HI/Prabhupada 0906 - तुम्हारे पास शून्य है । कृष्ण को रखो । तुम दस बन जाते हो: Difference between revisions
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प्रभुपाद: जैसे राज्य में, क्योंकि एक आदमी सड़क पर पड़ा है, बेचारा आदमी, कोई मदद नहीं है, क्या मैं उसे मार सकता हूँ ? क्या राज्य मुझे माफ करेगा ? "नहीं, मैंने एक बेचारे आदमी को मार डाला है । उसकी कोई जऱूरत नहीं थी । समाज में उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी । तो क्यों उसे जीना चाहिए ? " क्या राज्य मुझे माफ करेगा ? " तुमने बहुत अच्छा काम किया है ?" नहीं । यह बेचारा आदमी भी प्रजा है, या राज्य का नागरिक । तुम मार नहीं सकते हो । क्यों इस सोच का विस्तार नहीं करते हो, कि बेचारा जानवर वृक्ष, | प्रभुपाद: जैसे राज्य में, क्योंकि एक आदमी सड़क पर पड़ा है, बेचारा आदमी, कोई मदद नहीं है, क्या मैं उसे मार सकता हूँ ? क्या राज्य मुझे माफ करेगा ? "नहीं, मैंने एक बेचारे आदमी को मार डाला है । उसकी कोई जऱूरत नहीं थी । समाज में उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी । तो क्यों उसे जीना चाहिए ? " क्या राज्य मुझे माफ करेगा ?" तुमने बहुत अच्छा काम किया है ?" नहीं । यह बेचारा आदमी भी प्रजा है, या राज्य का नागरिक । तुम मार नहीं सकते हो । क्यों इस सोच का विस्तार नहीं करते हो, कि बेचारा जानवर, वृक्ष, पक्षी, जानवर, वे भी भगवान की संतान हैं । तुम मार नहीं सकते हो । तुम जिम्मेदार हो । तुम्हे फांसी पर लटका दिया जाएगा । जैसे सड़क पर एक बेचारे आदमी की हत्या करने से तुम्हे फांसी होगी । कोई बात नहीं कि वह गरीब है । | ||
इसी प्रकार भगवान की आँखों में, ऐसा कोई भेदभाव नहीं है । भगवान की क्या बात करें, यहां तक की एक विद्वान व्यक्ति की दृष्टि में, ऐसा कोई भेदभाव नहीं है, यह गरीब है, यह अमीर है, यह काला है, यह सफेद है, यह है.." नहीं । हर कोई जीव है, भगवान के अंशस्वरूप । इसलिए केवल वैष्णव ही सभी जीवों का परोपकारी है । वे उन्नत करने का प्रयास करते हैं । एक वैष्णव जीवों को उन्नत करने की कोशिश करता है कृष्ण भावनामृत में । लोकानाम हित कारिणौ । जैसे रूप गोस्वामी, गोस्वामी की तरह । लोकानाम हित कारिणौ त्रि भुवने मान्यौ शरण्याकरौ । | |||
एक वैष्णव को यह विचार नहीं है की यह भारतीय है, यह अमरिकी है, यह है...... किसी नें मुझसे यह पूछा की: "आप अमेरिका क्यों आए हो ?" मैं क्यों ना अाऊँ ? मैं भगवान का सेवक हूँ, और यह भगवान का राज्य है। मैं क्यों न आऊँ ? मुझे रोकना कृत्रिम है । अगर तुम मुझे रोकते हो, तो तुम पापी कर्म करोगे । जैसे सरकारी कर्मचारी, पुलिस, किसी के घर में प्रवेश करने का अधिकार है, किसी भी घर में । कोई अतिचार नहीं है । | |||
इसी प्रकार एक भगवान के सेवक को कहीं भी जाने का अधिकार है । कोई नहीं रोक सकता है । अगर वह रोकता है, तो वह दंडित किया जाएगा । क्योंकि सब कुछ भगवान का है । तो इस तरह से हमें चीजों को देखना चाहिए जैसे की वह हैं । यही कृष्ण भावनामृत है । कृष्ण भावनामृत एक कृपण विचार नहीं है । इसलिए कुंती कहते हैं: जन्मैश्वर्य श्रुत श्रीभिर एधमान मद: पुमान ([[Vanisource: SB 1.8.26|श्रीमद भागवतम १.८.२६]]) | जो नशा बढ़ा रहे हैं, ऐसे व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित नहीं बन सकते हैं । ऐसे व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित नहीं बन सकते हैं । एधमान मद: । क्योंकि वे मदमत्त हैं । जैसे नशे में धुत व्यक्ति, वह अब पूरी तरह से मदमत्त है और बकवास कर रहा है । अगर कोई कहता है: "मेरे प्यारे भाई, तुम बकवास कर रहे हो । यहाँ पिता है । यहाँ माँ है ।" इसकी कौन परवाह करता है? वह मदमत्त है । | |||
