HI/Prabhupada 0696 - भक्ति योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है: Difference between revisions

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भक्त: "यथार्थ में भक्ति-योग ही चरम लक्षय है, किन्तु भक्तियोग का सूक्ष्म विश्लेष्ण करने के लिए, अन्य योगों को समझना होता है । अत: जो योगी प्रगतिशील होता है वह शाश्वत कल्याण के सही मार्ग पर रहता है जो किसी एक बिन्दु पर दृढ रहता है अौर अागे प्रगति नहीं करता वह इन नामों से पुकारा जाता है ।  
भक्त: "यथार्थ में भक्ति-योग ही चरम लक्ष्य है, किन्तु भक्तियोग का सूक्ष्म विश्लेष्ण करने के लिए, अन्य योगों को समझना होता है । अत: जो योगी प्रगतिशील होता है वह शाश्वत कल्याण के सही मार्ग पर रहता है | जो किसी एक बिन्दु पर दृढ रहता है अौर अागे प्रगति नहीं करता वह इन नामों से पुकारा जाता है ।"


प्रभुपाद: हाँ। अब अगर कोई ज्ञानयोग अभ्यास कर रहा है, अगर वह सोचता है कि यह अंत है, यह गलत है । तुम्हे आगे प्रगति बढना होगा । जैसे हमने कई बार उदाहरण दिया है, एक सीढ़ी है। तुम्हे उच्चतम मंजिल को जाना है, सौवां मंजिल मान लो । तो कोई पचासवे मंजिल पर है, कोई तीसवे मंजिल पर है, कई अस्सी मंजिल पर है। तो अगर उस मंजिल पर अाने से, अस्सी, पचासवां या अस्सी मंजिल, कोई सोचता है, "यह अंत है," तो वह प्रगति नहीं कर रहा है । अंत तक जाना पड़ेगा । यही योग का सर्वोच्च मंच है । पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली बुलाया जा सकता है, लिंक, जोड़ना । लेकिन पचासवे मंज़िल या अस्सी मंजिल पर खुद को रखकर संतुष्ट मत होना । सर्वोच्च मंच पर पहुँचो, सौवां या सौ-पचासवां मंजिल । यही भक्ति-योग है। अागे पढो ।  
प्रभुपाद: हाँ । अब, अगर कोई ज्ञानयोग अभ्यास कर रहा है, अगर वह सोचता है कि यह अंत है, यह गलत है । तुम्हे आगे प्रगति करनी होगी । जैसे हमने कई बार उदाहरण दिया है, एक सीढ़ी है। तुम्हे उच्चतम मंजिल को जाना है, मान लो सौवी मंजिल । तो कोई पचासवे मंजिल पर है, कोई तीसवे मंजिल पर है, कोई अस्सीवे मंजिल पर है। तो अगर उस मंजिल पर अाने से, अस्सी, पचासवां या अस्सी मंजिल, कोई सोचता है, "यह अंत है," तो वह प्रगति नहीं कर रहा है । अंत तक जाना पड़ेगा । यही योग का सर्वोच्च मंच है । पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली बुलाया जा सकता है, जोड़ना, कड़ी । लेकिन पचासवे मंज़िल या अस्सी मंजिल पर खुद को रखकर संतुष्ट मत होना । सर्वोच्च मंच पर पहुँचो, सौवे या पांचसोवे मंजिल । यही भक्ति-योग है। अागे पढो ।  


भक्त: "यद्यपि कोई इतना भागवयशाली होता है कि भक्ति योग को प्राप्त हो सके, तो यह समझना चाहिए कि उसने सम्सत योगों को पार कर लिया है ।"  
भक्त: "यद्यपि कोई इतना भागवयशाली होता है कि भक्ति योग तक पहुँच सके, तो यह समझना चाहिए कि उसने समस्त योगों को पार कर लिया है ।"  


