HI/Prabhupada 0672 - जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता की गारंटी है: Difference between revisions

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भक्त: "यह निस्सन्देह भोतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले समस्त दुखों से वास्तविक मुक्ति है । इस योग को दृढ़ संकल्प और एक निडर दिल के साथ अभ्यास किया जाना चाहिए । चौबीस: मनुष्य को चाहिए कि संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे अौर पथ से विचलित न हो । उसे चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाअों को निरपवाद रूप से त्याद दे अौर इस प्रकार मन के द्वार सभी अोर से इन्द्रियों को वश में करे ([[Vanisource:BG 6.24|भ गी ६।२४]]) । तात्पर्य : योगाभ्यास करने वाले को दृढसंकल्प होना चाहिए अौर उसे चाहिए कि बिना विचलित हुए धर्यपूर्वक अभ्यास करे ।"
भक्त: "यह निस्सन्देह भोतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले समस्त दुखों से वास्तविक मुक्ति है । इस योग को दृढ़ संकल्प और एक निडर हृदय के साथ अभ्यास किया जाना चाहिए । चौबीस: मनुष्य को चाहिए कि संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे अौर पथ से विचलित न हो । उसे चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाअों को निरपवाद रूप से त्याग दे, अौर इस प्रकार मन के द्वार सभी अोर से इन्द्रियों को वश में करे ([[HI/BG 6.24|भ.गी. ६.२४]]) ।  


प्रभुपाद: अब, इस दृढ़ संकल्प का वास्तव में अभ्यास किया जा सकता है, या यह वास्तव में प्राप्त किया जा सकता है, जो विष्यी जीवन में लिप्त नहीं है । उसका दृढ़ संकल्प मजबूत है इसलिए शुरुआत में यह कहा गया था कि "विषयी जीवन के बिना," दृढ़ संकल्प । या नियंत्रित विष्यी जीवन । अगर तुम विषयी जीवन में लिप्त हो तो यह दृढ़ संकल्प नहीं आएगा । चंचल दृढ़ संकल्प, तुम समझ रहे हो? इसलिए विषयी जीवन नियंत्रित या छोड़ दिया जाना चाहिए । यदि यह संभव है, पूरी तरह छोड़ देना चाहिए - अगर नहीं तो नियंत्रित । तो फिर तुम्हे दृढ़ता मिलेगी । क्योंकि यह सारा दृढ़ संकल्प शारीर से जुडा है । तो ये दृढ़ संकल्प पाने के तरीके हैं । अागे पढो ।
तात्पर्य: योगाभ्यास करने वाले को दृढसंकल्प होना चाहिए अौर उसे चाहिए कि बिना विचलित हुए धैर्यपूर्वक अभ्यास करे ।"  


भक्त: "अन्त में उसकी सफलता निश्चित है उसे यह सोच कर बड़े ही धर्य से इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए अौर यदि सफलता मिलने में विलम्ब हो रहा हो तो निरुत्साहित नहीं होना चाहिए ।"
प्रभुपाद: अब, इस दृढ़ संकल्प का वास्तव में अभ्यास किया जा सकता है, या यह वास्तव में प्राप्त किया जा सकता है, उस व्यक्ति के द्वारा जो यौन जीवन में लिप्त नहीं है । उसका दृढ़ संकल्प मजबूत है । इसलिए शुरुआत में यह कहा गया था कि "यौन जीवन के बिना," दृढ़ संकल्प । या नियंत्रित यौन जीवन । अगर तुम यौन जीवन में लिप्त हो तो यह दृढ़ संकल्प नहीं आएगा । चंचल दृढ़ संकल्प, तुम समझ रहे हो? इसलिए यौन जीवन नियंत्रित या छोड़ दिया जाना चाहिए । यदि यह संभव है, पूरी तरह छोड़ देना चाहिए - अगर नहीं तो नियंत्रित । तो फिर तुम्हे दृढ़ता मिलेगी । क्योंकि यह सारा दृढ़ संकल्प शारीर से जुडा है । तो ये दृढ़ संकल्प पाने के तरीके हैं । अागे पढो ।


