HI/Prabhupada 0750 - क्यों माँ इतनी सम्मानीय है: Difference between revisions

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कोई स्कूल, कॉलेज या संस्था नहीं है जो अनुसंधान कर रही है कि क्या है मृत्यु संसार वर्तमनि । हम इतने पतीत हैं कि हम पूछताछ नहीं करते हैं। बस एक जानवर की तरह । पशु वध के लिए ले जाया जा रहा है, हर कोई जानता है । लेकिन पशु को पूछताछ करने की क्षमता नहीं है, "मैं कसाईखाना में क्यों लिए जा रहा हूँ ?" उसमें कोई क्षमता नहीं है। उसमे प्रतिरोध करने की कोई क्षमता नहीं है कसाईखाना में ले जाने के खिलाफ । मृत्यु संसार वर्तमनि । हम में से हर एक, हम कसाईखाना जा रहे हैं; लेकिन मनुष्य अगर वह बल के द्वारा क़साईख़ाना में ले जाया जा रहा है वह कम से कम है विरोध करेगा,, रोएगा, कि "क्यों यह आदमी मुझे क़साईख़ाने ले जा रहा है?" लेकिन पशु को कोई नहीं है ... हालांकि महसूस करता है, वह रोता है, आँखों में आँसू हैं, कभी कभी हमने देखा है । वे जानते हैं कि " हमें क़साईख़ाना ले जाया जा रहा है बिना किसी दोष् के । हमने कोई नुकसान नहीं किया है ।" जैसे गायकी तरह। वे घास खा रहे हैं, और बदले में तुम्हे सबसे अधिक पौष्टिक भोजन दे रहे हैं, दूध । लेकिन हम इतने क्रूर और इतना कृतघ्न हैं कि हम गाय को क़साईख़ाना ले जा रहे हैं । गाय, वैदिक सभ्यता के अनुसार, माँ मानी जाती है । माँ क्यों नहीं ? वह दूध की आपूर्ति कर रही है । क्यों माँ इतनी सम्मानीय है ? क्यों हम माँ को सम्मान प्रदान करते हैं ? क्योंकि जब तुम असहाय होते हो, कुछ भी नहीं खा सकते हो, मां स्तन से दूध की आपूर्ति करती है । माँ मतलब है जो भोजन की आपूर्ति कर । तो अगर गाय भोजन की आपूर्ति कर रही है, दूध - दूध इतना पौष्टिक और विटामिन से भरा हुआ है - और वह हमारी माता है । शास्त्र में सात मातऍ हैं, वैदिक सभ्यता के अनुसार । सात माताऍ । एक माँ असली माँ, जिसदी कोख से हम जन्म लेते हैं । अादौ माता । यह असली माँ है । गुरु-पतनी, आध्यात्मिक गुरु या शिक्षक की पत्नी, वह माँ है । अादौ माता गुरु-पतनी ब्राह्मणी। एक ब्राह्मण की पत्नी, वह भी मां है । दरअसल, एक सभ्य आदमी माँ के रूप में सभी महिलाओं को देखता है, अपनी पत्नी को छोड़कर । नहीं सात, आठ-सबको ।
कोई स्कूल, कॉलेज या संस्था नहीं है जो अनुसंधान कर रही है कि क्या है मृत्यु संसार वर्तमनि । हम इतने पतीत हैं कि हम पूछताछ नहीं करते हैं । बस एक जानवर की तरह । पशु वध के लिए ले जाया जा रहा है, हर कोई जानता है । लेकिन पशु के पास पूछताछ करने की क्षमता नहीं है, "मैं कसाईखाने में क्यों लिए जा रहा हूँ ?" उसमें कोई क्षमता नहीं है । उसमे प्रतिरोध करने की कोई क्षमता नहीं है कसाईखाने में ले जाने के खिलाफ । मृत्यु संसार वर्त्मनि । हम में से हर एक, हम कसाईखाने जा रहे हैं; लेकिन मनुष्य अगर वह बल के द्वारा क़साईख़ाने में ले जाया जा रहा है, वह कम से कम है विरोध करेगा, रोएगा, कि "क्यों यह आदमी मुझे क़साईख़ाने ले जा रहा है?" लेकिन पशु को कोई नहीं है... हालांकि वो महसूस करता है, वो रोता है, आँखों में आँसू हैं, कभी कभी हमने देखा है । वे जानते हैं कि "हमें क़साईख़ाने ले जाया जा रहा है बिना किसी दोष के । हमने कोई नुकसान नहीं किया है ।"  


