HI/Prabhupada 0685 - भक्ति योग पद्धति त्वरित परिणाम, इसी जीवन में आत्म साक्षात्कार और मुक्ति: Difference between revisions

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विष्नुजन: "लोग सरल, व्यावहारिक साधनों से भी आत्म-साक्षात्कार के लिए उत्सुक या गंभीर नहीं हैं, तो फिर इस कठिन योगपद्धति के विषय में क्या कहा जा सकता है जो जीवन शैली, अासन विधि, स्थान के चयन तथा भौतिक व्यस्तताअों से विरक्ति का नियमन करती है । एक व्यावहारिक आदमी के रूप में, अर्जुन यह योग की इस प्रणाली का पालन करने के लिए असंभव था. "  
विष्णुजन: "लोग सरल, व्यावहारिक साधनों से भी आत्म-साक्षात्कार के लिए उत्सुक या गंभीर नहीं हैं, तो फिर इस कठिन योगपद्धति के विषय में क्या कहा जा सकता है जो जीवन शैली, अासन विधि, स्थान के चयन तथा भौतिक व्यस्तताअों से विरक्ति का नियमन करती है । एक व्यावहारिक आदमी के रूप में, अर्जुन यह योग की इस प्रणाली का पालन करने के लिए असंभव था |"  


प्रभुपाद: हाँ । वे एक छद्म योगी, झूठा, बनने के लिए तैयार नहीं थे, केवल कुछ व्यायाम के अभ्यास से । वे एक ढोंगी नहीं थे वे कहते है, कि " मैं एक सिपाही हूँ, मैं एक परिवारिक आदमी हूँ, इसलिए यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" वे स्वीकार करते हैं । वे असंभव को करने का प्रयत्न नहीं करते हैं । यह बस समय की बर्बादी है । कोई क्यों यह करे ? अागे पढो ।  
प्रभुपाद: हाँ । वो एक छद्म योगी, झूठा, बनने के लिए तैयार नहीं था, केवल कुछ व्यायाम के अभ्यास से । वो एक ढोंगी नहीं था वो कहता है, कि "मैं एक सिपाही हूँ, मैं एक परिवारिक आदमी हूँ, इसलिए यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" वो स्वीकार करता हैं । वो असंभव को करने का प्रयत्न नहीं करता हैं । यह बस समय की बर्बादी है । कोई क्यों यह करे ? अागे पढो ।  


विष्णुजन: "भले ही वह कई बातों में इस पद्धति पर खरा उतरता है - वह राजवंशी था, और उसके अनेक सदगुण थे, वह महान योद्धा था, वह दीर्घायु था ।"  
विष्णुजन: "भले ही वह कई बातों में इस पद्धति पर खरा उतरता है - वह राजवंशी था, और उसके अनेक सदगुण थे, वह महान योद्धा था, वह दीर्घायु था ।"


प्रभुपाद : हाँ । एक बात है युग । पांच हजार साल पहले जब अर्जुन जीवित थे, दीर्घायु बहुत बहुत लंबी थी । उस समय लोग एक हजार साल तक जीवित हुअा करते थे । जैसे वर्तमान युग में सीमा एक सौ वर्ष की होती है, इसी प्रकार द्वापर-युग में, आयु की सीमा एक हजार साल थी । और त्रेता-युग में उससे पहले, आयु की सीमा दस हजार साल थी । और सत्य-युग में उससे पहले, आयु की सीमा एक लाख साल थी । तो आयु की सीमा कम हो रही है । तो हालांकि अर्जुन उस युग का था जब लोग हजार साल के लिए रह सकते थे, फिर भी उन्होंने सोचा कि यह असंभव है । अागे पढो ।  
प्रभुपाद : हाँ । एक बात है युग । पांच हजार साल पहले जब अर्जुन जीवित था, आयु बहुत बहुत लंबी थी । उस समय लोग एक हजार साल तक जीवित हुअा करते थे । जैसे वर्तमान युग में सीमा एक सौ वर्ष की होती है, इसी प्रकार द्वापर-युग में, आयु की सीमा एक हजार साल थी । और त्रेता-युग में उससे पहले, आयु की सीमा दस हजार साल थी । और सत्य-युग में उससे पहले, आयु की सीमा एक लाख साल थी । तो आयु की सीमा कम हो रही है । तो हालांकि अर्जुन उस युग का था जब लोग हजार साल के लिए रह सकते थे, फिर भी उसने सोचा कि यह असंभव है । अागे पढो ।  


