HI/Prabhupada 0742 - भगवान की अचिन्त्य शक्ति: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0742 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1975 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in India, Mayapur]]
[[Category:HI-Quotes - in India, Mayapur]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0741 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन का उद्देश्य है मानव समाज की मरम्मत|0741|HI/Prabhupada 0743 - अगर तुम आनंद के अपने कार्यक्रम का निर्माण करते हो तो तुम्हे थप्पड़ मिलेगा|0743}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|n0idyyQBlaI|भगवान की अचिन्त्य शक्ति - Prabhupāda 0742}}
{{youtube_right|Z-s6Z6acuKA|भगवान की अचिन्त्य शक्ति - Prabhupāda 0742}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>File:750403CC-MAYAPUR_clip1.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/750403CC-MAYAPUR_clip1.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
अब, इतने सारे सवाल हैं: "ये महासागर कैसे बने ?" वैज्ञानिक कहते हैं कि यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस का एक संयोजन है । तो कहाँ से यह गैस आया था ? जवाब यहाँ है । बेशक, गैस से पानी बाहर आता है। अगर तुम एक उबलते बर्तन को ढकते हो, भाप आता है, और तुम पानी के धब्बे पाअोगे । तो गैस से पानी आता है, और पानी से, गैस आता है। यह प्रकृति की तरीका है । लेकिन मूल पानी गर्भोदकशायि विष्णु के पसीने से अाता है । वैसे ही जैसे तुम्हे पसीना अाता है । तुम बना सकते हो, मान लो एक ग्राम या एक औंस, पानी अपने शारीरिक गर्मी के माध्यम से । यह हमें व्यावहारिक अनुभव मिला है । तो अगर तुम अपने शरीर से एक औंस का पानी उत्पादन कर सकते हो, क्यों भगवान अपने शरीर से लाखों मात्रा में पानी का उत्पादन नहीं कर सकते हैं ? यह समझने के लिए कहां कठिनाई है ? तुम एक छोटी सी आत्मा हो और तुम्हार एक छोटा सा शरीर है । तुम अपने पसीने से पानी के एक औंस का उत्पादन कर सकते हो । क्यों भगवान जिनका विशाल शरीर है, वे पानी का उत्पादन नहीं कर सकते हैं, गर्भोदकशायी, गर्भोदक पानी ? न मानने का कोई कारण नहीं है । इसे अचिन्त्य शक्ति कहा जाता है, अचिन्त्य शक्ति । जब तक हम भगवान की अचिन्त्य शक्ति को नहीं मानते हैं, भगवान का कोई मतलब नहीं है । अगर तुम सोचते हो कि "एक व्यक्ति" का मतलब है मेरी या तुम्हारी तरह..... हाँ, मेरी या तुम्हारी तरह, भगवान भी व्यक्ति हैं । यह वेदों में स्वीकार किया जाता है : नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम (कथा उपनिषद २।२।१३) कई चेतनाऍ हैं, जीव, और वे सभी अनन्त हैं । वे कई बहुवचन संख्या में हैं। नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम । लेकिन एक और नित्य है, नित्यो, नित्यानाम्, दो । एक विलक्षण संख्या है, और एक बहुवचन संख्या है । भेद क्या है ? भेद है एको यो बहुनाम् विदधाति कामान । वह विलक्षण संख्या विशेष रूप से इतनी शक्तिशाली है कि वे सभी बहुवचन संख्या की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रही है । बहुवचन संख्या, या जीव, अनन्ताय कल्पते,, वे ... तुम गिनती नहीं कर सकते कि कितने जीव हैं । लेकिन उन्हे विलक्षण संख्या बनाए रखती है । यही अंतर है। भगवान व्यक्ति हैं; तुम भी व्यक्ति हो; मैं भी व्यक्ति हूँ । यह शाश्वत हैं, जैसे भगवद गीता में कहा गया है । श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि, "तुम, मैं, ये सभी सैनिक और राजा जो यहॉ हैं, एसा नहीं है कि वे अतीत में मौजूद नहीं थे । वे वर्तमान में विद्यमान हैं, और वे भविष्य में मौजूद रहेंगे । " यही नित्यानाम चेतनानाम कहा जाता है ।
अब, इतने सारे सवाल हैं: "ये महासागर कैसे बने ?" वैज्ञानिक कहते हैं कि यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस का एक संयोजन है । तो कहाँ से यह गैस आया था ? जवाब यहाँ है । बेशक, गैस से पानी बाहर आता है। अगर तुम एक उबलते बर्तन को ढकते हो, भाप आता है, और तुम पानी के धब्बे पाअोगे । तो गैस से पानी आता है, और पानी से, गैस आता है । यह प्रकृति का तरीका है । लेकिन मूल पानी गर्भोदकशायी विष्णु के पसीने से अाता है । वैसे ही जैसे तुम्हे पसीना अाता है । तुम बना सकते हो, मान लो एक ग्राम या एक औंस, पानी अपने शारीरिक गर्मी के माध्यम से । यह हमें व्यावहारिक अनुभव मिला है ।  
 
