HI/Prabhupada 0589 - हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं: Difference between revisions

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इसलिए यह इच्छा कि मैं भगवान के अस्तित्व में विलय जाऊगा, मैं एक हो जाऊँगा ... जैसे उदाहरण दिया जाता है, "मैं पानी का बूंद हूँ । अब मैं बड़े महासागर में समा जाऊँगा । इसलिए मैं सागर बन जाऊँगा । " यह उदाहरण आम तौर पर मायावादी दार्शनिकों द्वारा दिया जाता है । पानी की बूंद, जब समुद्र के पानी के साथ मिश्रित होता है, वे एक हो जाते हैं । यह केवल कल्पना है । हर बूंद, आणविक । इतने सारे व्यक्तिगत आणविक भाग हैं । इसके अलावा, अगर आप पानी के साथ मिश्रण करते हैं, और ब्रह्मण अस्तित्व में लीन हो जाते हैं, समुद्र, या सागर । तो फिर से अाप लुप्त हो जाअोगे, क्योंकि पानी सागर से लुप्त हो जाता है और यह बादल बन जाता है और फिर से जमीन पर नीचे गिर जाता है, और यह समुद्र को फिर से नीचे चला जाता है । यह चल रहा है । यह अागमन-गमन कहा जाता है, आना और फिर मिश्रण । तो क्या लाभ है ? लेकिन वैष्णव तत्वज्ञान कहता है कि हम पानी के साथ मिश्रित नहीं होना चाहते हैं, हम समुद्र के भीतर एक मछली बनना चाहते हैं । यह बहुत अच्छा है । अगर हम एक मछली, एक बड़ी मछली, या छोटी मछली बन जाते हैं ... कोई फर्क नहीं पडता है । अगर आप गहरे पानी में जाते हैं, तो कोई और अधिक वाष्पीकरण नहीं है । आपका अस्तित्व रहता है । इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया, ब्रह्मण तज, अगर ... निर्भेद-ब्रहमानुसन्धि । जो ब्रह्मण अस्तित्व में लीन होने की कोशिश कर रहे हैं, उनके लिए, यह बहुत सुरक्षित नहीं है । यह श्रीमद-भागवतम में स्पष्ट किया गया है: विमुक्त मानिन: । विमुक्त मानिन: । वे सोच रहे हैं कि "अब मैं ब्रह्मण तज में विलय हो गया हूँ । अब मैं सुरक्षित हूँ ।" नहीं, यह सुरक्षित नहीं है । क्योंखि यह कहा गया है, अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम तत: पतन्ति ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्री भ १०।२।३२]]) यहां तक ​​कि महान तपस्या और तपस्या के बाद, हम उठ सकते हैं, परम पदम, में, ब्रह्मण तेज में विलय । फिर भी, वहाँ से, वह नीचे गिर जाता है । वह नीचे गिर जाता है । क्योंकि ब्रह्मण, आत्मा आत्मा अानन्दमय है । जैसे कृष्ण, या परम, देवत्व के परम व्यक्तित्व, अानन्दमयो अभ्यासात ( वेदान्त सूत्र १।१।१२) सच-चिद-अानन्द-विग्रह ( ब्र स ५।१) । तो बस ब्रह्मण अस्तित्व में विलय होकर, हम अानन्दमय नहीं बन सकते हैं । वैसे ही जैसे आप आकाश में बहुत उच्च उड रहे हैं । तो आसमान में रहने के लिए, यह बहुत अानन्दमय नहीं है । अगर अापको किसी ग्रह में शरण प्राप्त होता है, तो यह अानन्दमय है । अन्यथा, आपको इस ग्रह पर फिर से वापस आना होगा । तो निर्विशेष, किस्मों के बिना, कोई भी आनंद नहीं हो सकता है । विविधता आनंद की मां है । तो हम कोशिश कर रहे हैं ... हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं । इसलिए कुछ इन किस्मों को शून्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ इन किस्मों को अवैयक्तिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन यह हमें सटीक दिव्य सुख नहीं देंगे । अगर आप ब्रह्मण तेज तक जाते हैं और कृष्ण या नारायण की शरण लेते हैं ... ब्रह्मण तेज में असंख्य ग्रह हैं । वे वैकुण्ठ लोक कहा जाता है । और सर्वोच्च वैकुण्ठ लोक गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । तो अगर आप बहुत भाग्यशाली हैं इन ग्रहों में से एक में शरण लेने के लिए तो आप ज्ञान की आनंदित स्थित में सदा खुश हैं । अन्यथा, बस ब्रह्मण तेज में विलय होना बहुत सुरक्षित नहीं है । क्योंकि हम आनंद चाहते हैं । तो अवैयक्तिक शून्य मानक में कोई आनंद नहीं हो सकता है । लेकिन क्योंकि हमें कोई जानकारी नहीं है, मायावादी दार्शनिक, ग्रहों के बारे में वे फिर से वापस आते हैं, इन भौतिक ग्रहों को । अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम तत: पतन्ति अद: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्री भ १०।२।३२]]) अद: का मतलब है इस भौतिक संसार में । मैंने कई बार समझाया है । इतने बड़े, बड़ा संन्यासी हैं । वे इस भौतिक संसार को त्याग देते हैं मिथ्या, जगन मिथ्या, और सन्नयास लेते हैं, और उसके बाद फिर से कुछ दिनों के बाद, वे समाज सेवा, राजनीति में आते हैं । क्योंखि वे ब्रह्मण क्या है यह पता नहीं कर सके । वे, आनंद के लिए, वे इन भौतिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं । क्योंकि आनंद ... हम अानन्दमयो अभ्यासात ( वेदान्त सूत्र १।१।१२) चाहते हैं । तो अगर कोई आध्यात्मिक आनंद नहीं है, होना ही चाहिए, उन्हे निम्न गुणवत्ता पर आना होगा । यह भौतिक दुनिया निम्न गुणवत्ता है । अपरा । अगर हमें आध्यात्मिक आनंद नहीं मिलता, या बेहतर खुशी, तो हमें इस भौतिक सुख को लेना होगा । क्योंकि हम खुशी चाहते हैं । हर कोई खुशी को खोज रहा है ।
इसलिए यह इच्छा कि मैं भगवान के अस्तित्व में विलीन हो जाऊगा, मैं एक हो जाऊँगा... जैसे उदाहरण दिया जाता है, "मैं पानी की बूंद हूँ । अब मैं बड़े महासागर में समा जाऊँगा । इसलिए मैं सागर बन जाऊँगा ।" यह उदाहरण आम तौर पर मायावादी तत्वज्ञानी द्वारा दिया जाता है । पानी की बूंद, जब समुद्र के पानी के साथ मिश्रित होती है, वे एक हो जाते हैं । यह केवल कल्पना है । हर बूंद, आण्विक । इतने सारे व्यक्तिगत आण्विक भाग हैं । इसके अलावा, अगर आप पानी के साथ मिश्रण करते हैं, और ब्रह्म अस्तित्व में, या समुद्र में, या सागर में लीन हो जाते हैं । तो फिर से अाप लुप्त हो जाअोगे, क्योंकि पानी सागर से लुप्त हो जाता है और यह बादल बन जाता है और फिर से जमीन पर नीचे गिर जाता है, और यह फिर से समुद्र में चला जाता है । यह चल रहा है ।  
 
