HI/Prabhupada 0851 - चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है: Difference between revisions

 
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निताई: "इस प्रकार स्थिर होकर, हमें परमात्मा को सेवा प्रदान करना चाहिए जो हर किसी के ह्रदय में हैं अपनी सर्वव्यापक्ता से । क्योंकि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, शाश्वत और असीमित, वे जीवन का अंतिम लक्ष्य हैं, और उनकी पूजा करके हम बद्ध जीवन के कारण को समाप्त कर सकते हैं ।"
निताई: "इस प्रकार स्थिर होकर, हमें परमात्मा को सेवा प्रदान करना चाहिए जो हर किसी के ह्रदय में हैं अपनी सर्वव्यापक्ता से । क्योंकि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, शाश्वत और असीमित, वे जीवन का अंतिम लक्ष्य हैं, और उनकी पूजा करके हम बद्ध जीवन के कारण को समाप्त कर सकते हैं ।"  


प्रभुपाद: एवं स्व चित्ते स्वत एव सिद्ध अात्मा प्रियो अर्थो भगवान अनन्त: तम निवृत्तो नियतार्थो भजते संसार हेतुपरमश च यत्र ([[Vanisource:SB 2.2.6|श्री भ २।२।६]])
प्रभुपाद:  


तो कल रात हमने चर्चा की कि क्यों किसीको अपने पोषण के बारे में चिंता करनी चाहिए और उस व्यक्ति से भीख माँगनी चाहिए जो अपने धन पर बहुत गर्व करता है । वह अपने खुद के रहने की व्यवस्था कर सकता है । जीवन की हालत है अाहार निद्रा भय मैथुनम (हितोपदेश २५) | जब तक व्यक्ति सन्यास अाश्रम में है, तो... उसे सब से पहले यौन जीवन और भय को त्यागना होगा । यही त्याग है । जैसे यहॉ कई ब्रह्मचारी, सन्यासी हैं । उन्हे त्याग की भावना में होना चाहिए, विशेष रूप से सन्यासी, और वानप्रस्थ, ब्रह्मचारी । त्याग । सबसे पहला त्याग है इन्द्रिय संतुष्टि का त्याग । इसलिए सन्यासी को स्वामी कहा जाता है । स्वामी का अर्थ है मालिक । या गोस्वामी । "तो, गो का मतलब "इन्द्रियॉ," और स्वामी का मतलब "मालिक" । जो अपनी इन्द्रियों का मालिक बन गया है, वह गोस्वामी या स्वामी है । अन्यथा, अगर कोई अपनी इन्द्रियों का दास है, वह कैसे स्वामी या गोस्वामी हो सकता है ? हर शब्द का अर्थ है । तो हमें त्याग करना होगा । यह भौतिक जीवन है । भौतिक जीवन मतलब हर कोई इन्द्रिय संतुष्टि में संलग्न है, और यह सभ्यता की उन्नति के रूप में लिया जाता है । वही इन्द्रिय संतुष्टि अलग तरीके से, वही नशा, वही मांसाहार, वही यौन जीवन; या तो क्लब या नग्न क्लब या इस क्लब में जाना । इसलिए कार्य वही है । पुन: पुनश चर्वित चर्वणानाम ([[Vanisource:SB 7.5.30|श्री भ ७।५।३०]]), चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है । तो सन्यास मतलब रोकना; रोकना नहीं लेकिन कम से कम नियंत्रण में रखना इन्द्रिय संतुष्टि को । यही सन्यास है । और सन्यास भावना के बिना तुम आध्यात्मिक दुनिया में नहीं जा सकते । जैसे अगर तुम्हारा, तुम्हारा हाथ वहॉ है, यदि तुम्हारे हाथ में कुछ है जो बहुत अच्छा नहीं है, और अगर तुम कुछ बेहतर रखना चाहते हो, तो तुम्हे फेंक के अौर बेहतर को लेना होगा । तुम दोनों को नहीं रख सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए, भौतिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन के बीच अंतर क्या है ? भौतिक जीवन मतलब समस्याऍ, हर कदम पर । पदम पदम यद विपदाम ([[Vanisource:SB 10.14.58|श्री भ १०।१४।५८]]) । केवल खतरनाक । हम एक कैडिलैक कार या मोटर गाड़ी में, आराम से, बहुत अच्छी तरह से सवारी कर रहे हैं, लेकिन हम खतरे पर सवारी कर रहे हैं, बस । हम गाड़ी चला रहे हैं; किसी भी क्षण कार टकरा सकती है, विशेष रूप से तुम्हारे देश में । किसी भी क्षण । तो मैं घर पर बैठे जाऊँ ? नहीं । घर में भी इतने सारे खतरे हैं । हम खतरों में हैं । बस हम प्रतिक्रिया करने की कोशिश कर रहे हैं । यही सभ्यता की उन्नति कहा जाता है । पशु, वे प्रकृति के संरक्षण पर निर्भर करते हैं । लेकिन हम इंसान हैं; हम अपनी उच्च चेतना, उच्च बुद्धिमत्ता का उपयोग कर रहे हैं - एक ही बात । रशिया निर्माण कर रहा है, क्या कहते हैं, हथियार, परमाणु बम । तो... परमाणु, हाँ । और अमेरिका भी कोशिश कर रहा है । और बिल्ली और कुत्ते, वे अपने नाखून और दांत से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । तो असली सवाल बचाव का है । तो बचाव यह है की... एसा नहीं है कि क्योंकि हमें बेहतर जीवन मिला है बिल्लियों और कुत्तों से, हमें बचाव नहीं करना है । हमें बचाव करना है । यह है... लेकिन एक बेहतर तरीके से । बेहतर तरीका नहीं - आखिरकार, हमें मरना तो है ही । तो खैर, हम सोचते हैं कि रक्षा का यह बेहतर तरीका है ।  
:एवं स्व चित्ते स्वत एव सिद्ध
:अात्मा प्रियो अर्थो भगवान अनन्त:
:तम निवृत्तो नियतार्थो भजते
:संसार हेतुपरमश च यत्र
:([[Vanisource:SB 2.2.6|श्रीमद भागवतम २.२.६]])
 
तो कल रात हमने चर्चा की कि क्यों किसीको अपने पोषण के बारे में चिंता करनी चाहिए और उस व्यक्ति से भीख माँगनी चाहिए जो अपने धन पर बहुत गर्व करता है । वह अपने खुद के रहने की व्यवस्था कर सकता है । जीवन की हालत है अाहार निद्रा भय मैथुनम (हितोपदेश २५) | जब तक व्यक्ति सन्यास अाश्रम में है, तो... उसे सब से पहले यौन जीवन और भय को त्यागना होगा । यही त्याग है । जैसे यहॉ कई ब्रह्मचारी, सन्यासी हैं । उन्हे त्याग की भावना में होना चाहिए, विशेष रूप से सन्यासी, और वानप्रस्थ, ब्रह्मचारी । त्याग । सबसे पहला त्याग है इन्द्रिय संतुष्टि का त्याग । इसलिए सन्यासी को स्वामी कहा जाता है ।  
 
स्वामी का अर्थ है मालिक । या गोस्वामी । "तो, गो का मतलब "इन्द्रियॉ," और स्वामी का मतलब "मालिक" । जो अपनी इन्द्रियों का मालिक बन गया है, वह गोस्वामी या स्वामी है । अन्यथा, अगर कोई अपनी इन्द्रियों का दास है, वह कैसे स्वामी या गोस्वामी हो सकता है ? हर शब्द का अर्थ है । तो हमें त्याग करना होगा । यह भौतिक जीवन है । भौतिक जीवन मतलब हर कोई इन्द्रिय संतुष्टि में संलग्न है, और यह सभ्यता की उन्नति के रूप में लिया जाता है । वही इन्द्रिय संतुष्टि अलग तरीके से, वही नशा, वही मांसाहार, वही यौन जीवन; या तो क्लब या नग्न क्लब या इस क्लब में जाना । इसलिए कार्य वही है । पुन: पुनश चर्वित चर्वणानाम ([[Vanisource:SB 7.5.30|श्रीमद भागवतम ७.५.३०]]), चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है ।  
 
तो सन्यास मतलब रोकना; रोकना नहीं लेकिन कम से कम नियंत्रण में रखना इन्द्रिय संतुष्टि को । यही सन्यास है । और सन्यास भावना के बिना तुम आध्यात्मिक दुनिया में नहीं जा सकते । जैसे अगर तुम्हारा, तुम्हारा हाथ वहॉ है, यदि तुम्हारे हाथ में कुछ है जो बहुत अच्छा नहीं है, और अगर तुम कुछ बेहतर रखना चाहते हो, तो तुम्हे फेंक के अौर बेहतर को लेना होगा । तुम दोनों को नहीं रख सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए, भौतिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन के बीच अंतर क्या है ? भौतिक जीवन मतलब समस्याऍ, हर कदम पर । पदम पदम यद विपदाम ([[Vanisource:SB 10.14.58|श्रीमद भागवतम १०.१४.५८]]) । केवल खतरनाक ।  
 
हम एक कैडिलैक कार या मोटर गाड़ी में, आराम से, बहुत अच्छी तरह से सवारी कर रहे हैं, लेकिन हम खतरे पर सवारी कर रहे हैं, बस । हम गाड़ी चला रहे हैं; किसी भी क्षण कार टकरा सकती है, विशेष रूप से तुम्हारे देश में । किसी भी क्षण । तो मैं घर पर बैठे जाऊँ ? नहीं । घर में भी इतने सारे खतरे हैं । हम खतरों में हैं । बस हम प्रतिक्रिया करने की कोशिश कर रहे हैं । यही सभ्यता की उन्नति कहा जाता है । पशु, वे प्रकृति के संरक्षण पर निर्भर करते हैं । लेकिन हम इंसान हैं; हम अपनी उच्च चेतना, उच्च बुद्धिमत्ता का उपयोग कर रहे हैं - एक ही बात । रशिया निर्माण कर रहा है, क्या कहते हैं, हथियार, परमाणु बम ।  
 
तो... परमाणु, हाँ । और अमेरिका भी कोशिश कर रहा है । और बिल्ली और कुत्ते, वे अपने नाखून और दांत से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । तो असली सवाल बचाव का है । तो बचाव यह है की... एसा नहीं है कि क्योंकि हमें बेहतर जीवन मिला है बिल्लियों और कुत्तों से, हमें बचाव नहीं करना है । हमें बचाव करना है । यह है... लेकिन एक बेहतर तरीके से । बेहतर तरीका नहीं - आखिरकार, हमें मरना तो है ही । तो खैर, हम सोचते हैं कि रक्षा का यह बेहतर तरीका है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



750306 - Lecture SB 02.02.06 - New York

निताई: "इस प्रकार स्थिर होकर, हमें परमात्मा को सेवा प्रदान करना चाहिए जो हर किसी के ह्रदय में हैं अपनी सर्वव्यापक्ता से । क्योंकि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, शाश्वत और असीमित, वे जीवन का अंतिम लक्ष्य हैं, और उनकी पूजा करके हम बद्ध जीवन के कारण को समाप्त कर सकते हैं ।"

प्रभुपाद:

एवं स्व चित्ते स्वत एव सिद्ध
अात्मा प्रियो अर्थो भगवान अनन्त:
तम निवृत्तो नियतार्थो भजते
संसार हेतुपरमश च यत्र
(श्रीमद भागवतम २.२.६)

तो कल रात हमने चर्चा की कि क्यों किसीको अपने पोषण के बारे में चिंता करनी चाहिए और उस व्यक्ति से भीख माँगनी चाहिए जो अपने धन पर बहुत गर्व करता है । वह अपने खुद के रहने की व्यवस्था कर सकता है । जीवन की हालत है अाहार निद्रा भय मैथुनम (हितोपदेश २५) | जब तक व्यक्ति सन्यास अाश्रम में है, तो... उसे सब से पहले यौन जीवन और भय को त्यागना होगा । यही त्याग है । जैसे यहॉ कई ब्रह्मचारी, सन्यासी हैं । उन्हे त्याग की भावना में होना चाहिए, विशेष रूप से सन्यासी, और वानप्रस्थ, ब्रह्मचारी । त्याग । सबसे पहला त्याग है इन्द्रिय संतुष्टि का त्याग । इसलिए सन्यासी को स्वामी कहा जाता है ।

स्वामी का अर्थ है मालिक । या गोस्वामी । "तो, गो का मतलब "इन्द्रियॉ," और स्वामी का मतलब "मालिक" । जो अपनी इन्द्रियों का मालिक बन गया है, वह गोस्वामी या स्वामी है । अन्यथा, अगर कोई अपनी इन्द्रियों का दास है, वह कैसे स्वामी या गोस्वामी हो सकता है ? हर शब्द का अर्थ है । तो हमें त्याग करना होगा । यह भौतिक जीवन है । भौतिक जीवन मतलब हर कोई इन्द्रिय संतुष्टि में संलग्न है, और यह सभ्यता की उन्नति के रूप में लिया जाता है । वही इन्द्रिय संतुष्टि अलग तरीके से, वही नशा, वही मांसाहार, वही यौन जीवन; या तो क्लब या नग्न क्लब या इस क्लब में जाना । इसलिए कार्य वही है । पुन: पुनश चर्वित चर्वणानाम (श्रीमद भागवतम ७.५.३०), चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है ।

तो सन्यास मतलब रोकना; रोकना नहीं लेकिन कम से कम नियंत्रण में रखना इन्द्रिय संतुष्टि को । यही सन्यास है । और सन्यास भावना के बिना तुम आध्यात्मिक दुनिया में नहीं जा सकते । जैसे अगर तुम्हारा, तुम्हारा हाथ वहॉ है, यदि तुम्हारे हाथ में कुछ है जो बहुत अच्छा नहीं है, और अगर तुम कुछ बेहतर रखना चाहते हो, तो तुम्हे फेंक के अौर बेहतर को लेना होगा । तुम दोनों को नहीं रख सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए, भौतिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन के बीच अंतर क्या है ? भौतिक जीवन मतलब समस्याऍ, हर कदम पर । पदम पदम यद विपदाम (श्रीमद भागवतम १०.१४.५८) । केवल खतरनाक ।

हम एक कैडिलैक कार या मोटर गाड़ी में, आराम से, बहुत अच्छी तरह से सवारी कर रहे हैं, लेकिन हम खतरे पर सवारी कर रहे हैं, बस । हम गाड़ी चला रहे हैं; किसी भी क्षण कार टकरा सकती है, विशेष रूप से तुम्हारे देश में । किसी भी क्षण । तो मैं घर पर बैठे जाऊँ ? नहीं । घर में भी इतने सारे खतरे हैं । हम खतरों में हैं । बस हम प्रतिक्रिया करने की कोशिश कर रहे हैं । यही सभ्यता की उन्नति कहा जाता है । पशु, वे प्रकृति के संरक्षण पर निर्भर करते हैं । लेकिन हम इंसान हैं; हम अपनी उच्च चेतना, उच्च बुद्धिमत्ता का उपयोग कर रहे हैं - एक ही बात । रशिया निर्माण कर रहा है, क्या कहते हैं, हथियार, परमाणु बम ।

तो... परमाणु, हाँ । और अमेरिका भी कोशिश कर रहा है । और बिल्ली और कुत्ते, वे अपने नाखून और दांत से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । तो असली सवाल बचाव का है । तो बचाव यह है की... एसा नहीं है कि क्योंकि हमें बेहतर जीवन मिला है बिल्लियों और कुत्तों से, हमें बचाव नहीं करना है । हमें बचाव करना है । यह है... लेकिन एक बेहतर तरीके से । बेहतर तरीका नहीं - आखिरकार, हमें मरना तो है ही । तो खैर, हम सोचते हैं कि रक्षा का यह बेहतर तरीका है ।