HI/Prabhupada 0705 - हम भगवद गीता में पाऍगे, भगवान का यह सबसे उत्कृष्ट विज्ञान: Difference between revisions

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भक्त: क्या है जो हमने समझना चाहिए श्री कृष्ण के पूर्ण विस्तार विष्णु के बारे में ?  
भक्त: कृष्ण के पूर्ण विस्तार विष्णु के बारे में वो क्या है जो हमें समझना चाहिए ?  


प्रभुपाद: हाँ । कृष्ण खुद का विस्तार कर सकते हैं । जैसे कि तुम यहां बैठे हो । तुम अपने घर में नहीं हो । क्योंकि तुम शसर्त जीव हो । जब तुम आध्यात्मिक हो, मुक्त, तब तुम भी विस्तार कर सकते हो । लेकिन श्री कृष्ण क्योंकि उनका भौतिक शरीर नहीं है , वे लाख रूपों में विस्तार कर सकते हैं । वे यहां बैठ सकते हैं, वे वहाँ बैठ सकते हैं । ईष्वर: सर्व भूतानाम् ह्रद-देशे अर्जुन तिष्ठति ([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]]) वे हर किसी के दिल में बैठे हैं । हर कोई, उनके विस्तार से । हालांकि वे एक हैं, वे अपना विस्तार कर सकते हैं । यह है ... क्योंकि वे महान हैं, जैसे सूरज महान है । इसलिए अगर तुम, दोपहर में तार भेजते हो अपने मित्र को जो पांच हजार मील की दूरी पर है, " सूरज कहाँ है?" वह कहेगा, "मेरे सिर के ऊपर ।" और तुम कहोगे कि सूरज मेरे सिर के ऊपर है । क्यूँ ? क्योंकि वह महान है । तो श्री कृष्ण महान होने के कारण, वे एक समय पर हर जगह रह सकते हैं । यही विस्तार है । तुम उदाहरण लो । सूरज क्या है? यह श्री कृष्ण की एक छोटी सी रचना है । अगर सूर्य एक साथ हर किसी के सिर पर रह सकता है, हालांकि, कोई पांच हजार, दस हजार मील दूर हो सकता है, श्री कृष्ण नहीं रह सकते हैं ? क्यों तुम अपने तर्क शक्ति का उपयोग नहीं करते हो ? श्री कृष्ण की तुलना में सूर्य अधिक महान है क्या ? नहीं । श्री कृष्ण लाखों सूर्य बना सकते हैं । अगर सूरज की ऐसी शक्ति है, तो क्यों श्री कृष्ण की नहीं हो सकती ? तो फिर तुम श्री कृष्ण को समझ नहीं पाए ।  
प्रभुपाद: हाँ । कृष्ण खुद का विस्तार कर सकते हैं । जैसे कि तुम यहां बैठे हो । तुम अपने घर में नहीं हो । क्योंकि तुम बद्ध जीव हो । जब तुम आध्यात्मिक हो, मुक्त, तब तुम भी विस्तार कर सकते हो । लेकिन कृष्ण क्योंकि उनका भौतिक शरीर नहीं है, वे लाख रूपों में विस्तार कर सकते हैं । वे यहां बैठ सकते हैं, वे वहाँ बैठ सकते हैं । ईश्वर: सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति ([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]]) | वे हर किसी के दिल में बैठे हैं । हर किसीके, उनके विस्तार से । हालांकि वे एक हैं, वे अपना विस्तार कर सकते हैं । यह है... क्योंकि वे महान हैं, जैसे सूर्य महान है । इसलिए अगर तुम, दोपहर में तार भेजते हो अपने मित्र को जो पांच हजार मील की दूरी पर है, "सूर्य कहाँ है?" वह कहेगा, "मेरे सिर के ऊपर ।" और तुम कहोगे कि सूर्य मेरे सिर के ऊपर है । क्यूँ ? क्योंकि वह महान है ।  