प्रभुपाद: दृढ़ता का मतलब है अटलता अौर धैर्य के साथ अागे बढे मुझे वांछित परिणाम नहीं मिल रहा है. "ओह, यह कृष्ण भावनामृत क्या है, मैं छोड़ता हूँ ।" नहीं । दृढता । यह एक तथ्य है । क्योंकि कृष्ण यह कह रहे हैं कि यह होना ही चाहिए । एक अच्छा उदाहरण है । एक लड़की का एक पति है शादी से । वह एक बच्चे के लिए उत्कंठित है । तो अगर वह सोचती है "अब मेरी शादी हो गई है, मेरा तुरंत एक बच्चा होना चाहिए ।" क्या यह संभव है ? बस धैर्य रखो । तुम बस वफादार पत्नी बनि। अपने पति की सेवा करो, और अपने प्यार को बढने दो, और क्योंकि तुम पति और पत्नी हो, यह निश्चति है कि तुम्हारे बच्च होंगे । लेकिन अधीर न हो । इसी प्रकार जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता की गारंटी है लेकिन दृढ़ संकल्प धैर्य होना चाहिए कि "मुझे अमल करना चाहिए । मुझे अधीर नहीं होना चाहिए ।" यह अधीरता दृढ़ संकल्प की कमी के कारण है । और कैसे दृढ़ संकल्प की कमी है? अत्यधिक विषयी जीवन के कारण । ये सभी परिणाम हैं । अागे पढो ।
भक्त: "अन्त में उसकी सफलता निश्चित है और उसे बड़े ही धैर्य से इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, अौर यदि सफलता मिलने में विलम्ब हो रहा हो तो निरुत्साहित नहीं होना चाहिए ।"  


भकत : "एसे दृढ अभ्यासी की सफलता सुनिश्चित है । भक्तिोग के सम्बन्ध में रूप गोस्वामी का कथन है, "मनुष्य पूर्ण हार्दिक उत्साह, धैर्य तथा संकल्प के साथ भक्तियोग का पूर्णरूपेण पालन कर सकता है भक्त के साथ रहकर निर्धारित कर्मों के करने तथा सत्कार्यों में पूर्णतया लगे रहने से कर सकता है ।"  
प्रभुपाद: दृढ़ता का मतलब है अटलता अौर धैर्य के साथ अागे बढे | मुझे वांछित परिणाम नहीं मिल रहा है | "ओह, यह कृष्ण भावनामृत क्या है, मैं छोड़ता हूँ ।" नहीं । दृढता । यह एक तथ्य है । क्योंकि कृष्ण यह कह रहे हैं कि यह होना ही चाहिए । एक अच्छा उदाहरण है । एक लड़की का एक पति है । वह एक बच्चे के लिए उत्कंठित है । तो अगर वह सोचती है "अब मेरी शादी हो गई है, मेरा तुरंत एक बच्चा होना चाहिए ।" क्या यह संभव है ? बस धैर्य रखो । तुम बस वफादार पत्नी बनो । अपने पति की सेवा करो, और अपने प्यार को बढने दो, और क्योंकि तुम पति और पत्नी हो, यह निश्चति है कि तुम्हारे बच्चे होंगे । लेकिन अधीर न हो ।


प्रभुपाद : हाँ, अागे पढो ।
इसी प्रकार जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता सुनिश्चित है | लेकिन दृढ़ संकल्प और धैर्य होना चाहिए कि "मुझे अमल करना ही है । मुझे अधीर नहीं होना है ।" वो अधीरता दृढ़ संकल्प की कमी के कारण है । और कैसे दृढ़ संकल्प की कमी है ? अत्यधिक यौन जीवन के कारण । ये सभी परिणाम हैं । अागे पढो ।
 
भकत: "एसे दृढ अभ्यासी की सफलता सुनिश्चित है । भक्तियोग के सम्बन्ध में रूप गोस्वामी का कथन है, "मनुष्य पूर्ण हार्दिक उत्साह, धैर्य तथा संकल्प के साथ भक्तियोग का पूर्णरूपेण पालन कर सकता है, भक्त के साथ रहकर निर्धारित कर्मों को करने से और सत्कार्यों में पूर्णतया लगे रहने से ।"
 