यह अागमन-गमन कहा जाता है, आना और फिर मिश्रण । तो क्या लाभ है ? लेकिन वैष्णव तत्वज्ञान कहता है कि हम पानी के साथ मिश्रित नहीं होना चाहते हैं; हम समुद्र के भीतर एक मछली बनना चाहते हैं । यह बहुत अच्छा है । अगर हम एक मछली, एक बड़ी मछली, या छोटी मछली बन जाते हैं... कोई फर्क नहीं पडता है । अगर आप गहरे पानी में जाते हैं, तो कोई और अधिक वाष्पीकरण नहीं है । आपका अस्तित्व रहता है । इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया, ब्रह्म तेज, अगर... निर्भेद-ब्रह्मानुसन्धि । जो ब्रह्म अस्तित्व में लीन होने की कोशिश कर रहे हैं, उनके लिए, यह बहुत सुरक्षित नहीं है । यह श्रीमद-भागवतम में स्पष्ट किया गया है: विमुक्त मानिन: ।  
 
विमुक्त मानिन: । वे सोच रहे हैं कि "अब मैं ब्रह्म तेज में विलीन हो गया हूँ । अब मैं सुरक्षित हूँ ।" नहीं, यह सुरक्षित नहीं है । क्योंकि यह कहा गया है, अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतन्ति ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्रीमद भागवतम १०.२.३२]]) | यहां तक ​​कि महान तपस्या और तपस्या के बाद, हम उठ सकते हैं, परम पदम, ब्रह्म तेज में विलीन हो सकते है । फिर भी, वहाँ से, वह नीचे गिर जाता है । वह नीचे गिर जाता है । क्योंकि ब्रह्म, आत्मा, आत्मा अानन्दमय है । जैसे कृष्ण, या परम, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, अानन्दमयो अभ्यासात (वेदान्त सूत्र १.१.१२), सच-चिद-अानन्द-विग्रह (ब्रह्मसंहिता ५.१) । तो बस ब्रह्म अस्तित्व में विलीन होकर, हम अानन्दमय नहीं बन सकते हैं । वैसे ही जैसे आप आकाश में बहुत ऊँचे उड रहे हैं ।  
 
