HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए: Difference between revisions
(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0592 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1972 Category:HI-Quotes - Lec...") |
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address) |
||
Line 7: | Line 7: | ||
[[Category:HI-Quotes - in India, Hyderabad]] | [[Category:HI-Quotes - in India, Hyderabad]] | ||
<!-- END CATEGORY LIST --> | <!-- END CATEGORY LIST --> | ||
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | |||
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0591 - मेरा काम इस भौतिक चंगुल से बाहर निकलना है|0591|HI/Prabhupada 0593 - जैसे ही तुम कृष्णभावनामृत में आते हो, तुम प्रसन्न हो जाते हो|0593}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | <!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | ||
<div class="center"> | <div class="center"> | ||
Line 15: | Line 18: | ||
<!-- BEGIN VIDEO LINK --> | <!-- BEGIN VIDEO LINK --> | ||
{{youtube_right| | {{youtube_right|dHLeKxxVZo0|आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए<br />- Prabhupāda 0592}} | ||
<!-- END VIDEO LINK --> | <!-- END VIDEO LINK --> | ||
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page --> | <!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page --> | ||
<mp3player> | <mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/721125BG-HYD_clip09.mp3</mp3player> | ||
<!-- END AUDIO LINK --> | <!-- END AUDIO LINK --> | ||
Line 27: | Line 30: | ||
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) --> | <!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) --> | ||
प्रभुपाद: तो वही अभ्यास है । आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए । यही पूर्णता है । और अगर आप कई चीजों के साथ शर्मिंदा हो जाते हैं, तो फिर बिल्ली, कुत्ता, हिरण, या यक्ष, बनने का खतरा है, कुछ भी । | प्रभुपाद: तो वही अभ्यास है । आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए । यही पूर्णता है । और अगर आप कई चीजों के साथ शर्मिंदा हो जाते हैं, तो फिर बिल्ली, कुत्ता, हिरण, या यक्ष, बनने का खतरा है, कुछ भी । | ||
भारतीय महाराज, अाप क्यों ...? | भारतीय: महाराज, अाप क्यों...? | ||
प्रभुपाद: यम यम वापि | प्रभुपाद: यम यम वापि स्मरण लोके त्यजति अंते कलेवरम ([[HI/BG 8.6|भ.गी. ८.६]]) | अाप, आपकी मौत के समय, जो भी इच्छा करते हैं, आपको अगला शरीर मिलता है । यही प्रकृति का नियम है । | ||
(तोड़) ...रूस में, मास्को में, कई युवा पुरुष हैं, बहुत ज्यादा उत्सुक हैं इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को स्वीकार करने के लिए । और उनमें से कुछ मेरे द्वारा दीक्षा प्राप्त कर चुकें हैं । और वे कर रहे हैं । जैसे ये लड़के कर रहे हैं । तो यह... तो जहॉ तक मेरे अनुभव का सवाल है, हर जगह मैं जाता हूँ, लोग वही हैं । यह कृत्रिम रूप से, मेरे कहने का मतलब है, मतलब, उन्हे साम्यवादी या यह अौर वह माना जाता है । | |||
(तोड़) ...लोग, वे सब एक जैसे हैं । जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत की बात करते हैं, वे तुरंत जवाब देते हैं । यह मेरा अनुभव है । असल में यह एक तथ्य है । चैतन्य-चरितामृत में, यह कहा गया है, नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम साध्य कभु नय, श्रवणादि शुद्ध चित्ते करये उदय ([[Vanisource:CC Madhya 22.107|चैतन्य चरितामृत मध्य २२.१०७]]) | कृष्ण भावनामृत हर किसी के दिल में है । यह सुषुप्त है । लेकिन यह भौतिकता से दूषित है और भौतिक अस्वच्छ चीज़ो द्वारा ढका है । | |||
