HI/Prabhupada 0729 - एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: तो भक्तिविनोद ठाकुर ने गाया है, "जाय सकल विपद... (एक तरफ :) अब यह चल रहा है. जाय सकल विपद, गाय भक्तिविनोद, जखन आमियो नाम गाई, राधा कृष्ण बोलो बोलो, बोलो रे सोबाई चैतन्य महाप्रभु का प्रचार है कि सबसे यह अनुरोध करना कि हरे कृष्ण या राधा कृष्ण का जप करें | तो भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, "जब मैं हरे कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, तो सभी खतरे चले जाते हैं |" इसलिए यह जगह, यह भौतिक संसार, एक खतरनाक स्थान है | पदम् पदम् यद् विपदाम | विपद अर्थात खतरा, और पदम् पदम् अर्थात प्रत्येक पद पर | भौतिक संसार में आप अत्यंत आराम और शांतिपूर्ण जीवन की आशा नहीं कर सकते | यह संभव नहीं है | एकमात्र समाधान है चरणकमलों की शरण लेना... केवल मुरारी | मुरारी अर्थात कृष्ण |  
प्रभुपाद: तो भक्तिविनोद ठाकुर ने गाया है, "जाय सकल विपद... (एक तरफ:) अब यह चल रहा है | जाय सकल विपद, गाय भक्तिविनोद, जखन आमि ओ-नाम गाई, राधा कृष्ण बोलो बोलो, बोलो रे सोबाई | चैतन्य महाप्रभु का प्रचार है कि सबसे यह अनुरोध करना कि हरे कृष्ण या राधा कृष्ण का जप करें | तो भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, "जब मैं हरे कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, तो सभी खतरे चले जाते हैं |" इसलिए यह जगह, यह भौतिक संसार, एक खतरनाक स्थान है | पदम् पदम यद विपदाम | विपद अर्थात खतरा, और पदम पदम अर्थात प्रत्येक पद पर | भौतिक संसार में आप अत्यंत आराम और शांतिपूर्ण जीवन की आशा नहीं कर सकते | यह संभव नहीं है | एकमात्र समाधान है चरणकमलों की शरण लेना... केवल मुरारी | मुरारी अर्थात कृष्ण |  


:समाश्रित ये पदपल्ल्वप्लवं
:समाश्रित ये पद-पल्ल्व-प्लवम
:महतपदम् पुण्ययशो मुरारेह
:महतपदम पुण्ययशो मुरारे:
:भावाम्बुधिर वत्सपदम् परम पदम्
:भवाम्बुधिर वत्सपदम परम पदम
:पदम् पदम् यद् विपदाम न तेषाम  
:पदम पदम यद विपदाम न तेषाम  
:([[Vanisource:SB 10.14.58|श्री. भा. १०.१४.५८]])
:([[Vanisource:SB 10.14.58|श्रीमद भागवतम १०.१४.५८]])  


तो यह हमेशा होता है... यदि आप किसी बहुत अच्छी नौका में बैठे है, परन्तु फिर भी क्योंकि मंच पानी है आप नहीं सोच सकते कि नाव हमेशा बहुत आराम की है और किसी भी समस्या से रहित है | तो भौतिक संसार हमेशा समस्याओं से भरा है | यदि हम अपने आप का स्तर बनाये रखें, नियमित रूप से हरे कृष्ण का जप, तो खतरे खत्म हो जायेंगे | खतरे, वे भी स्थायी नहीं हैं | वे आते हैं और मौसम के बदलाव की तरह चले जाते हैं | कभी कभी बहुत गर्मी होती है; कभी कभी बहुत ठंड होती है | तो कृष्ण ने उपदेश दिया है की आगमापायिनो अनित्यास तांस तितिक्षस्व भारत ([[HI/BG 2.14|भ.गी. २.१४]]) |


तो यह हमेशा होता है...यदि आप किसी बहुत अच्छी नौका में बैठे है, परन्तु फिर भी मंच पानी है आप नहीं सोच सकते कि नाव हमेशा बहुत आराम की है और किसी भी समस्या से रहित है | तो भौतिक संसार हमेशा समस्याओं से भरा है | यदि हम अपने आप का स्तर बनाये रखें, नियमित रूप से हरे कृष्ण का जप, तो खतरे खत्म हो जायेंगे | खतरे, वे भी स्थायी नहीं हैं | वे आते हैं और मौसम के बदलाव की तरह चले जाते हैं | कभी कभी बहुत गर्मी होती है; कभी कभी बहुत ठंड होती है | तो कृष्ण ने उपदेश दिया है "आगमापायिनो अनित्यास्ताम्सतितिक्षस्व भारत" ([[Vanisource:BG 2.14|भ. गी. २.१४]]) तो हरे कृष्ण महा-मंत्र के जप से भटको नहीं, और भय नहीं करो क्योंकि कुछ खतरा है (अस्पष्ट) | कृष्ण के चरणकमल की शरण लो, हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, और खतरे ख़त्म हो जायेंगे | परन्तु हमें खतरनाक स्थिति पैदा नहीं करना चाहिए. स्थिति पहले से ही खतरनाक है | क्योंकि चैतन्य महाप्रभु आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में भी बहुत सतर्क थे | संन्यासीर अल्प छिद्र बहु कोरी माने | अन्य लोग नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं, और वे इतने सारे पाप कर रहे हैं, परन्तु कोई भी इन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लेता | परन्तु जब एक धर्म का समूह या एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है | इसलिए हम बहुत सावधान रहना चाहिए कि कुछ ऐसा ना करें जो जनता की आँखों में बढ़ाया जा सकता है | क्योंकि हम प्रचार कर रहे हैं | हम प्रचार कर रहे हैं, और हमेशा राक्षसी दल होता हैं जो हमें कठिनाई में डालना चाहते हैं | यह स्वाभाविक है | यहां तक ​​कि हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद महाराज का पिता होने के बावजूद भी, वह भी प्रह्लाद को कठिनाई में डाल रहा था | परन्तु यदि हम ईमानदार रहें और जप करते रहें तो ये खतरे ख़त्म हो जायेंगे | भय मत करो | अपने नियमों, गतिविधियों, कार्यक्रम को बंद मत करो | लगे रहो | कृष्ण का शरण लो, और धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा | तो मैं सोचता हूँ, आज के लिए इतना ही | अब समय समाप्त हो गया है | विग्रहों को आराम कराना चाहिए. हमें विलम्ब नहीं करना चाहिए | ठीक है | हरे कृष्ण |  
तो हरे कृष्ण महा-मंत्र के जप से भटको नहीं, और भय नहीं करो क्योंकि कुछ खतरा है (अस्पष्ट) | कृष्ण के चरणकमल की शरण लो, हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, और खतरे ख़त्म हो जायेंगे | परन्तु हमें खतरनाक स्थिति पैदा नहीं करनी चाहिए | स्थिति पहले से ही खतरनाक है | क्योंकि चैतन्य महाप्रभु आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में भी बहुत सतर्क थे | संन्यासीर अल्प छिद्र बहु कोरी माने | अन्य लोग नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं, और वे इतने सारे पाप कर रहे हैं, परन्तु कोई भी इन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लेता | परन्तु जब एक धर्म का समूह या एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है | इसलिए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए कि कुछ ऐसा ना करें जो जनता की आँखों में बढ़ाया जा सकता है | क्योंकि हम प्रचार कर रहे हैं |  


भक्त: जय प्रभुपाद |
हम प्रचार कर रहे हैं, और हमेशा राक्षसी दल होता हैं जो हमें कठिनाई में डालना चाहते हैं | यह स्वाभाविक है | यहां तक ​​कि हिरण्यकश्यपु, प्रह्लाद महाराज का पिता होने के बावजूद भी, वह भी प्रह्लाद को कठिनाई में डाल रहा था | परन्तु यदि हम ईमानदार रहें और जप करते रहें तो ये खतरे ख़त्म हो जायेंगे | भय मत करो | अपने नियम, गतिविधिया, कार्यक्रम को बंद मत करो | लगे रहो | कृष्ण की शरण लो, और धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा | तो मैं सोचता हूँ, आज के लिए इतना ही | अब समय समाप्त हो गया है | विग्रहों को आराम कराना चाहिए | हमें विलम्ब नहीं करना चाहिए |
 