विष्नुजन: "और सबसे बड़ी बात तो यह कि वह भगवान श्री कृष्ण का घनिष्ठ मित्र था, पांच हजार साल पूर्व अर्जुन को हमसे अधिक सुविधाएं प्राप्त थीं तो भी उसने इस योगपद्धति को स्वीकार करने से मना कर दिया ।"  
विष्णुजन: "और सबसे बड़ी बात तो यह कि वह कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, का घनिष्ठ मित्र था, पांच हजार साल पूर्व अर्जुन को हमसे अधिक सुविधाएं प्राप्त थीं तो भी उसने इस योगपद्धति को स्वीकार करने से मना कर दिया ।"  


प्रभुपाद: योग की यह पद्धति, यह अष्टांग - योग । हां ।  
प्रभुपाद: योग की यह पद्धति, यह अष्टांग-योग । हां । विष्णुजन: "वास्तव में, इतिहास में कोई एसा प्रलेख प्राप्त नहीं है । अत: इस पद्धति को इस कलियुग के लिए सर्वथा दुष्कर समझना चाहिए । हाँ, कोई विरले व्यक्तियों के लिए यह पद्धति सुगम हो सकती है, किन्तु सामान्यजनों के लिए यह असम्भव प्रस्ताव है । यदि पांच हजार साल पूर्व एसा था तो अाधुनिक समय के लिए क्या कहना ? जो लोग विभन्न तथाकथित स्कूलों तथा समितियों के द्वारा इस योगपद्धति का अनुकरण कर रहे हैं, भले ही सन्तोषजनक प्रतीत हो, किन्तु वे सचमुच ही अपना समय गँवा रहे हैं । वे अपने अभीष्ट लक्ष्य के प्रति सर्वथा अज्ञानी हैं ।"


विष्णुजन: "वास्तव में, इतिहास में कोई एसा प्रलेख प्राप्त नहीं है । अत: इस पद्धति को इस कलियुग के लिए सर्वथा दुष्कर समझना चाहिए हाँ, कतिपय विरले व्यक्तियों के लिए यह पद्धति सुगम हो सकती है, किन्तु सामान्यजनों के लिए यह असम्भव प्रस्ताव है । यदि पांच हजार साल पूर्व एसा था तो अाधुनिक समय के लिए क्या कहना ? जो लोग विभन्न तथाकथित स्कूलों तथा समितियों के द्वारा इस योगपद्धति का अनुकरण कर रहे हैं, भले ही सन्तोषजनक प्रतीत हो, किन्तु वे सचमुच ही अपना समय गँवा रहे हैं वे अपने अभीष्ट लक्षय के प्रति सर्वथा अज्ञानी हैं ।"
प्रभुपाद: हाँ । तो यह अष्टांग-योग संभव नहीं है । इसलिए यह योग पद्धति, भक्ति-योग पद्धति, हर किसी के लिए लागू है तुम देखते हो जब जप करते हो, भक्ति-योग पद्धति चल रही है, यहां तक ​​कि एक छोटा बच्चा, वह भी ताली बजाता है । समझे ? किसी भी प्रशिक्षण के बिना, किसी भी शिक्षा के बिना, स्वचालित रूप से वह भाग लेता है तो इसलिए प्रभु चैतन्य नें कहा है कि यही इस युग की प्रणाली है:


प्रभुपाद: हाँ । तो यह अष्टांग-योग संभव नहीं है । इसलिए यह योग पद्धति, भक्ति-योग पद्धति, हर किसी के लिए लागू है । तुम देखते हो जब जपते हो, भक्ति-योग पद्धति चल रही है, यहां तक ​​कि एक छोटा बच्चा, वह भी ताली बजाता है । समझे ? किसी भी प्रशिक्षण के बिना, किसी भी शिक्षा के बिना, स्वचालित रूप से वह भाग लेता है । तो इसलिए प्रभु चैतन्य नें कहा है कि यही इस युग की प्रणाली है : हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम एव केवलम ([[Vanisource:CC Adi 17.21|चै च अादि १७।२१]]) । केवल हरे कृष्ण के जाप से, हरे कृष्ण । कलौ, काली के इस युग में । कलौ नास्ति एव, नास्ति एव । नास्ति एव : और कोई विकल्प नहीं है, कोई अन्य विकल्प नहीं है, कोई अन्य विकल्प नहीं है । अगर तुम इस पद्धति को अपनाते हो, इस भक्ति-योग पद्धति को, बहुत आसान है, बस जप करना । तुम पाअोगे, तुरंत परिणाम । प्रत्यक्षावगमम् धर्म्यम । कोई भी योग पद्धति, अगर तुम अभ्यास करते हो, तुम अंधेरे में हो । तुम जानते नहीं हो कि तुम कितनी उन्नति कर रहे हो । लेकिन यह पद्धति, तुम समझोगे "हाँ, मैं फलां प्रगति कर रहा हूँ ।" यह एक ही योग पद्धति है, भक्ति-योग पद्धति, जो वह अभ्यास कर सकता है त्वरित परिणाम के लिए, अौर यहां तक ​​कि इसी जीवन में आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति के लिए । उसे एक और जीवन के लिए प्रतीक्षा करनी नहीं पड़ेगी । यह कृष्ण भावनामृत इतना अच्छा है । अागे पढो ।
:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम एव केवलम ([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१]]) ।  
 
केवल हरे कृष्ण, हरे कृष्ण के जप से । कलौ, कली के इस युग में । कलौ नास्ति एव, नास्ति एव । नास्ति एव: और कोई विकल्प नहीं है, कोई अन्य विकल्प नहीं है, कोई अन्य विकल्प नहीं है । अगर तुम इस पद्धति को अपनाते हो, इस भक्ति-योग पद्धति को, बहुत आसान है, बस जप करना । तुम पाअोगे, तुरंत परिणाम ।  
 
प्रत्यक्षावगमम धर्म्यम ([[HI/BG 9.2|भ.गी. ९.२]]) । कोई भी योग पद्धति, अगर तुम अभ्यास करते हो, तुम अंधेरे में हो । तुम जानते नहीं हो कि तुम कितनी उन्नति कर रहे हो । लेकिन यह पद्धति, तुम समझोगे "हाँ, मैं इतनी प्रगति कर रहा हूँ ।" यह एक ही योग पद्धति है, भक्ति-योग पद्धति, जो वह अभ्यास कर सकता है त्वरित परिणाम के लिए, अौर यहां तक ​​कि इसी जीवन में आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति के लिए । उसे एक और जीवन के लिए प्रतीक्षा करनी नहीं पड़ेगी । यह कृष्ण भावनामृत इतना अच्छा है । अागे पढो ।  
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Latest revision as of 17:53, 1 October 2020



Lecture on BG 6.30-34 -- Los Angeles, February 19, 1969

विष्णुजन: "लोग सरल, व्यावहारिक साधनों से भी आत्म-साक्षात्कार के लिए उत्सुक या गंभीर नहीं हैं, तो फिर इस कठिन योगपद्धति के विषय में क्या कहा जा सकता है जो जीवन शैली, अासन विधि, स्थान के चयन तथा भौतिक व्यस्तताअों से विरक्ति का नियमन करती है । एक व्यावहारिक आदमी के रूप में, अर्जुन यह योग की इस प्रणाली का पालन करने के लिए असंभव था |"

प्रभुपाद: हाँ । वो एक छद्म योगी, झूठा, बनने के लिए तैयार नहीं था, केवल कुछ व्यायाम के अभ्यास से । वो एक ढोंगी नहीं था । वो कहता है, कि "मैं एक सिपाही हूँ, मैं एक परिवारिक आदमी हूँ, इसलिए यह मेरे लिए संभव नहीं है ।" वो स्वीकार करता हैं । वो असंभव को करने का प्रयत्न नहीं करता हैं । यह बस समय की बर्बादी है । कोई क्यों यह करे ? अागे पढो ।

विष्णुजन: "भले ही वह कई बातों में इस पद्धति पर खरा उतरता है - वह राजवंशी था, और उसके अनेक सदगुण थे, वह महान योद्धा था, वह दीर्घायु था ।"