इसी प्रकार ये सभी धूर्त, मदमत्त धुर्त, अगर तुम कहते हो : "यहाँ भगवान हैं ," वे नहीं समझ सकते हैं । क्योंकि मदमत्त । इसलिए कुंती कहती हैं: त्वाम अकिंचन गोचरम । तो यह एक अच्छी योग्यता है, जब तुम इन मादक पदार्थों से मुक्त हो जाते हो । जन्मैश्वर्य श्रुत श्री... अच्छा जन्म, अच्छा वैभव, अच्छी शिक्षा, अच्छा सौंदर्य । इनका उपयोग किया जा सकता है । जब वही व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित हो जाता है... जैसे तुम अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ । तुम मदमत्त थे । लेकिन जब नशा खत्म हुअा, तुम बेहतर सेवा कर रहे हो, कृष्ण भावनामृत । जैसे तुम भारत जाते हो, वे हैरान हो जाते हैं कि कैसे ये अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ भगवान के पीछे इतने पागल हो गए हैं । क्योंकि यह, यह उन्हें सिखाता है कि: "ओ धूर्त । तुम सीखो । क्योंकि तुम पश्चिमी देशों से नकल करते हो । | |||
अब यहाँ देखो, पश्चिमी देश के लड़के और लड़कियॉ कृष्ण भावनामृत में नाच रहे हैं । अब तुम नकल करो । " यही मेरी नीति थी । तो यह अब रंग ला रही है । हाँ । तो सब कुछ उपयोग किया जा सकता है । अच्छा पितृत्व, अगर तुम उपयोग करते हो... तो अगर तुम मदमत्त रहते हो, इसका उपयोग नहीं करते हो, तो यह बहुत अच्छी बात नहीं है । क्योंकि तुम अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग कर सकते हो । अगर तुम... अगर तुम संपत्ति का उपयोग करते हो श्री कृष्ण के उद्देश्य के लिए, यह बेहतर स्थिति होगी । | |||
वही उदाहरण । जैसे शून्य । शून्य का कोई मूल्य नहीं है । लेकिन जैसे ही तुम शून्य के अागे एक डालते हो, तो यह तुरंत दस हो जाता है । तुरंत दस । एक और शून्य, सौ । एक और शून्य, हजार । इसी प्रकार ये जन्मैश्वर्य श्रुत श्री । तो जब तक तुम मदमत्त रहते हो, यह सब शून्य है । लेकिन जैसे ही तुम श्री कृष्ण को अागे रखते हो, यह दस, सौ, हजार, लाख हो जाता है । भक्त: जय, हारिबोल (हंसी) प्रभुपाद: हाँ । यही अवसर है । तो तुम्हे यह अवसर मिला है । तुम अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ, तुम्हे यह अवसर मिला है । तुम्हारे पास शून्य है । श्री कृष्ण को रखो। तुम दस हो जाअोगे । (हंसी) हाँ । | |||
बहुत बहुत धन्यवाद । | |||
भक्त: हरिबोल ! जय प्रभुपाद । प्रभुपाद की जय ! | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
730418 - Lecture SB 01.08.26 - Los Angeles
प्रभुपाद: जैसे राज्य में, क्योंकि एक आदमी सड़क पर पड़ा है, बेचारा आदमी, कोई मदद नहीं है, क्या मैं उसे मार सकता हूँ ? क्या राज्य मुझे माफ करेगा ? "नहीं, मैंने एक बेचारे आदमी को मार डाला है । उसकी कोई जऱूरत नहीं थी । समाज में उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी । तो क्यों उसे जीना चाहिए ? " क्या राज्य मुझे माफ करेगा ?" तुमने बहुत अच्छा काम किया है ?" नहीं । यह बेचारा आदमी भी प्रजा है, या राज्य का नागरिक । तुम मार नहीं सकते हो । क्यों इस सोच का विस्तार नहीं करते हो, कि बेचारा जानवर, वृक्ष, पक्षी, जानवर, वे भी भगवान की संतान हैं । तुम मार नहीं सकते हो । तुम जिम्मेदार हो । तुम्हे फांसी पर लटका दिया जाएगा । जैसे सड़क पर एक बेचारे आदमी की हत्या करने से तुम्हे फांसी होगी । कोई बात नहीं कि वह गरीब है ।
इसी प्रकार भगवान की आँखों में, ऐसा कोई भेदभाव नहीं है । भगवान की क्या बात करें, यहां तक की एक विद्वान व्यक्ति की दृष्टि में, ऐसा कोई भेदभाव नहीं है, यह गरीब है, यह अमीर है, यह काला है, यह सफेद है, यह है.." नहीं । हर कोई जीव है, भगवान के अंशस्वरूप । इसलिए केवल वैष्णव ही सभी जीवों का परोपकारी है । वे उन्नत करने का प्रयास करते हैं । एक वैष्णव जीवों को उन्नत करने की कोशिश करता है कृष्ण भावनामृत में । लोकानाम हित कारिणौ । जैसे रूप गोस्वामी, गोस्वामी की तरह । लोकानाम हित कारिणौ त्रि भुवने मान्यौ शरण्याकरौ ।
