HI/Prabhupada 0680 - हम सोच रहे हैं कि हम इस भूमि पर बैठे हैं, लेकिन वास्तव में हम कृष्ण पर बैठे हैं: Difference between revisions

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तो "वास्विक योगी सभी जीवों में मुझे देखता है । और समस्त जीवों को मुझमें । "कैसे", "मुझ में ? क्योंकि जो कुछ भी तुम देखते हो, वह कृष्ण है । तुम ज़मीन पर बैठे हो, तो तुम कृष्ण पर बैठे हो । तुम इस कालीन पर बैठे हो, तो तुम कृष्ण पर बैठे हो । तुम्हे यह पता होना चाहिए । कृष्ण कैसे इस कालीन हैं ? क्योंकि कालीन कृष्ण की शक्ति से बना है ।
तो "वास्विक योगी सभी जीवों में मुझे देखता है । और समस्त जीवों को मुझमें । "कैसे", "मुझ में"? क्योंकि जो कुछ भी तुम देखते हो, वह कृष्ण है । तुम ज़मीन पर बैठे हो, तो तुम कृष्ण पर बैठे हो । तुम इस कालीन पर बैठे हो, तो तुम कृष्ण पर बैठे हो । तुम्हे यह पता होना चाहिए । कृष्ण कैसे ये कालीन हैं ? क्योंकि कालीन कृष्ण की शक्ति से बना है ।  


विभिन्न प्रकार के हैं.....परास्य शक्तिर विवधैव श्रूयते ([[Vanisource:CC Madhya 13.65|चै च मध्य १३।६५ तात्पर्य]]) भगवान की विभिन्न शक्तियॉ है । उन विभिन्न शक्तियों में से, तीन प्रभाग प्राथमिक हैं । भोतिक शक्ति, आध्यात्मिक शक्ति और तटस्था शक्ति । हम जीव तटस्था शक्ति हैं । पूरा भौतिक जगत भौतिक शक्ति है । और आध्यात्मिक शक्ति है । आध्यात्मिक जगत । और हम तटस्था हैं । इसलिए हम या तो भौतिक शक्ति में बैठे हैं ... तटस्था का मतलब है इस तरह या उस तरह । तुम आध्यात्मिक बन सकते हो या तुम भौतिक बन सकते हो । कोई तीसरा विकल्प नहीं है । या तो तुम भौतिकवादी हो या आध्यात्मिक हो । तो, जब तक तुम इस भौतिक जगत में हो, तुम भौतिक शक्ति पर बैठे हो, इसलिए तुम कृष्ण में बैठे हो । क्योंकि शक्ति कृष्ण से अलग नहीं है । जैसे यह लौ, यह प्रकाश, गर्मी है और रोशनी है । दो शक्तियॉ । गर्मी आग से अलग नहीं है और रोशनी आग से अलग नहीं है । इसलिए एक अर्थ में गर्मी भी आग है, रोशनी भी आग है । इसी प्रकार यह भौतिक शक्ति भी श्री कृष्ण है । तो हम सोच रहे हैं कि हम इस ज़मीण पर बैठे हैं लेकिन वास्तव में हम कृष्ण में बैठे हैं । यह तत्वज्ञान है ।  
विभिन्न प्रकार के हैं... परास्य शक्तिर विवधैव श्रूयते ([[Vanisource:CC Madhya 13.65|चैतन्य चरितामृत मध्य १३.६५, तात्पर्य]]) | भगवान की विभिन्न शक्तियॉ है । उन विभिन्न शक्तियों में से, तीन प्रभाग प्राथमिक हैं । भोतिक शक्ति, आध्यात्मिक शक्ति और तटस्थ शक्ति । हम जीव तटस्थ शक्ति हैं । पूरा भौतिक जगत भौतिक शक्ति है । और आध्यात्मिक शक्ति है । आध्यात्मिक जगत । और हम तटस्थ हैं । इसलिए हम या तो भौतिक शक्ति में बैठे हैं... तटस्थ का मतलब है इस तरह या उस तरह ।  


