HI/Prabhupada 0678 - कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0678 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1969 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
 
Line 8: Line 8:
[[Category:Hindi Pages - Yoga System]]
[[Category:Hindi Pages - Yoga System]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0677 - गोस्वामी एक वंशानुगत शीर्षक नहीं है । यह एक योग्यता है|0677|HI/Prabhupada 0679 - कृष्ण भावनामृत में कुछ भी किया गया, जानकरी में या अन्जाने में, उसका प्रभाव होगा ही|0679}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 16: Line 19:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|u6dWk2M3Z8Q|कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है<br />- Prabhupāda 0678}}
{{youtube_right|rjfrECNMLzU|कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है<br />- Prabhupāda 0678}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/690218BG-LA_Clip4.MP3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/690218BG-LA_Clip4.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 28: Line 31:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
विष्णुजन: श्लोक २७: "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर रहता है वह निश्चय ही दिव्यसुख की सर्वो्च्च सिद्धी प्राप्त करता है । परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझने के कारण, वह मुक्त है, उसका मन शांत है वह रजो गुण से परे हो जाता है अौर वह पाप से मुक्त हो जाता है ([[Vanisource:BG 6.27|भ गी ६।२७]])
विष्णुजन: श्लोक २७: "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर रहता है वह निश्चय ही दिव्यसुख की सर्वोच्च सिद्धी प्राप्त करता है । परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझने के कारण, वह मुक्त है, उसका मन शांत है, वह रजो गुण से परे हो जाता है अौर वह पाप से मुक्त हो जाता है ([[HI/BG 6.27|भ.गी. ६.२७]]) |"


अट्ठाईस: "इस प्रकार योगाभ्यास में निरन्तर लगा रहकर, समस्त भोतिक कल्मष् से मुक्त हो जाता है, अात्मसंयमी योगी भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है ([[Vanisource:BG 6.28|भ गी ६।२८]]) ।"  
अट्ठाईस: "इस प्रकार योगाभ्यास में निरन्तर लगा रहकर, समस्त भोतिक कल्मष से मुक्त हो जाता है, अात्मसंयमी योगी भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है ([[HI/BG 6.28|भ.गी. ६.२८]]) ।"  


प्रभुपाद: तो यहाँ पूर्णता है "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर है ।" मेरा का मतलब है कृष्ण । कृष्ण बोल रहे हैं । अगर मैं बोल रहा हूँ, "मुझे एक गिलास पानी दे दो ।" इसका मतलब यह नहीं है कि पानी किसी और को देना है । इसी तरह, भगवद-गीता भगवान कृष्ण द्वारा कही गई है अौर वे कहते हैं " मैं ।" "मैं" का मतलब है कृष्ण । यह स्पष्ट समझ है । लेकिन कई टिप्पणीकार हैं, वे कृष्ण से विचलित होते हैं । मुझे नहीं पता क्यूं । यह उनका नापाक मकसद है । नहीं । "मैं" का मतलब है कृष्ण । तो कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है । अागे पढो ।
प्रभुपाद: तो यहाँ पूर्णता है "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर है ।" मेरा मतलब है कृष्ण । कृष्ण बोल रहे हैं । अगर मैं बोल रहा हूँ, "मुझे एक ग्लास पानी दे दो ।" इसका मतलब यह नहीं है कि पानी किसी और को देना है । इसी तरह, भगवद-गीता भगवान कृष्ण द्वारा कही गई है अौर वे कहते हैं "मैं ।" "मैं" का मतलब है कृष्ण । यह स्पष्ट समझ है । लेकिन कई टिप्पणीकार हैं, वे कृष्ण से विचलित होते हैं । मुझे नहीं पता क्यों । यह उनका अपवित्र हेतु है । नहीं । "मैं" का मतलब है कृष्ण । तो कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है । अागे पढो ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 19:05, 17 September 2020



Lecture on BG 6.25-29 -- Los Angeles, February 18, 1969

विष्णुजन: श्लोक २७: "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर रहता है वह निश्चय ही दिव्यसुख की सर्वोच्च सिद्धी प्राप्त करता है । परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझने के कारण, वह मुक्त है, उसका मन शांत है, वह रजो गुण से परे हो जाता है अौर वह पाप से मुक्त हो जाता है (भ.गी. ६.२७) |"

अट्ठाईस: "इस प्रकार योगाभ्यास में निरन्तर लगा रहकर, समस्त भोतिक कल्मष से मुक्त हो जाता है, अात्मसंयमी योगी भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है (भ.गी. ६.२८) ।"

प्रभुपाद: तो यहाँ पूर्णता है "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर है ।" मेरा मतलब है कृष्ण । कृष्ण बोल रहे हैं । अगर मैं बोल रहा हूँ, "मुझे एक ग्लास पानी दे दो ।" इसका मतलब यह नहीं है कि पानी किसी और को देना है । इसी तरह, भगवद-गीता भगवान कृष्ण द्वारा कही गई है अौर वे कहते हैं "मैं ।" "मैं" का मतलब है कृष्ण । यह स्पष्ट समझ है । लेकिन कई टिप्पणीकार हैं, वे कृष्ण से विचलित होते हैं । मुझे नहीं पता क्यों । यह उनका अपवित्र हेतु है । नहीं । "मैं" का मतलब है कृष्ण । तो कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है । अागे पढो ।