HI/Prabhupada 0850 - अगर कुछ पैसे मिलें, तो पुस्तकें छापो: Difference between revisions

 
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हमारी कोई नई खोज नहीं है। (हंसी) हम विनिर्माण नहीं करते हैं । यह हमारी प्रक्रिया है । हम पूर्व के अाचार्यौं के निर्देश का पालन करते हैं, बस । हमारा आंदोलन बहुत आसान है क्योंकि हमें कुछ निर्माण करने की जऱूरत नहीं है । हम केवल शब्दों को दोहराते हैं और पूर्व अाचर्यों द्वारा दिए गए निर्देश का । श्री कृष्ण नें ब्रह्मा को निर्देश दिया, ब्रह्मा नें नारद को निर्देश दिए, नारद, नें व्यासदेव को निर्देश दिया, व्यासदेव नें मध्वाचर्य को निर्देश दिया, और इस तरह से फिर माधवेंद्र पुरी, ईश्वर पुरी, श्री चैतन्य महाप्रभु, फिर छह गोस्वामी, फिर श्रीनिवास आचार्य, कविराज गोस्वामी, नरोत्तमदास ठाकुर, विश्वनाथ चक्रवर्ति, जगन्नाथ दास बाबाजी, भक्तिविनोद ठाकुर, गौरकिशोर दास बाबाजी, भक्तिसिद्धांत सरस्वती, और फिर हम भी वही कर रहे हैं। कोई अंतर नहीं है। यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन की विशिष्ट प्रक्रिया है। तुम दैनिक गा रहे हो, गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, चित्तेते कोरिया अाइक्य, आर न कोरिहो मने आशा । बहुत ही साधारण बात। हम गुरु-परम्परा के माध्यम से दिव्य ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। तो हमें केवल गुरु से शिक्षा लेनी है, अौर अगर हम वह निष्पादित करते हैं अपने दिल और जान से, यह सफलता है। यह व्यावहारिक है। मेरी कोई व्यक्तिगत योग्यता नहीं है, लेकिन मैंने केवल अपने गुरु को संतुष्ट करने की कोशिश की, बस । मेरे गुरु महाराज नें मुझसे कहा कि "यदि तुम्हे कुछ पैसा मिलते हैं, तो तुम किताबें छापो ।" तो एक निजी बैठक हुई, बातचीत वहाँ मेरे महत्वपूर्ण गुरुभाई भी थे । यह राधा-कुण्ड में था । तो गुरु महाराज मुझसे एसे बात कर रहे थे "जब से हमें यह बाघबाज़ार संगमरमर का मंदिर मिला है,, इतने सारे मतभेदे हुए हैं, और हर कोई सोच रहा है कि कौन इस कमरे या उस कमरे में रहेगा । मैं चाहता हूँ इसलिए, कि इस मंदिर और संगमरमर को बेचूँ अौर कुछ पुस्तक छापूँ ।" हाँ। तो मैनें उनकी ये बात ग्रहण की, कि वे पुस्तकों के बहुत शौकीन हैं । और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मुझसे कहा कि "यदि तुम्हे कुछ पैसे मिलते हैं, तो किताबें छापो ।" इसलिए मैं इस बात पर जोर देता हूँ: " कहां हैं किताब ? कहां है किताब ? कहां है किताब ?" तो कृपया मेरी मदद करो । यह मेरा अनुरोध है । जितनी भाषाओं में हो सके किताबें छापो अौर वितरित करो दुनिया भर में । तब कृष्ण भावनामृत आंदोलन स्वचालित रूप से बढेगा । अब शिक्षित, विद्वान, वे हमारे आंदोलन की प्रशंसा कर रहे हैं किताबें पढ़ने के द्वारा, व्यावहारिक परिणाम देखकर । डॉ स्टिलसन जूढह, उन्होंने एक किताब लिखी है शायद तुम जानते हो, कृष्ण भावना ... हरे कृष्ण और काउंटरकल्चर, हमारे आंदोलन के बारे में एक बहुत अच्छी किताब है, और वे महत्व दे रहे हैं । उन्होंने स्वीकार किया है कि " स्वामीजी, अापने अद्भुत काम किया है " क्योंकि अापने नशा करने वालों को कृष्ण के भक्त बना दिया है और वे मानवता की सेवा के लिए तैयार हैं। "  
हमारी कोई नई खोज नहीं है । (हंसी) हम विनिर्माण नहीं करते हैं । यह हमारी प्रक्रिया है । हम पूर्व के अाचार्यौं के निर्देश का पालन करते हैं, बस । हमारा आंदोलन बहुत आसान है क्योंकि हमें कुछ निर्माण करने की ज़रूरत नहीं है । हम केवल शब्दों को दोहराते हैं और पूर्व के अाचर्यों द्वारा दिए गए निर्देश का । कृष्ण नें ब्रह्मा को निर्देश दिया, ब्रह्मा नें नारद को निर्देश दिया, नारद, नें व्यासदेव को निर्देश दिया, व्यासदेव नें मध्वाचार्य को निर्देश दिया, और इस तरह से, फिर माधवेंद्र पुरी, ईश्वर पुरी, श्री चैतन्य महाप्रभु, फिर छह गोस्वामी, फिर श्रीनिवास आचार्य, कविराज गोस्वामी, नरोत्तमदास ठाकुर, विश्वनाथ चक्रवर्ति, जगन्नाथ दास बाबाजी, भक्तिविनोद ठाकुर, गौरकिशोर दास बाबाजी, भक्तिसिद्धांत सरस्वती, और फिर हम भी वही कर रहे हैं । कोई अंतर नहीं है ।
 
यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन की विशिष्ट प्रक्रिया है। तुम दैनिक गा रहे हो, गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, चित्तेते कोरिया अाइक्य, आर न कोरिहो मने आशा । बहुत ही साधारण बात । हम गुरु-परम्परा के माध्यम से दिव्य ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं । तो हमें केवल गुरु से शिक्षा लेनी है, अौर अगर हम वह निष्पादित करते हैं अपने दिल और जान से, यह सफलता है । यह व्यावहारिक है ।
 
मेरी कोई व्यक्तिगत योग्यता नहीं है, लेकिन मैंने केवल अपने गुरु को संतुष्ट करने की कोशिश की, बस । मेरे गुरु महाराज नें मुझसे कहा की "यदि तुम्हे कुछ पैसा मिलते हैं, तो तुम किताबें छापो ।" तो एक निजी बैठक हुई, बातचीत, वहाँ मेरे महत्वपूर्ण गुरुभाई भी थे । यह राधा-कुण्ड में था । तो गुरु महाराज मुझसे एसे बात कर रहे थे "जब से हमें यह बाघबाज़ार संगमरमर का मंदिर मिला है, इतने सारे मतभेद हुए हैं, और हर कोई सोच रहा है कि कौन इस कमरे या उस कमरे में रहेगा । मैं चाहता हूँ इसलिए, की इस मंदिर और संगमरमर को बेचूँ अौर कुछ पुस्तक छापूँ ।" हाँ । तो मैनें उनकी ये बात ग्रहण की, की वे पुस्तकों के बहुत शौकीन हैं । और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मुझसे कहा की "यदि तुम्हे कुछ पैसे मिलते हैं, तो किताबें छापो ।"  
 
इसलिए मैं इस बात पर जोर देता हूँ: "कहां हैं किताब ? कहां है किताब ? कहां है किताब ?" तो कृपया मेरी मदद करो । यह मेरा अनुरोध है । जितनी भाषाओं में हो सके किताबें छापो अौर वितरित करो दुनिया भर में । फिर कृष्ण भावनामृत आंदोलन स्वचालित रूप से बढेगा । अब शिक्षित, विद्वान, वे हमारे आंदोलन की प्रशंसा कर रहे हैं, किताबें पढ़ने से, व्यावहारिक परिणाम देखकर । डॉ स्टिलसन जुड़ा, उन्होंने एक किताब लिखी है शायद तुम जानते हो, कृष्ण भावना... हरे कृष्ण और काउंटरकल्चर, हमारे आंदोलन के बारे में एक बहुत अच्छी किताब है, और वे महत्व दे रहे हैं । उन्होंने स्वीकार किया है की "स्वामीजी, अापने अद्भुत काम किया है क्योंकि अापने नशा करने वालों को कृष्ण का भक्त बना दिया है, और वे मानवता की सेवा के लिए तैयार हैं ।"  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



750620d - Lecture Arrival - Los Angeles

हमारी कोई नई खोज नहीं है । (हंसी) हम विनिर्माण नहीं करते हैं । यह हमारी प्रक्रिया है । हम पूर्व के अाचार्यौं के निर्देश का पालन करते हैं, बस । हमारा आंदोलन बहुत आसान है क्योंकि हमें कुछ निर्माण करने की ज़रूरत नहीं है । हम केवल शब्दों को दोहराते हैं और पूर्व के अाचर्यों द्वारा दिए गए निर्देश का । कृष्ण नें ब्रह्मा को निर्देश दिया, ब्रह्मा नें नारद को निर्देश दिया, नारद, नें व्यासदेव को निर्देश दिया, व्यासदेव नें मध्वाचार्य को निर्देश दिया, और इस तरह से, फिर माधवेंद्र पुरी, ईश्वर पुरी, श्री चैतन्य महाप्रभु, फिर छह गोस्वामी, फिर श्रीनिवास आचार्य, कविराज गोस्वामी, नरोत्तमदास ठाकुर, विश्वनाथ चक्रवर्ति, जगन्नाथ दास बाबाजी, भक्तिविनोद ठाकुर, गौरकिशोर दास बाबाजी, भक्तिसिद्धांत सरस्वती, और फिर हम भी वही कर रहे हैं । कोई अंतर नहीं है ।

यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन की विशिष्ट प्रक्रिया है। तुम दैनिक गा रहे हो, गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, चित्तेते कोरिया अाइक्य, आर न कोरिहो मने आशा । बहुत ही साधारण बात । हम गुरु-परम्परा के माध्यम से दिव्य ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं । तो हमें केवल गुरु से शिक्षा लेनी है, अौर अगर हम वह निष्पादित करते हैं अपने दिल और जान से, यह सफलता है । यह व्यावहारिक है ।

मेरी कोई व्यक्तिगत योग्यता नहीं है, लेकिन मैंने केवल अपने गुरु को संतुष्ट करने की कोशिश की, बस । मेरे गुरु महाराज नें मुझसे कहा की "यदि तुम्हे कुछ पैसा मिलते हैं, तो तुम किताबें छापो ।" तो एक निजी बैठक हुई, बातचीत, वहाँ मेरे महत्वपूर्ण गुरुभाई भी थे । यह राधा-कुण्ड में था । तो गुरु महाराज मुझसे एसे बात कर रहे थे "जब से हमें यह बाघबाज़ार संगमरमर का मंदिर मिला है, इतने सारे मतभेद हुए हैं, और हर कोई सोच रहा है कि कौन इस कमरे या उस कमरे में रहेगा । मैं चाहता हूँ इसलिए, की इस मंदिर और संगमरमर को बेचूँ अौर कुछ पुस्तक छापूँ ।" हाँ । तो मैनें उनकी ये बात ग्रहण की, की वे पुस्तकों के बहुत शौकीन हैं । और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मुझसे कहा की "यदि तुम्हे कुछ पैसे मिलते हैं, तो किताबें छापो ।"

इसलिए मैं इस बात पर जोर देता हूँ: "कहां हैं किताब ? कहां है किताब ? कहां है किताब ?" तो कृपया मेरी मदद करो । यह मेरा अनुरोध है । जितनी भाषाओं में हो सके किताबें छापो अौर वितरित करो दुनिया भर में । फिर कृष्ण भावनामृत आंदोलन स्वचालित रूप से बढेगा । अब शिक्षित, विद्वान, वे हमारे आंदोलन की प्रशंसा कर रहे हैं, किताबें पढ़ने से, व्यावहारिक परिणाम देखकर । डॉ स्टिलसन जुड़ा, उन्होंने एक किताब लिखी है शायद तुम जानते हो, कृष्ण भावना... हरे कृष्ण और काउंटरकल्चर, हमारे आंदोलन के बारे में एक बहुत अच्छी किताब है, और वे महत्व दे रहे हैं । उन्होंने स्वीकार किया है की "स्वामीजी, अापने अद्भुत काम किया है क्योंकि अापने नशा करने वालों को कृष्ण का भक्त बना दिया है, और वे मानवता की सेवा के लिए तैयार हैं ।"