तो श्री कृष्ण, अखिलात्म-भूत: ( ब्र स ५।३७) , वे विस्तार कर सकते हैं, यह तुम पअोगे तेरहवें अध्याय में कि क्षेत्र-ज्ञम् चापि माम् विद्धि सर्व-क्षेत्रेषु भारत ([[Vanisource:BG 13.3|भ गी १३।३]]) क्षेत्र, क्षेत्र-ज्ञम जैसे कि तुम एक आत्मा हो तुम इस शरीर के मालिक हो । मैं इस शरीर का मालिक हूँ, तुम अपने शरीर के मालिक हो । लेकिन क्योंकि मैं इस शरीर में बैठा हूँ, ... लेकिन श्री कृष्ण सभी शरीरों के मालिक हैं क्योंकि वे हर जगह बैठा हैं । जैसे यह मेरा या किसी और का हो सकता है । वह घर उसका हो सकता है । लेकिन पूरा अमेरिका सरकारा का है । इसी प्रकार जहॉ महानता का सवाल है , यह संभव है, यह विस्तार । और क्योंकि मैं विस्तार नहीं कर सकता अपने अाप को, मेंढक दर्शन, इसलिए श्री कृष्ण भी विस्तार नहीं कर सकते हैं, यह बकवास है। हम अपनी स्थिति के अनुसार हमेशा सोचते हैं । श्री कृष्ण का विस्तार करना कैसे संभव है क्योंकि मैं विस्तार नहीं कर सकता । तुम क्या हो ? तुम्हारी स्थिति क्या है ? क्यों तुम श्री कृष्ण के साथ अपनी तुलना करते हो ? हाँ, श्री कृष्ण विस्तार कर सकते हैं । कई उदाहरण दिए गए हैं । यह मत सोचो क्योंकि तुम विस्तार नहीं कर सकते हो इसलिए श्री कृष्ण भी विस्तार नहीं कर सकते हैं । यही अतर्कसंगत दर्शन का दोष है । वे औपचारिक रूप से कहते हैं "ईश्वर महान है ।" लेकिन वास्तव में जब वह सोचता है "ओह, वे कितने महान होने चाहिए ? मैं ऐसा नहीं कर सकता श्री कृष्ण कैसे कर सकते हैं । " लेकिन औपचारिक रूप से, "ओह, ईश्वर महान हैं।" वे जानते नहीं है कि ईश्वर कितने महान हैं । यह हम भगवद गीता में पाऍगे । इसलिए भगवान का यह विज्ञान के बहुत उत्कृष्ट है । अखिलात्म भूत: ( ब्र स ५।३७): । अगर तुम जानना चाहते हो कि ईश्वर कितने महान हैं तो तुम इस वैदिक साहित्य से संकेत लो । कोई अन्य साहित्य नहीं ।  
तो कृष्ण महान होने के कारण, वे एक समय पर हर जगह रह सकते हैं । यही विस्तार है तुम उदाहरण लो सूर्य क्या  है? यह कृष्ण की एक छोटी सी रचना है अगर सूर्य एक साथ हर किसी के सिर पर रह सकता है, हालांकि, कोई पांच हजार, दस हजार मील दूर हो सकता है, कृष्ण नहीं रह सकते हैं ? क्यों तुम अपनी तर्क शक्ति का उपयोग नहीं करते हो ? कृष्ण की तुलना में सूर्य अधिक महान है क्या ? नहीं । कृष्ण लाखों सूर्य बना सकते हैं । अगर सूर्य की ऐसी शक्ति है, तो कृष्ण की क्यों नहीं हो सकती ? तो फिर तुम श्री कृष्ण को समझते नहीं हो ।  


