HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं: Difference between revisions
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पंचद्रविड: तात्पर्य: प्रभु की स्थिति, हमेशा दिव्य है, क्योंकि कारण और क्रियाशील शक्तियॉ जो निर्माण के लिए आवश्यक हैं... (तोड़) | |||
प्रभुपाद: ... इस शर्ट को बनाने से पहले, यह अव्यक्त था । कोई हाथ नहीं था, कोई गर्दन नहीं थी, कोई शरीर नहीं था । वही कपड़ा । लेकिन दर्जी ने, शरीर के अनुसार, हाथ को नापा अौर अब यह एक हाथ की तरह लग रहा है । यह सीने पर कपड़ा सीने की तरह लग रहा है । इसलिए, अवैयक्तिक का मतलब है भौतिक ढकाव । अन्यथा आत्मा व्यक्ति है । जैसे तुम दर्जी के पास जाते हो, तुम्हारे शरीर के अनुसार दर्जी एक कोट बनाएगा । यह कोट, कोट की सामग्री, कपड़ा, वह अव्यक्त है । लेकिन यह एक व्यक्ति की तरह बना है, यह व्यक्ति का ढकाव । दूसरे शब्दों में, आत्मा व्यक्ति है जितना की भगवान व्यक्ति हैं । अव्यक्त का मतलब है ढकाव । समझने की कोशिश करो । ढकाव अवैयक्तिक है, जीव नहीं । वह ढका हुअा है । वह अव्यक्त नहीं है । वह व्यक्ति है । बहुत ही सरल उदाहरण । कोट, शर्ट, अव्यक्त हैं, लेकिन वो अादमी जिसने सूती पहना है, वह अव्यक्त नहीं है । वह व्यक्ति है । तो भगवान कैसे अव्यक्त हो सकते हैं ? भौतिक शक्ति अव्यक्त है । यही समझाया गया है... ... यह भगवद गीता में विस्तार से बताया गया है, | |||
:मया ततम इदम सर्वम | |||
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यह जगत, अव्यक्त है । वह भी कृष्ण की शक्ति है । इसलिए, उन्होंने कहा, "मैं अवैयक्तिक रूप में विस्तारित हुअा हूँ ।" यही अवैयक्तिक रूप कृष्ण की शक्ति है । तो भौतिक ढकाव अवैयक्तिक है, लेकिन आत्मा या परमात्मा व्यक्तिगत है । इस पर कोई सवाल है, यह बहुत जटिल सवाल है, कोई भी ? समझने में कोई कठिनाई है ? (तोड़) | |||
भव-भूति:... क्योंकि मैंने इतने तथाकथित योगीयों को सुना है अंग्रेजी में गीता कहते हुए या यह अौर वह, लेकिन वे समझा नहीं सकते हैं, उन्हे संकेत भी नहीं है... | |||
प्रभुपाद: नहीं, नहीं, वे कैसे समझा सकते हैं ? | |||
भव-भूति: उन्हे संकेत नहीं है । | |||
प्रभुपाद: वे भगवद गीता को छू भी नहीं सकते । उनकी कोई योग्यता नहीं है । | |||
भव-भूति: उन्हे कोई समझ नहीं है । | |||
प्रभुपाद: भगवद गीता का उनका बोलना कृत्रिम है । | |||
भव-भूति: हाँ । | |||
प्रभुपाद: | प्रभुपाद: वे नहीं बोल सकते हैं क्योंकि असली योग्यता, जैसे कि भगवद में कहा गया है, भक्तो असि | हमें भक्त होना होगा, फिर वह भगवद गीता क्या है यह छू सकता है । | ||
भव-भूति: यहां तक कि मायापुर में भी, जब हम उस समय श्रीधर स्वमाी के आश्रम गए, और उन्होंने अंग्रेजी में कुछ कहा, किसी अन्य आदमी नें अंग्रेजी में बात की थी । वे अापकी तरह समझा नहीं सकते, श्रील प्रभुपाद । आप केवल एकमात्र हैं, की जब अाप यह ज्ञान बोलते हैं, यह तुरंत हो जाता है कान में से गुज़र कर और हृदय में प्रवेश करता है, और फिर यह बोध होता है । | |||
प्रभुपाद: हरे कृष्ण (हंसते हुए)! | प्रभुपाद: हो सकता है (हंसते हुए) । | ||
भारतीय आदमी: जय । (हिंदी) । | |||
प्रभुपाद: हरे कृष्ण । विशाखा, तुमको भी एसा लगता है ? | |||
विशाखा: किसी भी शक के बिना । | |||
प्रभुपाद: हरे कृष्ण (हंसते हुए) ! | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
740327 - Conversation - Bombay
प्रभुपाद: तो शुरुआत में, सृष्टि से पहले, भगवान विद्यमान हैं; और सृष्टि के बाद, जब प्रलय होता है, वे विद्यमान रहेंगे । यह दिव्य स्थिति कहा जाता है ।
पंचद्रविड: तात्पर्य: प्रभु की स्थिति, हमेशा दिव्य है, क्योंकि कारण और क्रियाशील शक्तियॉ जो निर्माण के लिए आवश्यक हैं... (तोड़)
प्रभुपाद: ... इस शर्ट को बनाने से पहले, यह अव्यक्त था । कोई हाथ नहीं था, कोई गर्दन नहीं थी, कोई शरीर नहीं था । वही कपड़ा । लेकिन दर्जी ने, शरीर के अनुसार, हाथ को नापा अौर अब यह एक हाथ की तरह लग रहा है । यह सीने पर कपड़ा सीने की तरह लग रहा है । इसलिए, अवैयक्तिक का मतलब है भौतिक ढकाव । अन्यथा आत्मा व्यक्ति है । जैसे तुम दर्जी के पास जाते हो, तुम्हारे शरीर के अनुसार दर्जी एक कोट बनाएगा । यह कोट, कोट की सामग्री, कपड़ा, वह अव्यक्त है । लेकिन यह एक व्यक्ति की तरह बना है, यह व्यक्ति का ढकाव । दूसरे शब्दों में, आत्मा व्यक्ति है जितना की भगवान व्यक्ति हैं । अव्यक्त का मतलब है ढकाव । समझने की कोशिश करो । ढकाव अवैयक्तिक है, जीव नहीं । वह ढका हुअा है । वह अव्यक्त नहीं है । वह व्यक्ति है । बहुत ही सरल उदाहरण । कोट, शर्ट, अव्यक्त हैं, लेकिन वो अादमी जिसने सूती पहना है, वह अव्यक्त नहीं है । वह व्यक्ति है । तो भगवान कैसे अव्यक्त हो सकते हैं ? भौतिक शक्ति अव्यक्त है । यही समझाया गया है... ... यह भगवद गीता में विस्तार से बताया गया है,
- मया ततम इदम सर्वम
- जगद अव्यक्त मूर्तिना
- (भ.गी. ९.४)
यह जगत, अव्यक्त है । वह भी कृष्ण की शक्ति है । इसलिए, उन्होंने कहा, "मैं अवैयक्तिक रूप में विस्तारित हुअा हूँ ।" यही अवैयक्तिक रूप कृष्ण की शक्ति है । तो भौतिक ढकाव अवैयक्तिक है, लेकिन आत्मा या परमात्मा व्यक्तिगत है । इस पर कोई सवाल है, यह बहुत जटिल सवाल है, कोई भी ? समझने में कोई कठिनाई है ? (तोड़)
भव-भूति:... क्योंकि मैंने इतने तथाकथित योगीयों को सुना है अंग्रेजी में गीता कहते हुए या यह अौर वह, लेकिन वे समझा नहीं सकते हैं, उन्हे संकेत भी नहीं है...
प्रभुपाद: नहीं, नहीं, वे कैसे समझा सकते हैं ?
भव-भूति: उन्हे संकेत नहीं है ।
प्रभुपाद: वे भगवद गीता को छू भी नहीं सकते । उनकी कोई योग्यता नहीं है ।
भव-भूति: उन्हे कोई समझ नहीं है ।
प्रभुपाद: भगवद गीता का उनका बोलना कृत्रिम है ।
भव-भूति: हाँ ।
प्रभुपाद: वे नहीं बोल सकते हैं क्योंकि असली योग्यता, जैसे कि भगवद में कहा गया है, भक्तो असि | हमें भक्त होना होगा, फिर वह भगवद गीता क्या है यह छू सकता है ।
भव-भूति: यहां तक कि मायापुर में भी, जब हम उस समय श्रीधर स्वमाी के आश्रम गए, और उन्होंने अंग्रेजी में कुछ कहा, किसी अन्य आदमी नें अंग्रेजी में बात की थी । वे अापकी तरह समझा नहीं सकते, श्रील प्रभुपाद । आप केवल एकमात्र हैं, की जब अाप यह ज्ञान बोलते हैं, यह तुरंत हो जाता है कान में से गुज़र कर और हृदय में प्रवेश करता है, और फिर यह बोध होता है ।
प्रभुपाद: हो सकता है (हंसते हुए) ।
भारतीय आदमी: जय । (हिंदी) ।
प्रभुपाद: हरे कृष्ण । विशाखा, तुमको भी एसा लगता है ?
विशाखा: किसी भी शक के बिना ।
प्रभुपाद: हरे कृष्ण (हंसते हुए) !