HI/Prabhupada 0597 - हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए

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Lecture on BG 2.23 -- Hyderabad, November 27, 1972

हर जीव इस भौतिक प्रकृति पर राज करने की कोशिश कर रहा है । यह उसकी बीमारी है । वह राज करना चाहता है । वह नौकर है, लेकिन कृत्रिम रूप से, वह मालिक बनना चाहता है । यही बीमारी है । हर कोई ... अंत में, जब वह भौतिक दुनिया पर राज करने में विफल होता है, वा कहता है, "ओह, यह भौतिक दुनिया झूठी है । अब मैं परम के साथ एक बन जाऊँगा ।" ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या । लेकिन क्योंकि आत्मा कृष्ण का अभिन्न अंग है, तो स्वभाव से, वह अानन्दमय है । वह अानन्द ढूंढ रहा है । हम में से हर एक, हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए । तो जीवन का वह अानन्द आध्यात्मिक तेज में नहीं मिल सकता । इसलिए श्रीमद-भागवतम में हमें यह जानकारी मिलती है कि अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम (श्री भ १०।२।३२) कृच्छ्रेन, गंभीर तपस्या से गुजरने के बाद, कोई ब्रह्म तेज में विलय हो सकता है । सायुज्य-मुक्ति. यह सायुज्य-मुक्ति कहा जाता है । सायुज्य, विलय होना । तो अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम । अगर कोई इस स्तर तक पहुँच भी जाए, ब्राह्मण अस्तित्व में विलय होना गंभीर तपस्या के बाद, फिर भी, वे नीचे गिर जाते हैं । पतन्ति अद: । अद: का मतलब है फिर से . इस भौतिक संसार में आना । अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम पतन्ति अद: (श्री भ १०।२।३२) । क्यों वे नीचे गिर जाते हैं ? अनादृत-युस्मद-अंग्रय: । वे कभी मानेंगे नहीं कि भगवान व्यक्ति हैं । वे कभी नहीं मानेंगे । उनका छोटा मस्तिष्क मान नहीं सकता है कि भगवान, परम, एक व्यक्ति हो सकते हैं । क्योंकि उसे अनुभव है खुद के व्यक्तिगत होने का , या दूसरों का । अगर भगवान एक व्यक्ति हैं मेरे और आपकी तरह, तो कैसे वे ब्रह्मांड बना सकते हैं, असंख्य ब्रह्मांड? इसलिए देवत्व के परम व्यक्तित्व को समझने के लिए, पर्याप्त पवित्र कर्मों की आवश्यकता है । भगवद गीता में यह कहा जाता है, बहुनाम जन्मनाम अंते (भ गी ७।१९) अवैयक्तिक दार्शनिक तरीकों से अटकलें करने के बाद, जब कोई परिपक्व हो जाता है, बहुनाम जन्मनाम अंते ज्ञानवान, जब वह वास्तव में बुद्धिमान होता है, ... जब तक वह यह नहीं समझ सकता है कि परम निरपेक्ष सत्य व्यक्ति हैं, सच-चिद-अानन्द-विग्रह ( ब्र स ५।१) ब्रहमेति परमात्मेति भगवान इति शब्दयते । भगवान । वह ... वदन्ति तत तत्व-विदस तत्वम् यज ज्ञानम अद्वयम (श्री भ १।२।११) यह श्रीमद-भागवतम में बयान है: "निरपेक्ष सत्य जो लोग जानते हैं, वे जानते हैं कि ब्रह्मण, परमात्मा और भगवान, वे एक हैं । यह केवल समझ के विभिन्न चरण हैं ।" जैसे अगर आप एक दूरस्थ स्थान से एक पहाड को देखते हैं, आप पाअोगे अवैयक्तिक, धुंधला, कुछ बादल से ढका । अगर आप आगे जाअो, तो आप देख सकते हैं कि वह कुछ हरा है । और अगर आप वास्तव में पहाड़ी के भीतर जाऍ, तो आप देखोगे कि इतने सारे जानवर, पेड़, पुरुष हैं । इसी तरह, जो लोग दूर से निरपेक्ष को समझने की कोशिश कर रहे हैं, वे साकार कर रहे हैं, अटकलों से, अवैयक्तिक ब्रह्मण । जो आगे अौर उन्नत हैं, योगि, वे स्थानीय पहलू देख सकते हैं । ध्यानावस्थित तद गतेन मनसा पश्यन्ति यम् योगिनळ (श्री भ १२।१२।१) वे देख सकते हैं, ध्यानावस्थित, खुद के भीतर स्थानीयकृत । यह परमात्मा है । और जो भक्त हैं, वे कृष्ण को देखते हैं, भगवान के परम व्यक्तित्व को, अामने सामने, व्यक्तिगत रूप से । नित्यो नित्यानाम् चेतनश् चेतनानाम ( कथा उपनिषद २।२।१३)