HI/Prabhupada 0665 - कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है: Difference between revisions

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तमाल कृष्ण: उल्टे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति से मनुष्य भगवद्धाम में प्रवेश करता है । भगवद-गीता में भगवद्धाम का भी स्पष्टीकरण किया गया है कि वह यह स्थान है जहॉ न सूर्य की अावश्यक्ता है, न चाँद या बिजली की ।"
तमाल कृष्ण: उल्टे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति से मनुष्य भगवद्धाम में प्रवेश करता है । भगवद-गीता में भगवद्धाम का भी स्पष्टीकरण किया गया है कि वह यह स्थान है जहॉ न सूर्य की अावश्यक्ता है, न चंद्र की या बिजली की ।"  


प्रभुपाद: अब भगवद-गीता में तुम पाअोगे, हमने पहले से ही ... मैरे ख्याल से दूसरे अध्याय में है, कोई बात नहीं, यह कहा जाता है कि :  
प्रभुपाद: अब भगवद-गीता में तुम पाअोगे, हमने पहले से ही... मैरे ख्याल से दूसरे अध्याय में है, कोई बात नहीं, यह कहा जाता है कि:  


:न तद भासयते सूर्यो  
:न तद भासयते सूर्यो  
:न शशांको न पावक:  
:न शशांको न पावक:  
:यद गत्वा न निवर्तन्ते  
:यद गत्वा न निवर्तन्ते  
:तद धाम परमम् मम  
:तद धाम परमम मम  
:([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]])
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अब कृष्ण वर्णन करते हैं, "मेरे निवास यह कैसे होता है । उस आकाश में, जहां कि मेरा निवास है ,सूरज की रोशनी की कोई जरूरत नहीं है, चांदनी की कोई जरूरत नहीं है, बिजली की कोई जरूरत नहीं है ।" अब तुम्हे इस ब्रह्मांड में इस तरह का निवास नहीं मिल सकता है । तुम अपने स्पुतनिक या किसी भी मशीन के साथ यात्रा करो, तुम किसी एसी जगह का पता लगाना जहॉ कोई चांदनी नहीं है, कोई सूरज की रोशनी नहीं है । सूरज की रोशनी व्यापक है, सारे ब्रह्मांड में सूरज की रोशनी है । कहां तुम एसी जगह मिलेगी ? इसका मतलब है कि वह जगह आकाश से परे है । यह भी कहा गया है: परस तस्मात तु भवो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात् सनातन: ([[Vanisource:BG 8.20|भ गी ८।२०]]) । इस भौतिक प्रकृति से परे एक और आध्यात्मिक प्रकृति है । तो हम इस भौतिक प्रकृति के गठन को नहीं जानते हैं, और आध्यात्मिक प्रकृति के बारे में जानने के बारे में क्या कहें । तो फिर तुम्हे श्री कृष्ण से सुनना होगा जो वहाँ रहते हैं । नहीं तो तुम सारा जीवन बकवास बने रहते हो । यहाँ जानकारी है । तुम कैसे पता कर सकते हो जहाँ तुम पहुँच सकते नहीं, जान सकते नहीं - तुम्हारी इन्द्रियॉ इतनी अपूर्ण हैं । तुम्हें कैसे पता कर सकते हो ? केवल तुम्हे सुनना है । जैसे तु्म्हारे पिता के बारे में तुम्हे अपनी माँ से सुनना । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । पिता प्रमाणित करते हैं, माता प्रमाणित करती है, "ये हैं तुम्हारे पिता, तु्महे स्वीकार करना पडता है ।" तुम कोई प्रयोग नहीं कर सकते । तुम्हारी क्षमता के अधिक है । इसी तरह, अगर तुम आध्यात्मिक आकाश और भगवान के राज्य के बारे में जानना चाहते हो, तो तुम्हे केवल प्राधिकारी से सुनना है । प्रयोगात्मक ज्ञान का कोई सवाल ही नहीं है । केवल सुनना है । तो सुनने का मतलब है, जैसे तुम्हे यह मानना पडता है कि कोई सज्जन तुम्हारे पिता हैं, तुम्हारे माँ के अधिकार से । केवल वैदिक साहित्य से, जिसे मां स्वीकार किया जाता है, मां का अधिकार, ज्ञान । माँ अधिकार । वेद-माता । यह वेद-माता कहा जाता है । वेद का मतलब है ज्ञान और यह मां से प्राप्त होता है । तो वेद-माता, ज्ञान मां, तुम्हे कृष्ण क्या हैं यह पता करना है । और यहाँ कृष्ण व्यक्तिगत रूप से समझा रहे हैं । तो तुम्हे यह विश्वास करना होगा । तो फिर तुम्हे ज्ञान मिलेगा । अन्यथा कोई संभावना नहीं है । तुम कोई प्रयोग नहीं कर सकते । तो फिर तुम असफल हो जाअोगे । अागे पढो
अब कृष्ण वर्णन करते हैं, "मेरा निवास, यह कैसा होता है । उस आकाश में, जहां मेरा निवास है, सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है, चांदनी की कोई जरूरत नहीं है, बिजली की कोई जरूरत नहीं है ।" अब तुम्हे इस ब्रह्मांड में इस तरह का निवास नहीं मिल सकता है । तुम अपने अवकाशयान या किसी भी मशीन के साथ यात्रा करो, तुम किसी एसी जगह का पता लगाना जहॉ कोई चांदनी नहीं है, कोई सूर्यप्रकाश नहीं है । सूर्यप्रकाश व्यापक है, सारे ब्रह्मांड में सूर्य की रोशनी है । कहां तुम्हे एसी जगह मिलेगी ? इसका मतलब है कि वह जगह आकाश से परे है ।  


तमलl कृष्ण: "आध्यात्मिक राज्य के सारे लोक उसी प्रकार से स्वत: प्रकाशीत हैं, जिस प्रकार सूर्य द्वारा यह भौतिक अाकाश..."
यह भी कहा गया है: परस तस्मात तु भावो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात सनातन: ([[HI/BG 8.20|भ.गी. ८.२०]]) । इस भौतिक प्रकृति से परे एक और आध्यात्मिक प्रकृति है । तो हम इस भौतिक प्रकृति के गठन को नहीं जानते हैं, और आध्यात्मिक प्रकृति के बारे में जानने के बारे में क्या कहें । तो फिर तुम्हे कृष्ण से सुनना होगा जो वहाँ रहते हैं । नहीं तो तुम सारा जीवन बकवास बने रहते हो । यहाँ जानकारी है ।


प्रभुपाद: तो वे ... क्योंकि यहाँ, इस ग्रह, यह सांसारिक ग्रह प्रकाशित नहीं है, इसलिए तुम्हे चांद से, बिजली से, सूरज से रोशनी की आवश्यकता होती है । लेकिन वहॉ ग्रह ... श्री कृष्ण स्वत: दीप्तिमान हैं - उनके ग्रह भी स्वत: ... एक उदाहरण सूरज है . सूर्य स्वत: प्रकाशित ग्रह है । अगर भौतिक दुनिया में इस प्रकाशीत ग्रह की संभावना है, तो आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात है? सभी ग्रह वहॉ, वे प्रकाशित हैं । स्वत: प्रकाशित । जैसे गहने की तरह । गहना, एक हीरे, हीरे का एक टुकड़ा, तुम अंधेरे में रखो, यह स्वत: प्रकाशि है । कोई सवाल ही नहीं है रोशनी का यह दिखाने के लिए कि 'यहां हीरा है' । यह स्वत: प्रकाशित है । यहां तक ​​कि इस भौतिक संसार में, तुम्हे मिलेगा । तो उस ग्रह में, कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है । हमारे श्रीमद-भागवतम में तस्वीर है, स्वत:-दीप्तिमान । आध्यात्मिक आकाश में कई लाखों ग्रह हैं । अागे पढो ।
तुम कैसे पता कर सकते हो जहाँ तुम पहुँच नहीं सकते, जान नहीं सकते - तुम्हारी इन्द्रियॉ इतनी अपूर्ण हैं । तुम कैसे पता कर सकते हो ? तुम्हे केवल सुनना है । जैसे तु्म्हारे पिता के बारे में तुम्हे अपनी माँ से सुनना होगा । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । पिता प्रमाणित करते हैं, माता प्रमाणित करती है, "ये हैं तुम्हारे पिता, तुम्हे स्वीकार करना पडता है ।" तुम कोई प्रयोग नहीं कर सकते । तुम्हारी क्षमता के अधिक है । इसी तरह, अगर तुम आध्यात्मिक आकाश और भगवान के राज्य के बारे में जानना चाहते हो, तो तुम्हे केवल प्राधिकारी से सुनना है । प्रयोगात्मक ज्ञान का कोई सवाल ही नहीं है । केवल सुनना है । तो सुनने का मतलब है, जैसे तुम्हे यह मानना पडता है कि कोई सज्जन तुम्हारे पिता हैं, तुम्हारे माँ के अधिकार से । केवल वैदिक साहित्य से, जिसे मां स्वीकार किया जाता है, मां का अधिकार, ज्ञान । माता का अधिकार । वेद-माता । यह वेद-माता कहा जाता है ।
 
वेद का मतलब है ज्ञान और यह मां से प्राप्त होता है । तो वेद-माता, ज्ञान माता, तुम्हे कृष्ण क्या हैं यह पता करना है । और यहाँ कृष्ण व्यक्तिगत रूप से समझा रहे हैं । तो तुम्हे यह विश्वास करना होगा । फिर तुम्हे ज्ञान मिलेगा । अन्यथा कोई संभावना नहीं है । तुम कोई प्रयोग नहीं कर सकते । फिर तुम असफल हो जाअोगे । अागे पढो ।
 
तमल कृष्ण: "आध्यात्मिक राज्य के सारे लोक उसी प्रकार से स्वत: प्रकाशीत हैं, जिस प्रकार सूर्य द्वारा यह भौतिक अाकाश..."
 
प्रभुपाद: तो वे... क्योंकि यहाँ, इस ग्रह, यह सांसारिक ग्रह प्रकाशित नहीं है, इसलिए तुम्हे चांद से, बिजली से, सूर्य से रोशनी की आवश्यकता होती है । लेकिन वहॉ ग्रह... कृष्ण स्वत: दीप्तिमान हैं - उनके ग्रह भी स्वत:... एक उदाहरण सूर्य है | सूर्य स्वत: प्रकाशित ग्रह है । अगर भौतिक दुनिया में इस प्रकाशित ग्रह की संभावना है, तो आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात है? सभी ग्रह वहॉ, वे प्रकाशित हैं । स्वत: प्रकाशित । जैसे गहने की तरह । गहना, एक हीरा, हीरे का एक टुकड़ा, तुम अंधेरे में रखो, यह स्वत: प्रकाशित है । कोई सवाल ही नहीं है रोशनी का यह दिखाने के लिए कि 'यहां हीरा है' । यह स्वत: प्रकाशित है । यहां तक ​​कि इस भौतिक संसार में, तुम्हे मिलेगा । तो उस ग्रह में, कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है । हमने हमारे श्रीमद-भागवतम में तस्वीर दी है, स्वत:-दीप्तिमान । आध्यात्मिक आकाश में कई लाखों ग्रह हैं । अागे पढो ।  
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Latest revision as of 17:52, 1 October 2020



Lecture on BG 6.13-15 -- Los Angeles, February 16, 1969

तमाल कृष्ण: उल्टे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति से मनुष्य भगवद्धाम में प्रवेश करता है । भगवद-गीता में भगवद्धाम का भी स्पष्टीकरण किया गया है कि वह यह स्थान है जहॉ न सूर्य की अावश्यक्ता है, न चंद्र की या बिजली की ।"

प्रभुपाद: अब भगवद-गीता में तुम पाअोगे, हमने पहले से ही... मैरे ख्याल से दूसरे अध्याय में है, कोई बात नहीं, यह कहा जाता है कि:

न तद भासयते सूर्यो
न शशांको न पावक:
यद गत्वा न निवर्तन्ते
तद धाम परमम मम
(भ.गी. १५.६)

अब कृष्ण वर्णन करते हैं, "मेरा निवास, यह कैसा होता है । उस आकाश में, जहां मेरा निवास है, सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है, चांदनी की कोई जरूरत नहीं है, बिजली की कोई जरूरत नहीं है ।" अब तुम्हे इस ब्रह्मांड में इस तरह का निवास नहीं मिल सकता है । तुम अपने अवकाशयान या किसी भी मशीन के साथ यात्रा करो, तुम किसी एसी जगह का पता लगाना जहॉ कोई चांदनी नहीं है, कोई सूर्यप्रकाश नहीं है । सूर्यप्रकाश व्यापक है, सारे ब्रह्मांड में सूर्य की रोशनी है । कहां तुम्हे एसी जगह मिलेगी ? इसका मतलब है कि वह जगह आकाश से परे है ।

यह भी कहा गया है: परस तस्मात तु भावो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात सनातन: (भ.गी. ८.२०) । इस भौतिक प्रकृति से परे एक और आध्यात्मिक प्रकृति है । तो हम इस भौतिक प्रकृति के गठन को नहीं जानते हैं, और आध्यात्मिक प्रकृति के बारे में जानने के बारे में क्या कहें । तो फिर तुम्हे कृष्ण से सुनना होगा जो वहाँ रहते हैं । नहीं तो तुम सारा जीवन बकवास बने रहते हो । यहाँ जानकारी है ।

तुम कैसे पता कर सकते हो जहाँ तुम पहुँच नहीं सकते, जान नहीं सकते - तुम्हारी इन्द्रियॉ इतनी अपूर्ण हैं । तुम कैसे पता कर सकते हो ? तुम्हे केवल सुनना है । जैसे तु्म्हारे पिता के बारे में तुम्हे अपनी माँ से सुनना होगा । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । पिता प्रमाणित करते हैं, माता प्रमाणित करती है, "ये हैं तुम्हारे पिता, तुम्हे स्वीकार करना पडता है ।" तुम कोई प्रयोग नहीं कर सकते । तुम्हारी क्षमता के अधिक है । इसी तरह, अगर तुम आध्यात्मिक आकाश और भगवान के राज्य के बारे में जानना चाहते हो, तो तुम्हे केवल प्राधिकारी से सुनना है । प्रयोगात्मक ज्ञान का कोई सवाल ही नहीं है । केवल सुनना है । तो सुनने का मतलब है, जैसे तुम्हे यह मानना पडता है कि कोई सज्जन तुम्हारे पिता हैं, तुम्हारे माँ के अधिकार से । केवल वैदिक साहित्य से, जिसे मां स्वीकार किया जाता है, मां का अधिकार, ज्ञान । माता का अधिकार । वेद-माता । यह वेद-माता कहा जाता है ।

वेद का मतलब है ज्ञान और यह मां से प्राप्त होता है । तो वेद-माता, ज्ञान माता, तुम्हे कृष्ण क्या हैं यह पता करना है । और यहाँ कृष्ण व्यक्तिगत रूप से समझा रहे हैं । तो तुम्हे यह विश्वास करना होगा । फिर तुम्हे ज्ञान मिलेगा । अन्यथा कोई संभावना नहीं है । तुम कोई प्रयोग नहीं कर सकते । फिर तुम असफल हो जाअोगे । अागे पढो ।

तमल कृष्ण: "आध्यात्मिक राज्य के सारे लोक उसी प्रकार से स्वत: प्रकाशीत हैं, जिस प्रकार सूर्य द्वारा यह भौतिक अाकाश..."

प्रभुपाद: तो वे... क्योंकि यहाँ, इस ग्रह, यह सांसारिक ग्रह प्रकाशित नहीं है, इसलिए तुम्हे चांद से, बिजली से, सूर्य से रोशनी की आवश्यकता होती है । लेकिन वहॉ ग्रह... कृष्ण स्वत: दीप्तिमान हैं - उनके ग्रह भी स्वत:... एक उदाहरण सूर्य है | सूर्य स्वत: प्रकाशित ग्रह है । अगर भौतिक दुनिया में इस प्रकाशित ग्रह की संभावना है, तो आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात है? सभी ग्रह वहॉ, वे प्रकाशित हैं । स्वत: प्रकाशित । जैसे गहने की तरह । गहना, एक हीरा, हीरे का एक टुकड़ा, तुम अंधेरे में रखो, यह स्वत: प्रकाशित है । कोई सवाल ही नहीं है रोशनी का यह दिखाने के लिए कि 'यहां हीरा है' । यह स्वत: प्रकाशित है । यहां तक ​​कि इस भौतिक संसार में, तुम्हे मिलेगा । तो उस ग्रह में, कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है । हमने हमारे श्रीमद-भागवतम में तस्वीर दी है, स्वत:-दीप्तिमान । आध्यात्मिक आकाश में कई लाखों ग्रह हैं । अागे पढो ।