तो अगर तुम अपने शरीर से एक औंस का पानी उत्पादन कर सकते हो, क्यों भगवान अपने शरीर से लाखों टन पानी का उत्पादन नहीं कर सकते ? यह समझने के लिए कहां कठिनाई है ? तुम एक छोटी सी आत्मा हो और तुम्हारा एक छोटा सा शरीर है । तुम अपने पसीने से पानी के एक औंस का उत्पादन कर सकते हो । क्यों भगवान जिनका विशाल शरीर है, वे पानी का उत्पादन नहीं कर सकते हैं, गर्भोदकशायी, गर्भोदक पानी ? न मानने का कोई कारण नहीं है । इसे अचिन्त्य शक्ति कहा जाता है, अचिन्त्य शक्ति । जब तक हम भगवान की अचिन्त्य शक्ति को नहीं मानते हैं, भगवान का कोई मतलब नहीं है ।  
 
अगर तुम सोचते हो कि "एक व्यक्ति" का मतलब है मेरी या तुम्हारी तरह... हाँ, मेरी या तुम्हारी तरह, भगवान भी व्यक्ति हैं । यह वेदों में स्वीकार किया जाता है: नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | कई चेतनाऍ हैं, जीव, और वे सभी अनन्त हैं । वे कई बहुवचन संख्या में हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम । लेकिन एक और नित्य है, नित्यो, नित्यानाम, दो । एक विलक्षण संख्या है, और एक बहुवचन संख्या है । भेद क्या है ? भेद है एको यो बहुनाम विदधाति कामान । वह विलक्षण संख्या विशेष रूप से इतनी शक्तिशाली है कि वे सभी बहुवचन संख्या की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रही है । बहुवचन संख्या, या जीव, अनन्ताय कल्पते, वे... तुम गिनती नहीं कर सकते की कितने जीव हैं । लेकिन उन्हे विलक्षण संख्या बनाए रखती है । यही अंतर है ।
 
भगवान व्यक्ति हैं; तुम भी व्यक्ति हो; मैं भी व्यक्ति हूँ । यह शाश्वत हैं, जैसे भगवद गीता में कहा गया है । कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि, "तुम, मैं, ये सभी सैनिक और राजा जो यहॉ हैं, एसा नहीं है कि वे अतीत में मौजूद नहीं थे । वे वर्तमान में विद्यमान हैं, और वे भविष्य में मौजूद रहेंगे ।" यही नित्यानाम चेतनानाम कहा जाता है ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on CC Adi-lila 1.10 -- Mayapur, April 3, 1975

अब, इतने सारे सवाल हैं: "ये महासागर कैसे बने ?" वैज्ञानिक कहते हैं कि यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस का एक संयोजन है । तो कहाँ से यह गैस आया था ? जवाब यहाँ है । बेशक, गैस से पानी बाहर आता है। अगर तुम एक उबलते बर्तन को ढकते हो, भाप आता है, और तुम पानी के धब्बे पाअोगे । तो गैस से पानी आता है, और पानी से, गैस आता है । यह प्रकृति का तरीका है । लेकिन मूल पानी गर्भोदकशायी विष्णु के पसीने से अाता है । वैसे ही जैसे तुम्हे पसीना अाता है । तुम बना सकते हो, मान लो एक ग्राम या एक औंस, पानी अपने शारीरिक गर्मी के माध्यम से । यह हमें व्यावहारिक अनुभव मिला है ।

तो अगर तुम अपने शरीर से एक औंस का पानी उत्पादन कर सकते हो, क्यों भगवान अपने शरीर से लाखों टन पानी का उत्पादन नहीं कर सकते ? यह समझने के लिए कहां कठिनाई है ? तुम एक छोटी सी आत्मा हो और तुम्हारा एक छोटा सा शरीर है । तुम अपने पसीने से पानी के एक औंस का उत्पादन कर सकते हो । क्यों भगवान जिनका विशाल शरीर है, वे पानी का उत्पादन नहीं कर सकते हैं, गर्भोदकशायी, गर्भोदक पानी ? न मानने का कोई कारण नहीं है । इसे अचिन्त्य शक्ति कहा जाता है, अचिन्त्य शक्ति । जब तक हम भगवान की अचिन्त्य शक्ति को नहीं मानते हैं, भगवान का कोई मतलब नहीं है ।

अगर तुम सोचते हो कि "एक व्यक्ति" का मतलब है मेरी या तुम्हारी तरह... हाँ, मेरी या तुम्हारी तरह, भगवान भी व्यक्ति हैं । यह वेदों में स्वीकार किया जाता है: नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | कई चेतनाऍ हैं, जीव, और वे सभी अनन्त हैं । वे कई बहुवचन संख्या में हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम । लेकिन एक और नित्य है, नित्यो, नित्यानाम, दो । एक विलक्षण संख्या है, और एक बहुवचन संख्या है । भेद क्या है ? भेद है एको यो बहुनाम विदधाति कामान । वह विलक्षण संख्या विशेष रूप से इतनी शक्तिशाली है कि वे सभी बहुवचन संख्या की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रही है । बहुवचन संख्या, या जीव, अनन्ताय कल्पते, वे... तुम गिनती नहीं कर सकते की कितने जीव हैं । लेकिन उन्हे विलक्षण संख्या बनाए रखती है । यही अंतर है ।

भगवान व्यक्ति हैं; तुम भी व्यक्ति हो; मैं भी व्यक्ति हूँ । यह शाश्वत हैं, जैसे भगवद गीता में कहा गया है । कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि, "तुम, मैं, ये सभी सैनिक और राजा जो यहॉ हैं, एसा नहीं है कि वे अतीत में मौजूद नहीं थे । वे वर्तमान में विद्यमान हैं, और वे भविष्य में मौजूद रहेंगे ।" यही नित्यानाम चेतनानाम कहा जाता है ।