प्रभुपाद: अब, अगर कोई बजाय सीढियों के उसे एलिवेटर का मौका दिया जाता है, वह एक क्षण में उपर अा जाता है । तो कोई यह कहता है, "क्यों मैं इस लिफ्ट का लाभ उठाऊँ ? मैं सीढी दर सीढी चढूँगा," वह कर सकता है । लेकिन मौका है। अगर तुम इस भक्ति-योग को अपनाते हो, तुम तुरंत लिफ्ट की मदद लेते हो और एक क्षण में तुम सौवे मंजिल पर हो । यह प्रक्रिया है । सीधी प्रक्रिया । तुम सीढी दर सीढी जा सकते हो, अन्य सभी योग प्रणालियों को अपनाते हुए । लेकिन तुम सीधे ले सकते हो । भगवान चैतन्य नें सुझाव दिया है इस युग के लोगों को, जिनकी अायु बहुत कम है, वे चिंता से भरे हुए हैं, जो परेशान रहते हैं । इसलिए उनकी कृपा से, उनके अकारण दया से, वे तुरंत तुम्हे लिफ्ट दे रहे हैं -हरे कृष्ण के जाप द्वारा भक्ति-योग में अाअो । तुरंत । तुम्हे प्रतीक्षा करने की ज़रूरत नहीं है । यह भगवान चैतन्य का विशेष उपहार है । इसलिए रूप गोस्वामी प्रार्थना करते हैं, भगवान चैतन्य को सम्मान प्रदान करते हैं: नमो महा-वदान्याय कृष्ण प्रेम प्रदाय ते ([[Vanisource:CC Madhya 19.53|चै च मध्य १९।५३]]) । "ओह अाप सबसे दानी अवतार हैं क्योंकि अाप सीधे श्री कृष्ण के प्रेम को प्रदान कर रहे हैं । श्री कृष्ण के प्रेम को पाने के लिए कई कदम और योग प्रणालियों से गुजरना पड़ता है , और आप सीधा दे रहे हैं । इसलिए आप सबसे उदार हैं। " तो वास्तव में यह स्थिति है। अागे पढो ।  
प्रभुपाद: अब, अगर कोई बजाय सीढियों के, उसे एलिवेटर का मौका दिया जाता है, वह एक क्षण में उपर अा जाता है । तो कोई यह कहता है, "क्यों मैं इस लिफ्ट का लाभ उठाऊँ ? मैं सीढी दर सीढी चढूँगा," वह कर सकता है । लेकिन मौका है। अगर तुम इस भक्ति-योग को अपनाते हो, तुम तुरंत लिफ्ट की मदद लेते हो और एक क्षण में तुम सौवे मंजिल पर हो । यह प्रक्रिया है । सीधी प्रक्रिया । तुम सीढी दर सीढी जा सकते हो, अन्य सभी योग प्रणालियों को अपनाते हुए । लेकिन तुम सीधे ले सकते हो ।  


भक्त: "अत: कृष्ण भावनाभावित होना योग की सर्वोच्च अवस्था है, ठीक उसी तरह जैसे कि जब हम हिमालय की बात करते हैं, हम विश्व भर के पर्वतों में सबसे ऊँचे की बात कर रहे हैं, जिसमें सर्वोच्च चोटी है एवरेस्ट, जो पर्वतों में परिणति माना जाता है कोई विरला भाग्यशाली ही कष्ण भावनामृत हो पाता है, भक्तियोग के पथ को स्वीकार करके वैदिक विधान के अनुसार । आदर्श योगी श्यामसुंदर कृष्ण पर अपना ध्यान एकाग्र करता है, जो बादल के समान सुन्दर रंग वाले हैं, जिनका कमल सदृश मुख सूर्य के समान तेजवान है, जिनका वस्त्र रत्नों से प्रभापूर्ण है अौर जिनका शरीर फलों की माला से सुशोभित है । उनके अंगों को प्रदीप्त करने वाली उनकी ज्योति ब्रह्मज्योति कहलाती है । वे अवतरित होते हैं विभन्न रूपों में जैसे राम, नृसिंह, वराह तथा श्रीभगवान कृष्ण । और वे सामान्य व्यक्ति की भॉति, माता यशोदा के पुत्र के रूप में जन्म ग्रहण करते हैं, और कृष्ण, गोविंद तथा वासुदेव के नाम में जाने जाते हैं । वे पर्ण बालक, पूर्ण पति, पूर्ण सखा, पूर्ण स्वामी हैं ; और वे समस्त ऐश्वरयों तथा दिव्य गुणों से अोतप्रोत हैं । जो श्री भगवान के इन गुणों से पूर्णतया अभिज्ञ रहता है वह सर्वोच्च योगी कहलाता है । योग की यह सर्वोच्च दशा केवल भक्तियोग से ही प्राप्त की जा सकती है जिसकी पुष्टि वैदिक साहित्यों से होती है "
भगवान चैतन्य नें सुझाव दिया है इस युग के लोगों को, जिनकी अायु बहुत कम है, वे चिंता से भरे हुए हैं, जो परेशान रहते हैं इसलिए उनकी कृपा से, उनकी अकारण दया से, वे तुरंत तुम्हे लिफ्ट दे रहे हैं - हरे कृष्ण के जप द्वारा भक्ति-योग में अाअो । तुरंत । तुम्हे प्रतीक्षा करने की ज़रूरत नहीं है । यह भगवान चैतन्य का विशेष उपहार है । इसलिए रूप गोस्वामी प्रार्थना करते हैं, भगवान चैतन्य को सम्मान प्रदान करते हैं: नमो महा-वदान्याय कृष्ण प्रेम प्रदाय ते ([[Vanisource:CC Madhya 19.53|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.५३]]) "ओह अाप सबसे दानी अवतार हैं क्योंकि अाप सीधे कृष्ण के प्रेम को प्रदान कर रहे हैं । कृष्ण के प्रेम को पाने के लिए कई कदम और योग प्रणालियों से गुजरना पड़ता है, और आप सीधा दे रहे हैं । इसलिए आप सबसे उदार हैं।" तो वास्तव में यह स्थिति है । अागे पढो ।  


