HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए: Difference between revisions

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प्रभुपाद: तो वही अभ्यास है । आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए । यही पूर्णता है । और अगर आप कई चीजों के साथ शर्मिंदा हो जाते हैं, तो फिर बिल्ली, कुत्ता, हिरण, या यक्ष, बनने का खतरा है, कुछ भी ।
प्रभुपाद: तो वही अभ्यास है । आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए । यही पूर्णता है । और अगर आप कई चीजों के साथ शर्मिंदा हो जाते हैं, तो फिर बिल्ली, कुत्ता, हिरण, या यक्ष, बनने का खतरा है, कुछ भी ।  


भारतीय महाराज, अाप क्यों ...?
भारतीय: महाराज, अाप क्यों...?  


प्रभुपाद: यम यम वापि सम्रन लोके त्यजति अंते कलेवरम ([[Vanisource:BG 8.6|भ गी ८।६]]) अाप, आपकी मौत के समय, जो भी इच्छा करते हैं, आपको अगला शरीर मिलता है । यही प्रकृति का नियम है । (विराम) ...रूस में, मास्को में, कई युवा पुरुष हैं बहुत ज्यादा उत्सुक हैं इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को स्वीकार करने के लिए । और उनमें से कुछ मेरे द्वारा दीक्षा प्राप्त कर चुकें हैं । और वे कर रहे हैं । जैसे ये लड़के कर रहे हैं । तो यह ... तो जहॉ तक मेरे अनुभव का सवाल है, हर जगह मैं जाता हूँ, लोग वही हैं । यह कृत्रिम रूप से, मेरे कहने का मतलब है, मतलब, उन्हे कम्युनिस्ट या यह अौर वह माना जाता है । (विराम) ... लोग, वे सब एक जैसे हैं । जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत की बात करते हैं, वे तुरंत जवाब देते हैं । यह मेरा अनुभव है । असल में यह एक तथ्य है । चैतन्य- चरितामृत में, यह कहा गया है, नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम साध्य कभु नय, श्रवणादि शुद्ध चित्ते करये उदय ([[Vanisource:CC Madhya 22.107|चै च मध्य २२।१०७]]) कृष्ण भावनामृत हर किसी के दिल में है । यह निष्क्रिय है । लेकिन यह भौतिक्ता से दूषित है और गंदी बातों द्वारा ढका है । तो श्रवणादि शद्ध चित्ते । इसका मतलब है, जैसे आप सुन रहे हैं, जैसे ये लड़के, ये अमेरिकी और यूरोपीय लड़के, वे अाए, सब से पहले, मुझे सुनने के लिए । सुनते, सुनते, अब उनका कृष्ण भावनामृत जागृत हो गया है, और उन्होंने कृष्ण भक्ति को गंभीरता से लिया है (विराम) हर किसी के भीतर कृष्ण भावनामृत है । हमारी प्रक्रिया, समकीर्तन आंदोलन, उस चेतना को जगाने के लिए है । बस । जैसे एक आदमी सो रहा है ।उसे जगाने के लिए: " उठो उठो!" उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान नोबोधत । तो यह हमारी प्रक्रिया है । ऐसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से हम किसी को कृष्ण के प्रति जागरूक बना रहे हैं । कृष्ण भावनामृत पहले से ही है । यह हर जीव का एक जन्मसिद्ध अधिकार है । कृष्ण कहते हैं, ममैवाम्शो जीव-भूत: ([[Vanisource:BG 15.7|भ गी १५।७]]) । जैसे पिता और पुत्र की तरह । अलग नहीं किया जा सकता । लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि बेटा घर से बाहर चला जाता है, कुछ संयोग से, या बचपन से । वह भूल जाता है कि उसके पिता कौन हैं । यह एक अलग बात है । लेकिन पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता कभी नहीं टूटता है ।
प्रभुपाद: यम यम वापि स्मरण लोके त्यजति अंते कलेवरम ([[HI/BG 8.6|भ.गी. ८.६]]) | अाप, आपकी मौत के समय, जो भी इच्छा करते हैं, आपको अगला शरीर मिलता है । यही प्रकृति का नियम है ।  
 
(तोड़) ...रूस में, मास्को में, कई युवा पुरुष हैं, बहुत ज्यादा उत्सुक हैं इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को स्वीकार करने के लिए । और उनमें से कुछ मेरे द्वारा दीक्षा प्राप्त कर चुकें हैं । और वे कर रहे हैं । जैसे ये लड़के कर रहे हैं । तो यह... तो जहॉ तक मेरे अनुभव का सवाल है, हर जगह मैं जाता हूँ, लोग वही हैं । यह कृत्रिम रूप से, मेरे कहने का मतलब है, मतलब, उन्हे साम्यवादी या यह अौर वह माना जाता है ।  
 
(तोड़) ...लोग, वे सब एक जैसे हैं । जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत की बात करते हैं, वे तुरंत जवाब देते हैं । यह मेरा अनुभव है । असल में यह एक तथ्य है । चैतन्य-चरितामृत में, यह कहा गया है, नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम साध्य कभु नय, श्रवणादि शुद्ध चित्ते करये उदय ([[Vanisource:CC Madhya 22.107|चैतन्य चरितामृत मध्य २२.१०७]]) | कृष्ण भावनामृत हर किसी के दिल में है । यह सुषुप्त है । लेकिन यह भौतिकता से दूषित है और भौतिक अस्वच्छ चीज़ो द्वारा ढका है ।  
 
