HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं



750306 - Lecture SB 02.02.06 - New York

तो, जब तक हम इस भौतिक दुनिया में रहेंगे, मैं इंद्र भगवान ब्रह्माजी, या अमेरिका का राष्ट्रपति, या यह या वह हो सकता हूँ - तुम इन चार चीजों से बच नहीं सकते । यही भौतिक अस्तित्व है । यही समस्या है । यदि तुम समस्या को हल करना चाहते हो, तो यह प्रक्रिया है : निवृत्ति । अन्याभिलाषिता शून्यम: भौतिक आनंद के लिए कामना न करो । आनंद तो है । ऐसा मत सोचना कि "अगर मैंने अपने भौतिक आनंद को रोक दिया, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा ।" नहीं | यह समाप्त नहीं हुआ है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह: वह सो भी रहा है, वह खा भी रहा है, उसके अन्य कार्य भी हैं, लेकिन... उसका खाना, सोना, और स्वस्थ आदमी का खाना, सोना एक ही बात नहीं है । इसी तरह, हमारा भौतिक आनंद - भोजन, नींद, संभोग और रक्षा - यह खतरों से भरा है । हम किसी बाधा के बिना आनंद नहीं उठा सकते । इतनी सारी बाधाऍ हैं ।

तो अगर हम निर्बाध सुख चाहते हैं... सुख तो है । जैसे एक रोगग्रस्त आदमी की तरह, वह भी खा रहा है, और स्वस्थ आदमी खा रहा है । लेकिन उसे कड़वा स्वाद लग रहा है । पीलिया के साथ एक आदमी, अगर तुम उसे गन्ना दो, उसे कड़वा स्वाद लगेगा । यह एक तथ्य है । लेकिन वही अादमी अगर वह पीलिया रोग से ठीक हो जाता है, तब उसे बहुत ही मीठा स्वाद लगेगा । इसी तरह, जीवन की भोतिक हालत में इतनी सारी बाधाऍ हैं, की हम पूरी तरह से जीवन का आनंद नहीं ले सकते । अगर तुम जीवन का पूरा आनंद चाहते हो, तो तुम्हे आध्यात्मिक मंच पर आना होगा । दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) । यह भौतिक दुनिया वर्णित है, भगवद गीता में, कि यह दुःखालयम है । यह दुखों की जगह है । अगर तुम कहते हो, "नहीं, मैंने व्यवस्था की है । मेरे पास अच्छा बैंक बैलेंस है । मेरी पत्नी बहुत अच्छी है, मेरे बच्चे भी बहुत अच्छे हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । मैं भौतिक दुनिया में रहूगा ।" कृष्ण कहते हैं अशाश्वतम: "नहीं श्रीमान, आप यहाँ नहीं रह सकते हैं । आप बाहर निकाल दिए जाओगे ।" दुःखालयम अशाश्वतम । अगर तुम यहाँ रहने के लिए सहमत हो, जीवन की इस दयनीय हालत में है, उसकी भी अनुमति नहीं है । कोई स्थायी बंदोबस्त नहीं है । तथा देहान्तर प्राप्तिर |

इसलिए ये समस्याऍ... कहा हैं वह वैज्ञानिक जो इन समस्या के बारे में चर्चा कर रहे हैं ? लेकिन समस्याएं तो हैं । कौन त्यगना चाहता है अपने परिवार को ? हर किसी के पास परिवार है, लेकिन कोई भी अपने परिवार को त्यागना नहीं चाहता है । लेकिन बल उससे छीन लिया जाता है । आदमी रो रहा है, "ओह, मैं अब जा रहा हूँ । अब मैं मर रहा हूँ । मेरी पत्नी, मेरे बच्चों का क्या होगा ?" वह मजबूर है । तुम्हे जाना होगा । इसलिए यह समस्या है । तो समस्या का हल कहॉ है ? इस समस्या का कोई समाधान नहीं है । अगर तुम समस्या का समाधान चाहते हो, तो कृष्ण कहते हैं,

माम उपेत्य कौन्तेय
दुःखालयम अशाश्वतम
नाप्नुवंती महात्मान:
संसिद्धिम परमाम गता:
(भ.गी. ८.१५) |

"अगर कोई मेरे पास अाता है," माम उपेत्य, "तो फिर उसे वापस नहीं अाना पड़ता है फिर से, इस भौतिक जगत में जो दुखों से भरा है ।"

तो यहाँ शुकदेव गोस्वामी सलाह दे रहे हैं कि तुम भक्त बन जाअो । तुम्हारी सभी समस्याओं का हल हो जाएगा ।