प्रभुपाद: भक्ति, भगवद गीता में तुम पाअोगे, कि भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश् चास्मि तत्वत: ([[Vanisource:BG 18.55|भ गी १८।५५]]) शुरुआत में श्री कृष्ण कहते हैं कि लाखों लोगों में, कोई एक यथार्थ मुझे समझ सकता है । और वही यथार्थ शब्द, अठारहवें अध्याय में प्रयोग किया गया है कि "अगर कोई मुझे जानना चाहता है," श्री कृष्ण या भगवान, "तो फिर उसे भक्ति-योग की प्रक्रिया के माध्यम से जाना होगा ।" भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश् चास्मि तत्वत: ([[Vanisource:BG 18.55|भ गी १८।५५]]) । यह स्पष्ट रूप से कहा गया है । वेदों में भी यह कहा जाता है: केवल भक्ति के माध्यम से, भक्ति सेवा, तुम उच्चतम पूर्णता को प्राप्त कर सकते हो । अन्य योग प्रणाली में भक्ति का मिश्रण होना चाहिए । लेकिन भक्ति-योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है । इसलिए यह प्रत्यक्ष प्रक्रिया भक्ति-योग की इस युग के लिए कही गई है, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त समय नहीं है, सभी अाडंबरों को करने के लिए, किसी अन्य योग प्रणाली का पालन करने के लिए । बहुत बहुत धन्यवाद ।
भक्त: "अत: कृष्ण भावनाभावित होना योग की सर्वोच्च अवस्था है, ठीक उसी तरह जैसे कि जब हम हिमालय की बात करते हैं, हम विश्व भर के पर्वतों में सबसे ऊँचे पर्वत की बात कर रहे हैं, जिसमें सर्वोच्च चोटी है एवरेस्ट, जो पर्वतों की चरमसीमा माना जाता है । कोई विरला भाग्यशाली ही कष्ण भावनाभावित हो पाता है, भक्तियोग के पथ को स्वीकार करके, वैदिक विधान के अनुसार । आदर्श योगी श्यामसुंदर कृष्ण पर अपना ध्यान एकाग्र करता है, जो बादल के समान सुन्दर रंग वाले हैं, जिनका कमल सदृश मुख सूर्य के समान तेजवान है, जिनके वस्त्र रत्नों से प्रभापूर्ण है अौर जिनका शरीर फूलो की माला से सुशोभित है । उनके अंगों को प्रदीप्त करने वाली उनकी ज्योति ब्रह्मज्योति कहलाती है । वे अवतरित होते हैं विभन्न रूपों में जैसे राम, नृसिंह, वराह तथा कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान । और वे सामान्य व्यक्ति की भॉति, माता यशोदा के पुत्र के रूप में जन्म ग्रहण करते हैं, और कृष्ण, गोविंद तथा वासुदेव के नाम में जाने जाते हैं । वे पूर्ण बालक, पूर्ण पति, पूर्ण सखा, पूर्ण स्वामी हैं; और वे समस्त ऐश्वर्यो तथा दिव्य गुणों से अोतप्रोत हैं । जो भगवान के इन गुणों से पूर्णतया अभिज्ञ रहता है वह सर्वोच्च योगी कहलाता है । योग की यह सर्वोच्च दशा केवल भक्तियोग से ही प्राप्त की जा सकती है, जिसकी पुष्टि वैदिक साहित्यों से होती है ।"
 