तो श्रवणादि शद्ध चित्ते । इसका मतलब है, जैसे आप सुन रहे हैं... जैसे ये लड़के, ये अमेरिकी और यूरोपीय लड़के, वे अाए, सब से पहले, मुझे सुनने के लिए । सुनते, सुनते, अब उनका कृष्ण भावनामृत जागृत हो गया है, और उन्होंने कृष्ण भक्ति को गंभीरता से लिया है (तोड़) हर किसी के भीतर कृष्ण भावनामृत है । हमारी प्रक्रिया, संकीर्तन आंदोलन, उस चेतना को जगाने के लिए है । बस । जैसे एक आदमी सो रहा है । उसे जगाने के लिए: "उठो! उठो!" उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत । तो यह हमारी प्रक्रिया है । ऐसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से हम किसी को कृष्ण भावनाभावित बना रहे हैं । कृष्ण भावनामृत पहले से ही है । यह हर जीव का एक जन्मसिद्ध अधिकार है ।  
 
कृष्ण कहते हैं, ममैवांशो जीव-भूत: ([[HI/BG 15.7|भ.गी. १५.७]]) । जैसे पिता और पुत्र की तरह । अलग नहीं किया जा सकता । लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि बेटा घर से बाहर चला जाता है, कुछ संयोग से, या बचपन से । वह भूल जाता है कि उसके पिता कौन हैं । यह एक अलग बात है । लेकिन पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता कभी नहीं टूटता है ।  
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Latest revision as of 18:55, 17 September 2020



Lecture on BG 2.20 -- Hyderabad, November 25, 1972

प्रभुपाद: तो वही अभ्यास है । आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए । यही पूर्णता है । और अगर आप कई चीजों के साथ शर्मिंदा हो जाते हैं, तो फिर बिल्ली, कुत्ता, हिरण, या यक्ष, बनने का खतरा है, कुछ भी ।

भारतीय: महाराज, अाप क्यों...?

प्रभुपाद: यम यम वापि स्मरण लोके त्यजति अंते कलेवरम (भ.गी. ८.६) | अाप, आपकी मौत के समय, जो भी इच्छा करते हैं, आपको अगला शरीर मिलता है । यही प्रकृति का नियम है ।

(तोड़) ...रूस में, मास्को में, कई युवा पुरुष हैं, बहुत ज्यादा उत्सुक हैं इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को स्वीकार करने के लिए । और उनमें से कुछ मेरे द्वारा दीक्षा प्राप्त कर चुकें हैं । और वे कर रहे हैं । जैसे ये लड़के कर रहे हैं । तो यह... तो जहॉ तक मेरे अनुभव का सवाल है, हर जगह मैं जाता हूँ, लोग वही हैं । यह कृत्रिम रूप से, मेरे कहने का मतलब है, मतलब, उन्हे साम्यवादी या यह अौर वह माना जाता है ।

(तोड़) ...लोग, वे सब एक जैसे हैं । जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत की बात करते हैं, वे तुरंत जवाब देते हैं । यह मेरा अनुभव है । असल में यह एक तथ्य है । चैतन्य-चरितामृत में, यह कहा गया है, नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम साध्य कभु नय, श्रवणादि शुद्ध चित्ते करये उदय (चैतन्य चरितामृत मध्य २२.१०७) | कृष्ण भावनामृत हर किसी के दिल में है । यह सुषुप्त है । लेकिन यह भौतिकता से दूषित है और भौतिक अस्वच्छ चीज़ो द्वारा ढका है ।

तो श्रवणादि शद्ध चित्ते । इसका मतलब है, जैसे आप सुन रहे हैं... जैसे ये लड़के, ये अमेरिकी और यूरोपीय लड़के, वे अाए, सब से पहले, मुझे सुनने के लिए । सुनते, सुनते, अब उनका कृष्ण भावनामृत जागृत हो गया है, और उन्होंने कृष्ण भक्ति को गंभीरता से लिया है (तोड़) हर किसी के भीतर कृष्ण भावनामृत है । हमारी प्रक्रिया, संकीर्तन आंदोलन, उस चेतना को जगाने के लिए है । बस । जैसे एक आदमी सो रहा है । उसे जगाने के लिए: "उठो! उठो!" उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत । तो यह हमारी प्रक्रिया है । ऐसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से हम किसी को कृष्ण भावनाभावित बना रहे हैं । कृष्ण भावनामृत पहले से ही है । यह हर जीव का एक जन्मसिद्ध अधिकार है ।

कृष्ण कहते हैं, ममैवांशो जीव-भूत: (भ.गी. १५.७) । जैसे पिता और पुत्र की तरह । अलग नहीं किया जा सकता । लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि बेटा घर से बाहर चला जाता है, कुछ संयोग से, या बचपन से । वह भूल जाता है कि उसके पिता कौन हैं । यह एक अलग बात है । लेकिन पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता कभी नहीं टूटता है ।