तो श्रवणादि शद्ध चित्ते । इसका मतलब है, जैसे आप सुन रहे हैं... जैसे ये लड़के, ये अमेरिकी और यूरोपीय लड़के, वे अाए, सब से पहले, मुझे सुनने के लिए । सुनते, सुनते, अब उनका कृष्ण भावनामृत जागृत हो गया है, और उन्होंने कृष्ण भक्ति को गंभीरता से लिया है (तोड़) हर किसी के भीतर कृष्ण भावनामृत है । हमारी प्रक्रिया, संकीर्तन आंदोलन, उस चेतना को जगाने के लिए है । बस । जैसे एक आदमी सो रहा है । उसे जगाने के लिए: "उठो! उठो!" उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत । तो यह हमारी प्रक्रिया है । ऐसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से हम किसी को कृष्ण भावनाभावित बना रहे हैं । कृष्ण भावनामृत पहले से ही है । यह हर जीव का एक जन्मसिद्ध अधिकार है । | |||
कृष्ण कहते हैं, ममैवांशो जीव-भूत: ([[HI/BG 15.7|भ.गी. १५.७]]) । जैसे पिता और पुत्र की तरह । अलग नहीं किया जा सकता । लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि बेटा घर से बाहर चला जाता है, कुछ संयोग से, या बचपन से । वह भूल जाता है कि उसके पिता कौन हैं । यह एक अलग बात है । लेकिन पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता कभी नहीं टूटता है । | |||
<!-- END TRANSLATED TEXT --> | <!-- END TRANSLATED TEXT --> |
Latest revision as of 18:55, 17 September 2020
Lecture on BG 2.20 -- Hyderabad, November 25, 1972
प्रभुपाद: तो वही अभ्यास है । आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए । यही पूर्णता है । और अगर आप कई चीजों के साथ शर्मिंदा हो जाते हैं, तो फिर बिल्ली, कुत्ता, हिरण, या यक्ष, बनने का खतरा है, कुछ भी ।
भारतीय: महाराज, अाप क्यों...?
प्रभुपाद: यम यम वापि स्मरण लोके त्यजति अंते कलेवरम (भ.गी. ८.६) | अाप, आपकी मौत के समय, जो भी इच्छा करते हैं, आपको अगला शरीर मिलता है । यही प्रकृति का नियम है ।
(तोड़) ...रूस में, मास्को में, कई युवा पुरुष हैं, बहुत ज्यादा उत्सुक हैं इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को स्वीकार करने के लिए । और उनमें से कुछ मेरे द्वारा दीक्षा प्राप्त कर चुकें हैं । और वे कर रहे हैं । जैसे ये लड़के कर रहे हैं । तो यह... तो जहॉ तक मेरे अनुभव का सवाल है, हर जगह मैं जाता हूँ, लोग वही हैं । यह कृत्रिम रूप से, मेरे कहने का मतलब है, मतलब, उन्हे साम्यवादी या यह अौर वह माना जाता है ।
(तोड़) ...लोग, वे सब एक जैसे हैं । जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत की बात करते हैं, वे तुरंत जवाब देते हैं । यह मेरा अनुभव है । असल में यह एक तथ्य है । चैतन्य-चरितामृत में, यह कहा गया है, नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम साध्य कभु नय, श्रवणादि शुद्ध चित्ते करये उदय (चैतन्य चरितामृत मध्य २२.१०७) | कृष्ण भावनामृत हर किसी के दिल में है । यह सुषुप्त है । लेकिन यह भौतिकता से दूषित है और भौतिक अस्वच्छ चीज़ो द्वारा ढका है ।
तो श्रवणादि शद्ध चित्ते । इसका मतलब है, जैसे आप सुन रहे हैं... जैसे ये लड़के, ये अमेरिकी और यूरोपीय लड़के, वे अाए, सब से पहले, मुझे सुनने के लिए । सुनते, सुनते, अब उनका कृष्ण भावनामृत जागृत हो गया है, और उन्होंने कृष्ण भक्ति को गंभीरता से लिया है (तोड़) हर किसी के भीतर कृष्ण भावनामृत है । हमारी प्रक्रिया, संकीर्तन आंदोलन, उस चेतना को जगाने के लिए है । बस । जैसे एक आदमी सो रहा है । उसे जगाने के लिए: "उठो! उठो!" उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत । तो यह हमारी प्रक्रिया है । ऐसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से हम किसी को कृष्ण भावनाभावित बना रहे हैं । कृष्ण भावनामृत पहले से ही है । यह हर जीव का एक जन्मसिद्ध अधिकार है ।
कृष्ण कहते हैं, ममैवांशो जीव-भूत: (भ.गी. १५.७) । जैसे पिता और पुत्र की तरह । अलग नहीं किया जा सकता । लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि बेटा घर से बाहर चला जाता है, कुछ संयोग से, या बचपन से । वह भूल जाता है कि उसके पिता कौन हैं । यह एक अलग बात है । लेकिन पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता कभी नहीं टूटता है ।