HI/Prabhupada 0648 - स्वभाव से हम जीव हैं, हमें कुछ करना ही होगा: Difference between revisions

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भक्त: तात्पर्य: "जब मनुष्य भगवान की दिव्य प्रेमभक्ति में पूरी तरह लगा रहता है तो वह अपने अाप में प्रसन्न रहता है अौर इस तरह वह इन्द्रियतृप्ति या सकामकर्म में प्रवृत्त नहीं होता । अन्यथा इन्द्रियतृप्ति में लगना ही पड़ता है, कयोंकि कर्म किए बिना कोई रह नहीं सकता ।"
भक्त: तात्पर्य: "जब मनुष्य भगवान की दिव्य प्रेमभक्ति में पूरी तरह लगा रहता है, तो वह अपने अाप में प्रसन्न रहता है अौर इस तरह वह इन्द्रियतृप्ति या सकाम कर्म में प्रवृत्त नहीं होता । अन्यथा इन्द्रियतृप्ति में लगना ही पड़ता है, कयोंकि कर्म किए बिना कोई रह नहीं सकता ।"  


प्रभुपाद: हाँ, यही बात है । हमें कुछ करते रहना चाहिए । हम रुक नहीं सकते हैं, वही उदाहरण । तुम एक बच्चे को कुछ करने से रोक नहीं सकते । या गतिविधियों से । स्वभाव से हम जीव हैं, हम कुछ करना ही होगा । गतिविधियों को रोकना संभव नहीं है । इसलिए , जैसे यह कहा जाता है "एक निष्क्रिय मस्तिष्क एक शैतान की कार्यशाला है ।" तो अगर हमारे पास कुछ अच्छा करने के लिए नहीं हैं, तो फिर तुम्हे कुछ हम बकवास में अपने आप को संलग्न करना होगा । जैसे बच्चे की तरह, अगर वह शिक्षा के क्षेत्र में नहीं लगा हुअा है, वह एक खराब बच्चा हो जाता है । इसी तरह, हमारे दो काम : या तो भौतिक इन्द्रियतृप्ति या कृष्ण भावनामृत, या भक्ति योग, या योग । अो अगर मैं योग प्रणाली में नहीं हूँ, तो मुझे इन्द्रियतृप्ति में होना ही चाहिए । और अगर मैं इन्द्रियतृप्ति में हूँ , तो योग का कोई सवाल नहीं है । अागे पढो
प्रभुपाद: हाँ, यही बात है । हमें कुछ करते रहना ही पडेगा । हम रुक नहीं सकते हैं, वही उदाहरण । तुम एक बच्चे को कुछ करने से रोक नहीं सकते । या गतिविधियों से । स्वभाव से हम जीव हैं, हमें कुछ करना ही होगा । गतिविधियों को रोकना संभव नहीं है । इसलिए, जैसे यह कहा जाता है "एक निष्क्रिय मस्तिष्क एक शैतान की कार्यशाला है ।" तो अगर हमारे पास कुछ अच्छा करने के लिए नहीं हैं, तो फिर तुम्हे कुछ बकवास कार्य में अपने आप को संलग्न करना होगा । जैसे बच्चे की तरह, अगर वह शिक्षा के क्षेत्र में नहीं लगा हुअा है, वह एक खराब बच्चा हो जाता है ।  


भक्त: "बिना कृष्ण भावनामृत के मनुष्य सदैव स्वार्थ में तत्पर रहता है किन्तु कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कृष्ण की प्रसन्नता के लिए ही सब कुछ करता है फलत: वह इन्द्रियतृप्ति से पूरी तरह से विरक्त रहता है । जिसे एसी अनूभूति प्राप्त नहीं है उसे चाहिए कि भौतिक इच्छाअों से बचे रहने का वह यंत्रवत् प्रयास करे तभी वह योग की सीढ़ी से ऊपर पहुँच सकता है "
इसी तरह, हमारे दो काम: या तो भौतिक इन्द्रियतृप्ति, या कृष्ण भावनामृत, या भक्ति योग, या योग । अो अगर मैं योग प्रणाली में नहीं हूँ, तो मुझे इन्द्रियतृप्ति में होना ही चाहिए और अगर मैं इन्द्रियतृप्ति में हूँ, तो योग का कोई सवाल नहीं है । अागे पढो ।  