:मातृवत पर दारेषु
जैसे गाय की तरह । वे घास खा रहे हैं, और बदले में तुम्हे सबसे अधिक पौष्टिक भोजन दे रहे हैं, दूध । लेकिन हम इतने क्रूर और इतने कृतघ्न हैं कि हम गाय को क़साईख़ाने ले जा रहे हैं । गाय, वैदिक सभ्यता के अनुसार, माँ मानी जाती है । माँ क्यों नहीं ? वह दूध की आपूर्ति कर रही है । क्यों माँ इतनी सम्मानीय है ? क्यों हम माँ को सम्मान प्रदान करते हैं ? क्योंकि जब तुम असहाय होते हो, कुछ भी नहीं खा सकते हो, मां स्तन से दूध की आपूर्ति करती है । माँ मतलब है जो भोजन की आपूर्ति कर रहा है । तो अगर गाय  भोजन की आपूर्ति कर रही है, दूध की - दूध इतना पौष्टिक और विटामिन से भरा हुआ है - और वह हमारी माता है । शास्त्र में सात मातऍ हैं, वैदिक सभ्यता के अनुसार । सात माताऍ । एक माँ असली माँ, जिसकी कोख से हम जन्म लेते हैं । अादौ माता । यह असली माँ है । गुरु-पत्नी, आध्यात्मिक गुरु या शिक्षक की पत्नी, वह माँ है । अादौ माता गुरु-पत्नी ब्राह्मणी । एक ब्राह्मण की पत्नी, वह भी मां है । दरअसल, एक सभ्य आदमी माँ के रूप में सभी महिलाओं को देखता है, अपनी पत्नी को छोड़कर । सात नहीं, आठ - सबको ।
 
:मातृवत पर दारेषु,
:पर द्रव्येषु लोष्ट्रवत  
:पर द्रव्येषु लोष्ट्रवत  
:(चाणक्य श्लोक १०)  
:(चाणक्य श्लोक १०)  


एक विद्वान का मतलब नहीं है कि कितनी डिग्री मिली है उसे । एक विद्वान व्यक्ति वह है जो माँ के रूप में सभी महिलाओं को देखता है । तो सभी महिलाओं के अलावा, कम से कम सात हैं जिन्हे हमें माँ के रूप में स्वीकार करना चाहिए । अादौ माता गुरु पत्नी ब्रह्मणी ब्रह्मणी । राज पत्निका, रानी । रनी माँ है, राज पत्निका । धेनु, गाय । गाय माँ है । और धात्री, नर्स, वह मांहै। धेनुर धात्री तथा पृथ्वी । और पृथ्वी, वह हमें भोजन की कई किस्में दे रही है । तो यह सिद्धांत है । इसलिए हमें बहुत ज्यादा दयालु होना चाहिए, कम से कम गायों के प्रति । अगर कोई मांस खाने का आदी है, वह किसी अन्य छोटे जानवर को मार सकता है जैसे बकरी, भेड़, सुअर, मछली । अन्य जानवर हैं । लेकिन भगवद गीता में विशेष रूप से यह उल्लेख किया गया है,  
एक विद्वान का मतलब वो नहीं है कि उसको कितनी डिग्री मिली है । एक विद्वान व्यक्ति वह है जो माँ के रूप में सभी महिलाओं को देखता है । तो सभी महिलाओं के अलावा, कम से कम सात हैं जिन्हे हमें माँ के रूप में स्वीकार करना चाहिए । अादौ माता गुरु पत्नी ब्राह्मणी ब्राह्मणी । राज पत्निका, रानी । रानी माँ है, राज पत्निका । धेनु, गाय । गाय माँ है । और धात्री, नर्स, वह मां है । धेनुर धात्री तथा पृथ्वी । और पृथ्वी, वह हमें भोजन की कई किस्में दे रही है । तो यह सिद्धांत है । इसलिए हमें बहुत ज्यादा दयालु होना चाहिए, कम से कम गायों के प्रति । अगर कोई मांस खाने का आदी है, वह किसी अन्य छोटे जानवर को मार सकता है जैसे बकरी, भेड़, सुअर, मछली । अन्य जानवर हैं । लेकिन भगवद गीता में विशेष रूप से यह उल्लेख किया गया है,  


:कृषि गो रक्ष्य वाणिज्ययम  
:कृषि गो रक्ष्य वाणिज्ययम  
:वैश्य कर्म स्वभाव जम  
:वैश्य कर्म स्वभाव जम  
:([[Vanisource:BG 18.44|भ गी १८।४४]])
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गो-रक्ष्य । यह समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण बात है गायों को संरक्षण देना और दूध पाना । और कई किसमें दूध से तैयार होती हैं, अंततः घी, बहुत महत्वपूर्ण बात है। भारत में अभी भी, हर घर में घी की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता है । लेकिन वे मांस-भक्षण नहीं करते हैं । मांस खाने वालों घी को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं ।
गो-रक्ष्य । यह समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण बात है, गायों को संरक्षण देना और दूध पाना । और दूध से कई व्यंजन तैयार होते हैं, अंततः घी, बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है । भारत में अभी भी, हर घर में घी की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता है । लेकिन वे मांस-भक्षण नहीं करते हैं । मांस खाने वाले घी को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं ।  
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Latest revision as of 19:13, 17 September 2020



