HI/Prabhupada 0681 - अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो तुम विश्व से प्रेम करते हो

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Lecture on BG 6.30-34 -- Los Angeles, February 19, 1969

भक्तों: श्री गुरु और गौरंग की जय ।

प्रभुपाद: तो फिर ?

विष्णुजन : श्लोक तीस: "जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझ में देखता है, उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ अौर न वह मेरे लिए अदृश्य होता है ।(भ गी ६।३०) ।

प्रभुपाद : बस ! कैसे तुम (हंसते हुए) कृष्ण से अदृश्य हो सकते हो ? यही सदा_तद_भाव भावित: (भ गी ८।६) । तो अगर तुम इस तरह से अपना जीवन व्यतित करने का अभ्यास करते हो, कभी कृष्ण से अदृश्य नहीं, तो मृत्यु के समय तुम्हारा कृष्ण के धाम में जाना सुनिश्चित है । तुम कहां जा रहे हो ? तुम कृष्ण से अदृश्य नहीं हो । कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति (भ गी ९।३१) और कृष्ण वादा करते हैं "मेरे प्यारे अर्जुन, मेरा शुद्ध भक्त मझसे कभी अदृश्य नहीं होता है ।" तो कृष्ण से अदृश्य न रहो । यही जीवन की पूर्णता है । यही जीवन की पूर्णता है । केवल कृष्ण से अदृश्य न रहो । तुम सब बातें को भूल सकते हो, लेकिन कृष्ण को मत भूलना । तो फिर तुम सबसे अमीर हैं । लोग तुम्हे गरीब देख सकते हैं, जैसे गोस्वामियों को । उन्होंने बहुत गरीब जीवन अपनाया, भिक्षुक । वे मंत्रि थे, बहुत भव्य । बहुत सम्माननीय सज्जन, रूप गस्वामी, सनातन गोस्वामी, विद्वान, अमीर आदमी, मंत्रि हर मायने में उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची थी । लेकिन उन्होंने भिक्षुक होना पसंद किया - त्यकत्वा तूर्णम अशेश मंडल पति श्रेनीम यह गोस्वामी प्रार्थना तुम पाअोगे । त्यकत्वा तूर्णम अशेश मंडल पति श्रेनीम सदा तुच्छ वत । किसी तुच्छ वस्तू की तरह, उन्होंने सब कुछ त्याग दिया । भूत्वा दीन गणेशकौ करणया कौपीन कंथाश्रितौ । कौपीन कंथाश्रितौ - सिर्फ एक अंडरवियर और कमर कपड़ा, बस । वे बनें, स्वीकार किया, सबसे गरीब तरीका जीने का । लेकिन, वे कैसे रह सके ? अगर एक बहुत अमीर आदमी जीवन की ऐसी खराब हालत को स्वीकार करता है, वह नहीं रह सकता है । मैंने इसे देखा है । अगर कोई जीवन के उच्च मानक का आदि है, अगर तुम तुरंत उसके जीवन के मानक को कम करते हो, तो वह नहीं रह सकता है । लेकिन वे बहुत ही खुशी से रहते थे । कैसे ? यही कहा गया है । गोपी भाव रसामृताब्धि लहरी कलोल मग्नौ मुहुर वंदे रूप सनातनौ रघु यगौ श्री जीव गोपालकौ वे सबसे अमीर थे, गोपियों के प्रेम के कार्य कलापों के सागर में खुद को डुबा कर । तो अगर तुम केवल कृष्ण के लिए गोपियों के प्रेम के कार्य कलापों के बारे में सोचते हो, तो तुम अदृश्य नहीं होता हो । इतने सारे तरीके हैं । कृष्ण से अदृश्य मत होना । तब तुम सफल हो । तब कृष्ण भी अदृश्य नहीं होंगे और वह तुम भी नहीं । अागे पढो ।

विष्णुजन : तात्पर्य : "कृष्णभावनाभावित व्यक्ति निश्चित रूप से भगवान कृष्ण को सर्वत्र देखता है और वह सारी वस्तुअों को कृष्ण में देखता है । एसा व्यक्ति भले ही प्रकृति की पृथक पृथक अभिव्यक्तियों को देखता प्रतीत हो, किन्तु वह प्रत्येक दशा में इस कृष्णभावनामृत से अवगत रहता है कि प्रत्येक वस्तु कृष्ण की ही शक्ति की अभिव्यक्ति है ।"

प्रभुपाद: "शक्ति ।" अब, कोई पेड़ को देखता है ... वह दार्शनिक है, कृष्णभावनामृत, कृष्णभावनाभावित व्यक्ति दार्शनिक है । अगर वह अध्ययन करता है, "यह पेड़ क्या है ?" वह पेड़ को देखता है, एक भौतिक, उसका भौतिक शरीर है । जैसे मुझे यह भौतिक शरीर मिला है, लेकिन वह एक जीव है । अपने अतीत के कुकर्मों के कारण उसे यह तुच्छ शरीर मिला है कि वह हिल भी नहीं सकता है । लेकिन उसका शरीर भौतिक है, और भौतिक का मतलब भौतिक शक्ति अौर भौतिक शक्ति किसकी श्क्ति है ? कृष्ण की शक्ति । इसलिए पेड़ का कृष्ण के साथ संबंध है । और वह पेड़, जीव के रूप में, कृष्ण का अंश है । तो उस तरह से अगर हम दर्शनज्ञान की चर्चा करते हैं, कृष्ण भावनामृत, तुम समझ रहे हो, पेड़ को मत देखो, तुम वहां कृष्ण को देखो । यही कृष्ण भावनामृत है । तुम पेड़ को नहीं देखो । तुम कृष्ण को देखो । यही कृष्ण भावनामृत है । तो तुम्हे उस तरह से अभ्यास करना है । यही योग अभ्यास है । यही समाधि है । हाँ, अागे पढो ।

विष्णुजन: "कृष्ण के बिना कोई अस्तित्व नहीं है अौर कृष्ण ही सर्वश्वर हैं । यही कृष्ण भावनामृत क मूल सिद्धांत है । कृष्ण भावनामृत कृष्ण-प्रेम का विकास है, एसी स्थिति जो भौतिक मोक्ष से परे है ।"

प्रभुपाद: हाँ । यह भावनामृत, यह वृक्ष का अध्ययन करना कृष्ण के शक्ति के रूप में, कृष्ण के अंश के रूप में । क्यों तुम इतनी अच्छी तरह से पेड़ का अध्ययन करते हो ? क्योंकि तुम में कृष्ण के लिए प्रेम है । जैसे तुम अपने बच्चे से प्रेम करते हो और तुम्हारा बच्चा तुमसे दूर है । तुम अपने बच्चे के जूते देखोगे । "ओह, यह मेरे बच्चे का जूता है ।" तुम उस जूते से प्यार करते हो ? नहीं, तुम उस बच्चे से प्यार करते हो । इसी प्रकार जैसे ही तुम कृष्ण की शक्ति को देखते हो अलग अलग तरह से प्रकट हुए इसका मतलब है कि तुम उस जीव से प्रेम करते हो क्योंकि तुम कृष्ण से प्रेम करते हो । इसलिए, अगर तुम कृष्ण प्यार से प्रेम करते हो, तो तुम विश्व से प्रेम करते हो । अन्यथा यह बकवास है । तुम प्रेम नहीं कर सकते हो । यह संभव नहीं है । अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो यह शब्द प्रेम, विश्व के लिए प्रेम, ऐसी बहुत सी बातें जो बहुत ज्यादा विज्ञापित हैं । अौर अगर तुम कृष्ण से प्रेम नहीं करते हो, तो तुम देखोगे "यहाँ मेरी अमेरिकी भाई है, और गाय मेरा भोजन है ।" क्योंकि तुम गाय से प्रेम नहीं करते हो । गाय अमेरिकी है और मेरे भाई अमेरिकी है । "मेरा भाई अच्छा है, और गाय भोजन है । यह मेरा विश्व के लिए प्रेम है ।" क्यों ? लेकिन एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति, वह देखता है "ओह, यहाँ एक गाय है । यहॉ एक कुत्ता है । वह कृष्ण का अंश हैं । किसी न किसी तरह से उसे मुझसे एक अलग शरीर मिला है । इसका यह मतलब नहीं है कि वह मेरे भाई नहीं है । तो कैसे मैं अपने भाई को मार सकता हूँ ? " यही कृष्ण का प्रेम है, कृष्ण से प्रेम के कारण । तो कृष्ण प्रेम इतना अच्छा है । सर्व पूर्णता । अगर कोई कृष्ण प्रेम नहीं है, प्रेम का कोई सवाल ही नहीं है, यह सब बकवास है । कृष्ण भावनामृत के बिना कोई प्रेम नहीं हो सकता है । हां ।