HI/Prabhupada 0659 - बस विष्णु के बारे में सुनना और कीर्तन करना

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Lecture on BG 6.13-15 -- Los Angeles, February 16, 1969

प्रभुपाद: हाँ ?

भक्त: प्रभुपाद, आपने कहा की कृष्ण का कोई अंग नहीं है, कोई आंख, कोई रूप नहीं है जो हम समझ सकते हैं । तो कैसे हम कृष्ण को समज सकते हैं जो चित्र और मूर्ति के रूप में हमें दी गई हैं ?

प्रभुपाद: हाँ, ये मैंने समझाया है । की तुम्हे केवल उनकी सेवा करनी है, फिर वे प्रकाशित होगें । तुम अपनी आरोही प्रक्रिया द्वारा कृष्ण को नहीं समझ सकते हो । तुम्हे कृष्ण की सेवा करनी होगी और फिर कृष्ण प्रकाशीत करेंगे तुम्हे । यह भगवद गीता में कहा गया है, तुम दसवें अध्याय में पाअोगे ।

तेषाम एवानुकम्पार्थम
अहम अज्ञान जम तम:
नाशयामि अात्म भाव स्थो
ज्ञान दीपेन भास्वता
(भ.गी. १०.११)

"जो हमेशा मेरी सेवा में लगे हुए हैं, केवल उन्हें एक विशेष कृपा दिखाने के लिए," तेषाम एवानुकम्पार्थम अहम अज्ञान जम तम: नाशयामि | "मैं ज्ञान के प्रकाश से सभी प्रकार के अज्ञान के अंधेरे को मिटा देता हूँ ।" तो कृष्ण तुम्हारे भीतर है । और जब तुम ईमानदारी से भक्ति प्रक्रिया से कृष्ण को खोज रहे हो, जैसे भगवद गीता में कहा गया है, तुम अठारहवें अध्याय में पाअोगे, भक्त्या माम अभिजानाति (भ.गी. १८.५५) | "व्यक्ति केवल भक्ति प्रक्रिया द्वारा मुझे समझ सकता हैं ।" भक्त्या | और भक्ति क्या है ? भक्ति यह है: श्रवणम कीर्तनम विष्णो: (श्रीमद भागवतम ७.५.२३) | केवल विष्णु के बारे में सुनना अौर कीर्तन करना । यह भक्ति की शुरुआत है ।

तो अगर तुम बस ईमानदारी और विनम्रता से सुनते हो, तो तुम कृष्ण को समझ सकोगे । कृष्ण प्रकाशित करेंगे । श्रवणम कीर्तनम विष्णो: स्मरणम पाद-सेवनम अर्चनम वन्दनम दास्यम, नौ विभिन्न प्रकार के हैं । तो वंदनम, प्रार्थना, वह भी भक्ति है । श्रवणम, इसके बारे में सुनना । जैसे हम इस भगवद गीता से कृष्ण के बारे में सुन रहे हैं । उनकी महिमा का गुणगान करना, हरे कृष्ण । यह शुरुआत है । श्रवणम कीर्तनम विष्णो (श्रीमद भागवतम ७.५.२३) | विष्णु का मतलब है... सब कुछ विष्णु है । ध्यान विष्णु है । भक्ति विष्णु है । विष्णु के बिना नहीं । और कृष्ण विष्णु का मूल रूप हैं । कृष्णस तु भगवान स्वयम (श्रीमद भागवतम १.३.२८) । पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान का मूल रूप । तो अगर हम इस प्रक्रिया का पालन करते हैं तो फिर हम किसी भी शक के बिना समझने में सक्षम होंगे ।