HI/Prabhupada 0886 - व्यक्ति भागवत या पुस्तक भागवत, तुम सेवा करो । फिर तुम स्थिर रहोगे: Difference between revisions

 
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प्रभुपाद: तो हमें शस्त्र के अनुसार इस कृष्ण भावनमामृत को आंदोलन को अपनाना चाहिए । श्री ... मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम बहुत अच्छी तरह से अर्च विग्रह का श्रृंगार कर रहे हो । अधिक से अधिक, इस तरह से श्री कृष्ण को अच्छा प्रसादम, अच्छा भोजन, अच्छी पोशाक प्रदान करो । मंदिर को बहुत साफ रखो । श्री-मंदिर-मार्जनादिषु । मार्जन मतलब सफाई । या तो tum श्री कृष्ण का श्रृंगार करो या मंदिर को शुद्ध रखो, प्रभाव वही है । यह मत सोचो कि "मैं सफाई करता हूँ और मैं श्रृंगार करता हूँ।" नहीं । श्रृंगार करने वाला और सफाई करने वाला समान हैं । । श्री कृष्ण निरपेक्ष हैं । किसी भी तरह से, श्री कृष्ण की सेवा में लगे रहो । तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । यह कृष्ण भावनामृत अांदोलन है। तो कुंतिदेवी की कृपा से हम समझ सकते हैं कि श्री कृष्ण भगवान हैं, वासुदेव । वासुदेव ... वासुदेव का एक और अर्थ है कि जब तुम वसुदेव के मंच पर अाते हो । सत्वम् विशुद्धम वसुदेव शब्दितम । सत्वम । सत्व, सतोगुण। सब से पहले, हमें सतोगुण के मंच पर अाना होगा । लेकिन यहाँ, भौतिक दुनिया में, सतोगुण भी कभी कभी अन्य निचले गुणें से दूषित होती है, तमोगुण अौर रजोगुण । तो श्री कृष्ण के बारे में सुनने के द्वारा, श्रृण्वताम स्व कथा: कष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: ( श्री भ १।२।१७) जैसे तुम श्री कृष्ण के बारे में सुन रहे हो । इसी तरह, हमेशा श्री कृष्ण के बारे में सुनने का प्रयास करो, चौबीस घंटे श्री कृष्ण के बारे में कीर्तन करो । इस तरह, गंदी बातें शुद्ध हो जाएँगी ।। नष्ट प्रायेष्व अभद्रेषु नित्यम भागवत सेवया ( श्री भ १।२।१८) नित्यम का मतलब है हमेशा । ऐसा नहीं है कि भागवत-सप्ताह, अौपचारिक । नहीं, ऐसे नहीं । यही एक और शोषण है। भागवत में यह कहा गया है, नित्यम भागवत सेवया । नित्यम मतलब दैनिक, चौबीस घंटे । या तो तुम श्रीमद-भागवतम पढ़ो या अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश का पालन करो । यह भी आदेश है। भागवत भी आध्यात्मिक गुरु है। वैश्णव, वह भी भागवत है । अाचार्य, भागवत । ग्रंथ-भागवत और व्यक्ति, व्यक्ति भागवत। तो व्यक्ति भागवत या किताब भागवत, तुम हमेशा सेवा करो । नित्यम भागवत सेवया ( श्री भ १।२।१८) । भगवति उत्तम श्लोके भक्तिर भवति नैष्ठिकी । तो फिर तुम स्थीर हो जाअोगे । नैष्ठिकी । कोई भी तुम्हे हिला नहीं सकता है । भगवति उत्तम श्लोके, भगवान को । तो इस तरह से, कृष्ण भावनामृत आंदोलन को तुम अपनाअो निर्धारित प्रक्रिया के द्वारा, और लोगों को देने का प्रयास करो यह दुनिया में सबसे बड़ी कल्याणकारी गतिविधि है कृष्ण भावनामृत को जागृत करना, सोए हुए कृष्ण भावनामृत को । यह, ज़ाहिर है, व्यावहारिक रूप से, तुम देख सकते हो, चार या पांच साल पहले, तुम में से कोई भी कृष्ण भावनाभावित नहीं था, लेकिन यह जगाया गया है । अब तुम कृष्ण भावनाभावित हो । तो दूसरे भी जागृत किए जा सकते हैं । कोई कठिनाई नहीं है। प्रक्रिया वही है। तो कुंती की तरह भक्तों के पद चिन्हों पर चल के, हम समझ पाऍगे जो वे हमें समझा रही हैं कृष्णाया वासुदेवाय देवकी नंदनाय च, नंद गोप कुमाराय (श्री भ १।८।२१) । यह श्री कृष्ण की पहचान है । जैसे हम एक व्यक्ति की पहचान लेते हैं : "तुम्हारे पिता का नाम क्या है?" तो यहाँ हम दे रहे हैं, भगवान को उनके पिता के नाम के साथ, उनके माँ के नाम के साथ, उनके पते के साथ । हम मायावादी नहीं हैं, अस्पष्ट विचार । नहीं । सब कुछ पूर्ण है । उत्तम । पहचान । अगर तुम इस कृष्ण भावनामृत के प्रचार का लाभ लेते हो, तो तुम्हे निश्चित रूप से लाभ होगा । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जया श्रील प्रभुपाद ।
प्रभुपाद: तो हमें शस्त्र के अनुसार इस कृष्ण भावनमामृत आंदोलन को अपनाना चाहिए । श्री... मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम बहुत अच्छी तरह से अर्च विग्रह का श्रृंगार कर रहे हो । अधिक से अधिक, इस तरह से कृष्ण को अच्छा प्रसादम, अच्छा भोजन, अच्छी पोशाक प्रदान करो । मंदिर को बहुत साफ रखो । श्री-मंदिर-मार्जनादिषु । मार्जन मतलब सफाई । या तो तुम कृष्ण का श्रृंगार करो या मंदिर को शुद्ध रखो, प्रभाव वही है । यह मत सोचो कि "मैं सफाई करता हूँ और मैं श्रृंगार करता हूँ ।" नहीं । श्रृंगार करने वाला और सफाई करने वाला समान हैं । कृष्ण निरपेक्ष हैं । किसी भी तरह से, कृष्ण की सेवा में लगे रहो । तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । यह कृष्ण भावनामृत अांदोलन है । तो कुंतिदेवी की कृपा से हम समझ सकते हैं कि कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, वासुदेव ।  
 