प्रभुपाद: भक्ति, भगवद गीता में तुम पाअोगे, कि भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वत: ([[HI/BG 18.55|भ.गी. १८.५५]]) | शुरुआत में कृष्ण कहते हैं कि लाखों लोगों में, कोई एक यथार्थ मुझे समझ सकता है । और वही यथार्थ शब्द, अठारहवें अध्याय में प्रयोग किया गया है, कि "अगर कोई मुझे जानना चाहता है, "कृष्ण या भगवान को, "तो फिर उसे भक्ति-योग की प्रक्रिया के माध्यम से जाना होगा ।" भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वत: ([[HI/BG 18.55|भ.गी. १८.५५]]) । यह स्पष्ट रूप से कहा गया है । वेदों में भी यह कहा जाता है: केवल भक्ति के माध्यम से, भक्ति सेवा, तुम उच्चतम पूर्णता को प्राप्त कर सकते हो । अन्य योग प्रणाली में भक्ति का मिश्रण होना चाहिए । लेकिन भक्ति-योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है । इसलिए भक्ति-योग की यह प्रत्यक्ष प्रक्रिया की सिफारिश इस युग के लिए दी गई है, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त समय नहीं है, सभी अाडंबर करने के लिए, किसी अन्य योग प्रणाली का पालन करने के लिए । बहुत बहुत धन्यवाद ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 6.46-47 -- Los Angeles, February 21, 1969

भक्त: "यथार्थ में भक्ति-योग ही चरम लक्ष्य है, किन्तु भक्तियोग का सूक्ष्म विश्लेष्ण करने के लिए, अन्य योगों को समझना होता है । अत: जो योगी प्रगतिशील होता है वह शाश्वत कल्याण के सही मार्ग पर रहता है | जो किसी एक बिन्दु पर दृढ रहता है अौर अागे प्रगति नहीं करता वह इन नामों से पुकारा जाता है ।"

प्रभुपाद: हाँ । अब, अगर कोई ज्ञानयोग अभ्यास कर रहा है, अगर वह सोचता है कि यह अंत है, यह गलत है । तुम्हे आगे प्रगति करनी होगी । जैसे हमने कई बार उदाहरण दिया है, एक सीढ़ी है। तुम्हे उच्चतम मंजिल को जाना है, मान लो सौवी मंजिल । तो कोई पचासवे मंजिल पर है, कोई तीसवे मंजिल पर है, कोई अस्सीवे मंजिल पर है। तो अगर उस मंजिल पर अाने से, अस्सी, पचासवां या अस्सी मंजिल, कोई सोचता है, "यह अंत है," तो वह प्रगति नहीं कर रहा है । अंत तक जाना पड़ेगा । यही योग का सर्वोच्च मंच है । पूरी सीढ़ी को योग प्रणाली बुलाया जा सकता है, जोड़ना, कड़ी । लेकिन पचासवे मंज़िल या अस्सी मंजिल पर खुद को रखकर संतुष्ट मत होना । सर्वोच्च मंच पर पहुँचो, सौवे या पांचसोवे मंजिल । यही भक्ति-योग है। अागे पढो ।

भक्त: "यद्यपि कोई इतना भागवयशाली होता है कि भक्ति योग तक पहुँच सके, तो यह समझना चाहिए कि उसने समस्त योगों को पार कर लिया है ।"

प्रभुपाद: अब, अगर कोई बजाय सीढियों के, उसे एलिवेटर का मौका दिया जाता है, वह एक क्षण में उपर अा जाता है । तो कोई यह कहता है, "क्यों मैं इस लिफ्ट का लाभ उठाऊँ ? मैं सीढी दर सीढी चढूँगा," वह कर सकता है । लेकिन मौका है। अगर तुम इस भक्ति-योग को अपनाते हो, तुम तुरंत लिफ्ट की मदद लेते हो और एक क्षण में तुम सौवे मंजिल पर हो । यह प्रक्रिया है । सीधी प्रक्रिया । तुम सीढी दर सीढी जा सकते हो, अन्य सभी योग प्रणालियों को अपनाते हुए । लेकिन तुम सीधे ले सकते हो ।