भक्त: प्रभुपाद? हम जानते हैं कि श्रिल भक्तिसिद्धांत सरस्वती हमेशा बहुत सीधा बैठते थे और भगवद गीता में यहां कहा गया है कि हमें सीधा बैठना चाहिए यह हमारे ध्यान से जप करने में सहायता करेगा, अगर हम ध्यान करने की कोशिश करते हैं अगर हम सीधा बैठने की कोशिश करते हैं बिना किसी, (अस्पष्ट), जप करते समय.... ?
तो कृष्ण, अखिलात्म-भूत: (ब्रह्मसंहिता ५.३७) | वे विस्तार कर सकते हैं, यह तुम पअोगे तेरहवें अध्याय में कि क्षेत्र-ज्ञम चापि माम विद्धि सर्व-क्षेत्रेषु भारत ([[HI/BG 13.3|भ.गी. १३.३]]) । क्षेत्र, क्षेत्र-ज्ञम । जैसे कि तुम एक आत्मा हो । तुम इस शरीर के मालिक हो । मैं इस शरीर का मालिक हूँ, तुम अपने शरीर के मालिक हो । लेकिन क्योंकि मैं इस शरीर में बैठा हूँ... लेकिन कृष्ण सभी शरीरों के मालिक हैं क्योंकि वे हर जगह बैठे हैं । जैसे यह घर मेरा या किसी और का हो सकता है । वह घर उसका हो सकता है । लेकिन पूरा अमेरिका सरकारा का है ।


प्रभुपाद: नहीं, नहीं, किसी भी बैठने के आसन की आवश्यकता नहीं है । लेकिन अगर तुम सीधा बैठते हो, तो यह मदद करता है । यह तुम्हे मदद करता है । अगर तुम सीधे इस तरह से बैठ सकते हो, तो यह बहुत अच्छा होगा । यह मदद कर सकता है, हाँ, तुम ध्यान कर सकते हो, जप और सुनने में भी । इसलिए इन बातों कI आवश्यकता है । लेकिन हम इस बारे में विशेष रूप से बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन वे ब्रह्मचारी थे, वे उस तरह बैठ सकते थे । यही ब्रह्मचारी होने का संकेत है। वे एक झूठे ब्रह्मचारी नहीं थे, लेकिन वे असली ब्रह्मचारी थे । (समाप्त)
इसी प्रकार जहॉ महानता का सवाल है, यह संभव है, यह विस्तार । और क्योंकि मैं विस्तार नहीं कर सकता अपने अाप का, मेंढक दर्शन, इसलिए कृष्ण भी विस्तार नहीं कर सकते हैं, यह बकवास है । हम हमेशा अपनी स्थिति के अनुसार सोचते हैं । कृष्ण का विस्तार करना कैसे संभव है क्योंकि मैं विस्तार नहीं कर सकता । तुम क्या हो ? तुम्हारी स्थिति क्या है ? क्यों तुम कृष्ण के साथ अपनी तुलना करते हो ? हाँ, कृष्ण विस्तार कर सकते हैं । कई उदाहरण दिए गए हैं ।
 
यह मत सोचो क्योंकि तुम विस्तार नहीं कर सकते हो इसलिए कृष्ण भी विस्तार नहीं कर सकते हैं । यही अतर्कसंगत तत्वज्ञान का दोष है । वे औपचारिक रूप से कहते हैं "ईश्वर महान है ।" लेकिन वास्तव में जब वह सोचता है "ओह, वे कितने महान होने चाहिए ? मैं ऐसा नहीं कर सकता । कृष्ण कैसे कर सकते हैं ।" लेकिन औपचारिक रूप से, "ओह, ईश्वर महान हैं।" वे जानते नहीं है कि ईश्वर कितने महान हैं । यह हम भगवद गीता में पाऍगे । इसलिए भगवान का यह विज्ञान बहुत उत्कृष्ट है । अखिलात्म भूत: (ब्रह्मसंहिता ५.३७) । अगर तुम जानना चाहते हो कि ईश्वर कितने महान हैं तो तुम इस वैदिक साहित्य से संकेत लो । कोई अन्य साहित्य नहीं ।
 
भक्त: प्रभुपाद ? हम जानते हैं कि श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती हमेशा बहुत सीधा बैठते थे और भगवद गीता में यहां कहा गया है कि हमें सीधा बैठना चाहिए | यह हमारे ध्यान से जप करने में सहायता करेगा, अगर हम ध्यान करने की कोशिश करते हैं, अगर हम सीधा बैठने की कोशिश करते हैं बिना किसी, (अस्पष्ट), जप करते समय...?
 
