HI/Prabhupada 0583 - सब कुछ भगवद गीता में है: Difference between revisions

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तो पूरा ब्रह्मांड भगवान के सहायक द्वारा चलाया जा रहा है, ब्रह्मा के अनुसार, सबसे शक्तिशाली सहायक । तेने ब्रह्म ह्रदया य अादि कवये मुह्यन्ति यत सूरय: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री भ १।१।१]]) ब्रह्मा के ह्दय में भी, तेने ब्रह्म ह्रदा, ह्रदा, फिर से ह्रदा । क्योंखि ब्रह्मा अकेले थे, तो क्या करें? ब्रह्मा उलझन में थे । लेकिन कृष्ण नें निर्देश दिया, " तुम करो, तुम इस तरह से इस ब्रह्मांड का सृजन करो ।" बुद्धि योगम ददामि तम, "मैं बुद्धि देता हूँ ।" तो सब कुछ है । सब कुछ है, कृष्ण हमेशा तुम्हारे साथ हैं । अगर तुम वापस देवत्व को, घर को वापस जाना चाहते हो, तो कृष्ण तैयार है तुम्हे सभी शिक्षा देने के लिए । "हाँ, येन माम उपयान्ति ते ।" वे निर्देश देते हैं, "हाँ, तुम इस तरह से करो । तो तुम्हारा खतम हो जाएगा, तुम्हारे, यह भौतिक कर्म और इस शरीर के त्यागने के बाद, तुम मेरे पास आ जाअोगे ।" लेकिन अगर तुम इस भौतिक अस्तित्व को जारी रखना चाहते हो, तो वासाम्सि जीर्णानि यथा विहाय ([[Vanisource:BG 2.22|भ गी २।२२]]) तुम्हे एक शरीर को स्वीकार करना होगा और जब यह किसी काम नहीं रहेगा, तो तुम्हे इस शरीर को छोड़ देना होगा और एक और शरीर को स्वीकार करना होगा । यही भौतिक अस्तित्व की निरंतरता है । लेकिन अगर तुम इसे खत्म करना चाहते हो, अगर तुम वास्तव में इस तरह के कार्यों से निराश हो, भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[Vanisource:BG 8.19|भ गी ८।१९]]), एक बार जन्म लेना, फिर से मरना, फिर लेना । लेकिन हम इतने बेशर्म और इतनी बकवास हैं कि हम बहुत ज्यादा इस व्यवसाय से निराश नहीं हैं । हम जारी रखना चाहते हैं, और इसलिए कृष्ण भी तैयार है: " ठीक है, तुम जारी रखो ।" यही भगवद गीता में कहा गया है, यंत्ररूढानि मायया ।
तो पूरा ब्रह्मांड भगवान के सहायक द्वारा चलाया जा रहा है, ब्रह्मा के अनुसार, सबसे शक्तिशाली सहायक । तेने ब्रह्म हृदा य अादि कवये मुह्यन्ति यत सूरय: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) | ब्रह्मा के हृदय में भी, तेने ब्रह्म हृदा, हृदा, फिर से हृदा । क्योंखि ब्रह्मा अकेले थे, तो क्या करें? ब्रह्मा उलझन में थे । लेकिन कृष्ण नें निर्देश दिया, "तुम करो, तुम इस तरह से इस ब्रह्मांड का सृजन करो ।" बुद्धि योगम ददामि तम ([[HI/BG 10.10|भ.गी. १०.१०]]), "मैं बुद्धि देता हूँ ।"  


:ईषवर: सर्व भुतानाम
तो सब कुछ है । सब कुछ है, कृष्ण हमेशा तुम्हारे साथ हैं । अगर तुम वापस परम धाम जाना चाहते हो, तो कृष्ण तैयार है तुम्हे सभी शिक्षा देने के लिए । "हाँ, येन माम उपयान्ति ते ([[HI/BG 10.10|भ.गी. १०.१०]])।" वे निर्देश देते हैं, "हाँ, तुम इस तरह से करो । तो तुम्हारा यह भौतिक कर्म ख़त्म जाएगा और इस शरीर के त्यागने के बाद, तुम मेरे पास आ जाअोगे ।" लेकिन अगर तुम इस भौतिक अस्तित्व को जारी रखना चाहते हो, तो वासांसी जीर्णानि यथा विहाय ([[HI/BG 2.22|भ.गी. २.२२]]), तुम्हे एक शरीर को स्वीकार करना होगा, और जब यह किसी काम नहीं रहेगा, तो तुम्हे इस शरीर को छोड़ देना होगा और एक और शरीर को स्वीकार करना होगा ।
:ह्रद-देशे अर्जुन तिश्थति
:भ्रामयन सर्व भूतानि
:यंत्ररूढानि मायया
:([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]])


बहुत साफ है । कृष्ण तुम्हारी इच्छा को जानता है, कि अगर तुम अब भी इस भौतिक संसार का आनंद लेना चाहते हो, तो "आनंद लो, ठीक है ।" तो विभिन्न प्रकार के आनंदों का अानंद लेने के लिए, हमें विभिन्न प्रकार की उपकरण की आवश्यकता होती है । तो कृष्ण तैयार करते हैं तुम्हे, इतने दयालु, "ठीक है ।" जैसे पिता एक खिलौना देता है, बच्चा एक मोटर गाड़ी चाहता है । "ठीक है, एक खिलौना मोटर गाड़ी ले लो " वह एक इंजन चाहता है, वह एक रेलवे आदमी बनना चाहता है । अब एसे खिलौने हैं । इसी प्रकार श्री कृष्ण ये खिलौने शरीर दे रहे हैं । यंत्र, यंत्र का मतलब है मशीन । यह एक मशीन है । हर कोई समझता है यह एक मशीन है । लेकिन किसने मशीन की आपूर्ति की है? मशीन प्रकृति द्वारा आपूर्ति की जाती है, भौतिक तत्व, लेकिन यह कृष्ण के आदेश के तहत तैयार किया जाता है । मयाध्यक्शेन प्रकृति: सूयते स-चराचरम ([[Vanisource:BG 9.10|भ गी ९।१०]]) । " प्रकृति, मेरे निर्देशन के तहत इन सब बातों को तैयार कर रही है "
यही भौतिक अस्तित्व की निरंतरता है । लेकिन अगर तुम इसे खत्म करना चाहते हो, अगर तुम वास्तव में इस तरह के कार्यों से निराश हो, भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[HI/BG 8.19|भ.गी. ८.१९]]), एक बार जन्म लेना, फिर से मरना, फिर लेना लेकिन हम इतने बेशर्म और इतने बकवास हैं कि इस व्यवसाय से ज़रा भी निराश नहीं हैं । हम जारी रखना चाहते हैं, और इसलिए कृष्ण भी तैयार है: "ठीक है, तुम जारी रखो ।" यही भगवद गीता में कहा गया है, यंत्ररूढानि मायया ।  


इसलिए कहां है कृष्ण भावनामृत को समझने में कठिनाई ? सब कुछ भगवद गीता में है । अगर तुम लगन से अध्ययन करते हो और समझने की कोशिश करते हो, तो तुम हमेशा पूरी तरह कृष्ण के प्रति सचेत रहते हो । सब कुछ है । मेरी स्थिति क्या है, कैसे मैं काम कर रहा हूँ, कैसे मैं मर रहा हूँ, कैसे मुझे यह शरीर मिल रहा है, कैसे मैं भटक रहा हूँ । सब कुछ विस्तार से है । बस हमें थोडा से बुद्धिमान होना है । लेकिन हम नासमझ बने रहते हैं, बदमाश, क्योंकि हम दुष्टों के साथ संग कर रहे हैं । ये बदमाश दार्शनिक, धर्मिक, अवतार, भगवान, स्वामी, योगि, और कर्मी । इसलिए हम दुष्टों बन गए हैं । सत संग छाडि कैनु असते विलास । नरोत्तम दास ठाकुर इसलिए अफ़सोस करते हैं कि, "मैंने भक्तों के संग को छोड़ दिया मैं बस इन सब दुष्टों के साथ संग करता हूँ ।" असत, असत-संग । ते कारणे लागिले मोर कर्म-बंध-फांस: "इसलिए मैं जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति में उलझ गया हूँ ।" ते कारणे । "तो यह छोड़ दो ।" चाणक्य पंडित भी कहते हैं त्यज दुर्जन संसर्गम ""इन दुष्टों का संग छोड दो ।" भज साधु-समागमम, " केवल भक्तों के साथ सहयोग करो ।" यह ठीक रहेगा । हम विभिन्न केन्द्रों की स्थापना कर रहे हैं, इन्द्रिय अानंद के लिए नहीं, लेकिन भक्तों के अच्छा संग के लिए । अगर हम गवा देते हैं, जो काम कर रहे हैं, जजो इस संस्था के प्रबंधक हैं, उन्हे हमेशा पता होना चाहिए कि हमें इस संस्था या इस केंद्र को एक वेश्यालय नहीं बनाना है । इस तरह का प्रबंधन होना चाहिए और या इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि हमें हमेशा अच्छा समग मिलना चाहिए उन्नति के लिए । यह आवश्यक है ।
:ईश्वर: सर्व भुतानाम
:हृद-देशे अर्जुन तिष्ठती
:भ्रामयन सर्व भूतानि
:यंत्ररूढानि मायया
:([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]])


बहुत बहुत धन्यवाद ।(समाप्त)
बहुत साफ है । कृष्ण तुम्हारी इच्छा को जानता है, की अगर तुम अब भी इस भौतिक संसार का आनंद लेना चाहते हो, तो "आनंद लो, ठीक है ।" तो विभिन्न प्रकार के आनंदों का अानंद लेने के लिए, हमें विभिन्न प्रकार की उपकरण की आवश्यकता होती है । तो कृष्ण तैयार करते हैं तुम्हे, इतने दयालु, "ठीक है ।" जैसे पिता एक खिलौना देता है, बच्चा एक मोटर गाड़ी चाहता है । "ठीक है, एक खिलौने की मोटर गाड़ी ले लो ।" वह एक इंजन चाहता है, वह एक रेलवे आदमी बनना चाहता है ।  अब एसे खिलौने हैं ।
 
इसी प्रकार श्री कृष्ण ये खिलौने के शरीर दे रहे हैं । यंत्र, यंत्र का मतलब है मशीन । यह एक मशीन है । हर कोई समझता है यह एक मशीन है । लेकिन किसने मशीन की आपूर्ति की है? मशीन की आपूर्ति प्रकृति, भौतिक तत्व, द्वारा की जाती है, लेकिन यह कृष्ण के आदेश के तहत तैयार किया जाता है । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स-चराचरम ([[HI/BG 9.10|भ.गी. ९.१०]]) । "प्रकृति, मेरे निर्देशन के तहत इन सब चीज़ो को तैयार कर रही है ।"
 
तो कृष्ण भावनामृत को समझने में कठिनाई कहां है ? सब कुछ भगवद गीता में है । अगर तुम लगन से अध्ययन करते हो और समझने की कोशिश करते हो, तो तुम हमेशा पूरी तरह कृष्ण भावनाभावित रहते हो । सब कुछ है । मेरी स्थिति क्या है, कैसे मैं काम कर रहा हूँ, कैसे मैं मर रहा हूँ, कैसे मुझे यह शरीर मिल रहा है, कैसे मैं भटक रहा हूँ । सब कुछ विस्तार से है । बस हमें थोडा से बुद्धिमान होना है । लेकिन हम नासमझ बने रहते हैं, बदमाश, क्योंकि हम दुष्टों के साथ संग कर रहे हैं । ये बदमाश तत्वज्ञानी, धर्मिक, अवतार, भगवान, स्वामी, योगी, और कर्मी । इसलिए हम दुष्ट बन गए हैं । सत-संग छाडि कैनु असते विलास ।
 
नरोत्तम दास ठाकुर इसलिए अफ़सोस करते हैं कि, "मैंने भक्तों के संग को छोड़ दिया | मैं बस इन सब दुष्टों के साथ संग करता हूँ ।" असत, असत-संग । ते कारणे लागिले मोर कर्म-बंध-फांस: "इसलिए मैं जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति में उलझ गया हूँ ।" ते कारणे । "तो यह छोड़ दो ।" चाणक्य पंडित भी कहते हैं त्यज दुर्जन संसर्गम ""इन दुष्टों का संग छोड दो ।" भज साधु-समागमम, "केवल भक्तों के साथ सहयोग करो ।" यह ठीक रहेगा । हम विभिन्न केन्द्रों की स्थापना कर रहे हैं, इन्द्रिय अानंद के लिए नहीं, लेकिन भक्तों के अच्छे संग के लिए । अगर हम गवा देते हैं, जो काम कर रहे हैं, जो इस संस्था के प्रबंधक हैं, उन्हे हमेशा पता होना चाहिए कि हमें इस संस्था या इस केंद्र को एक वेश्यालय नहीं बनाना है । इस तरह का प्रबंधन होना चाहिए और या इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि हमें हमेशा अच्छा संग मिलना चाहिए उन्नति के लिए  । यह आवश्यक है ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद । (समाप्त)  
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Latest revision as of 18:54, 17 September 2020



Lecture on BG 2.21-22 -- London, August 26, 1973

तो पूरा ब्रह्मांड भगवान के सहायक द्वारा चलाया जा रहा है, ब्रह्मा के अनुसार, सबसे शक्तिशाली सहायक । तेने ब्रह्म हृदा य अादि कवये मुह्यन्ति यत सूरय: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | ब्रह्मा के हृदय में भी, तेने ब्रह्म हृदा, हृदा, फिर से हृदा । क्योंखि ब्रह्मा अकेले थे, तो क्या करें? ब्रह्मा उलझन में थे । लेकिन कृष्ण नें निर्देश दिया, "तुम करो, तुम इस तरह से इस ब्रह्मांड का सृजन करो ।" बुद्धि योगम ददामि तम (भ.गी. १०.१०), "मैं बुद्धि देता हूँ ।"

तो सब कुछ है । सब कुछ है, कृष्ण हमेशा तुम्हारे साथ हैं । अगर तुम वापस परम धाम जाना चाहते हो, तो कृष्ण तैयार है तुम्हे सभी शिक्षा देने के लिए । "हाँ, येन माम उपयान्ति ते (भ.गी. १०.१०)।" वे निर्देश देते हैं, "हाँ, तुम इस तरह से करो । तो तुम्हारा यह भौतिक कर्म ख़त्म जाएगा और इस शरीर के त्यागने के बाद, तुम मेरे पास आ जाअोगे ।" लेकिन अगर तुम इस भौतिक अस्तित्व को जारी रखना चाहते हो, तो वासांसी जीर्णानि यथा विहाय (भ.गी. २.२२), तुम्हे एक शरीर को स्वीकार करना होगा, और जब यह किसी काम नहीं रहेगा, तो तुम्हे इस शरीर को छोड़ देना होगा और एक और शरीर को स्वीकार करना होगा ।

यही भौतिक अस्तित्व की निरंतरता है । लेकिन अगर तुम इसे खत्म करना चाहते हो, अगर तुम वास्तव में इस तरह के कार्यों से निराश हो, भूत्वा भूत्वा प्रलीयते (भ.गी. ८.१९), एक बार जन्म लेना, फिर से मरना, फिर लेना । लेकिन हम इतने बेशर्म और इतने बकवास हैं कि इस व्यवसाय से ज़रा भी निराश नहीं हैं । हम जारी रखना चाहते हैं, और इसलिए कृष्ण भी तैयार है: "ठीक है, तुम जारी रखो ।" यही भगवद गीता में कहा गया है, यंत्ररूढानि मायया ।

