HI/Prabhupada 0670 - कृष्ण में अपने मन को दृढ करते हो, फिर भौतिक हिलना नहीं रहता: Difference between revisions
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प्रभुपाद: यहाँ उदाहरण है, तुम दखो | प्रभुपाद: यहाँ उदाहरण है, तुम दखो | भक्त: "...उसी तरह जिस योगी का मन वश में हो जाता है, वह अात्मतत्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है । " | ||
प्रभुपाद: इस कमरे में क्योंकि कोई हवा नहीं है, दीपक को देखो, लौ स्थिर है । इसी तरह, अगर... तुम्हारे मन की लौ स्थिर रहेगी इस लौ की तरह, अगर तुम कृष्ण भावनामृत में मन को अवशोषित करते हो । फिर तुम्हारा... जैसे लौ विचलित नहीं है तुम्हारा मन उत्तेजित नहीं होगा । और यह योग की पूर्णता है । | |||
भक्त: श्लोक २० से २३: सिद्धि की अवस्था में, जिसे समाधि कहते हैं, मनुष्य का मन योगाभ्यास के द्वारा भौतिक मानसिक क्रियाअों से पूर्णयता संयमित हो जाता है ([[HI/BG 6.20-23|भ.गी. ६.२०]]) |" | |||
प्रभुपाद: समाधि का मतलब है, समाधि का मतलब है... शून्य बनाने के लिए नहीं, यह असंभव है । क्लेशो अधिकतरस तेषाम अव्यक्तासक्त चेतसाम । कुछ योगी कहते हैं कि तुम अपने आप को रोको, अपने आप को स्थिर करो । अपने आपको स्थिर बनाना कैसे संभव है? मैं अात्मा हूँ । यह संभव नहीं है । स्थिर रहने का मतलब है, जब तुम कृष्ण में अपने मन को दृढ करते हो, फिर भौतिक हिलना नहीं रहता । यही स्थिरता है । यह भौतिक प्रवृत्तियॉ तुम्हे परेशान नहीं करेंगी । यही स्थिर कहा जाता है । लेकिन कृष्ण कार्यो के लिए तुम्हारी गति में वृद्धि होगी | जितना तुम कृष्ण भावनामृत में अपनी गति या गतिविधियों को बढ़ाअोगे, तुम भौतिक गतिविधियों में स्वचालित रूप से स्थिर हो जाअोगे । यही प्रक्रिया है । | |||
लेकिन अगर तुम स्थिर बनाना चाहते हो, वही उदाहरण - एक बच्चा, एक बच्चा बेचैन है | तुम बच्चे को स्थिर नहीं कर सकते । तुम उसे कुछ देते हो, खिलौना, कुछ अच्छी तस्वीर । वह देखेगा, संलग्न, और स्थिर । यही तरीका है । तो लोग स्तब्ध हैं । ओह, नहीं, नहीं... स्थिर नहीं, क्या कहा जाता है? अस्थिर । लेकिन अगर तुम उसे स्थिर करना चाहते हो, फिर उसे कृष्ण की गतिविधीयॉ दो । फिर वह स्थिर हो जाएगा । और वह (अस्पष्ट) होगा... और यह अनुभव है । जब तक वो ये साक्षात्कार नहीं करता की "में कृष्ण का हूँ" तब तक वो कृष्ण भावनामृत में संलग्न क्यों रहेगा ? मैं पदार्थ नहीं हूँ, मैं इस देश का नहीं हूँ, मैं इस समाज का नहीं हूँ, मैं इस बदमाश का नहीं हूँ । मैं केवल कृष्ण का हूँ ।" स्थिर । उसका पूरा ज्ञान । | |||
यही मेरी स्थिति है । मैं हिस्सा हूँ । | यही मेरी स्थिति है । मैं हिस्सा हूँ । ममैवांशो जीव ([[HI/BG 15.7|भ.गी. १५.७]]) - ये सभी जीव मेरे अभिन्न अंग हैं । तो जैसे ही तुम समझते हो की "मैं कृष्ण का अभिन्न अंग हूँ" तुरंत तुम भौतिक गतिविधियों से स्थिर हो जाते हो । हां । | ||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on BG 6.16-24 -- Los Angeles, February 17, 1969
भक्त: श्लोक संख्या उन्नीस: "जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता डुलता नहीं... (भ.गी. ६.१९) ।"
प्रभुपाद: यहाँ उदाहरण है, तुम दखो | भक्त: "...उसी तरह जिस योगी का मन वश में हो जाता है, वह अात्मतत्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है । "
प्रभुपाद: इस कमरे में क्योंकि कोई हवा नहीं है, दीपक को देखो, लौ स्थिर है । इसी तरह, अगर... तुम्हारे मन की लौ स्थिर रहेगी इस लौ की तरह, अगर तुम कृष्ण भावनामृत में मन को अवशोषित करते हो । फिर तुम्हारा... जैसे लौ विचलित नहीं है तुम्हारा मन उत्तेजित नहीं होगा । और यह योग की पूर्णता है ।
भक्त: श्लोक २० से २३: सिद्धि की अवस्था में, जिसे समाधि कहते हैं, मनुष्य का मन योगाभ्यास के द्वारा भौतिक मानसिक क्रियाअों से पूर्णयता संयमित हो जाता है (भ.गी. ६.२०) |"
प्रभुपाद: समाधि का मतलब है, समाधि का मतलब है... शून्य बनाने के लिए नहीं, यह असंभव है । क्लेशो अधिकतरस तेषाम अव्यक्तासक्त चेतसाम । कुछ योगी कहते हैं कि तुम अपने आप को रोको, अपने आप को स्थिर करो । अपने आपको स्थिर बनाना कैसे संभव है? मैं अात्मा हूँ । यह संभव नहीं है । स्थिर रहने का मतलब है, जब तुम कृष्ण में अपने मन को दृढ करते हो, फिर भौतिक हिलना नहीं रहता । यही स्थिरता है । यह भौतिक प्रवृत्तियॉ तुम्हे परेशान नहीं करेंगी । यही स्थिर कहा जाता है । लेकिन कृष्ण कार्यो के लिए तुम्हारी गति में वृद्धि होगी | जितना तुम कृष्ण भावनामृत में अपनी गति या गतिविधियों को बढ़ाअोगे, तुम भौतिक गतिविधियों में स्वचालित रूप से स्थिर हो जाअोगे । यही प्रक्रिया है ।
लेकिन अगर तुम स्थिर बनाना चाहते हो, वही उदाहरण - एक बच्चा, एक बच्चा बेचैन है | तुम बच्चे को स्थिर नहीं कर सकते । तुम उसे कुछ देते हो, खिलौना, कुछ अच्छी तस्वीर । वह देखेगा, संलग्न, और स्थिर । यही तरीका है । तो लोग स्तब्ध हैं । ओह, नहीं, नहीं... स्थिर नहीं, क्या कहा जाता है? अस्थिर । लेकिन अगर तुम उसे स्थिर करना चाहते हो, फिर उसे कृष्ण की गतिविधीयॉ दो । फिर वह स्थिर हो जाएगा । और वह (अस्पष्ट) होगा... और यह अनुभव है । जब तक वो ये साक्षात्कार नहीं करता की "में कृष्ण का हूँ" तब तक वो कृष्ण भावनामृत में संलग्न क्यों रहेगा ? मैं पदार्थ नहीं हूँ, मैं इस देश का नहीं हूँ, मैं इस समाज का नहीं हूँ, मैं इस बदमाश का नहीं हूँ । मैं केवल कृष्ण का हूँ ।" स्थिर । उसका पूरा ज्ञान ।
यही मेरी स्थिति है । मैं हिस्सा हूँ । ममैवांशो जीव (भ.गी. १५.७) - ये सभी जीव मेरे अभिन्न अंग हैं । तो जैसे ही तुम समझते हो की "मैं कृष्ण का अभिन्न अंग हूँ" तुरंत तुम भौतिक गतिविधियों से स्थिर हो जाते हो । हां ।