भगवान चैतन्य नें सुझाव दिया है इस युग के लोगों को, जिनकी अायु बहुत कम है, वे चिंता से भरे हुए हैं, जो परेशान रहते हैं । इसलिए उनकी कृपा से, उनकी अकारण दया से, वे तुरंत तुम्हे लिफ्ट दे रहे हैं - हरे कृष्ण के जप द्वारा भक्ति-योग में अाअो । तुरंत । तुम्हे प्रतीक्षा करने की ज़रूरत नहीं है । यह भगवान चैतन्य का विशेष उपहार है । इसलिए रूप गोस्वामी प्रार्थना करते हैं, भगवान चैतन्य को सम्मान प्रदान करते हैं: नमो महा-वदान्याय कृष्ण प्रेम प्रदाय ते (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.५३) । "ओह अाप सबसे दानी अवतार हैं क्योंकि अाप सीधे कृष्ण के प्रेम को प्रदान कर रहे हैं । कृष्ण के प्रेम को पाने के लिए कई कदम और योग प्रणालियों से गुजरना पड़ता है, और आप सीधा दे रहे हैं । इसलिए आप सबसे उदार हैं।" तो वास्तव में यह स्थिति है । अागे पढो ।

भक्त: "अत: कृष्ण भावनाभावित होना योग की सर्वोच्च अवस्था है, ठीक उसी तरह जैसे कि जब हम हिमालय की बात करते हैं, हम विश्व भर के पर्वतों में सबसे ऊँचे पर्वत की बात कर रहे हैं, जिसमें सर्वोच्च चोटी है एवरेस्ट, जो पर्वतों की चरमसीमा माना जाता है । कोई विरला भाग्यशाली ही कष्ण भावनाभावित हो पाता है, भक्तियोग के पथ को स्वीकार करके, वैदिक विधान के अनुसार । आदर्श योगी श्यामसुंदर कृष्ण पर अपना ध्यान एकाग्र करता है, जो बादल के समान सुन्दर रंग वाले हैं, जिनका कमल सदृश मुख सूर्य के समान तेजवान है, जिनके वस्त्र रत्नों से प्रभापूर्ण है अौर जिनका शरीर फूलो की माला से सुशोभित है । उनके अंगों को प्रदीप्त करने वाली उनकी ज्योति ब्रह्मज्योति कहलाती है । वे अवतरित होते हैं विभन्न रूपों में जैसे राम, नृसिंह, वराह तथा कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान । और वे सामान्य व्यक्ति की भॉति, माता यशोदा के पुत्र के रूप में जन्म ग्रहण करते हैं, और कृष्ण, गोविंद तथा वासुदेव के नाम में जाने जाते हैं । वे पूर्ण बालक, पूर्ण पति, पूर्ण सखा, पूर्ण स्वामी हैं; और वे समस्त ऐश्वर्यो तथा दिव्य गुणों से अोतप्रोत हैं । जो भगवान के इन गुणों से पूर्णतया अभिज्ञ रहता है वह सर्वोच्च योगी कहलाता है । योग की यह सर्वोच्च दशा केवल भक्तियोग से ही प्राप्त की जा सकती है, जिसकी पुष्टि वैदिक साहित्यों से होती है ।"

प्रभुपाद: भक्ति, भगवद गीता में तुम पाअोगे, कि भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वत: (भ.गी. १८.५५) | शुरुआत में कृष्ण कहते हैं कि लाखों लोगों में, कोई एक यथार्थ मुझे समझ सकता है । और वही यथार्थ शब्द, अठारहवें अध्याय में प्रयोग किया गया है, कि "अगर कोई मुझे जानना चाहता है, "कृष्ण या भगवान को, "तो फिर उसे भक्ति-योग की प्रक्रिया के माध्यम से जाना होगा ।" भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वत: (भ.गी. १८.५५) । यह स्पष्ट रूप से कहा गया है । वेदों में भी यह कहा जाता है: केवल भक्ति के माध्यम से, भक्ति सेवा, तुम उच्चतम पूर्णता को प्राप्त कर सकते हो । अन्य योग प्रणाली में भक्ति का मिश्रण होना चाहिए । लेकिन भक्ति-योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है । इसलिए भक्ति-योग की यह प्रत्यक्ष प्रक्रिया की सिफारिश इस युग के लिए दी गई है, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त समय नहीं है, सभी अाडंबर करने के लिए, किसी अन्य योग प्रणाली का पालन करने के लिए । बहुत बहुत धन्यवाद ।