प्रभुपाद: हाँ, अागे पढो ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 6.16-24 -- Los Angeles, February 17, 1969

भक्त: "यह निस्सन्देह भोतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले समस्त दुखों से वास्तविक मुक्ति है । इस योग को दृढ़ संकल्प और एक निडर हृदय के साथ अभ्यास किया जाना चाहिए । चौबीस: मनुष्य को चाहिए कि संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे अौर पथ से विचलित न हो । उसे चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाअों को निरपवाद रूप से त्याग दे, अौर इस प्रकार मन के द्वार सभी अोर से इन्द्रियों को वश में करे (भ.गी. ६.२४) ।

तात्पर्य: योगाभ्यास करने वाले को दृढसंकल्प होना चाहिए अौर उसे चाहिए कि बिना विचलित हुए धैर्यपूर्वक अभ्यास करे ।"

प्रभुपाद: अब, इस दृढ़ संकल्प का वास्तव में अभ्यास किया जा सकता है, या यह वास्तव में प्राप्त किया जा सकता है, उस व्यक्ति के द्वारा जो यौन जीवन में लिप्त नहीं है । उसका दृढ़ संकल्प मजबूत है । इसलिए शुरुआत में यह कहा गया था कि "यौन जीवन के बिना," दृढ़ संकल्प । या नियंत्रित यौन जीवन । अगर तुम यौन जीवन में लिप्त हो तो यह दृढ़ संकल्प नहीं आएगा । चंचल दृढ़ संकल्प, तुम समझ रहे हो? इसलिए यौन जीवन नियंत्रित या छोड़ दिया जाना चाहिए । यदि यह संभव है, पूरी तरह छोड़ देना चाहिए - अगर नहीं तो नियंत्रित । तो फिर तुम्हे दृढ़ता मिलेगी । क्योंकि यह सारा दृढ़ संकल्प शारीर से जुडा है । तो ये दृढ़ संकल्प पाने के तरीके हैं । अागे पढो ।

भक्त: "अन्त में उसकी सफलता निश्चित है और उसे बड़े ही धैर्य से इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, अौर यदि सफलता मिलने में विलम्ब हो रहा हो तो निरुत्साहित नहीं होना चाहिए ।"

प्रभुपाद: दृढ़ता का मतलब है अटलता अौर धैर्य के साथ अागे बढे | मुझे वांछित परिणाम नहीं मिल रहा है | "ओह, यह कृष्ण भावनामृत क्या है, मैं छोड़ता हूँ ।" नहीं । दृढता । यह एक तथ्य है । क्योंकि कृष्ण यह कह रहे हैं कि यह होना ही चाहिए । एक अच्छा उदाहरण है । एक लड़की का एक पति है । वह एक बच्चे के लिए उत्कंठित है । तो अगर वह सोचती है "अब मेरी शादी हो गई है, मेरा तुरंत एक बच्चा होना चाहिए ।" क्या यह संभव है ? बस धैर्य रखो । तुम बस वफादार पत्नी बनो । अपने पति की सेवा करो, और अपने प्यार को बढने दो, और क्योंकि तुम पति और पत्नी हो, यह निश्चति है कि तुम्हारे बच्चे होंगे । लेकिन अधीर न हो ।

इसी प्रकार जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता सुनिश्चित है | लेकिन दृढ़ संकल्प और धैर्य होना चाहिए कि "मुझे अमल करना ही है । मुझे अधीर नहीं होना है ।" वो अधीरता दृढ़ संकल्प की कमी के कारण है । और कैसे दृढ़ संकल्प की कमी है ? अत्यधिक यौन जीवन के कारण । ये सभी परिणाम हैं । अागे पढो ।

भकत: "एसे दृढ अभ्यासी की सफलता सुनिश्चित है । भक्तियोग के सम्बन्ध में रूप गोस्वामी का कथन है, "मनुष्य पूर्ण हार्दिक उत्साह, धैर्य तथा संकल्प के साथ भक्तियोग का पूर्णरूपेण पालन कर सकता है, भक्त के साथ रहकर निर्धारित कर्मों को करने से और सत्कार्यों में पूर्णतया लगे रहने से ।"

प्रभुपाद: हाँ, अागे पढो ।