ठीक है | हरे कृष्ण |
 
भक्त: जय प्रभुपाद |  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Arrival Address -- London, March 8, 1975

प्रभुपाद: तो भक्तिविनोद ठाकुर ने गाया है, "जाय सकल विपद... (एक तरफ:) अब यह चल रहा है | जाय सकल विपद, गाय भक्तिविनोद, जखन आमि ओ-नाम गाई, राधा कृष्ण बोलो बोलो, बोलो रे सोबाई | चैतन्य महाप्रभु का प्रचार है कि सबसे यह अनुरोध करना कि हरे कृष्ण या राधा कृष्ण का जप करें | तो भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, "जब मैं हरे कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, तो सभी खतरे चले जाते हैं |" इसलिए यह जगह, यह भौतिक संसार, एक खतरनाक स्थान है | पदम् पदम यद विपदाम | विपद अर्थात खतरा, और पदम पदम अर्थात प्रत्येक पद पर | भौतिक संसार में आप अत्यंत आराम और शांतिपूर्ण जीवन की आशा नहीं कर सकते | यह संभव नहीं है | एकमात्र समाधान है चरणकमलों की शरण लेना... केवल मुरारी | मुरारी अर्थात कृष्ण |

समाश्रित ये पद-पल्ल्व-प्लवम
महतपदम पुण्ययशो मुरारे:
भवाम्बुधिर वत्सपदम परम पदम
पदम पदम यद विपदाम न तेषाम
(श्रीमद भागवतम १०.१४.५८)

तो यह हमेशा होता है... यदि आप किसी बहुत अच्छी नौका में बैठे है, परन्तु फिर भी क्योंकि मंच पानी है आप नहीं सोच सकते कि नाव हमेशा बहुत आराम की है और किसी भी समस्या से रहित है | तो भौतिक संसार हमेशा समस्याओं से भरा है | यदि हम अपने आप का स्तर बनाये रखें, नियमित रूप से हरे कृष्ण का जप, तो खतरे खत्म हो जायेंगे | खतरे, वे भी स्थायी नहीं हैं | वे आते हैं और मौसम के बदलाव की तरह चले जाते हैं | कभी कभी बहुत गर्मी होती है; कभी कभी बहुत ठंड होती है | तो कृष्ण ने उपदेश दिया है की आगमापायिनो अनित्यास तांस तितिक्षस्व भारत (भ.गी. २.१४) |

तो हरे कृष्ण महा-मंत्र के जप से भटको नहीं, और भय नहीं करो क्योंकि कुछ खतरा है (अस्पष्ट) | कृष्ण के चरणकमल की शरण लो, हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, और खतरे ख़त्म हो जायेंगे | परन्तु हमें खतरनाक स्थिति पैदा नहीं करनी चाहिए | स्थिति पहले से ही खतरनाक है | क्योंकि चैतन्य महाप्रभु आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में भी बहुत सतर्क थे | संन्यासीर अल्प छिद्र बहु कोरी माने | अन्य लोग नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं, और वे इतने सारे पाप कर रहे हैं, परन्तु कोई भी इन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लेता | परन्तु जब एक धर्म का समूह या एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है | इसलिए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए कि कुछ ऐसा ना करें जो जनता की आँखों में बढ़ाया जा सकता है | क्योंकि हम प्रचार कर रहे हैं |

हम प्रचार कर रहे हैं, और हमेशा राक्षसी दल होता हैं जो हमें कठिनाई में डालना चाहते हैं | यह स्वाभाविक है | यहां तक ​​कि हिरण्यकश्यपु, प्रह्लाद महाराज का पिता होने के बावजूद भी, वह भी प्रह्लाद को कठिनाई में डाल रहा था | परन्तु यदि हम ईमानदार रहें और जप करते रहें तो ये खतरे ख़त्म हो जायेंगे | भय मत करो | अपने नियम, गतिविधिया, कार्यक्रम को बंद मत करो | लगे रहो | कृष्ण की शरण लो, और धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा | तो मैं सोचता हूँ, आज के लिए इतना ही | अब समय समाप्त हो गया है | विग्रहों को आराम कराना चाहिए | हमें विलम्ब नहीं करना चाहिए |

ठीक है | हरे कृष्ण |

भक्त: जय प्रभुपाद |