प्रभुपाद : हाँ । एक बात है युग । पांच हजार साल पहले जब अर्जुन जीवित था, आयु बहुत बहुत लंबी थी । उस समय लोग एक हजार साल तक जीवित हुअा करते थे । जैसे वर्तमान युग में सीमा एक सौ वर्ष की होती है, इसी प्रकार द्वापर-युग में, आयु की सीमा एक हजार साल थी । और त्रेता-युग में उससे पहले, आयु की सीमा दस हजार साल थी । और सत्य-युग में उससे पहले, आयु की सीमा एक लाख साल थी । तो आयु की सीमा कम हो रही है । तो हालांकि अर्जुन उस युग का था जब लोग हजार साल के लिए रह सकते थे, फिर भी उसने सोचा कि यह असंभव है । अागे पढो ।

विष्णुजन: "और सबसे बड़ी बात तो यह कि वह कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, का घनिष्ठ मित्र था, पांच हजार साल पूर्व अर्जुन को हमसे अधिक सुविधाएं प्राप्त थीं तो भी उसने इस योगपद्धति को स्वीकार करने से मना कर दिया ।"

प्रभुपाद: योग की यह पद्धति, यह अष्टांग-योग । हां । विष्णुजन: "वास्तव में, इतिहास में कोई एसा प्रलेख प्राप्त नहीं है । अत: इस पद्धति को इस कलियुग के लिए सर्वथा दुष्कर समझना चाहिए । हाँ, कोई विरले व्यक्तियों के लिए यह पद्धति सुगम हो सकती है, किन्तु सामान्यजनों के लिए यह असम्भव प्रस्ताव है । यदि पांच हजार साल पूर्व एसा था तो अाधुनिक समय के लिए क्या कहना ? जो लोग विभन्न तथाकथित स्कूलों तथा समितियों के द्वारा इस योगपद्धति का अनुकरण कर रहे हैं, भले ही सन्तोषजनक प्रतीत हो, किन्तु वे सचमुच ही अपना समय गँवा रहे हैं । वे अपने अभीष्ट लक्ष्य के प्रति सर्वथा अज्ञानी हैं ।"

प्रभुपाद: हाँ । तो यह अष्टांग-योग संभव नहीं है । इसलिए यह योग पद्धति, भक्ति-योग पद्धति, हर किसी के लिए लागू है । तुम देखते हो जब जप करते हो, भक्ति-योग पद्धति चल रही है, यहां तक ​​कि एक छोटा बच्चा, वह भी ताली बजाता है । समझे ? किसी भी प्रशिक्षण के बिना, किसी भी शिक्षा के बिना, स्वचालित रूप से वह भाग लेता है । तो इसलिए प्रभु चैतन्य नें कहा है कि यही इस युग की प्रणाली है:

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम एव केवलम (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) ।

केवल हरे कृष्ण, हरे कृष्ण के जप से । कलौ, कली के इस युग में । कलौ नास्ति एव, नास्ति एव । नास्ति एव: और कोई विकल्प नहीं है, कोई अन्य विकल्प नहीं है, कोई अन्य विकल्प नहीं है । अगर तुम इस पद्धति को अपनाते हो, इस भक्ति-योग पद्धति को, बहुत आसान है, बस जप करना । तुम पाअोगे, तुरंत परिणाम ।

प्रत्यक्षावगमम धर्म्यम (भ.गी. ९.२) । कोई भी योग पद्धति, अगर तुम अभ्यास करते हो, तुम अंधेरे में हो । तुम जानते नहीं हो कि तुम कितनी उन्नति कर रहे हो । लेकिन यह पद्धति, तुम समझोगे "हाँ, मैं इतनी प्रगति कर रहा हूँ ।" यह एक ही योग पद्धति है, भक्ति-योग पद्धति, जो वह अभ्यास कर सकता है त्वरित परिणाम के लिए, अौर यहां तक ​​कि इसी जीवन में आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति के लिए । उसे एक और जीवन के लिए प्रतीक्षा करनी नहीं पड़ेगी । यह कृष्ण भावनामृत इतना अच्छा है । अागे पढो ।