HI/Prabhupada 0640 - तुम्हे खुद को भगवान घोषित करने वाले बदमाश मिल सकते हैं, उसके चेहरे पर लात मारो

Revision as of 19:25, 8 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0640 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1973 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Lecture on BG 2.30 -- London, August 31, 1973

एइ रूपे । इस ब्रह्मांड के भीतर कई लाखों अरबों जीव रहते हैं । अौर वे घूम रहे हैं विभिन्न प्रजातियों में, ८५००००० - इस तरह से, दुर्भाग्यवश । बस पुनरावृत्ति, जन्म और मृत्यु, जन्म और मृत्यु विभिन्न ... उनमे से, अगर कोई बड़ा भाग्यशाली है, उसे मौका दिया जाता है गुरू-कृष्ण-प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज । गुरु और कृष्ण की कृपा से, उसे भक्ति सेवा का बीज मिलता है । और अगर वह बुद्धिमान है, जब तक वह बुद्धिमान न हो, वह बीज कैसे पाएगा ? यही दीक्षा है । और वह सींचता है ... जैसे अगर तुम्हे एक अच्छा बीज मिलता है, तो तुम्हे उसे बोना होगा और थोड़ा, थोड़ा पानी डालना होगा, तो यह बढ़ेगा । इसी तरह, जिस व्यक्ति को महान सौभाग्य प्राप्त होता है कृष्ण भावनामृत में अाने का, भक्ति सेवा का बीज, उसे सींचना चाहिए । और सींचना क्या है? श्रवण कीर्तन जले करये सेचन (चै च मध्य १९।१५२) यह सींचना है । यह सुनना और कृष्ण के बारे में जप करना । यह सींचना है । कक्षा से अनुपस्थित मत रहो । यह सुननाऔर जप करना सींचना है भक्ति सेवा के बीज को । अगर तुम अौपचारिक बनाते हो अौर सुनते नहीं हो..... यह सबसे महत्वपूर्ण बात है । श्रवणम कीर्तम विष्नो: (श्री भ ७।५।२३) । यह सबसे महत्वपूर्ण बात है । सुनना । श्रवणम कीर्तनम का मतलब नहीं है सुनना और जप करना किसी भी अन्य जीव के बारे में । नहीं । विष्णु । श्रवणम कीर्तनम । दुष्ट, उन्होंने निर्माण किया है "काली-कीर्तन" का । कहां है शास्त्र में काली-कीर्तन, शिव-कीर्तन ? नहीं । कीर्तन का मतलब है परम भगवान कृष्ण की महिमा का गुणगान । यही कीर्तन है । कोई भी अन्य कीर्तन नहीं । लेकिन उन्होंने निर्माण ... प्रतियोगिता, काली-कीर्तन । कहां है शास्त्र में काली-कीर्तन ? दुर्गा-कीर्तन? ये सब बकवास है । केवल कृष्ण । श्रवणम कीर्तनम विष्णो: सम्रणम पाद-सेवनम (श्री भ ७।५।२३) । श्री कृष्ण की पूजा की जानी चाहिए, कृष्ण को सुना जाना चाहिए, कृष्ण का नाम जपा जाना चाहिए, कृष्ण का चिन्तना किया जाना चाहिए । इस तरह से तुम कृष्ण भावनामृत में अग्रिम हो जाअोगे ।

बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण । (समाप्त)