HI/Prabhupada 0703 - अगर तुम श्री कृष्ण में अपने मन को स्थित करते हो तो यह समाधि है

Revision as of 03:00, 14 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0703 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1969 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid URL, must be MP3

Lecture on BG 6.46-47 -- Los Angeles, February 21, 1969

भक्त: प्रभुपाद? क्या भक्ति-योग की समाधि अौर इस अष्टांग योग की समाधि एक है?

प्रभुपाद: हाँ। समाधि का मतलब है मन को विष्णु में स्थित करना । यही समाधि है । तो अगर तुम श्री कृष्ण में अपने मन को स्थित करते हो तो यह समाधि है। (तोड़) कोई अौर प्रश्न ? वह पूछेगा । ठीक है।

युवा लड़का: स्वामीजी? अपने कहा कि जब तुम बहुत ज्यादा खाते हो तो तुम्हे भूगतना होगा । लेकिन भक्तों का क्या ? अगर वे बहुत ज्यादा प्रसाद खाते हैं तब क्या ?

प्रभुपाद: तुम अधिक खाना चाहते हो ?

युवा लड़का: मैं बस जानना चाहता हूँ ...

प्रभुपाद: तम्हे लगता है कि तुम ज्यादा खा रहे हो ? तो तुम ज्यादा खा सकते हो ।

युवा लड़के: मैंने सोचा मैं एसा कर सकता हूँ.... प्रभुपाद ... तुम ज्यादा खा सकते हो । हाँ, यह चिकित्सा सलाह है, दो प्रकार की गलतियॉ है खाने में - कम खाना और ज्यादा-खाना । तो कम खाना बूढ़े आदमी के लिए बहुत अच्छा है । अौर ज्यादा खाना लड़कों के लिए अच्छा है। तो तुम ज्यादा खा सकते हो । मैं नहीं कर सकता ।

युवा लड़के: तमाल और विष्णुजन के बारे में क्या ख्याल है ? (हंसी)

प्रभुपाद: वे नहीं कर सकते हैं । तुम कर सकते हो । तुम जितना मर्जी खा सकते हो । खुली छूट है । (हंसी)