Lecture on BG 9.10 -- Melbourne, April 26, 1976

कोई स्कूल, कॉलेज या संस्था नहीं है जो अनुसंधान कर रही है कि क्या है मृत्यु संसार वर्तमनि । हम इतने पतीत हैं कि हम पूछताछ नहीं करते हैं । बस एक जानवर की तरह । पशु वध के लिए ले जाया जा रहा है, हर कोई जानता है । लेकिन पशु के पास पूछताछ करने की क्षमता नहीं है, "मैं कसाईखाने में क्यों लिए जा रहा हूँ ?" उसमें कोई क्षमता नहीं है । उसमे प्रतिरोध करने की कोई क्षमता नहीं है कसाईखाने में ले जाने के खिलाफ । मृत्यु संसार वर्त्मनि । हम में से हर एक, हम कसाईखाने जा रहे हैं; लेकिन मनुष्य अगर वह बल के द्वारा क़साईख़ाने में ले जाया जा रहा है, वह कम से कम है विरोध करेगा, रोएगा, कि "क्यों यह आदमी मुझे क़साईख़ाने ले जा रहा है?" लेकिन पशु को कोई नहीं है... हालांकि वो महसूस करता है, वो रोता है, आँखों में आँसू हैं, कभी कभी हमने देखा है । वे जानते हैं कि "हमें क़साईख़ाने ले जाया जा रहा है बिना किसी दोष के । हमने कोई नुकसान नहीं किया है ।"

जैसे गाय की तरह । वे घास खा रहे हैं, और बदले में तुम्हे सबसे अधिक पौष्टिक भोजन दे रहे हैं, दूध । लेकिन हम इतने क्रूर और इतने कृतघ्न हैं कि हम गाय को क़साईख़ाने ले जा रहे हैं । गाय, वैदिक सभ्यता के अनुसार, माँ मानी जाती है । माँ क्यों नहीं ? वह दूध की आपूर्ति कर रही है । क्यों माँ इतनी सम्मानीय है ? क्यों हम माँ को सम्मान प्रदान करते हैं ? क्योंकि जब तुम असहाय होते हो, कुछ भी नहीं खा सकते हो, मां स्तन से दूध की आपूर्ति करती है । माँ मतलब है जो भोजन की आपूर्ति कर रहा है । तो अगर गाय भोजन की आपूर्ति कर रही है, दूध की - दूध इतना पौष्टिक और विटामिन से भरा हुआ है - और वह हमारी माता है । शास्त्र में सात मातऍ हैं, वैदिक सभ्यता के अनुसार । सात माताऍ । एक माँ असली माँ, जिसकी कोख से हम जन्म लेते हैं । अादौ माता । यह असली माँ है । गुरु-पत्नी, आध्यात्मिक गुरु या शिक्षक की पत्नी, वह माँ है । अादौ माता गुरु-पत्नी ब्राह्मणी । एक ब्राह्मण की पत्नी, वह भी मां है । दरअसल, एक सभ्य आदमी माँ के रूप में सभी महिलाओं को देखता है, अपनी पत्नी को छोड़कर । सात नहीं, आठ - सबको ।

मातृवत पर दारेषु,
पर द्रव्येषु लोष्ट्रवत
(चाणक्य श्लोक १०)

एक विद्वान का मतलब वो नहीं है कि उसको कितनी डिग्री मिली है । एक विद्वान व्यक्ति वह है जो माँ के रूप में सभी महिलाओं को देखता है । तो सभी महिलाओं के अलावा, कम से कम सात हैं जिन्हे हमें माँ के रूप में स्वीकार करना चाहिए । अादौ माता गुरु पत्नी ब्राह्मणी । ब्राह्मणी । राज पत्निका, रानी । रानी माँ है, राज पत्निका । धेनु, गाय । गाय माँ है । और धात्री, नर्स, वह मां है । धेनुर धात्री तथा पृथ्वी । और पृथ्वी, वह हमें भोजन की कई किस्में दे रही है । तो यह सिद्धांत है । इसलिए हमें बहुत ज्यादा दयालु होना चाहिए, कम से कम गायों के प्रति । अगर कोई मांस खाने का आदी है, वह किसी अन्य छोटे जानवर को मार सकता है जैसे बकरी, भेड़, सुअर, मछली । अन्य जानवर हैं । लेकिन भगवद गीता में विशेष रूप से यह उल्लेख किया गया है,

कृषि गो रक्ष्य वाणिज्ययम
वैश्य कर्म स्वभाव जम
(भ.गी. १८.४४)

गो-रक्ष्य । यह समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण बात है, गायों को संरक्षण देना और दूध पाना । और दूध से कई व्यंजन तैयार होते हैं, अंततः घी, बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है । भारत में अभी भी, हर घर में घी की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता है । लेकिन वे मांस-भक्षण नहीं करते हैं । मांस खाने वाले घी को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं ।