Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971
तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह किस तरह का आनंद होगा ? इस बात को समझने की कोशिश करें । कृष्ण इतने महान हैं, ईश्वर महान हैं, हर कोई जानता है । तो महान जब आनंद चाहता है, तो उस भोग की गुणवत्ता क्या होगी ? यही समझने की अावश्यकता है । राधा कृष्ण... इसलिए स्चरूप दामोदर गोस्वामी नें एक श्लोक लिखा, राधा कृष्ण-प्रणय-विकृति: । राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं, यह भौतिक प्यार के मामले, हालांकि ये उस तरह से दिखाई देते हैं । लेकिन जो कृष्ण को समझ नहीं सकता है, अवजानन्ति माम मूढा: (भ.गी. ९.११) ।
मूढा, दुष्ट, मूर्ख, वे कृष्ण को आम आदमी के रूप में समझते हैं । जैसे ही हम कृष्ण को हम में से एक के रूप में लेते हैं... मानुषीम तनुम अाश्रिताम, परम भावम अजानन्त: । ये दुष्ट, वे परम भावम को जानते नहीं हैं । वे श्रीकृष्ण की लीला की नकल करने की कोशिश करते हैं, रास-लीला । कई दुष्ट हैं । तो यह बातें चल रही हैं । कृष्ण को कोई समझ नहीं है । कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल है ।
- मनुष्याणाम सहस्रेशु
- कश्चिद यतति सिद्धये
- यतताम अपि सिद्धानाम
- कश्चिन माम वेत्ति तत्वत:
- (भ.गी. ७.३)
लाखों लोगों में से कोई एक अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने का प्रयास करता है । हर कोई जानवर की तरह काम कर रहा है । जीवन की पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है । पशु प्रवृत्ति:, खाना, सोना, संभोग और बचाव... तो हर कोई जानवर की तरह लगा हुअा है । उन्हें कोई अन्य काम नहीं है, सिर्फ जानवर, सूअर, कुत्तो, की तरह, पूरा दिन और रात काम करते रहना: "मल कहाँ है ? मल कहाँ है ?" और जैसे ही उसे कुछ मल मिलता है, कुछ फैट मिलता है, "मैथुन कहाँ है ? मैथुन कहाँ है ?" माँ या बहन का कोई विचार नहीं । यह सूअर का जीवन है । तो मानव जीवन सूअर सभ्यता के लिए नहीं है । तो आधुनिक सभ्यता सूअर सभ्यता है, हालांकि यह सभ्य दिखता है शर्ट और कोट के साथ । तो, हम समझने की कोशिश करेंगे । यह कृष्णभावनामृत आंदोलन कृष्ण को समझने के लिए है ।
कृष्ण को समझने के लिए, थोड़ा परिश्रम, तपस्या की आवश्यकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । तपस्या । हमें तपस्या से गुजरना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य । अविवाहित जीवन । तपस्या । ब्रह्मचर्य का मतलब है यौन जीवन को रोकना या यौन जीवन को नियंत्रित करना । ब्रह्मचर्य । इसलिए वैदिक सभ्यता, शुरू से ही है, लड़कों को ब्रह्मचारी बनने के लिए प्रशिक्षित करना, अविवाहित जीवन । आधुनिक युग की तरह नहीं, स्कूल, लड़के और लड़कियाँ, दस साल, बारह साल, वे आनंद ले रहे हैं । दिमाग खराब हो गया है । वे उच्च चीज़ोको नहीं समझ सकते । मस्तिष्क के तंतु खो गए हैं । तो ब्रह्मचारी बने बिना, कोई भी आध्यात्मिक जीवन को समझ नहीं सकता है ।
तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । सम का मतलब है मन को नियंत्रित करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना; दमेन, इंद्रियों का नियंत्रिण, त्यागेन; शौचेन, सफाई; त्याग, त्याग का मतलब है दान । तो प्रक्रियाऍ हैं ख़ुद को समझने के लिए, आत्म बोध । लेकिन इस युग में इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना बहुत मुश्किल है । व्यावहारिक रूप से यह असंभव है । इसलिए भगवान चैतन्य ने, स्वयं कृष्ण ने, खुद को आसानी से उपलब्ध कराया है एक प्रक्रिया से:
- हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
- कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
- (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१)
इस युग में, कलि-युग में... कलि-युग सबसे गिरा हुआ युग माना जाता है । हम सोच रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा सफल हो रहे हैं, लेकिन यह सबसे गिरा हुआ युग है । क्योंकि लोग जानवरों की तरह होते जा रहे हैं । जैसे जानवरों को कोई अन्य रुचि नहीं है शरीर की सैद्धांतिक चार आवश्यकताओं के अलावा, खाना, सोना, संभोग और बचाव - तो इस युग में, लोग शारीरिक माँग के चार सिद्धांतों में रुचि रखते हैं । उन्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है, न तो वे महसूस करने के लिए तैयार हैं कि आत्मा है क्या । यही इस युग का दोष है । लेकिन मनुष्य जीवन विशेष रूप से खुद को पहचानने के लिए है, "मैं क्या हूँ ?" मानव जीवन का यही लक्ष्य है ।