HI/Prabhupada 0664 - शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता: Difference between revisions

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तमाल कृष्ण: भगवद ... "न ही भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का अर्थ शून्य में प्रवेश है क्योंकि यह कपोलकल्पना है ।"
तमाल कृष्ण: भगवद... "न ही भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का अर्थ शून्य में प्रवेश है जो की परिकल्पना है ।"  


प्रभुपाद: हाँ । तो भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का मतलब शून्य नहीं है । क्योंकि मैं शून्य नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं । अगर मैं शून्य होता, तो कैसे इस शरीर का विकास हुआ है? मैं शून्य नहीं हूँ । मैं बीज हूँ । जैसे तुम जमीन में एक बीज बोते हो, यह बड़े पेड़ या पौधे में बढ जाता है । इसी प्रकार बीज मां के गर्भ में पिता द्वारा दिया जाता है और यह एक पेड़ की तरह बढ़ता है । और यह शरीर अाता है । शून्यता कहां है? अहम् बीज प्रद: पिता ([[Vanisource:BG 14.4|भ गी १४।४]]) । चौदहवें अध्याय में देखोगे तुम । कि मूल बीज श्री कृष्ण द्वारा दिया गया था इस भौतिक प्रकृति के गर्भ में, और इतने सारे जीव बाहर आ रहे हैं । तुम इसके खिलाफ बहस नहीं कर सकते क्योंकि पैदा करने की प्रक्रिया वही है जो हमारे व्यावहारिक जीवन में हमे देखते हैं । हम देखते हैं कि पिता मां के गर्भ में बीज देता है, और माँ, मेरे कहने का मतलब है, शरीर को विकसित करने के लिए बच्चे का पोषण करती है । तो शून्य का कोई सवाल नहीं है । अगर बीज शून्य होता, तो यह अच्छा शरीर कैसे विकसित किया गया है? तो निर्वाण का मतलब है किसी भी अन्य भौतिक शरीर को स्वीकार न करना । इसे शून्य बनाने की कोशिश मत करो । यही एक और बकवास है । शून्य, तुम शून्य नहीं हो । शून्य का अर्थ है इस भौतिक शरीर को शून्य बनाना । दुख भरा सशर्त शरीर । अपनी आध्यात्मिक शरीर को विकसित करने के लिए प्रयास करो । यह संभव है । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम ([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]]) । ये बातें हैं । इसलिए हमें समझने के लिए बहुत बुद्धिमान बनना होगा, जीवन की समस्या क्या है, क्या, कैसे हमें इस बहुमूल्य मानव जीवन का उपयोग कैसे करना चाहिए । दुर्भाग्य से यह शिक्षा व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया में नहीं के बराबर है । शायद यही एक संस्था है जो इस जीवन की वास्तविक समस्याओं को प्रस्तुत करती है, और जीवन के वास्तविक मूल्य को । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन । अागे पढो
प्रभुपाद: हाँ । तो भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का मतलब शून्य नहीं है । क्योंकि मैं शून्य नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं । अगर मैं शून्य होता, तो कैसे इस शरीर का विकास हुआ है ? मैं शून्य नहीं हूँ । मैं बीज हूँ । जैसे तुम जमीन में एक बीज बोते हो, यह बड़े पेड़ या पौधे में बढ जाता है । इसी प्रकार बीज मां के गर्भ में पिता द्वारा दिया जाता है और यह एक पेड़ की तरह बढ़ता है । और यह शरीर अाता है । शून्यता कहां है? अहम बीज प्रद: पिता ([[HI/BG 14.4|भ.गी. १४.४]]) । चौदहवें अध्याय में देखोगे तुम । कि मूल बीज कृष्ण द्वारा दिया गया था इस भौतिक प्रकृति के गर्भ में, और इतने सारे जीव बाहर आ रहे हैं । तुम इसके खिलाफ बहस नहीं कर सकते क्योंकि पैदा करने की प्रक्रिया वही है जो हमारे व्यावहारिक जीवन में हमे देखते हैं ।  


तमाल कृष्ण: "भगवान की सृष्टि में कहीं भी शून्य नहीं है । उल्टे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति..."
हम देखते हैं कि पिता मां के गर्भ में बीज देता है, और माँ, मेरे कहने का मतलब है, शरीर को विकसित करने के लिए बच्चे का पोषण करती है । तो शून्य का कोई सवाल नहीं है । अगर बीज शून्य होता, तो यह अच्छा शरीर कैसे विकसित किया गया है? तो निर्वाण का मतलब है किसी भी अन्य भौतिक शरीर को स्वीकार न करना । इसे शून्य बनाने की कोशिश मत करो । वो एक और बकवास है । शून्य, तुम शून्य नहीं हो ।