प्रभुपाद: "योग सीढ़ी ।" योग सीढ़ी, इसकी एक सीढ़ी के साथ तुलना की गई है । जैसे पैड़ी की तरह है - एक बड़ा गगनचुंबी इमारत में पैड़ी होते हैं । इसलिए हर कदम एक प्रगति है, यह एक तथ्य है । इसलिए पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली कहा जा सकता है । लेकिन कोई पांचवें कदम पर हो सकता है, और कोई, पचासवे कदम पर हो सकता है, और कोई पाँच सौ कदम पर हो सकता है, और अन्य कोई घर के सबसे ऊपर हो सकता है । तो यद्यपि पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली या सीढ़ी कहा जाता है लेकिन जो पांचवें चरण पर है, वह पचासवां चरण पर जो है, उस व्यक्ति के समान नहीं हो सकता । या जो पचासवे कदम पर है, उसकी तुलना पांच सौ कदम पर जो व्यक्ति है, उसके साथ नहीं की जा सकती है । इसी तरह, भगवद गीता में तुम पाअोगे कर्म-योग, ज्ञान योग, ध्यान-योग, भक्ति-योग । योग इस नाम के साथ कहा जाता है । क्योंकि पूरी सीढ़ी सर्वोच्च मंजिल के साथ जुड़ी है । तो हर प्रणाली भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी हुई है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हर आदमी सर्वोच्च मंजिल पर है । . जो व्यक्ति सर्वोच्च मंजिल पर है, वह कृष्णभावनामृत में है एसा समझा जा सकता है । अन्य, वे पांचवें या पचासवां या पांच सौ की तरह हैं, एसे । पूरी प्रणाली को सीढ़ी कहा जाता है ।
भक्त: "बिना कृष्ण भावनामृत के मनुष्य सदैव स्वार्थ में तत्पर रहता है । किन्तु कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कृष्ण की प्रसन्नता के लिए ही सब कुछ करता है फलत: वह इन्द्रियतृप्ति से पूरी तरह से विरक्त रहता है । जिसे एसी अनूभूति प्राप्त नहीं है उसे चाहिए कि भौतिक इच्छाअों से बचे रहने का वह यंत्रवत प्रयास करे तभी वह योग की सीढ़ी से ऊपर पहुँच सकता है ।"
 
प्रभुपाद: "योग सीढ़ी ।" योग सीढ़ी, इसकी एक सीढ़ी के साथ तुलना की गई है । जैसे पैड़ी की तरह है - एक बड़ा गगनचुंबी इमारत में पैड़ी होते हैं । इसलिए हर कदम एक प्रगति है, यह एक तथ्य है । इसलिए पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली कहा जा सकता है । लेकिन कोई पांचवें कदम पर हो सकता है, और कोई, पचासवे कदम पर हो सकता है, और कोई पाँच सौ कदम पर हो सकता है, और अन्य कोई घर के सबसे ऊपर हो सकता है ।  
 
तो यद्यपि पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली या सीढ़ी कहा जाता है, लेकिन जो पांचवें चरण पर है, वह पचासवां चरण पर जो है, उस व्यक्ति के समान नहीं हो सकता । या जो पचासवे कदम पर है, उसकी तुलना पांच सौ कदम पर जो व्यक्ति है, उसके साथ नहीं की जा सकती है । इसी तरह, भगवद गीता में तुम पाअोगे कर्म-योग, ज्ञान योग, ध्यान-योग, भक्ति-योग । योग इस नाम के साथ कहा जाता है । क्योंकि पूरी सीढ़ी सर्वोच्च मंजिल के साथ जुड़ी है । तो हर प्रणाली भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी हुई है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हर आदमी सर्वोच्च मंजिल पर है । जो व्यक्ति सर्वोच्च मंजिल पर है, वह कृष्णभावनामृत में है एसा समझा जा सकता है । अन्य, वे पांचवें या पचासवे या पांच सौ की तरह हैं, एसे । पूरी प्रणाली को सीढ़ी कहा जाता है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 6.2-5 -- Los Angeles, February 14, 1969

भक्त: तात्पर्य: "जब मनुष्य भगवान की दिव्य प्रेमभक्ति में पूरी तरह लगा रहता है, तो वह अपने अाप में प्रसन्न रहता है अौर इस तरह वह इन्द्रियतृप्ति या सकाम कर्म में प्रवृत्त नहीं होता । अन्यथा इन्द्रियतृप्ति में लगना ही पड़ता है, कयोंकि कर्म किए बिना कोई रह नहीं सकता ।"

प्रभुपाद: हाँ, यही बात है । हमें कुछ करते रहना ही पडेगा । हम रुक नहीं सकते हैं, वही उदाहरण । तुम एक बच्चे को कुछ करने से रोक नहीं सकते । या गतिविधियों से । स्वभाव से हम जीव हैं, हमें कुछ करना ही होगा । गतिविधियों को रोकना संभव नहीं है । इसलिए, जैसे यह कहा जाता है "एक निष्क्रिय मस्तिष्क एक शैतान की कार्यशाला है ।" तो अगर हमारे पास कुछ अच्छा करने के लिए नहीं हैं, तो फिर तुम्हे कुछ बकवास कार्य में अपने आप को संलग्न करना होगा । जैसे बच्चे की तरह, अगर वह शिक्षा के क्षेत्र में नहीं लगा हुअा है, वह एक खराब बच्चा हो जाता है ।

इसी तरह, हमारे दो काम: या तो भौतिक इन्द्रियतृप्ति, या कृष्ण भावनामृत, या भक्ति योग, या योग । अो अगर मैं योग प्रणाली में नहीं हूँ, तो मुझे इन्द्रियतृप्ति में होना ही चाहिए । और अगर मैं इन्द्रियतृप्ति में हूँ, तो योग का कोई सवाल नहीं है । अागे पढो ।

भक्त: "बिना कृष्ण भावनामृत के मनुष्य सदैव स्वार्थ में तत्पर रहता है । किन्तु कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कृष्ण की प्रसन्नता के लिए ही सब कुछ करता है फलत: वह इन्द्रियतृप्ति से पूरी तरह से विरक्त रहता है । जिसे एसी अनूभूति प्राप्त नहीं है उसे चाहिए कि भौतिक इच्छाअों से बचे रहने का वह यंत्रवत प्रयास करे तभी वह योग की सीढ़ी से ऊपर पहुँच सकता है ।"

प्रभुपाद: "योग सीढ़ी ।" योग सीढ़ी, इसकी एक सीढ़ी के साथ तुलना की गई है । जैसे पैड़ी की तरह है - एक बड़ा गगनचुंबी इमारत में पैड़ी होते हैं । इसलिए हर कदम एक प्रगति है, यह एक तथ्य है । इसलिए पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली कहा जा सकता है । लेकिन कोई पांचवें कदम पर हो सकता है, और कोई, पचासवे कदम पर हो सकता है, और कोई पाँच सौ कदम पर हो सकता है, और अन्य कोई घर के सबसे ऊपर हो सकता है ।

तो यद्यपि पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली या सीढ़ी कहा जाता है, लेकिन जो पांचवें चरण पर है, वह पचासवां चरण पर जो है, उस व्यक्ति के समान नहीं हो सकता । या जो पचासवे कदम पर है, उसकी तुलना पांच सौ कदम पर जो व्यक्ति है, उसके साथ नहीं की जा सकती है । इसी तरह, भगवद गीता में तुम पाअोगे कर्म-योग, ज्ञान योग, ध्यान-योग, भक्ति-योग । योग इस नाम के साथ कहा जाता है । क्योंकि पूरी सीढ़ी सर्वोच्च मंजिल के साथ जुड़ी है । तो हर प्रणाली भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी हुई है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हर आदमी सर्वोच्च मंजिल पर है । जो व्यक्ति सर्वोच्च मंजिल पर है, वह कृष्णभावनामृत में है एसा समझा जा सकता है । अन्य, वे पांचवें या पचासवे या पांच सौ की तरह हैं, एसे । पूरी प्रणाली को सीढ़ी कहा जाता है ।