प्रभुपाद: नहीं, नहीं, किसी भी बैठने के आसन की आवश्यकता नहीं है । लेकिन अगर तुम सीधा बैठते हो, तो यह मदद करता है । यह तुम्हे मदद करता है । अगर तुम सीधे इस तरह से बैठ सकते हो, तो यह बहुत अच्छा होगा । यह मदद कर सकता है, हाँ, तुम ध्यान कर सकते हो, जप और सुनने में भी । इसलिए इन बातों की आवश्यकता है । परन्तु हम इस बारे में विशेष रूप से बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं । लेकिन वे ब्रह्मचारी थे, वे उस तरह बैठ सकते थे । यही ब्रह्मचारी होने का संकेत है । वे एक झूठे ब्रह्मचारी नहीं थे, लेकिन वे असली ब्रह्मचारी थे । (समाप्त)  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 6.46-47 -- Los Angeles, February 21, 1969

भक्त: कृष्ण के पूर्ण विस्तार विष्णु के बारे में वो क्या है जो हमें समझना चाहिए ?

प्रभुपाद: हाँ । कृष्ण खुद का विस्तार कर सकते हैं । जैसे कि तुम यहां बैठे हो । तुम अपने घर में नहीं हो । क्योंकि तुम बद्ध जीव हो । जब तुम आध्यात्मिक हो, मुक्त, तब तुम भी विस्तार कर सकते हो । लेकिन कृष्ण क्योंकि उनका भौतिक शरीर नहीं है, वे लाख रूपों में विस्तार कर सकते हैं । वे यहां बैठ सकते हैं, वे वहाँ बैठ सकते हैं । ईश्वर: सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) | वे हर किसी के दिल में बैठे हैं । हर किसीके, उनके विस्तार से । हालांकि वे एक हैं, वे अपना विस्तार कर सकते हैं । यह है... क्योंकि वे महान हैं, जैसे सूर्य महान है । इसलिए अगर तुम, दोपहर में तार भेजते हो अपने मित्र को जो पांच हजार मील की दूरी पर है, "सूर्य कहाँ है?" वह कहेगा, "मेरे सिर के ऊपर ।" और तुम कहोगे कि सूर्य मेरे सिर के ऊपर है । क्यूँ ? क्योंकि वह महान है ।

तो कृष्ण महान होने के कारण, वे एक समय पर हर जगह रह सकते हैं । यही विस्तार है । तुम उदाहरण लो । सूर्य क्या है? यह कृष्ण की एक छोटी सी रचना है । अगर सूर्य एक साथ हर किसी के सिर पर रह सकता है, हालांकि, कोई पांच हजार, दस हजार मील दूर हो सकता है, कृष्ण नहीं रह सकते हैं ? क्यों तुम अपनी तर्क शक्ति का उपयोग नहीं करते हो ? कृष्ण की तुलना में सूर्य अधिक महान है क्या ? नहीं । कृष्ण लाखों सूर्य बना सकते हैं । अगर सूर्य की ऐसी शक्ति है, तो कृष्ण की क्यों नहीं हो सकती ? तो फिर तुम श्री कृष्ण को समझते नहीं हो ।