प्रभुपाद: शून्य, कहीं भी देखा है, पृथ्वी पर भी, जमीन पर, तुम्हे शून्य कुछ भी दिखाई नहीं देगा । पृथ्वी पर, कोई शून्य नहीं है; आकाश में, कोई शून्य नहीं है; हवा में, कोई शून्य नहीं है; पानी में, कोई शून्य नहीं है; आग में, कोई शून्य नहीं है - तो कहां तुम शून्य पाते हो ? तुम्हे कहाँ शून्य मिलता है ? यह शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता ।
शून्य का अर्थ है इस भौतिक शरीर को शून्य बनाना । दुःख भरा बद्ध शरीर । अपने आध्यात्मिक शरीर को विकसित करने के लिए प्रयास करो । यह संभव है । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]]) । ये चीज़े हैं । इसलिए हमें समझने के लिए बहुत बुद्धिमान बनना होगा, जीवन की समस्या क्या है, कैसे हमें  इस बहुमूल्य मानव जीवन का उपयोग करना चाहिए । दुर्भाग्य से यह शिक्षा व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया में नहीं के बराबर है । शायद यही एक संस्था है जो इस जीवन की वास्तविक समस्याओं को प्रस्तुत करती है, और जीवन के वास्तविक मूल्य को । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन । अागे पढो ।
 
तमाल कृष्ण: "भगवान की सृष्टि में कहीं भी शून्य नहीं है । उल्टे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति..."
 
प्रभुपाद: शून्य, कहीं भी देखा है, पृथ्वी पर भी, जमीन पर, तुम्हे शून्य कुछ भी दिखाई नहीं देगा । पृथ्वी पर, कोई शून्य नहीं है; आकाश में, कोई शून्य नहीं है; हवा में, कोई शून्य नहीं है; पानी में, कोई शून्य नहीं है; आग में, कोई शून्य नहीं है - तो कहां तुम शून्य पाते हो ? तुम्हे कहाँ शून्य मिलता है ? यह शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Lecture on BG 6.13-15 -- Los Angeles, February 16, 1969

तमाल कृष्ण: भगवद... "न ही भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का अर्थ शून्य में प्रवेश है जो की परिकल्पना है ।"

प्रभुपाद: हाँ । तो भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का मतलब शून्य नहीं है । क्योंकि मैं शून्य नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं । अगर मैं शून्य होता, तो कैसे इस शरीर का विकास हुआ है ? मैं शून्य नहीं हूँ । मैं बीज हूँ । जैसे तुम जमीन में एक बीज बोते हो, यह बड़े पेड़ या पौधे में बढ जाता है । इसी प्रकार बीज मां के गर्भ में पिता द्वारा दिया जाता है और यह एक पेड़ की तरह बढ़ता है । और यह शरीर अाता है । शून्यता कहां है? अहम बीज प्रद: पिता (भ.गी. १४.४) । चौदहवें अध्याय में देखोगे तुम । कि मूल बीज कृष्ण द्वारा दिया गया था इस भौतिक प्रकृति के गर्भ में, और इतने सारे जीव बाहर आ रहे हैं । तुम इसके खिलाफ बहस नहीं कर सकते क्योंकि पैदा करने की प्रक्रिया वही है जो हमारे व्यावहारिक जीवन में हमे देखते हैं ।

हम देखते हैं कि पिता मां के गर्भ में बीज देता है, और माँ, मेरे कहने का मतलब है, शरीर को विकसित करने के लिए बच्चे का पोषण करती है । तो शून्य का कोई सवाल नहीं है । अगर बीज शून्य होता, तो यह अच्छा शरीर कैसे विकसित किया गया है? तो निर्वाण का मतलब है किसी भी अन्य भौतिक शरीर को स्वीकार न करना । इसे शून्य बनाने की कोशिश मत करो । वो एक और बकवास है । शून्य, तुम शून्य नहीं हो ।

शून्य का अर्थ है इस भौतिक शरीर को शून्य बनाना । दुःख भरा बद्ध शरीर । अपने आध्यात्मिक शरीर को विकसित करने के लिए प्रयास करो । यह संभव है । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम (भ.गी. १५.६) । ये चीज़े हैं । इसलिए हमें समझने के लिए बहुत बुद्धिमान बनना होगा, जीवन की समस्या क्या है, कैसे हमें इस बहुमूल्य मानव जीवन का उपयोग करना चाहिए । दुर्भाग्य से यह शिक्षा व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया में नहीं के बराबर है । शायद यही एक संस्था है जो इस जीवन की वास्तविक समस्याओं को प्रस्तुत करती है, और जीवन के वास्तविक मूल्य को । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन । अागे पढो ।

तमाल कृष्ण: "भगवान की सृष्टि में कहीं भी शून्य नहीं है । उल्टे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति..."

प्रभुपाद: शून्य, कहीं भी देखा है, पृथ्वी पर भी, जमीन पर, तुम्हे शून्य कुछ भी दिखाई नहीं देगा । पृथ्वी पर, कोई शून्य नहीं है; आकाश में, कोई शून्य नहीं है; हवा में, कोई शून्य नहीं है; पानी में, कोई शून्य नहीं है; आग में, कोई शून्य नहीं है - तो कहां तुम शून्य पाते हो ? तुम्हे कहाँ शून्य मिलता है ? यह शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता ।