HI/Prabhupada 0742 - भगवान की अचिन्त्य शक्ति

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Lecture on CC Adi-lila 1.10 -- Mayapur, April 3, 1975

अब, इतने सारे सवाल हैं: "ये महासागर कैसे बने ?" वैज्ञानिक कहते हैं कि यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस का एक संयोजन है । तो कहाँ से यह गैस आया था ? जवाब यहाँ है । बेशक, गैस से पानी बाहर आता है। अगर तुम एक उबलते बर्तन को ढकते हो, भाप आता है, और तुम पानी के धब्बे पाअोगे । तो गैस से पानी आता है, और पानी से, गैस आता है । यह प्रकृति का तरीका है । लेकिन मूल पानी गर्भोदकशायी विष्णु के पसीने से अाता है । वैसे ही जैसे तुम्हे पसीना अाता है । तुम बना सकते हो, मान लो एक ग्राम या एक औंस, पानी अपने शारीरिक गर्मी के माध्यम से । यह हमें व्यावहारिक अनुभव मिला है ।

तो अगर तुम अपने शरीर से एक औंस का पानी उत्पादन कर सकते हो, क्यों भगवान अपने शरीर से लाखों टन पानी का उत्पादन नहीं कर सकते ? यह समझने के लिए कहां कठिनाई है ? तुम एक छोटी सी आत्मा हो और तुम्हारा एक छोटा सा शरीर है । तुम अपने पसीने से पानी के एक औंस का उत्पादन कर सकते हो । क्यों भगवान जिनका विशाल शरीर है, वे पानी का उत्पादन नहीं कर सकते हैं, गर्भोदकशायी, गर्भोदक पानी ? न मानने का कोई कारण नहीं है । इसे अचिन्त्य शक्ति कहा जाता है, अचिन्त्य शक्ति । जब तक हम भगवान की अचिन्त्य शक्ति को नहीं मानते हैं, भगवान का कोई मतलब नहीं है ।

अगर तुम सोचते हो कि "एक व्यक्ति" का मतलब है मेरी या तुम्हारी तरह... हाँ, मेरी या तुम्हारी तरह, भगवान भी व्यक्ति हैं । यह वेदों में स्वीकार किया जाता है: नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | कई चेतनाऍ हैं, जीव, और वे सभी अनन्त हैं । वे कई बहुवचन संख्या में हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम । लेकिन एक और नित्य है, नित्यो, नित्यानाम, दो । एक विलक्षण संख्या है, और एक बहुवचन संख्या है । भेद क्या है ? भेद है एको यो बहुनाम विदधाति कामान । वह विलक्षण संख्या विशेष रूप से इतनी शक्तिशाली है कि वे सभी बहुवचन संख्या की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रही है । बहुवचन संख्या, या जीव, अनन्ताय कल्पते, वे... तुम गिनती नहीं कर सकते की कितने जीव हैं । लेकिन उन्हे विलक्षण संख्या बनाए रखती है । यही अंतर है ।

भगवान व्यक्ति हैं; तुम भी व्यक्ति हो; मैं भी व्यक्ति हूँ । यह शाश्वत हैं, जैसे भगवद गीता में कहा गया है । कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि, "तुम, मैं, ये सभी सैनिक और राजा जो यहॉ हैं, एसा नहीं है कि वे अतीत में मौजूद नहीं थे । वे वर्तमान में विद्यमान हैं, और वे भविष्य में मौजूद रहेंगे ।" यही नित्यानाम चेतनानाम कहा जाता है ।