HI/Prabhupada 0643 - जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: हाँ?
प्रभुपाद: हाँ?  


भक्त: प्रभुपाद, यह भगवद गीता में लिखा गया है, जिससे हम पढते हैं, यह विश्वास रखना कि कृष्ण हमारा पालन करेंगे । और आगे भी उसी गीता में कहा जाता है कि भगवान उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करता है ।
भक्त: प्रभुपाद, यह भगवद गीता में लिखा गया है, जिससे हम पढते हैं, यह विश्वास रखना कि कृष्ण हमारा पालन करेंगे । और आगे भी गीता में कहा जाता है कि भगवान उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करता है ।  


प्रभुपाद: हाँ ।
प्रभुपाद: हाँ ।  


भक्त: अब, हम कैसे निर्धारित करें कि हमें क्या करना चाहिए?
भक्त: अब, हम कैसे निर्धारित करें कि हमें क्या करना चाहिए?  


प्रभुपाद: खुद की मदद करने का मतलब है अपने साप को कृष्ण के रक्षण में रखना, यही खुद की मदद है । अौर अगर तुम सोचते हो, "ओह मैं खुद की रक्षा कर सकता हूँ ।" तो फिर तुम अपने आप की मदद नहीं कर रहे हो । जैसे इस उंगली की तरह, जब तक यह स्वस्थ है, काम कर रहा है, अगर कुछ परेशानी है तो मैं इस पर हजारों डॉलर खर्च कर सकता हूँ । लेकिन अगर इस उंगली को मेरे शरीर से काट कर अलग कर दिया जाता है, अगर तुम अपने पैरों से इस उंगली को रौंदते हो, तो मैं इसकी परवाह नहीं करता । इसी तरह, अपने आप की मदद करने का मतलब है, अपने अाप को उचित स्थिति में रखना, कृष्ण का अभिन्न अंग के रूप में । वह असली मदद है । नहीं तो तुम कैसे मदद कर सकते हो ? उंगली अपनी मदद कर सकता है अपने अाप को हाथ की सही स्थिति में रखकर और पूरे शरीर के लिए काम कर के । यही उचित स्थिति है । अगर उंगली सोचता है कि, "मैं इस शरीर से अलग रहूँगा और खुद की मदद करूँगा," तो यह मर जाएगा । तो जैसे ही हम सोचते हैं कि, "मैं स्वतंत्र रूप से रहूँगा, कृष्ण की परवाह किए बिना, "यह मेरी मृत्यु है और जैसे ही मैं कृष्ण का अभिन्न अंग के रूप में अपने आप को संलग्न करता हूँ, यह मेरी जिंदगी है । तो खूद की मदद करने के मतलब है अपनी स्थिति को समझना और इस तरह से काम करना । यही मदद है । उसकी स्थिति को समझे बिना, कैसे हम अपने आप की मदद कर सकते हैं ? यह संभव नहीं है । हाँ?
प्रभुपाद: खुद की मदद करने का मतलब है अपने आप को कृष्ण के रक्षण में रखना, यही खुद की मदद है । अौर अगर तुम सोचते हो, "ओह मैं खुद की रक्षा कर सकता हूँ ।" तो फिर तुम अपने आप की मदद नहीं कर रहे हो । जैसे इस उंगली की तरह, जब तक यह स्वस्थ है, काम कर रहा है, अगर कुछ परेशानी है तो, मैं इस पर हजारों डॉलर खर्च कर सकता हूँ । लेकिन अगर इस उंगली को मेरे शरीर से काट कर अलग कर दिया जाता है, अगर तुम अपने पैरों से इस उंगली को रौंदते हो, तो मैं इसकी परवाह नहीं करता । इसी तरह, अपने आप की मदद करने का मतलब है, अपने अाप को उचित स्थिति में रखना, कृष्ण के अभिन्न अंग के रूप में । वह असली मदद है । नहीं तो तुम कैसे मदद कर सकते हो ? उंगली अपनी मदद कर सकता है अपने अाप को हाथ की सही स्थिति में रखकर और पूरे शरीर के लिए काम कर के । यही उचित स्थिति है ।  


