HI/Prabhupada 0754 - बहुत शिक्षाप्रद है नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष: Difference between revisions
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आज भगवान | आज भगवान नरसिंह देव का आविर्भाव दिन है । इसे नरसिंह चतुर्दशी कहा जाता है । तो मुझे खुशी है कि इतने कम समय मे, इन लडको ने अच्छी तरह से पात्र निभाना सीख लीया है, और विशेष रूप से मैं श्री हिरण्यकश्यपु का शुक्रिया अदा करुंगा । (तालियां) श्री हिरण्यकश्यपु ने बहुत अच्छी तरह से उनकी भूमिका निभाई है । तो यह बहुत शिक्षाप्रद है - नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष । प्रहलाद महाराज की यह कहानी सदा सच है । नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष हमेशा रहा है । | ||
यदि एक व्यक्ति भगवद भावनाभावित, कृष्ण भावनाभावित हो जाता है, तो वह कई दुश्मन बना लेता है । दुनिया राक्षसों से भरी है । कृष्ण के भक्त की क्या बात करे, यहा तक कृष्ण के भी, जब वे व्यक्तिगत रूप से आये थे, तब उन्होने कितने राक्षसो को मारा । उनके मामा, उनके माता के भाई, बहुत नज़दीकी संबंधी थे । फिर भी, वह कृष्ण को मारना चाहता था । जेैसे हि देवकी को कोई पुत्र होता, वह तुरन्त उसे मार डालता, वह नहीं जानता था की, कृष्ण कौनसे वाले होंगे । भविष्यवाणी थी की उसकी बहन का आठवां पुत्र कंस को मार डालेगा । तो उसने सभी बच्चों को मारना शुरू कर दिया । अंत में, कृष्ण आये । लेकिन वह कृष्ण को मार नहीं सका । कृष्ण ने उसे मार डाला । | |||
तो कोई भी भगवान को मार नहीं सकता । राक्षस, नास्तिक समाज, वे बस भगवान को मारना चाहते हैं । लेकिन वास्तव में, भगवान कभी मारे नहीं जाते, लेकिन दानव भगवान द्वारा मार दिए जाते है । यही प्रकृति का नियम है । यह प्रहलाद महाराज के जीवन का निर्देश है । हम यह समज सकते है, जैसे यह भगवद गीता में कहा गया है, मृत्यु सर्व हरश चाहम ([[HI/BG 10.34|भ.गी. १०.३४]]) । भगवद गीता में यह कहा गया है की "मैं मृत्यु भी हूँ तुम्हारे पास जो कुछ भी है उसे ले लेने के रूप में |" हमे हमारी भौतिक चीजो, भौतिक वस्तुओ को पाने का कितना घमंड है, पर जब कृष्ण आते है... प्रहलाद महाराज ने देखा । उनके पिता हिरण्यकश्यपु ने भी नरसिंह देव को देखा । हिरण्यकश्यपु भौतिकवादी, वैज्ञानिकों की तरह बहुत होशियार था, और चालाक था । बड़ी चतुराई से वे लोग इतनी सारी चीज़ो की खोज कर रहे हैं । क्या विचार है ? विचार है "हम हमेशा जीवित रहेंगे और अधिक से अधिक इन्द्रिय संतुष्टि करेंगे ।" इसे सभ्यता की नास्तिक उन्नति कहा जाता है । | |||
तो हिरण्यकश्यपु बिलकुल एक भौतिकवादी था । हिरण्य का मतलब है स्वर्ण, और कशिपु का मतलब है नरम बिस्तर, तकिया । तो भौतिकवादी व्यक्ति, वे सोने और यौन जीवन का आनंद लेने के बहुत ज्यादा शौकीन हैं । यही उनका कार्य है । तो हिरण्यकश्यपु इस भौतिकवादी व्यक्ति का विशिष्ट उदाहरण है । और प्रहलाद महाराज, प्रकृष्ट-रूपेण आहलाद । आहलाद का मतलब है दिव्य आनंद । आनंद-चिन्मय-रस-प्रतीभाविताभी (ब्रह्मसंहिता ५.३७) । जीव की असली पहचान प्रहलाद, परमानंद है । लेकिन भौतिक चीज़ो के संग के कारण, हम जीवन की दयनीय हालत में हैं । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Nrsimha-caturdasi Lord Nrsimhadeva's Appearance Day -- Bombay, May 5, 1974
आज भगवान नरसिंह देव का आविर्भाव दिन है । इसे नरसिंह चतुर्दशी कहा जाता है । तो मुझे खुशी है कि इतने कम समय मे, इन लडको ने अच्छी तरह से पात्र निभाना सीख लीया है, और विशेष रूप से मैं श्री हिरण्यकश्यपु का शुक्रिया अदा करुंगा । (तालियां) श्री हिरण्यकश्यपु ने बहुत अच्छी तरह से उनकी भूमिका निभाई है । तो यह बहुत शिक्षाप्रद है - नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष । प्रहलाद महाराज की यह कहानी सदा सच है । नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष हमेशा रहा है ।
यदि एक व्यक्ति भगवद भावनाभावित, कृष्ण भावनाभावित हो जाता है, तो वह कई दुश्मन बना लेता है । दुनिया राक्षसों से भरी है । कृष्ण के भक्त की क्या बात करे, यहा तक कृष्ण के भी, जब वे व्यक्तिगत रूप से आये थे, तब उन्होने कितने राक्षसो को मारा । उनके मामा, उनके माता के भाई, बहुत नज़दीकी संबंधी थे । फिर भी, वह कृष्ण को मारना चाहता था । जेैसे हि देवकी को कोई पुत्र होता, वह तुरन्त उसे मार डालता, वह नहीं जानता था की, कृष्ण कौनसे वाले होंगे । भविष्यवाणी थी की उसकी बहन का आठवां पुत्र कंस को मार डालेगा । तो उसने सभी बच्चों को मारना शुरू कर दिया । अंत में, कृष्ण आये । लेकिन वह कृष्ण को मार नहीं सका । कृष्ण ने उसे मार डाला ।
तो कोई भी भगवान को मार नहीं सकता । राक्षस, नास्तिक समाज, वे बस भगवान को मारना चाहते हैं । लेकिन वास्तव में, भगवान कभी मारे नहीं जाते, लेकिन दानव भगवान द्वारा मार दिए जाते है । यही प्रकृति का नियम है । यह प्रहलाद महाराज के जीवन का निर्देश है । हम यह समज सकते है, जैसे यह भगवद गीता में कहा गया है, मृत्यु सर्व हरश चाहम (भ.गी. १०.३४) । भगवद गीता में यह कहा गया है की "मैं मृत्यु भी हूँ तुम्हारे पास जो कुछ भी है उसे ले लेने के रूप में |" हमे हमारी भौतिक चीजो, भौतिक वस्तुओ को पाने का कितना घमंड है, पर जब कृष्ण आते है... प्रहलाद महाराज ने देखा । उनके पिता हिरण्यकश्यपु ने भी नरसिंह देव को देखा । हिरण्यकश्यपु भौतिकवादी, वैज्ञानिकों की तरह बहुत होशियार था, और चालाक था । बड़ी चतुराई से वे लोग इतनी सारी चीज़ो की खोज कर रहे हैं । क्या विचार है ? विचार है "हम हमेशा जीवित रहेंगे और अधिक से अधिक इन्द्रिय संतुष्टि करेंगे ।" इसे सभ्यता की नास्तिक उन्नति कहा जाता है ।
तो हिरण्यकश्यपु बिलकुल एक भौतिकवादी था । हिरण्य का मतलब है स्वर्ण, और कशिपु का मतलब है नरम बिस्तर, तकिया । तो भौतिकवादी व्यक्ति, वे सोने और यौन जीवन का आनंद लेने के बहुत ज्यादा शौकीन हैं । यही उनका कार्य है । तो हिरण्यकश्यपु इस भौतिकवादी व्यक्ति का विशिष्ट उदाहरण है । और प्रहलाद महाराज, प्रकृष्ट-रूपेण आहलाद । आहलाद का मतलब है दिव्य आनंद । आनंद-चिन्मय-रस-प्रतीभाविताभी (ब्रह्मसंहिता ५.३७) । जीव की असली पहचान प्रहलाद, परमानंद है । लेकिन भौतिक चीज़ो के संग के कारण, हम जीवन की दयनीय हालत में हैं ।