एक वैष्णव को यह विचार नहीं है की यह भारतीय है, यह अमरिकी है, यह है...... किसी नें मुझसे यह पूछा की: "आप अमेरिका क्यों आए हो ?" मैं क्यों ना अाऊँ ? मैं भगवान का सेवक हूँ, और यह भगवान का राज्य है। मैं क्यों न आऊँ ? मुझे रोकना कृत्रिम है । अगर तुम मुझे रोकते हो, तो तुम पापी कर्म करोगे । जैसे सरकारी कर्मचारी, पुलिस, किसी के घर में प्रवेश करने का अधिकार है, किसी भी घर में । कोई अतिचार नहीं है ।
इसी प्रकार एक भगवान के सेवक को कहीं भी जाने का अधिकार है । कोई नहीं रोक सकता है । अगर वह रोकता है, तो वह दंडित किया जाएगा । क्योंकि सब कुछ भगवान का है । तो इस तरह से हमें चीजों को देखना चाहिए जैसे की वह हैं । यही कृष्ण भावनामृत है । कृष्ण भावनामृत एक कृपण विचार नहीं है । इसलिए कुंती कहते हैं: जन्मैश्वर्य श्रुत श्रीभिर एधमान मद: पुमान (श्रीमद भागवतम १.८.२६) | जो नशा बढ़ा रहे हैं, ऐसे व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित नहीं बन सकते हैं । ऐसे व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित नहीं बन सकते हैं । एधमान मद: । क्योंकि वे मदमत्त हैं । जैसे नशे में धुत व्यक्ति, वह अब पूरी तरह से मदमत्त है और बकवास कर रहा है । अगर कोई कहता है: "मेरे प्यारे भाई, तुम बकवास कर रहे हो । यहाँ पिता है । यहाँ माँ है ।" इसकी कौन परवाह करता है? वह मदमत्त है ।
इसी प्रकार ये सभी धूर्त, मदमत्त धुर्त, अगर तुम कहते हो : "यहाँ भगवान हैं ," वे नहीं समझ सकते हैं । क्योंकि मदमत्त । इसलिए कुंती कहती हैं: त्वाम अकिंचन गोचरम । तो यह एक अच्छी योग्यता है, जब तुम इन मादक पदार्थों से मुक्त हो जाते हो । जन्मैश्वर्य श्रुत श्री... अच्छा जन्म, अच्छा वैभव, अच्छी शिक्षा, अच्छा सौंदर्य । इनका उपयोग किया जा सकता है । जब वही व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित हो जाता है... जैसे तुम अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ । तुम मदमत्त थे । लेकिन जब नशा खत्म हुअा, तुम बेहतर सेवा कर रहे हो, कृष्ण भावनामृत । जैसे तुम भारत जाते हो, वे हैरान हो जाते हैं कि कैसे ये अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ भगवान के पीछे इतने पागल हो गए हैं । क्योंकि यह, यह उन्हें सिखाता है कि: "ओ धूर्त । तुम सीखो । क्योंकि तुम पश्चिमी देशों से नकल करते हो ।
अब यहाँ देखो, पश्चिमी देश के लड़के और लड़कियॉ कृष्ण भावनामृत में नाच रहे हैं । अब तुम नकल करो । " यही मेरी नीति थी । तो यह अब रंग ला रही है । हाँ । तो सब कुछ उपयोग किया जा सकता है । अच्छा पितृत्व, अगर तुम उपयोग करते हो... तो अगर तुम मदमत्त रहते हो, इसका उपयोग नहीं करते हो, तो यह बहुत अच्छी बात नहीं है । क्योंकि तुम अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग कर सकते हो । अगर तुम... अगर तुम संपत्ति का उपयोग करते हो श्री कृष्ण के उद्देश्य के लिए, यह बेहतर स्थिति होगी ।
वही उदाहरण । जैसे शून्य । शून्य का कोई मूल्य नहीं है । लेकिन जैसे ही तुम शून्य के अागे एक डालते हो, तो यह तुरंत दस हो जाता है । तुरंत दस । एक और शून्य, सौ । एक और शून्य, हजार । इसी प्रकार ये जन्मैश्वर्य श्रुत श्री । तो जब तक तुम मदमत्त रहते हो, यह सब शून्य है । लेकिन जैसे ही तुम श्री कृष्ण को अागे रखते हो, यह दस, सौ, हजार, लाख हो जाता है । भक्त: जय, हारिबोल (हंसी) प्रभुपाद: हाँ । यही अवसर है । तो तुम्हे यह अवसर मिला है । तुम अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ, तुम्हे यह अवसर मिला है । तुम्हारे पास शून्य है । श्री कृष्ण को रखो। तुम दस हो जाअोगे । (हंसी) हाँ ।
बहुत बहुत धन्यवाद ।
भक्त: हरिबोल ! जय प्रभुपाद । प्रभुपाद की जय !