भक्त: तो फिर हमें हमेशा विवेक से कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए और हमेशा कृष्ण की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए और कृष्ण हमारी सेवा करें एसा नहीं होना चाहिए हमेशा यह एहसास रहे कि हमें कृष्ण की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए, अौर यह नहीं कहना चाहिए कि हम यह करेंगे अौर कृष्ण हमारा रखरखाव करेंगे, कृष्ण हमारी मदद करेंगे
अगर उंगली सोचती है कि, "मैं इस शरीर से अलग रहूँगी और खुद की मदद करूँगी, "तो वो मर जाएगी । तो जैसे ही हम सोचते हैं कि, "मैं स्वतंत्र रूप से रहूँगा, कृष्ण की परवाह किए बिना, "यह मेरी मृत्यु है, और जैसे ही मैं कृष्ण के अभिन्न अंग के रूप में अपने आप को संलग्न करता हूँ, यह मेरी जिंदगी है । तो ख़ुद की मदद करने का मतलब है अपनी स्थिति को समझना और इस तरह से काम करना । यही मदद है अपनी स्थिति को समझे बिना, कैसे हम अपने आप की मदद कर सकते हैं ? यह संभव नहीं है हाँ?


प्रभुपाद: तुम कृष्ण की सेवा कर रहे हो, मतलब तुम कर रहे हो । सेवा करने का मतलब है करना । सेवा करने से तुम्हारा क्या मतलब है? वास्तव में जब तुम किसी की सेवा करते हो , तो क्या तुम कुछ कर नहीं रहे हो ? तुम कैसे कृष्ण की सेवा में लगे हुए हो ? तुम कृष्ण भावनामृत के प्रचार के लिए जा रहे हो तुम भोजन पका रहे हो, तुम सफाई कर रहे हो, तुम इतने सारे, कर रहे हो। तो कृष्ण की मदद करना, का मतलब करना है । कृष्ण की मदद करने का मतलब नहीं है कि तुम कसके नीचे बैठो । यही कृष्ण भावनामृत गतिविधि है । जो तुम्हारी शक्ति है काम करने के लिए, कृष्ण के लिए इसका उपयोग करो । यही भक्ति है । अब हमें मिला है, क्या शक्ति मिली है? हम मन मिला है । ठीक है, कृष्ण का चिंतन करो । हम यह हाथ मिला है - मंदिर को धोअो या कृष्ण के लिए भोजन बनाअो । हमें पैर मिला है - कृष्ण के मंदिर में जाअो । हमें यह नाक मिला है - ओह, कृष्ण को अर्पित फूलों को सूंघो । तो तुम अंलग्न रहो । तो कृष्ण भावनामृत का अर्थ है काम करना, कार्य । अर्जुन, वे कार्य से मना कर रहे थे । और कृष्ण उन्हे कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहे थे । यह पूरा भगवद गीता है । कृष्ण भावनामृत का मतलब यह नहीं है कोई काम नहीं करना । कृष्ण भावानामृत में अपने आप को संलग्न करने का मतलब है काम करना-कृष्ण के लिए । कृष्ण नहीं कहते हैं, बेशक इस अध्याय में कृष्ण कुछ कहेंगे .... वे अर्जुन को कभी नहीं कहते हैं, "मेरे प्रिय मित्र अर्जुन, तुम इस जगत की परवाह नहीं करते हो । बैठ जाओ और मुझ पर ध्यान करो । " तुमने भगवद गीता में देखा है? इस ध्यान का मतलब है सब बेकार काम को रोकना, कसकर नीचे बैठना । लेकिन जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है । जैसे बच्चे की तरह । बस घर को परेशान करना । मॉ कहती है "मेरे प्यारे बच्चे, यहां बैठ जाओ ।" लेकिन अगर वह अच्छी तरह से काम कर सकता है , "अरे हाँ," मां, पूछती है, "मेरे प्रिय लड़के है, तुम्हे यह करना होगा, तुम्हे ऐसा करना होगा, तुम्हे एसा करना होगा ।" तो कसकर बैठना मूढों के लिए है । समझदार के लिए नहीं । मूढों के लिए, जितना वह बैठेगा, कम से कम वह कुछ बेकार कार्य नहीं करता है, बस । बेकार के कार्यों से मुकरना । यह सकारात्मक नहीं है । यहाँ सकारात्मक गतिविधियॉ है । तो नकारना जीवन नहीं है । सकारात्मक जीवन जीवन है । "ऐसा मत करो," कोई जीवन नहीं है । "यह करो," यह जीवन है । लेकिन ठीक से करने के लिए, कुछ बातें हैं, "नहीं करना ।" " नहीं करना "जीवन नहीं है "करना", जीवन है । पूरी भगवद गीता है "करना ।" "मेरे लिए लड़ो ।" कुछ नहीं है "नहीं करना ।" अर्जुन चाहते थे "मुझे प्रेरित मत करो ।" और कृष्ण को यह पसंद नहीं था । "तुम गैर आर्यन की तरह बोल रहे हो ।" कुतस त्वा कश्मलम इदम । अनार्य जुशटम ([[Vanisource:BG 2.2|भ गी २।२]]) "एसे शब्द गैर आर्यों द्वारा बोली जाती हैं ।" उनपर गैर आर्यन होने का आरोप लगाया गया था । अनार्य । तो कृष्ण भावनमृत का मतलब आलस्य में बैठना नहीं है, नहीं । हमारे पास कृष्ण की पूरी लीलाऍ हैं, गतिविधियॉ से भरी हुई । जब तुम आध्यात्मिक जगत में जाअोगे, कृष्ण हमेशा नाच रहे हैं । तुम्हे वहां चौबीस घंटे नृत्य करना होगा और वहाँ भोजान करना होगा । नीचे बैठने का सवाल कहाँ है? बैठने का कोई सवाल ही नहीं है । तुमने सुना है गोपियों को ध्यान करते हुए ? बैठ जाअो । (हंसी) क्या तुमने सुना है? पृथ्वी पर श्री कृष्ण ... भगवान चैतन्य महाप्रभु? उन्होंने किया है, क्या किया है, नृत्य, "हरे कृष्ण ।" तुम देखते हो ? तुम समझो, आत्मा, तुम अात्मा हो, कैसे तुम अपने अाप को चुप रख सकते हो ? यह संभव नहीं है । अर्जुन नें इनकार किया, जब ... तुम इस अध्याय में पअोगे जब अर्जुन को सिफारिश दी गई, "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम ध्यान करो ।" उन्होंने तुरंत मना कर दिया । "मेरे प्यारे कृष्ण, यह मेरे लिए संभव नहीं है । यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" जो वास्तविक तथ्य है । यह उनके लिए कैसे संभव है? वे एक गृहस्थ व्यक्ति थे, वे राज्य चाहते थे, वे देश पर शासन करना चाहते थे । कैसे, उनको ध्यान के लिए कहां समय है ? उन्होंने साफ मना कर दिया. "मेरे प्यारे कृष्ण, यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" उन्होंने कहा कि मन को नियंत्रित करना: वायोर इव सुदुश्करम । "हवा को नियंत्रित करने की तरह ही यह मुश्किल है ।" यह एक तथ्य है । तुम्हे श्री कृष्ण में मन को संलग्न करना है । तो फिर यह नियंत्रित किया जाता है । अन्यथा, कृत्रिम रूप से तुम नियंत्रण नहीं कर सकते हो । यह असंभव है । अर्जुन नें कहा, दूसरों की क्या बात करें । अर्जुन, अर्जुन कौन हैं ? निजी तौर पर श्री कृष्ण के साथ बात कर रहे हैं । तुम्हे लगता है कि वे आम आदमी हैं ? उन्होंने कहा कि यह असंभव है । वायोर इव सुदुश्करम ([[Vanisource:BG 6.34|भ गी ६।३४]])
भक्त: तो फिर हमें हमेशा विवेक से कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए और हमेशा कृष्ण की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए और कृष्ण हमारी सेवा करें एसा नहीं होना चाहिए हमेशा यह एहसास रहे कि हमें कृष्ण की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए, अौर यह नहीं कहना चाहिए कि हम यह करेंगे अौर कृष्ण हमारा पालन करेंगे, कृष्ण हमारी मदद करेंगे ।  


यही उदाहरण उन्होंने दिया है । चंचलम हि मन: कृष्ण प्रमाथी बलवद दृढम ([[Vanisource:BG 6.34|भ गी ६।३४]]) "मेरे प्यारे कृष्ण, आप मुझे मन को नियंत्रित करने के लिए कह रहे हैं । यह इतना शक्तिशाली है कि, और बेचैन है - "मुझे लगता है कि मन को नियंत्रित करना हवा को नियंत्रित करने की तरह है ।" अगर तेज़ हवा है, तो तुम इसे नियंत्रित कर सकते हो ? इसलिए वे यह उदाहरण देते हैं । तुम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हो जब तुम कृष्ण के चरण कमलों पर अपना मन टिका सकते हो । कोई बेकार विचार तुम्हारे मन के भीतर नहीं आ सकते हैं, बस कृष्ण । यही ध्यान की पूर्णता है ।
प्रभुपाद: तुम कृष्ण की सेवा कर रहे हो, मतलब तुम कर रहे हो । सेवा करने का मतलब है करना । सेवा करने से तुम्हारा क्या मतलब है? वास्तव में जब तुम किसी की सेवा करते हो, तो क्या तुम कुछ कर नहीं रहे हो ? तुम कैसे कृष्ण की सेवा में लगे हुए हो ? तुम कृष्ण भावनामृत के प्रचार के लिए जा रहे हो, तुम भोजन पका रहे हो, तुम सफाई कर रहे हो, तुम इतने सारे, कर रहे हो । तो कृष्ण की मदद करना, का मतलब करना है । कृष्ण की मदद करने का मतलब नहीं है कि तुम कसके नीचे बैठो । यही कृष्ण भावनामृत कार्य है ।
 
जो तुम्हारी शक्ति है काम करने के लिए, कृष्ण के लिए इसका उपयोग करो । यही भक्ति है । अब हमें क्या शक्ति मिली है? हमें मन मिला है । ठीक है, कृष्ण का चिंतन करो । हमें यह हाथ मिला है - मंदिर को धोअो या कृष्ण के लिए भोजन बनाअो । हमें पैर मिला है - कृष्ण के मंदिर में जाअो । हमें यह नाक मिला है - ओह, कृष्ण को अर्पित फूलों को सूंघो । तो तुम संलग्न कर सकते हो । तो कृष्ण भावनामृत का अर्थ है काम करना, कार्य । अर्जुन, वे कार्य से मना कर रहे थे । और कृष्ण उन्हे कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहे थे । यह पूरी भगवद गीता है । कृष्ण भावनामृत का मतलब यह नहीं है कोई काम नहीं करना ।
 
कृष्ण भावानामृत में अपने आप को संलग्न करने का मतलब है काम करना - कृष्ण के लिए । कृष्ण नहीं कहते हैं, अवश्य इस अध्याय में कृष्ण कुछ कहेंगे... वे अर्जुन को कभी नहीं कहते हैं, "मेरे प्रिय मित्र अर्जुन, तुम इस जगत की परवाह नहीं करो । बैठ जाओ और मुझ पर ध्यान करो । " तुमने भगवद गीता में देखा है? इस ध्यान का मतलब है सब बेकार काम को रोकना, कसकर नीचे बैठना । लेकिन जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है । जैसे बच्चे की तरह । बस घर को परेशान करता है । मॉ कहती है "मेरे प्यारे बच्चे, यहां बैठ जाओ ।" लेकिन अगर वह अच्छी तरह से काम कर सकता है, "अरे हाँ," मां पूछती है, "मेरे प्रिय लड़के, तुम्हे यह करना होगा, तुम्हे ऐसा करना होगा, तुम्हे एसा करना होगा ।"
 