वासुदेव... वासुदेव का एक और अर्थ है कि जब तुम वसुदेव के मंच पर अाते हो । सत्वम विशुद्धम वसुदेव शब्दितम । सत्वम । सत्व, सतोगुण । सब से पहले, हमें सतोगुण के मंच पर अाना होगा । लेकिन यहाँ, भौतिक दुनिया में, सतोगुण भी कभी कभी अन्य निचले गुण, तमोगुण अौर रजोगुण, से दूषित होता है । तो कृष्ण के बारे में सुनने के द्वारा, श्रृण्वताम स्व कथा: कष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: ([[Vanisource: SB 1.2.17|श्रीमद भागवतम १.२.१७]]) | जैसे तुम कृष्ण के बारे में सुन रहे हो । इसी तरह, हमेशा कृष्ण के बारे में सुनने का प्रयास करो, चौबीस घंटे कृष्ण के बारे में कीर्तन करो । इस तरह, गंदी बातें शुद्ध हो जाएँगी नष्ट प्रायेशु अभद्रेषु नित्यम भागवत सेवया ([[Vanisource: SB 1.2.18|श्रीमद भागवतम १.२.१८]]) | नित्यम का मतलब है हमेशा । ऐसा नहीं है कि भागवत-सप्ताह, अौपचारिक । नहीं, ऐसे नहीं । यही एक और शोषण है ।
 