तो आसमान में रहना, यह बहुत अानन्दमय नहीं है । अगर अापको किसी ग्रह में शरण प्राप्त होता है, तो यह अानन्दमय है । अन्यथा, आपको इस ग्रह पर फिर से वापस आना होगा । तो निर्विशेष, विभिन्नताओं के बिना, कोई भी आनंद नहीं हो सकता है । विविधता आनंद की माता है । तो हम कोशिश कर रहे हैं... हम इन भौतिक विविधताओ से निराश हो रहे हैं । इसलिए कुछ इन विविधताओं को शून्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ इन विविधताओं को अवैयक्तिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन यह हमें सटीक दिव्य सुख नहीं देंगे । अगर आप ब्रह्म तेज तक जाते हैं और कृष्ण या नारायण की शरण लेते हैं... ब्रह्म तेज में असंख्य ग्रह हैं । वे वैकुण्ठ लोक कहा जाता है । और सर्वोच्च वैकुण्ठ लोक गोलोक वृन्दावन कहा जाता है ।  
 
तो अगर आप बहुत भाग्यशाली हैं इन ग्रहों में से एक में शरण लेने के लिए, तो आप ज्ञान की आनंदित स्थिति में सदा खुश हैं । अन्यथा, बस ब्रह्म तेज में विलीन होना बहुत सुरक्षित नहीं है । क्योंकि हम आनंद चाहते हैं । तो अवैयक्तिक शून्य मानक में कोई आनंद नहीं हो सकता है । लेकिन क्योंकि हमें कोई जानकारी नहीं है, मायावादी तत्वज्ञानीओ को, वैकुण्ठ ग्रहों के बारे में, वे फिर से वापस आते हैं, इन भौतिक ग्रहों पे । अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतन्ति अध: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्रीमद भागवतम १०.२.३२]]) | अध: का मतलब है इस भौतिक संसार में । मैंने कई बार समझाया है । इतने बड़े, बड़े संन्यासी हैं । वे इस भौतिक संसार को त्याग देते हैं मिथ्या, जगन मिथ्या, मान के, और सन्नयास लेते हैं, और उसके बाद फिर से कुछ दिनों के बाद, वे समाज सेवा, राजनीति में आते हैं । क्योंकि वे ब्रह्म क्या है यह पता नहीं कर सके । वे, आनंद के लिए, वे इन भौतिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं । क्योंकि आनंद... हमें अानन्दमयो अभ्यासात (वेदान्त सूत्र १.१.१२) चाहिए ।  
 
तो अगर कोई आध्यात्मिक आनंद नहीं है, उन्हे निम्न गुणवत्ता पर आना होगा । यह भौतिक दुनिया निम्न गुणवत्ता है । अपरा । अगर हमें आध्यात्मिक आनंद नहीं मिलता, या बेहतर खुशी, तो हमें इस भौतिक सुख को लेना होगा । क्योंकि हम खुशी चाहते हैं । हर कोई खुशी को खोज रहा है ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Lecture on BG 2.20 -- Hyderabad, November 25, 1972

इसलिए यह इच्छा कि मैं भगवान के अस्तित्व में विलीन हो जाऊगा, मैं एक हो जाऊँगा... जैसे उदाहरण दिया जाता है, "मैं पानी की बूंद हूँ । अब मैं बड़े महासागर में समा जाऊँगा । इसलिए मैं सागर बन जाऊँगा ।" यह उदाहरण आम तौर पर मायावादी तत्वज्ञानी द्वारा दिया जाता है । पानी की बूंद, जब समुद्र के पानी के साथ मिश्रित होती है, वे एक हो जाते हैं । यह केवल कल्पना है । हर बूंद, आण्विक । इतने सारे व्यक्तिगत आण्विक भाग हैं । इसके अलावा, अगर आप पानी के साथ मिश्रण करते हैं, और ब्रह्म अस्तित्व में, या समुद्र में, या सागर में लीन हो जाते हैं । तो फिर से अाप लुप्त हो जाअोगे, क्योंकि पानी सागर से लुप्त हो जाता है और यह बादल बन जाता है और फिर से जमीन पर नीचे गिर जाता है, और यह फिर से समुद्र में चला जाता है । यह चल रहा है ।

यह अागमन-गमन कहा जाता है, आना और फिर मिश्रण । तो क्या लाभ है ? लेकिन वैष्णव तत्वज्ञान कहता है कि हम पानी के साथ मिश्रित नहीं होना चाहते हैं; हम समुद्र के भीतर एक मछली बनना चाहते हैं । यह बहुत अच्छा है । अगर हम एक मछली, एक बड़ी मछली, या छोटी मछली बन जाते हैं... कोई फर्क नहीं पडता है । अगर आप गहरे पानी में जाते हैं, तो कोई और अधिक वाष्पीकरण नहीं है । आपका अस्तित्व रहता है । इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया, ब्रह्म तेज, अगर... निर्भेद-ब्रह्मानुसन्धि । जो ब्रह्म अस्तित्व में लीन होने की कोशिश कर रहे हैं, उनके लिए, यह बहुत सुरक्षित नहीं है । यह श्रीमद-भागवतम में स्पष्ट किया गया है: विमुक्त मानिन: ।

विमुक्त मानिन: । वे सोच रहे हैं कि "अब मैं ब्रह्म तेज में विलीन हो गया हूँ । अब मैं सुरक्षित हूँ ।" नहीं, यह सुरक्षित नहीं है । क्योंकि यह कहा गया है, अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतन्ति (श्रीमद भागवतम १०.२.३२) | यहां तक ​​कि महान तपस्या और तपस्या के बाद, हम उठ सकते हैं, परम पदम, ब्रह्म तेज में विलीन हो सकते है । फिर भी, वहाँ से, वह नीचे गिर जाता है । वह नीचे गिर जाता है । क्योंकि ब्रह्म, आत्मा, आत्मा अानन्दमय है । जैसे कृष्ण, या परम, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, अानन्दमयो अभ्यासात (वेदान्त सूत्र १.१.१२), सच-चिद-अानन्द-विग्रह (ब्रह्मसंहिता ५.१) । तो बस ब्रह्म अस्तित्व में विलीन होकर, हम अानन्दमय नहीं बन सकते हैं । वैसे ही जैसे आप आकाश में बहुत ऊँचे उड रहे हैं ।

तो आसमान में रहना, यह बहुत अानन्दमय नहीं है । अगर अापको किसी ग्रह में शरण प्राप्त होता है, तो यह अानन्दमय है । अन्यथा, आपको इस ग्रह पर फिर से वापस आना होगा । तो निर्विशेष, विभिन्नताओं के बिना, कोई भी आनंद नहीं हो सकता है । विविधता आनंद की माता है । तो हम कोशिश कर रहे हैं... हम इन भौतिक विविधताओ से निराश हो रहे हैं । इसलिए कुछ इन विविधताओं को शून्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ इन विविधताओं को अवैयक्तिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन यह हमें सटीक दिव्य सुख नहीं देंगे । अगर आप ब्रह्म तेज तक जाते हैं और कृष्ण या नारायण की शरण लेते हैं... ब्रह्म तेज में असंख्य ग्रह हैं । वे वैकुण्ठ लोक कहा जाता है । और सर्वोच्च वैकुण्ठ लोक गोलोक वृन्दावन कहा जाता है ।

तो अगर आप बहुत भाग्यशाली हैं इन ग्रहों में से एक में शरण लेने के लिए, तो आप ज्ञान की आनंदित स्थिति में सदा खुश हैं । अन्यथा, बस ब्रह्म तेज में विलीन होना बहुत सुरक्षित नहीं है । क्योंकि हम आनंद चाहते हैं । तो अवैयक्तिक शून्य मानक में कोई आनंद नहीं हो सकता है । लेकिन क्योंकि हमें कोई जानकारी नहीं है, मायावादी तत्वज्ञानीओ को, वैकुण्ठ ग्रहों के बारे में, वे फिर से वापस आते हैं, इन भौतिक ग्रहों पे । अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतन्ति अध: (श्रीमद भागवतम १०.२.३२) | अध: का मतलब है इस भौतिक संसार में । मैंने कई बार समझाया है । इतने बड़े, बड़े संन्यासी हैं । वे इस भौतिक संसार को त्याग देते हैं मिथ्या, जगन मिथ्या, मान के, और सन्नयास लेते हैं, और उसके बाद फिर से कुछ दिनों के बाद, वे समाज सेवा, राजनीति में आते हैं । क्योंकि वे ब्रह्म क्या है यह पता नहीं कर सके । वे, आनंद के लिए, वे इन भौतिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं । क्योंकि आनंद... हमें अानन्दमयो अभ्यासात (वेदान्त सूत्र १.१.१२) चाहिए ।

तो अगर कोई आध्यात्मिक आनंद नहीं है, उन्हे निम्न गुणवत्ता पर आना होगा । यह भौतिक दुनिया निम्न गुणवत्ता है । अपरा । अगर हमें आध्यात्मिक आनंद नहीं मिलता, या बेहतर खुशी, तो हमें इस भौतिक सुख को लेना होगा । क्योंकि हम खुशी चाहते हैं । हर कोई खुशी को खोज रहा है ।