तो कसकर बैठना मूर्खो के लिए है । समझदार के लिए नहीं । मूर्खो के लिए, जितना वह बैठेगा, कम से कम वह कुछ बेकार कार्य नहीं करता है, बस । बेकार के कार्यों से मुकरना । यह सकारात्मक नहीं है । यहाँ सकारात्मक गतिविधियॉ है । तो नकारना जीवन नहीं है । सकारात्मक जीवन जीवन है । "ऐसा मत करो," कोई जीवन नहीं है । "यह करो," यह जीवन है । लेकिन ठीक से करने के लिए, कुछ बातें हैं, "नहीं करना ।" "नहीं करना" जीवन नहीं है "करना", जीवन है । पूरी भगवद गीता है "करना ।" "मेरे लिए लड़ो ।" कुछ नहीं है "नहीं करना ।" अर्जुन चाहते थे "मुझे प्रेरित मत करो ।" और कृष्ण को यह पसंद नहीं था । "तुम अनार्य की तरह बोल रहे हो ।" कुतस त्वा कश्मलम इदम । अनार्य जुष्टम ([[HI/BG 2.2|भ.गी. २.२]]) | "एसे शब्द अनार्यो द्वारा बोले जाते हैं ।" उनपर अनार्य होने का आरोप लगाया गया था । अनार्य । तो कृष्ण भावनमृत का मतलब आलस्य में बैठना नहीं है, नहीं । हमारे पास कृष्ण की पूरी लीलाऍ हैं, गतिविधियॉ से भरी हुई ।
 
जब तुम आध्यात्मिक जगत में जाअोगे, कृष्ण हमेशा नाच रहे हैं । तुम्हे वहां चौबीस घंटे नृत्य करना होगा और वहाँ भोजन करना होगा । नीचे बैठने का सवाल कहाँ है? बैठने का कोई सवाल ही नहीं है । तुमने सुना है गोपियों को ध्यान करते हुए ? बैठ जाअो । (हंसी) क्या तुमने सुना है? पृथ्वी पर कृष्ण... भगवान चैतन्य महाप्रभु ? उन्होंने किया है, क्या किया है, नृत्य, "हरे कृष्ण ।" तुम देखते हो ? तुम समझो, आत्मा, तुम अात्मा हो, कैसे तुम अपने अाप को चुप रख सकते हो ? यह संभव नहीं है । अर्जुन नें इनकार किया, जब... तुम इस अध्याय में पअोगे जब अर्जुन को सिफारिश दी गई, "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम ध्यान करो ।" उन्होंने तुरंत मना कर दिया । "मेरे प्यारे कृष्ण, यह मेरे लिए संभव नहीं है । यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" ये वास्तविक तथ्य है ।
 
यह उनके लिए कैसे संभव है? वे एक गृहस्थ व्यक्ति थे, वे राज्य चाहते थे, वे देश पर शासन करना चाहते थे । कैसे, उनको ध्यान के लिए कहां समय है ? उन्होंने साफ मना कर दिया. "मेरे प्यारे कृष्ण, यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" उन्होंने कहा कि मन को नियंत्रित करना: वायोर इव सुदुश्करम । "हवा को नियंत्रित करने की तरह ही यह मुश्किल है ।" यह एक तथ्य है । तुम्हे श्री कृष्ण में मन को संलग्न करना है । तो फिर यह नियंत्रित किया जाता है । अन्यथा, कृत्रिम रूप से तुम नियंत्रण नहीं कर सकते हो । यह असंभव है । अर्जुन नें कहा, दूसरों की क्या बात करें । अर्जुन, अर्जुन कौन हैं ? निजी तौर पर श्री कृष्ण के साथ बात कर रहे हैं । तुम्हे लगता है कि वे आम आदमी हैं ? उन्होंने कहा कि यह असंभव है । वायोर इव सुदुश्करम ([[HI/BG 6.34|भ.गी. ६.३४]]) ।
 
