HI/Prabhupada 0627 - ताज़गी के बिना, हम इस उदात्त विषय वस्तु को नहीं समझ सकते हैं

Revision as of 18:59, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on BG 2.13 -- Pittsburgh, September 8, 1972

प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु के लक्षण क्या हैं ? हर कोई आध्यात्मिक गुरु बनना चाहता है । तो यह भी कहा गया है । शब्दे परे च निष्णातम । जिसने वैदिक साहित्य के सागर में पूर्ण स्नान कर लिया है, शब्दे परे च निष्णातम । जैसे जब तुम स्नान लेते हो, तो तुम ताज़ा महसूस करते हो । अगर तुम अच्छा स्नान लेते हो, तो तुम ताज़ा महसूस करते हो । शब्दे परे च निष्णातम । ताज़गी के बिना, हम इस उदात्त विषय वस्तु को नहीं समझ सकते हैं । और गुरु, या आध्यात्मिक गुरु, को ताज़ा महसूस करना होगा वैदिक ज्ञान के सागर में स्नान करने से । और नतीजा क्या है ? शब्दे परे च निष्णातम ब्रह्मणि उपशमाश्रयम । एसी शुद्धता के बाद, उसने परम निरपेक्ष सत्य का आश्रय लिया है, किसी भी भौतिक इच्छाओं के बिना । उसकी कोई भी भौतिक इच्छा नहीं है; वह केवल कृष्ण में, या परम सत्य में रुचि रखता है । ये गुरु, या आध्यात्मिक गुरु के लक्षण हैं ।

तो यह समझने के लिए... जैसे कृष्ण अर्जुन को सिखा रहे हैं । इस से पहले, अर्जुन ने आत्मसमर्पण किया । शिष्यस ते अहम शाधी माा प्रपन्नम (भ.गी. २.७) | हालांकि वे दोस्त थे, कृष्ण और अर्जुन दोस्त थे... सबसे पहले, वे दोस्तों की तरह बात कर रहे थे, और अर्जुन कृष्ण के साथ बहस कर रहे थे । इस बहस का कोई मूल्य नहीं है क्योंकि मैं अपूर्ण हूँ, तो मेरे बहस का क्या मतलब है  ? जो भी मैं बहस करूँगा, वह भी अपूर्ण होगा । तो अपूर्ण तर्क द्वारा समय बर्बाद करने का क्या फायदा है ? यह प्रक्रिया नहीं है ।

प्रक्रिया यह है कि हमें एक पूर्ण व्यक्ति के पास जाना होगा अौर उससे शिक्षा लेनी चाहिए । फिर हमारा ज्ञान परिपूर्ण है । किसी भी तर्क के बिना । हम इस तरह से वैदिक ज्ञान को स्वीकार करते हैं । उदाहरण के लिए, जैसे एक जानवर का मल । वैदिक साहित्य में कहा गया है कि यह अशुद्ध है । अगर तुम मल को छूते हो तो... वैदिक प्रणाली के अनुसार, यहॉ तक की अपने मल करने के बाद, मुझे नहाना होगा । और दूसरों के मल की क्या बात है । यह प्रणाली है । तो मल अशुद्ध है । एक, मल को छूने के बाद, उसे नहाना चाहिए । यह वैदिक आज्ञा है । लेकिन एक और जगह में कहा जाता है कि गाय का मल शुद्ध है, अौर अगर गोबर कुछ अशुद्ध जगह में लगाया जाता है, तो यह शुद्ध हो जाएगा । अब, तुम्हारे तर्क से, तुम कह सकते हो कि, "एक जानवर का मल अशुद्ध है । एसा क्यों है कि एक स्थान पर शुद्ध कहा जाता है और एक अन्य जगह पर अशुद्ध ? यह विरोधाभास है ।" लेकिन यह विरोधाभास नहीं है । तुम व्यावहारिक रूप से प्रयोग करो । तुम गाय का गोबर ले और कहीं भी लागअो, तुम पाअोगे कि यह शुद्ध है । तुरंत शुद्ध हो जाता है ।

तो यह वैदिक आज्ञा है । यह सही ज्ञान है । इसके बजाय कि बहस करके समय बर्बाद करें और झूठी प्रतिष्ठा को प्रस्तुत करें, अगर तुम पूर्ण ज्ञान स्वीकार करते हो, जैसा कि वैदिक साहित्य में कहा गया है, फिर हमें पूर्ण ज्ञान मिलता है, और हमारा जीवन सफल है । इसके बजाय कि शरीर पर प्रयोग करें कि कहां आत्मा है... आत्मा है, लेकिन यह इतना छोटा है कि तुम्हारी इन जड़ आंखों से देखना संभव नहीं है । कोई भी माइक्रोस्कोप या कोई भी यंत्र, क्योंकि यह कहा गया है कि यह बाल की नोक के ऊपर के भाग का दस हज़ारवां हिस्सा है । तो कोई यंत्र नहीं है । तुम नहीं देख सकते । लेकिन यह है । अन्यथा, कैसे हम मृत शरीर और जीवित शरीर के बीच के अंतर को समझ सकते हैं ?