भागवत में यह कहा गया है, नित्यम भागवत सेवया । नित्यम मतलब दैनिक, चौबीस घंटे । या तो तुम श्रीमद-भागवतम पढ़ो या अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश का पालन करो । यह भी आदेश है । भागवत भी आध्यात्मिक गुरु है । वैष्णव, वह भी भागवत है । अाचार्य, भागवत । ग्रंथ-भागवत और व्यक्ति, व्यक्ति भागवत । तो व्यक्ति भागवत या किताब भागवत, तुम हमेशा सेवा करो । नित्यम भागवत सेवया ([[Vanisource: SB 1.2.18|श्रीमद भागवतम १.२.१८]]) । भगवति उत्तम श्लोके भक्तिर भवति नैष्ठिकी । तो फिर तुम स्थीर हो जाअोगे । नैष्ठिकी । कोई भी तुम्हे हिला नहीं सकता है । भगवति उत्तम श्लोके, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को ।  
 
तो इस तरह से, कृष्ण भावनामृत आंदोलन को तुम अपनाअो, निर्धारित प्रक्रिया के द्वारा, और लोगों को देने का प्रयास करो | यह दुनिया में सबसे बड़ी कल्याणकारी गतिविधि है, कृष्ण भावनामृत को जागृत करना, सोए हुए कृष्ण भावनामृत को । यह, ज़ाहिर है, व्यावहारिक रूप से, तुम देख सकते हो, चार या पांच साल पहले, तुम में से कोई भी कृष्ण भावनाभावित नहीं था, लेकिन यह जगाया गया है । अब तुम कृष्ण भावनाभावित हो । तो दूसरे भी जागृत किए जा सकते हैं । कोई कठिनाई नहीं है । प्रक्रिया वही है ।
 
तो कुंती की तरह भक्तों के पद चिन्हों पर चल के, हम समझ पाऍगे जो वे हमें समझा रही हैं: कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नंदनाय च, नंद गोप कुमाराय ([[Vanisource: SB 1.8.21|श्रीमद भागवतम १.८.२१]]) । यह कृष्ण की पहचान है । जैसे हम एक व्यक्ति की पहचान लेते हैं: "तुम्हारे पिता का नाम क्या है ?" तो यहाँ हम दे रहे हैं, भगवान को उनके पिता के नाम के साथ, उनके माता के नाम के साथ, उनके पते के साथ । हम मायावादी नहीं हैं, अस्पष्ट विचार । नहीं । सब कुछ पूर्ण है । उत्तम । पहचान । अगर तुम इस कृष्ण भावनामृत के प्रचार का लाभ लेते हो, तो तुम्हे निश्चित रूप से लाभ होगा । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730413 - Lecture SB 01.08.21 - New York

प्रभुपाद: तो हमें शस्त्र के अनुसार इस कृष्ण भावनमामृत आंदोलन को अपनाना चाहिए । श्री... मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम बहुत अच्छी तरह से अर्च विग्रह का श्रृंगार कर रहे हो । अधिक से अधिक, इस तरह से कृष्ण को अच्छा प्रसादम, अच्छा भोजन, अच्छी पोशाक प्रदान करो । मंदिर को बहुत साफ रखो । श्री-मंदिर-मार्जनादिषु । मार्जन मतलब सफाई । या तो तुम कृष्ण का श्रृंगार करो या मंदिर को शुद्ध रखो, प्रभाव वही है । यह मत सोचो कि "मैं सफाई करता हूँ और मैं श्रृंगार करता हूँ ।" नहीं । श्रृंगार करने वाला और सफाई करने वाला समान हैं । कृष्ण निरपेक्ष हैं । किसी भी तरह से, कृष्ण की सेवा में लगे रहो । तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । यह कृष्ण भावनामृत अांदोलन है । तो कुंतिदेवी की कृपा से हम समझ सकते हैं कि कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, वासुदेव ।

वासुदेव... वासुदेव का एक और अर्थ है कि जब तुम वसुदेव के मंच पर अाते हो । सत्वम विशुद्धम वसुदेव शब्दितम । सत्वम । सत्व, सतोगुण । सब से पहले, हमें सतोगुण के मंच पर अाना होगा । लेकिन यहाँ, भौतिक दुनिया में, सतोगुण भी कभी कभी अन्य निचले गुण, तमोगुण अौर रजोगुण, से दूषित होता है । तो कृष्ण के बारे में सुनने के द्वारा, श्रृण्वताम स्व कथा: कष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: (श्रीमद भागवतम १.२.१७) | जैसे तुम कृष्ण के बारे में सुन रहे हो । इसी तरह, हमेशा कृष्ण के बारे में सुनने का प्रयास करो, चौबीस घंटे कृष्ण के बारे में कीर्तन करो । इस तरह, गंदी बातें शुद्ध हो जाएँगी । नष्ट प्रायेशु अभद्रेषु नित्यम भागवत सेवया (श्रीमद भागवतम १.२.१८) | नित्यम का मतलब है हमेशा । ऐसा नहीं है कि भागवत-सप्ताह, अौपचारिक । नहीं, ऐसे नहीं । यही एक और शोषण है ।

भागवत में यह कहा गया है, नित्यम भागवत सेवया । नित्यम मतलब दैनिक, चौबीस घंटे । या तो तुम श्रीमद-भागवतम पढ़ो या अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश का पालन करो । यह भी आदेश है । भागवत भी आध्यात्मिक गुरु है । वैष्णव, वह भी भागवत है । अाचार्य, भागवत । ग्रंथ-भागवत और व्यक्ति, व्यक्ति भागवत । तो व्यक्ति भागवत या किताब भागवत, तुम हमेशा सेवा करो । नित्यम भागवत सेवया (श्रीमद भागवतम १.२.१८) । भगवति उत्तम श्लोके भक्तिर भवति नैष्ठिकी । तो फिर तुम स्थीर हो जाअोगे । नैष्ठिकी । कोई भी तुम्हे हिला नहीं सकता है । भगवति उत्तम श्लोके, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को ।

तो इस तरह से, कृष्ण भावनामृत आंदोलन को तुम अपनाअो, निर्धारित प्रक्रिया के द्वारा, और लोगों को देने का प्रयास करो | यह दुनिया में सबसे बड़ी कल्याणकारी गतिविधि है, कृष्ण भावनामृत को जागृत करना, सोए हुए कृष्ण भावनामृत को । यह, ज़ाहिर है, व्यावहारिक रूप से, तुम देख सकते हो, चार या पांच साल पहले, तुम में से कोई भी कृष्ण भावनाभावित नहीं था, लेकिन यह जगाया गया है । अब तुम कृष्ण भावनाभावित हो । तो दूसरे भी जागृत किए जा सकते हैं । कोई कठिनाई नहीं है । प्रक्रिया वही है ।

तो कुंती की तरह भक्तों के पद चिन्हों पर चल के, हम समझ पाऍगे जो वे हमें समझा रही हैं: कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नंदनाय च, नंद गोप कुमाराय (श्रीमद भागवतम १.८.२१) । यह कृष्ण की पहचान है । जैसे हम एक व्यक्ति की पहचान लेते हैं: "तुम्हारे पिता का नाम क्या है ?" तो यहाँ हम दे रहे हैं, भगवान को उनके पिता के नाम के साथ, उनके माता के नाम के साथ, उनके पते के साथ । हम मायावादी नहीं हैं, अस्पष्ट विचार । नहीं । सब कुछ पूर्ण है । उत्तम । पहचान । अगर तुम इस कृष्ण भावनामृत के प्रचार का लाभ लेते हो, तो तुम्हे निश्चित रूप से लाभ होगा । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।