HI/Prabhupada 0634 - कृष्ण माया शक्ति से कभी प्रभावित नहीं होते हैं

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Lecture on BG 2.28 -- London, August 30, 1973

अतः व्यसदेव ने देखा, अपश्यत पुरुषम पूर्णम । उन्होंने देखा ... जैसे हवाई जहाज में, तुम बादल से ऊपर जाते हो । सूर्य बादल से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं है । हालांकि हवाई जहाज के नीचे तुम बादल का विशाल जनसमूह देखोगे । इसी तरह, माया कृष्ण को प्रभावित नहीं कर सकती है । इसलिए, भगवद गीता कहता है दैवी हि एशा गुणमयी मम माया । मम माया (भ गी ७।१४) । श्री कृष्ण कहते हैं, "मेरी माया शक्ति ।" कृष्ण माया शक्ति से कभी प्रभावित नहीं होते हैं । बादल की तरह ही । लेकिन मायावादी दार्शनिक, वे कहते है कि जब अवैयक्तिक निरपेक्ष सत्य आता है, प्रकट होता है वे भी अवतार को स्वीकार करते हैं, लेकिन उनका तत्ज्ञान यह है कि अंततः निरपेक्ष सत्य अवैयक्तिक है । जब वे एक व्यक्ति के रूप में प्रकट होते हैं, वे माया शरीर को स्वीकार करते हैं । यह मायावाद है । कृष्ण को परम भगवान के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने एक भौतिक शरीर स्वीकार किया है । इसका मतलब है कि वे कृष्ण की तुलना साधारण जीव के साथ करना चाहते हैं, और यह भगवद गीता में निंदित है । ऐसा कहा जाता है कि अवजानन्ति माम मूढा मानुषीम तनुम अाश्रितम (भ गी ९।११) क्योंकि श्री कृष्ण अपने मूल रूप में आते हैं, ... मूल रूप है दो भुजाअों वाली । यह बाइबिल में भी स्वीकार किया जाता है: "मनुष्य भगवान की छवि पर बनाया गया है ।" तो भगवान के दो हाथ हैं । यहां तक ​​कि चार हाथ वाले विष्णु भी मूल रूप नहीं हैं । विष्णु रूप गौण अभिव्यक्ति है संकर्षण की । तो कृष्ण माया से कभी प्रभावित नहीं होते हैं । यह समझने वाली बात है ।