तो, "... और मुझ में हर जीव को देखता है । निस्सन्देह स्वरूपसिद्धि व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है ।" यही हर जगह देखना है । हर जीव को देखना, सब कुछ कृष्ण के साथ संबंध में, इसका मतलब तुम कृष्ण को हर जगह देखते हो । यह भगवद-गीता में सिखाया जाता है, रसो अहम अप्सु कौन्तेय ([[Vanisource:BG 7.8|भ गी ७।८]]) । "मैं पानी का स्वाद हूँ ।" क्यों पानी सभी जीवों द्वारा लिया जाता है ? जानवर, पक्षिय, जानवर, आदमी, इंसान, हर कोई पानी पीता है । इसलिए पानी की इतनी ज्यादा जरूरत है । और कृष्ण नें इतने पानी का प्रबंध किया है । समझ रहे हो ? पानी की जरूरत है इतनी ज्यादा । पीने के लिए, धोने के लिए कृषि के लिए । तो अगर समय में एक गिलास पानी नहीं मिलता है तो वह मर जाता है । यह अनुभव, जो युद्ध क्षेत्र में गया है ... कितना मूल्यवान पानी है वे समझ सकते हैं । लड़ाई में जब वे प्यासे हो जाते हैं और पानी नहीं होता है, वे मर जाते हैं । तो क्यों पानी इतना मूल्यवान है ? क्योंकि अच्छा स्वाद । तुम इतना प्यासे हो तुम पानी का एक घूंट पीते हो, "ओह, भगवान का शुक्र है ।" तो कृष्ण कहते हैं, "वह स्वाद मैं हूँ । जीवन प्रदान करने वाला पानी का स्वाद, मैं हूँ ।" कृष्ण कहते हैं । तो अगर तुमने यह तत्वज्ञान सीखा है, जब भी तुम पानी पीते हो तुम कृष्ण को देखते हो । और तुम पानी कब नहीं पीते ? यही कृष्ण भावनामृत है । रसो अहम अप्सु कौन्तेय प्राभस्मि शशि सूर्ययो: "मैं सूर्य और चंद्रमा की रोशनी हूँ ।" तो रात में या दिन में, तुम्हे या धूप या चांदनी देखना है । तो तुम कैसे कृष्ण को भूल सकते हो ? या तो तुम पानी पियो, या सूर्य के प्रकाश को देखो, या चांदनी को देखो, या कुछ आवाज सुनो ... शब्दो अहम ([[Vanisource:SB 11.16.34|श्री भ ११।१६।३४]]) इतनी सारी चीजें हैं, तुम्ने चौथे अध्याय में यह पढ़ा है, कैसे कृष्ण सर्वव्यापी हैं । तो इस तरीका से हमें कृष्ण को देखना है । तो फिर तुम्हे योग की पूर्णता मिलेगी । यहाँ यह कहा गया है: "एक वास्तविक योगी सभी जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है । निस्सन्देह स्वरूपसिद्धि व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है ।"
तुम आध्यात्मिक बन सकते हो या तुम भौतिक बन सकते हो । कोई तीसरा विकल्प नहीं है । या तो तुम भौतिकवादी हो या आध्यात्मिक हो । तो, जब तक तुम इस भौतिक जगत में हो, तुम भौतिक शक्ति पर  बैठे हो, इसलिए तुम कृष्ण में बैठे हो । क्योंकि शक्ति कृष्ण से अलग नहीं है । जैसे यह लौ, यह प्रकाश, गर्मी है और रोशनी है । दो शक्तियॉ । गर्मी आग से अलग नहीं है और रोशनी आग से अलग नहीं है । इसलिए एक अर्थ में गर्मी भी आग है, रोशनी भी आग है । इसी प्रकार यह भौतिक शक्ति भी श्री कृष्ण है । तो हम सोच रहे हैं कि हम इस ज़मीन पर बैठे हैं लेकिन वास्तव में हम कृष्ण पर बैठे हैं । यह तत्वज्ञान है ।
 
तो, "...और मुझ में हर जीव को देखता है । निस्सन्देह स्वरूपसिद्धि व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है ।" यही हर जगह देखना है । हर जीव को देखना, सब कुछ कृष्ण के साथ संबंध में, इसका मतलब तुम कृष्ण को हर जगह देखते हो । यह भगवद-गीता में सिखाया जाता है, रसो अहम अप्सु कौन्तेय ([[HI/BG 7.8|भ.गी. ७.८]]) । "मैं पानी का स्वाद हूँ ।" क्यों पानी सभी जीवों द्वारा लिया जाता है ? जानवर, पक्षी, जानवर, आदमी, इंसान, हर कोई पानी पीता है । इसलिए पानी की इतनी ज्यादा जरूरत है । और कृष्ण नें इतने पानी का प्रबंध किया है । समझ रहे हो ? पानी की जरूरत है इतनी ज्यादा । पीने के लिए, धोने के लिए, कृषि के लिए ।  
 
तो अगर समय पर एक ग्लास पानी नहीं मिलता है तो वह मर जाता है । यह अनुभव, जो युद्ध क्षेत्र में गया है... कितना मूल्यवान पानी है वे समझ सकते हैं । लड़ाई में जब वे प्यासे हो जाते हैं और पानी नहीं होता है, वे मर जाते हैं । तो क्यों पानी इतना मूल्यवान है ? क्योंकि अच्छा स्वाद । तुम इतने प्यासे हो तुम पानी का एक घूंट पीते हो, "ओह, भगवान का शुक्र है ।" तो कृष्ण कहते हैं, "वह स्वाद मैं हूँ । जीवन प्रदान करने वाला पानी का स्वाद, मैं हूँ ।" कृष्ण कहते हैं ।  
 
तो अगर तुमने यह तत्वज्ञान सीखा है, जब भी तुम पानी पीते हो तुम कृष्ण को देखते हो । और तुम पानी कब नहीं पीते ? यही कृष्ण भावनामृत है । रसो अहम अप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशि सूर्ययो: | "मैं सूर्य और चंद्रमा की रोशनी हूँ ।" तो या तो रात में या दिन में, तुम्हे या तो सूर्यप्रकाश या चांदनी देखना है । तो तुम कैसे कृष्ण को भूल सकते हो ? या तो तुम पानी पियो, या सूर्य के प्रकाश को देखो, या चांदनी को देखो, या कुछ आवाज सुनो... शब्दो अहम ([[Vanisource:SB 11.16.34|श्रीमद भागवतम ११.१६.३४]]) | इतनी सारी चीजें हैं, तुमने चौथे अध्याय में यह पढ़ा है, कैसे कृष्ण सर्वव्यापी हैं । तो इस तरीके से हमें कृष्ण को देखना है । तो फिर तुम्हे योग की पूर्णता मिलेगी । यहाँ यह कहा गया है: "एक वास्तविक योगी सभी जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है । निस्सन्देह स्वरूपसिद्धि व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है ।"  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 6.25-29 -- Los Angeles, February 18, 1969

तो "वास्विक योगी सभी जीवों में मुझे देखता है । और समस्त जीवों को मुझमें । "कैसे", "मुझ में"? क्योंकि जो कुछ भी तुम देखते हो, वह कृष्ण है । तुम ज़मीन पर बैठे हो, तो तुम कृष्ण पर बैठे हो । तुम इस कालीन पर बैठे हो, तो तुम कृष्ण पर बैठे हो । तुम्हे यह पता होना चाहिए । कृष्ण कैसे ये कालीन हैं ? क्योंकि कालीन कृष्ण की शक्ति से बना है ।

विभिन्न प्रकार के हैं... परास्य शक्तिर विवधैव श्रूयते (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.६५, तात्पर्य) | भगवान की विभिन्न शक्तियॉ है । उन विभिन्न शक्तियों में से, तीन प्रभाग प्राथमिक हैं । भोतिक शक्ति, आध्यात्मिक शक्ति और तटस्थ शक्ति । हम जीव तटस्थ शक्ति हैं । पूरा भौतिक जगत भौतिक शक्ति है । और आध्यात्मिक शक्ति है । आध्यात्मिक जगत । और हम तटस्थ हैं । इसलिए हम या तो भौतिक शक्ति में बैठे हैं... तटस्थ का मतलब है इस तरह या उस तरह ।

