HI/Prabhupada 0584 - हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं

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Lecture on BG 2.20 -- Hyderabad, November 25, 1972

तो आत्मा को मारा नहीं जा सकता । न हन्यते हन्यमानर शरीरे । और आत्मा का जन्म नहीं, कोई मृत्यु नहीं । जैसे श्री कृष्ण सनातन है, कृष्ण का जन्म और मृत्यु नहीं है ... अजो अपि सन्न अव्ययात्मा । चौथे अध्याय में कृष्ण कहते हैं । अज । कृष्ण का दूसरा नाम अज है । या विष्णु-तत्त्व । अज । हम भी अज हैं । अज का मतलब है जो जन्म नहीं लेता है । तो दोनो कृष्ण, या भगवान, और जीव, वे शाश्वत हैं । नित्यो नित्यानाम् चेतनस् चेतनानाम ( कथा उपनिषद २।२।१३) फर्क सिर्फ इतना है क्योंकि हम एक छोटे कण हैं इसलिए हमारा भौतिक ऊर्जा के द्वारा ढके जाने का खतरा है । यह अंतर है । हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं । वे कभी नीचे नहीं गिरते हैं । यह अंतर है । तो जैसे बादल की तरह । बादल सूरज की रोशनी के एक हिस्से को ढक सकता है । ऐसा नहीं है कि बादल ढक सकता है, पूरे सूरज की रोशनी को । यह संभव नहीं है । मान लीजिए कि अब यह आकाश बादल सेढका है, शायद सौ मील की दूरी तक, दो सौ मील या पांच सौ मील की दूरी तक । लेकिन पांच सौ मील की दूरी क्या है सूरज की तुलना में, लाखों और अरबों मील ? तो बादल हमारी आंखों को ढक देता है, सूरज को नहीं । इसी तरह, माया जीव की आंखों को ढक सकती है । माया श्रीभगवान को कवर नहीं करती है । नहीं । यह संभव नहीं है । तो यह तथाकथित जन्म और मृत्यु माया के ढकने की वजह से है । तठस्थ शक्ति । हम हैं ... कृष्ण की कई शक्तियॉ हैं । परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते (चै च मध्य १३।६५, अभिप्राय) । यही वैदिक शिक्षा है । निरपेक्ष सत्य की बहु ऊर्जाऍ हैं । जो भी हम देखते हैं ... परास्य ब्राह्मन: शक्तिस तथेदम अखिलम जगत । जो थोडा बहुत हम देखते हैं, यह बस परम की ऊर्जा का वितरण है । ठीक उसी तरह: धूप और सूरज ग्रह और सूर्य देवता । सूर्य देवता, उनके पास से ... सूर्य देवता ही नहीं, जीव भी हैं । उनके शरीर चमक रहा है । उन्हे उग्र शरीर मिला है । जैसे हम सांसारिक शरीर मिल है ... भूमि इस ग्रह में प्रमुख है । इसी तरह, सूर्य ग्रह में, आग प्रमुख है । जैसे भूमी पांच तत्वों में से एक है, आग भी पांच तत्वों में से एक है । ये बातें समझाइ जाएँगी कि आत्मा आग से जलाई नहीं जा सकती है ।