HI/Prabhupada 0638 - यह प्रथम श्रेणी का योगी है, जो हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन करता है

Revision as of 16:10, 8 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0638 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1973 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Lecture on BG 2.30 -- London, August 31, 1973

तो वह सब में केवल कृष्ण को देखता है । प्रेमान्जन छुरित भक्ति विलोचनेन संत: सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति ( ब्र स ५।३८) सदैव । वे कभी कभी पूछते हैं "आपने भगवान को देखा है ?" जो वास्तव में भक्त हैं, उन्नत भक्त हैं, वह केवल कृष्ण को देखता है, और कुछ नहीं । प्रेमान्जन छुरित भक्ति विलोचनेन संत: सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति ( ब्र स ५।३८) सदैव का मतलब है हमेशा । हृदयेषु विलोकयन्ति । यम् श्यामसुंदरम अचिन्त्य गुण स्वरूपम गोविन्दम अादि पुरुषम तम अहम भजामि । तो यह है ..... जितना तुम कृष्ण चेतना में अग्रिम होता हो, तुम बस कृष्ण को देखोगे । और अगर तुम्हे अभ्यास हो जाता है हमेशा कृष्ण को देखना, सदा तद भाव भावति: .... यम यम वापि स्मरन लोके त्यजति अंते कलेवरम (ब गी ८।६) । यद यद भावम । तो अगर तुम हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन करते हो ... यह भी कृष्ण की शिक्षा है । मन मना भव मद भक्तो मद याजी माम नमस्कुरु (भ गी १८।६५) "नित्य मेरा चिन्तन करो ।" यह प्रथम श्रेणी का योगी है, जो हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन करता है । योगिनाम अपि सर्वेषाम मद गतेनान्तर अात्मना भजते यो माम स मे युक्तातमो मत: (भ गी ६।४७) वह प्रथम श्रेणी का योगी है ।और भक्त है । पहले से ही हम ... नहीं तो, क्यों वह कृष्ण के बारे में चिन्तन करेगा ? मन मना भव मद भक्तो मद याजी । एक, केवल भक्त ही हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन कर सकता है । मन मना भव मद भक्त: "क्योंकि तुम मेरे भक्त हो तुम्हारा कर्तव्य है हमेशा मेरे बारे में चिन्तन करना ।" क्या यह बहुत मुश्किल काम है? तुम मंदिर में श्री कृष्ण को देख रहे हो । जितना अधिक तुम देखते हो कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, कृष्ण, चौबीस घंटे संलग्न रहना कृष्ण भावनामृत में, का मतलब है तुम्हे हमेशा कृष्ण को देखने का अभ्यास हो जाएगा । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । तुम एक पल के लिए भी कृष्ण को नहीं भूल सकते । और यही शिक्षा है । मन मना भव मद भक्तो मद याजी माम नमस्कुरु (भ गी १८।६५) । ये चार बातें । जब अर्च विग्रह मंदिर में है, तुम देखते हो और तुम उसे मन में बसा लेते हो । जब तुम मंदिर के बाहर हो तब भी तुम कृष्ण को अपने दिल के अंदर देख सकते हो, अगर तुमने कृष्ण के लिए प्रेम को विकसित किया है । अन्यथा, आधिकारिक तौर पर, तुम मंदिर आते हो और जैसे ही ... "परेशानी, मुझे यह भूल जाने दो ।" यह एक और बात है । लेकिन यह पूरी प्रक्रिया कृष्ण के लिए प्रेम को विकसित करने के लिए है । स वै पुम्साम परो धर्मो यतो भक्तिर अधोक्षजे (श्री भ १।२।६) । भक्तिर अधोक्षजे । यही प्रथम श्रेणी की धार्मिक प्रणाली है । यही प्रथम श्रेणी की धार्मिक प्रणाली है । यह कृष्ण भावनामृत प्रथम श्रेणी, सर्वोच्च धार्मिक प्रणाली है । क्यों ? यह शिक्षा दे रही है लोगों को कृष्ण का चिन्तन करने की, परम भगवान की, निरन्तर । प्रेम । केवल चिन्तन ही नहीं । हम किसी के बारे में चिन्तन नहीं कर सकते हैं जब तक हम उससे प्रेम नहीं करते हैं । अगर तुम किसी से प्यार करते हो, तो तुम निरन्तर उसके बारे में चिन्तन कर सकते हो । जैसे प्रेमी और प्रेमिका दोनों की तरह । मान लो एक लड़का, एक और लड़की । तो वे प्रेम करते हैं । तो वे दोनों निरन्तर एक दूसरे के बारे में चिन्तन करते हैं । "हम फिर कब मिलेंगे, हम फिर कब मिलेंगे ?" तो इसी तरह, मन मना भव मद भक्त: । तुम श्री कृष्ण का भक्त बन सकते हो, तुम निरन्तर कृष्ण के बारे में चिन्तन कर सकते हो, अगर तुमने कृष्ण के लिए प्रेम का विकास किया हो तो । प्रेमान्जन छुरित भक्ति विलोचनेन ( ब्र स ५।३८) । भक्ति करके, तुम कृष्ण के लिए अपने प्रेम को विकसित कर सकते हो । यह आवश्यक है ।