HI/Prabhupada 0631 - मैं शाश्वत हूँ, शरीर शाश्वत नहीं है । यह तथ्य है

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Lecture on BG 2.28 -- London, August 30, 1973

इस संबंध में एक बात है कि रात को जब मैं सपने देखता हूँ मैं इस शरीर को भूल जाता हूँ । यह शरीर, सपने में, मैं देख रहा हूँ कि मैं एक अलग स्थान पर चला गया हूँ, अलग पुरुषों के साथ बात कर रहा हूँ, और मेरी स्थिति अलग है । लेकिन उस समय मुझे याद नहीं है कि वास्तव में मेरा शरीर बिस्तर पर पड़a है मकान में जहॉ मैं हूँ । लेकिन हम इस शरीर को याद नहीं रखते हैं । यह हर किसी का अनुभव है । इसी प्रकार, जब तुम फिर से अाते हो, बिस्तर से उठकर सुबह में मैं सपने में बनाए गए सभी शरीरों को भूल जाता हूँ । तो कौनसा सही है ? यह सही है ? यह शरीर सही है, या वह शरीर सही है ? क्योंकि रात को मैं इस शरीर को भूल जाता हूँ और दिन के समय मैं अन्य सपने वाले शरीर को भूल जाता हूँ । तो वे दोनों सही नहीं हैं । यह बस माया है । लेकिन मैं सही हूँ क्योंकि मैं रात को देखता हूँ, मैं दिन में देखता हूँ । तो मैं अनन्त हूँ, शरीर शाश्वत नहीं है । यह तथ्य है । अंतवंत इमे देहा नित्यश्योक्ता: शरीरिण: (भ गी २।१८)( भ गी २।१८) शरीरिण: , शरीर का मालिक शाश्वत है, लेकिन शरीर नहीं । कई मायनों में, कृष्ण इस शरीर की भौतिक हालत के बारे में समझा रहे हैं । लेकिन जो बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, ज्ञान की समझ कम है, उनके लिए समझना बहुत मुश्किल है । अन्यथा, बातें बहुत स्पष्ट हैं । यह बात बहुत स्पष्ट है । कि मैं रात को इस शरीर को भूल जाता हूँ और दिन के समय में मै रात के शरीर को भूल जाता हूँ । यह एक तथ्य है । इसी तरह, मैं अपने पिछले शरीर को भूल जाता हूँ, जीवन के अंतिम अवधि, या मैं भविष्य के शरीर को नहीं जानूँगा । लेकिन मैं मौजूद रहूँगा, और शरीर बदल सकता है । लेकिन मुझे एक और शरीर को स्वीकार करना होगा जो अस्थायी है । लेकिन मैं, जैसे मैं हूँ, इसका मतलब है कि मुझे एक शरीर मिला है । यह आध्यात्मिक शरीर है । तो आध्यात्मिक शरीर मौजूद है, और आध्यात्मिक उन्नति का मतलब है सब से पहले अपने आपनी आध्यात्मिक पहचान को जानना । जैसे सनातन गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के पास गए अपने मंत्रीपद से अवकाश ग्रहण करने के बाद । तो सब से पहले उन्होंने कहा, कि के अामि, केने अामाय जारे ताप-त्रय : "वास्तव में, मुझे पता नहीं है कि कौन हूँ, और क्यों मैं जीवन की इस दयनीय हालत के अधीन हूँ ।" इसलिए जीवन की दयनीय हालत है यह शरीर । क्योंकि मुझे मिलता है....सपने में भी । जब मुझे दूसरा शरीर मिलता है, कभी कभी हमें पता लगता है कि बहुत लंबा बांस या पहाड़ की चोटी पर अभी मैं हूँ वहॉ, अभी मैं गिर रहा हूँ । अौर मैं डरता हूँ, मैं कभी कभी रोता हूँ, " बस अब मैं नीचे गिर रहा हूँ ।" तो यह शरीर, यह भौतिक शरीर, जिस शरीर से मेरा संबंध है, जो मेरा...... असल में, मेरा इन किसी भी शरीर से ताल्लुक नहीं है । मेरा एक अलग आध्यात्मिक शरीर है । तो यह मानव जीवन उस साक्षातकार के लिए है, कि "मैं यह भौतिक शरीर नहीं हूं, मेरा एक आध्यात्मिक शरीर है ।" तो अगला सवाल होगा "तो फिर मेरा कार्य क्या है ?" वर्तमान शरीर में कुछ भौतिक परिस्थितियों के तहत मैं सोच रहा हूँ, "यह मेरा शरीर है" और शरीर पैदा हुअा है इस देश या इस परिवार के तहत; इसलिए, "यह मेरा परिवार है, यह मेरा देश है, यह मेरा देश है ।" सब कुछ जीवन की शारीरिक अवधारणा में । और अगर मैं यह शरीर नहीं हूं, तो यह शरीर के साथ संबंध में, या मेरा परिवार या मेरा देश या मेरा समाज या मेरे अन्य संबंध, वे सब झूठे हैं क्योंकि शरीर झूठा है ।