यही उदाहरण उन्होंने दिया है । चंचलम हि मन: कृष्ण प्रमाथी बलवद दृढम ([[HI/BG 6.34|भ.गी. ६.३४]]) | "मेरे प्यारे कृष्ण, आप मुझे मन को नियंत्रित करने के लिए कह रहे हैं । यह इतना शक्तिशाली है कि, और बेचैन है - "मुझे लगता है कि मन को नियंत्रित करना हवा को नियंत्रित करने की तरह है ।" अगर तेज़ हवा है, तो क्या तुम इसे नियंत्रित कर सकते हो ? इसलिए वे यह उदाहरण देते हैं । तुम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हो जब तुम कृष्ण के चरण कमलों पर अपना मन टिका सकते हो । कोई बेकार विचार तुम्हारे मन के भीतर नहीं आ सकते हैं, बस कृष्ण । यही ध्यान की पूर्णता है ।  
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Latest revision as of 19:01, 17 September 2020



Lecture on BG 6.1 -- Los Angeles, February 13, 1969

प्रभुपाद: हाँ?

भक्त: प्रभुपाद, यह भगवद गीता में लिखा गया है, जिससे हम पढते हैं, यह विश्वास रखना कि कृष्ण हमारा पालन करेंगे । और आगे भी गीता में कहा जाता है कि भगवान उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करता है ।

प्रभुपाद: हाँ ।

भक्त: अब, हम कैसे निर्धारित करें कि हमें क्या करना चाहिए?

प्रभुपाद: खुद की मदद करने का मतलब है अपने आप को कृष्ण के रक्षण में रखना, यही खुद की मदद है । अौर अगर तुम सोचते हो, "ओह मैं खुद की रक्षा कर सकता हूँ ।" तो फिर तुम अपने आप की मदद नहीं कर रहे हो । जैसे इस उंगली की तरह, जब तक यह स्वस्थ है, काम कर रहा है, अगर कुछ परेशानी है तो, मैं इस पर हजारों डॉलर खर्च कर सकता हूँ । लेकिन अगर इस उंगली को मेरे शरीर से काट कर अलग कर दिया जाता है, अगर तुम अपने पैरों से इस उंगली को रौंदते हो, तो मैं इसकी परवाह नहीं करता । इसी तरह, अपने आप की मदद करने का मतलब है, अपने अाप को उचित स्थिति में रखना, कृष्ण के अभिन्न अंग के रूप में । वह असली मदद है । नहीं तो तुम कैसे मदद कर सकते हो ? उंगली अपनी मदद कर सकता है अपने अाप को हाथ की सही स्थिति में रखकर और पूरे शरीर के लिए काम कर के । यही उचित स्थिति है ।

अगर उंगली सोचती है कि, "मैं इस शरीर से अलग रहूँगी और खुद की मदद करूँगी, "तो वो मर जाएगी । तो जैसे ही हम सोचते हैं कि, "मैं स्वतंत्र रूप से रहूँगा, कृष्ण की परवाह किए बिना, "यह मेरी मृत्यु है, और जैसे ही मैं कृष्ण के अभिन्न अंग के रूप में अपने आप को संलग्न करता हूँ, यह मेरी जिंदगी है । तो ख़ुद की मदद करने का मतलब है अपनी स्थिति को समझना और इस तरह से काम करना । यही मदद है । अपनी स्थिति को समझे बिना, कैसे हम अपने आप की मदद कर सकते हैं ? यह संभव नहीं है । हाँ?

भक्त: तो फिर हमें हमेशा विवेक से कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए और हमेशा कृष्ण की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए और कृष्ण हमारी सेवा करें एसा नहीं होना चाहिए । हमेशा यह एहसास रहे कि हमें कृष्ण की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए, अौर यह नहीं कहना चाहिए कि हम यह करेंगे अौर कृष्ण हमारा पालन करेंगे, कृष्ण हमारी मदद करेंगे ।

प्रभुपाद: तुम कृष्ण की सेवा कर रहे हो, मतलब तुम कर रहे हो । सेवा करने का मतलब है करना । सेवा करने से तुम्हारा क्या मतलब है? वास्तव में जब तुम किसी की सेवा करते हो, तो क्या तुम कुछ कर नहीं रहे हो ? तुम कैसे कृष्ण की सेवा में लगे हुए हो ? तुम कृष्ण भावनामृत के प्रचार के लिए जा रहे हो, तुम भोजन पका रहे हो, तुम सफाई कर रहे हो, तुम इतने सारे, कर रहे हो । तो कृष्ण की मदद करना, का मतलब करना है । कृष्ण की मदद करने का मतलब नहीं है कि तुम कसके नीचे बैठो । यही कृष्ण भावनामृत कार्य है ।

जो तुम्हारी शक्ति है काम करने के लिए, कृष्ण के लिए इसका उपयोग करो । यही भक्ति है । अब हमें क्या शक्ति मिली है? हमें मन मिला है । ठीक है, कृष्ण का चिंतन करो । हमें यह हाथ मिला है - मंदिर को धोअो या कृष्ण के लिए भोजन बनाअो । हमें पैर मिला है - कृष्ण के मंदिर में जाअो । हमें यह नाक मिला है - ओह, कृष्ण को अर्पित फूलों को सूंघो । तो तुम संलग्न कर सकते हो । तो कृष्ण भावनामृत का अर्थ है काम करना, कार्य । अर्जुन, वे कार्य से मना कर रहे थे । और कृष्ण उन्हे कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहे थे । यह पूरी भगवद गीता है । कृष्ण भावनामृत का मतलब यह नहीं है कोई काम नहीं करना ।

कृष्ण भावानामृत में अपने आप को संलग्न करने का मतलब है काम करना - कृष्ण के लिए । कृष्ण नहीं कहते हैं, अवश्य इस अध्याय में कृष्ण कुछ कहेंगे... वे अर्जुन को कभी नहीं कहते हैं, "मेरे प्रिय मित्र अर्जुन, तुम इस जगत की परवाह नहीं करो । बैठ जाओ और मुझ पर ध्यान करो । " तुमने भगवद गीता में देखा है? इस ध्यान का मतलब है सब बेकार काम को रोकना, कसकर नीचे बैठना । लेकिन जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है । जैसे बच्चे की तरह । बस घर को परेशान करता है । मॉ कहती है "मेरे प्यारे बच्चे, यहां बैठ जाओ ।" लेकिन अगर वह अच्छी तरह से काम कर सकता है, "अरे हाँ," मां पूछती है, "मेरे प्रिय लड़के, तुम्हे यह करना होगा, तुम्हे ऐसा करना होगा, तुम्हे एसा करना होगा ।"

तो कसकर बैठना मूर्खो के लिए है । समझदार के लिए नहीं । मूर्खो के लिए, जितना वह बैठेगा, कम से कम वह कुछ बेकार कार्य नहीं करता है, बस । बेकार के कार्यों से मुकरना । यह सकारात्मक नहीं है । यहाँ सकारात्मक गतिविधियॉ है । तो नकारना जीवन नहीं है । सकारात्मक जीवन जीवन है । "ऐसा मत करो," कोई जीवन नहीं है । "यह करो," यह जीवन है । लेकिन ठीक से करने के लिए, कुछ बातें हैं, "नहीं करना ।" "नहीं करना" जीवन नहीं है "करना", जीवन है । पूरी भगवद गीता है "करना ।" "मेरे लिए लड़ो ।" कुछ नहीं है "नहीं करना ।" अर्जुन चाहते थे "मुझे प्रेरित मत करो ।" और कृष्ण को यह पसंद नहीं था । "तुम अनार्य की तरह बोल रहे हो ।" कुतस त्वा कश्मलम इदम । अनार्य जुष्टम (भ.गी. २.२) | "एसे शब्द अनार्यो द्वारा बोले जाते हैं ।" उनपर अनार्य होने का आरोप लगाया गया था । अनार्य । तो कृष्ण भावनमृत का मतलब आलस्य में बैठना नहीं है, नहीं । हमारे पास कृष्ण की पूरी लीलाऍ हैं, गतिविधियॉ से भरी हुई ।