तुम आध्यात्मिक बन सकते हो या तुम भौतिक बन सकते हो । कोई तीसरा विकल्प नहीं है । या तो तुम भौतिकवादी हो या आध्यात्मिक हो । तो, जब तक तुम इस भौतिक जगत में हो, तुम भौतिक शक्ति पर बैठे हो, इसलिए तुम कृष्ण में बैठे हो । क्योंकि शक्ति कृष्ण से अलग नहीं है । जैसे यह लौ, यह प्रकाश, गर्मी है और रोशनी है । दो शक्तियॉ । गर्मी आग से अलग नहीं है और रोशनी आग से अलग नहीं है । इसलिए एक अर्थ में गर्मी भी आग है, रोशनी भी आग है । इसी प्रकार यह भौतिक शक्ति भी श्री कृष्ण है । तो हम सोच रहे हैं कि हम इस ज़मीन पर बैठे हैं लेकिन वास्तव में हम कृष्ण पर बैठे हैं । यह तत्वज्ञान है ।

तो, "...और मुझ में हर जीव को देखता है । निस्सन्देह स्वरूपसिद्धि व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है ।" यही हर जगह देखना है । हर जीव को देखना, सब कुछ कृष्ण के साथ संबंध में, इसका मतलब तुम कृष्ण को हर जगह देखते हो । यह भगवद-गीता में सिखाया जाता है, रसो अहम अप्सु कौन्तेय (भ.गी. ७.८) । "मैं पानी का स्वाद हूँ ।" क्यों पानी सभी जीवों द्वारा लिया जाता है ? जानवर, पक्षी, जानवर, आदमी, इंसान, हर कोई पानी पीता है । इसलिए पानी की इतनी ज्यादा जरूरत है । और कृष्ण नें इतने पानी का प्रबंध किया है । समझ रहे हो ? पानी की जरूरत है इतनी ज्यादा । पीने के लिए, धोने के लिए, कृषि के लिए ।

तो अगर समय पर एक ग्लास पानी नहीं मिलता है तो वह मर जाता है । यह अनुभव, जो युद्ध क्षेत्र में गया है... कितना मूल्यवान पानी है वे समझ सकते हैं । लड़ाई में जब वे प्यासे हो जाते हैं और पानी नहीं होता है, वे मर जाते हैं । तो क्यों पानी इतना मूल्यवान है ? क्योंकि अच्छा स्वाद । तुम इतने प्यासे हो तुम पानी का एक घूंट पीते हो, "ओह, भगवान का शुक्र है ।" तो कृष्ण कहते हैं, "वह स्वाद मैं हूँ । जीवन प्रदान करने वाला पानी का स्वाद, मैं हूँ ।" कृष्ण कहते हैं ।

तो अगर तुमने यह तत्वज्ञान सीखा है, जब भी तुम पानी पीते हो तुम कृष्ण को देखते हो । और तुम पानी कब नहीं पीते ? यही कृष्ण भावनामृत है । रसो अहम अप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशि सूर्ययो: | "मैं सूर्य और चंद्रमा की रोशनी हूँ ।" तो या तो रात में या दिन में, तुम्हे या तो सूर्यप्रकाश या चांदनी देखना है । तो तुम कैसे कृष्ण को भूल सकते हो ? या तो तुम पानी पियो, या सूर्य के प्रकाश को देखो, या चांदनी को देखो, या कुछ आवाज सुनो... शब्दो अहम (श्रीमद भागवतम ११.१६.३४) | इतनी सारी चीजें हैं, तुमने चौथे अध्याय में यह पढ़ा है, कैसे कृष्ण सर्वव्यापी हैं । तो इस तरीके से हमें कृष्ण को देखना है । तो फिर तुम्हे योग की पूर्णता मिलेगी । यहाँ यह कहा गया है: "एक वास्तविक योगी सभी जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है । निस्सन्देह स्वरूपसिद्धि व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है ।"