तो कृष्ण, अखिलात्म-भूत: (ब्रह्मसंहिता ५.३७) | वे विस्तार कर सकते हैं, यह तुम पअोगे तेरहवें अध्याय में । कि क्षेत्र-ज्ञम चापि माम विद्धि सर्व-क्षेत्रेषु भारत (भ.गी. १३.३) । क्षेत्र, क्षेत्र-ज्ञम । जैसे कि तुम एक आत्मा हो । तुम इस शरीर के मालिक हो । मैं इस शरीर का मालिक हूँ, तुम अपने शरीर के मालिक हो । लेकिन क्योंकि मैं इस शरीर में बैठा हूँ... लेकिन कृष्ण सभी शरीरों के मालिक हैं क्योंकि वे हर जगह बैठे हैं । जैसे यह घर मेरा या किसी और का हो सकता है । वह घर उसका हो सकता है । लेकिन पूरा अमेरिका सरकारा का है ।

इसी प्रकार जहॉ महानता का सवाल है, यह संभव है, यह विस्तार । और क्योंकि मैं विस्तार नहीं कर सकता अपने अाप का, मेंढक दर्शन, इसलिए कृष्ण भी विस्तार नहीं कर सकते हैं, यह बकवास है । हम हमेशा अपनी स्थिति के अनुसार सोचते हैं । कृष्ण का विस्तार करना कैसे संभव है क्योंकि मैं विस्तार नहीं कर सकता । तुम क्या हो ? तुम्हारी स्थिति क्या है ? क्यों तुम कृष्ण के साथ अपनी तुलना करते हो ? हाँ, कृष्ण विस्तार कर सकते हैं । कई उदाहरण दिए गए हैं ।

यह मत सोचो क्योंकि तुम विस्तार नहीं कर सकते हो इसलिए कृष्ण भी विस्तार नहीं कर सकते हैं । यही अतर्कसंगत तत्वज्ञान का दोष है । वे औपचारिक रूप से कहते हैं "ईश्वर महान है ।" लेकिन वास्तव में जब वह सोचता है "ओह, वे कितने महान होने चाहिए ? मैं ऐसा नहीं कर सकता । कृष्ण कैसे कर सकते हैं ।" लेकिन औपचारिक रूप से, "ओह, ईश्वर महान हैं।" वे जानते नहीं है कि ईश्वर कितने महान हैं । यह हम भगवद गीता में पाऍगे । इसलिए भगवान का यह विज्ञान बहुत उत्कृष्ट है । अखिलात्म भूत: (ब्रह्मसंहिता ५.३७) । अगर तुम जानना चाहते हो कि ईश्वर कितने महान हैं तो तुम इस वैदिक साहित्य से संकेत लो । कोई अन्य साहित्य नहीं ।

भक्त: प्रभुपाद ? हम जानते हैं कि श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती हमेशा बहुत सीधा बैठते थे और भगवद गीता में यहां कहा गया है कि हमें सीधा बैठना चाहिए | यह हमारे ध्यान से जप करने में सहायता करेगा, अगर हम ध्यान करने की कोशिश करते हैं, अगर हम सीधा बैठने की कोशिश करते हैं बिना किसी, (अस्पष्ट), जप करते समय...?

प्रभुपाद: नहीं, नहीं, किसी भी बैठने के आसन की आवश्यकता नहीं है । लेकिन अगर तुम सीधा बैठते हो, तो यह मदद करता है । यह तुम्हे मदद करता है । अगर तुम सीधे इस तरह से बैठ सकते हो, तो यह बहुत अच्छा होगा । यह मदद कर सकता है, हाँ, तुम ध्यान कर सकते हो, जप और सुनने में भी । इसलिए इन बातों की आवश्यकता है । परन्तु हम इस बारे में विशेष रूप से बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं । लेकिन वे ब्रह्मचारी थे, वे उस तरह बैठ सकते थे । यही ब्रह्मचारी होने का संकेत है । वे एक झूठे ब्रह्मचारी नहीं थे, लेकिन वे असली ब्रह्मचारी थे । (समाप्त)