ईश्वर: सर्व भुतानाम
हृद-देशे अर्जुन तिष्ठती
भ्रामयन सर्व भूतानि
यंत्ररूढानि मायया
(भ.गी. १८.६१)

बहुत साफ है । कृष्ण तुम्हारी इच्छा को जानता है, की अगर तुम अब भी इस भौतिक संसार का आनंद लेना चाहते हो, तो "आनंद लो, ठीक है ।" तो विभिन्न प्रकार के आनंदों का अानंद लेने के लिए, हमें विभिन्न प्रकार की उपकरण की आवश्यकता होती है । तो कृष्ण तैयार करते हैं तुम्हे, इतने दयालु, "ठीक है ।" जैसे पिता एक खिलौना देता है, बच्चा एक मोटर गाड़ी चाहता है । "ठीक है, एक खिलौने की मोटर गाड़ी ले लो ।" वह एक इंजन चाहता है, वह एक रेलवे आदमी बनना चाहता है । अब एसे खिलौने हैं ।

इसी प्रकार श्री कृष्ण ये खिलौने के शरीर दे रहे हैं । यंत्र, यंत्र का मतलब है मशीन । यह एक मशीन है । हर कोई समझता है यह एक मशीन है । लेकिन किसने मशीन की आपूर्ति की है? मशीन की आपूर्ति प्रकृति, भौतिक तत्व, द्वारा की जाती है, लेकिन यह कृष्ण के आदेश के तहत तैयार किया जाता है । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स-चराचरम (भ.गी. ९.१०) । "प्रकृति, मेरे निर्देशन के तहत इन सब चीज़ो को तैयार कर रही है ।"

तो कृष्ण भावनामृत को समझने में कठिनाई कहां है ? सब कुछ भगवद गीता में है । अगर तुम लगन से अध्ययन करते हो और समझने की कोशिश करते हो, तो तुम हमेशा पूरी तरह कृष्ण भावनाभावित रहते हो । सब कुछ है । मेरी स्थिति क्या है, कैसे मैं काम कर रहा हूँ, कैसे मैं मर रहा हूँ, कैसे मुझे यह शरीर मिल रहा है, कैसे मैं भटक रहा हूँ । सब कुछ विस्तार से है । बस हमें थोडा से बुद्धिमान होना है । लेकिन हम नासमझ बने रहते हैं, बदमाश, क्योंकि हम दुष्टों के साथ संग कर रहे हैं । ये बदमाश तत्वज्ञानी, धर्मिक, अवतार, भगवान, स्वामी, योगी, और कर्मी । इसलिए हम दुष्ट बन गए हैं । सत-संग छाडि कैनु असते विलास ।

नरोत्तम दास ठाकुर इसलिए अफ़सोस करते हैं कि, "मैंने भक्तों के संग को छोड़ दिया | मैं बस इन सब दुष्टों के साथ संग करता हूँ ।" असत, असत-संग । ते कारणे लागिले मोर कर्म-बंध-फांस: "इसलिए मैं जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति में उलझ गया हूँ ।" ते कारणे । "तो यह छोड़ दो ।" चाणक्य पंडित भी कहते हैं त्यज दुर्जन संसर्गम ""इन दुष्टों का संग छोड दो ।" भज साधु-समागमम, "केवल भक्तों के साथ सहयोग करो ।" यह ठीक रहेगा । हम विभिन्न केन्द्रों की स्थापना कर रहे हैं, इन्द्रिय अानंद के लिए नहीं, लेकिन भक्तों के अच्छे संग के लिए । अगर हम गवा देते हैं, जो काम कर रहे हैं, जो इस संस्था के प्रबंधक हैं, उन्हे हमेशा पता होना चाहिए कि हमें इस संस्था या इस केंद्र को एक वेश्यालय नहीं बनाना है । इस तरह का प्रबंधन होना चाहिए और या इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि हमें हमेशा अच्छा संग मिलना चाहिए उन्नति के लिए । यह आवश्यक है ।

बहुत बहुत धन्यवाद । (समाप्त)