जब तुम आध्यात्मिक जगत में जाअोगे, कृष्ण हमेशा नाच रहे हैं । तुम्हे वहां चौबीस घंटे नृत्य करना होगा और वहाँ भोजन करना होगा । नीचे बैठने का सवाल कहाँ है? बैठने का कोई सवाल ही नहीं है । तुमने सुना है गोपियों को ध्यान करते हुए ? बैठ जाअो । (हंसी) क्या तुमने सुना है? पृथ्वी पर कृष्ण... भगवान चैतन्य महाप्रभु ? उन्होंने किया है, क्या किया है, नृत्य, "हरे कृष्ण ।" तुम देखते हो ? तुम समझो, आत्मा, तुम अात्मा हो, कैसे तुम अपने अाप को चुप रख सकते हो ? यह संभव नहीं है । अर्जुन नें इनकार किया, जब... तुम इस अध्याय में पअोगे जब अर्जुन को सिफारिश दी गई, "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम ध्यान करो ।" उन्होंने तुरंत मना कर दिया । "मेरे प्यारे कृष्ण, यह मेरे लिए संभव नहीं है । यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" ये वास्तविक तथ्य है ।

यह उनके लिए कैसे संभव है? वे एक गृहस्थ व्यक्ति थे, वे राज्य चाहते थे, वे देश पर शासन करना चाहते थे । कैसे, उनको ध्यान के लिए कहां समय है ? उन्होंने साफ मना कर दिया. "मेरे प्यारे कृष्ण, यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" उन्होंने कहा कि मन को नियंत्रित करना: वायोर इव सुदुश्करम । "हवा को नियंत्रित करने की तरह ही यह मुश्किल है ।" यह एक तथ्य है । तुम्हे श्री कृष्ण में मन को संलग्न करना है । तो फिर यह नियंत्रित किया जाता है । अन्यथा, कृत्रिम रूप से तुम नियंत्रण नहीं कर सकते हो । यह असंभव है । अर्जुन नें कहा, दूसरों की क्या बात करें । अर्जुन, अर्जुन कौन हैं ? निजी तौर पर श्री कृष्ण के साथ बात कर रहे हैं । तुम्हे लगता है कि वे आम आदमी हैं ? उन्होंने कहा कि यह असंभव है । वायोर इव सुदुश्करम (भ.गी. ६.३४) ।

यही उदाहरण उन्होंने दिया है । चंचलम हि मन: कृष्ण प्रमाथी बलवद दृढम (भ.गी. ६.३४) | "मेरे प्यारे कृष्ण, आप मुझे मन को नियंत्रित करने के लिए कह रहे हैं । यह इतना शक्तिशाली है कि, और बेचैन है - "मुझे लगता है कि मन को नियंत्रित करना हवा को नियंत्रित करने की तरह है ।" अगर तेज़ हवा है, तो क्या तुम इसे नियंत्रित कर सकते हो ? इसलिए वे यह उदाहरण देते हैं । तुम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हो जब तुम कृष्ण के चरण कमलों पर अपना मन टिका सकते हो । कोई बेकार विचार तुम्हारे मन के भीतर नहीं आ सकते हैं, बस कृष्ण । यही ध्यान की पूर्णता है ।