HI/Prabhupada 0918 - कृष्ण का शत्रु बनना बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनो: Difference between revisions

 
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तो, यहाँ कहा गया है: न वेद कश्चिद भगवम्श चिकिर्षितम ( श्री भ १।८।२९) "कोई नहीं जानता है कि अापके प्रकट होने अौर अप्रकट होने का उद्देश्य क्या है । कोई नहीं जानता ।" तो तव, तव ईहमानस्य नृनाम् विड़म्बनम (श्री भ १।८।२९) । यह विस्मयकारी है । कोई भी वास्तविक उद्देश्य क्या है यह समझ नहीं सकता है । असली उद्देश्य है उनकी स्वतंत्र मर्जी । "मुझे जाने दो और देखने दो ।" उन्हें राक्षसों को मारने के लिए आने की आवश्यकता नहीं है । इतने सारे एजेंट हैं, लकिन अगर एक तेज़ हवा हो, तो हजारों राक्षस एक पल में मारे जा सकते हैं । तो श्री कृष्ण को राक्षसों को मारने के लिए आने की आवश्यकता नहीं है । और उन्हे भक्त को संरक्षण देने के लिए आने की भी आवश्यकता नहीं है । केवल इच्छा मात्र से, सब कुछ है । लेकिन यह उनकी अानंद लीला है,, "मुझे जाने दो और देखने दो ।" कभी कभी वे लड़ना चाहते हैं । क्योंकि लड़ाई की भावना श्री कृष्ण में भी है । अन्यथा, हमें कहां से मिलती है ? क्योंकि हम श्री कृष्ण का अंशस्वरूप हैं, छोटी मात्रा में श्री कृष्ण के सभी गुण, वे हमारे भीतर हैं । हम कृष्ण का नमूना हैं, लेकिन कहॉ से लड़ाई की यह भावना हमें मिली ? लड़ाई की भावना श्री कृष्ण में है । इसलिए, कभी कभी एक बड़ा आदमी या राजा, वे लड़ने के लिए किसी पहलवान को संलग्न करते हैं । वे, वे वेतन देते हैं राजा के साथ लड़ने के लिए । लेकिन वह दुश्मन नहीं है । वह लड़ाई से राजा को खुशी दे रहीा है, नकली लड़ाई । इसी तरह, जब श्री कृष्ण लड़ना चाहते हैं, उसके साथ कौन लड़ेगा ? उनका कोई भक्त, महान भक्त उनके साथ लड़ेगा । साधारण नहीं । जैसे एक राजा, अगर वह नकली लड़ाई का अभ्यास करना चाहता है, कोई बहुत ऊंचा सेनानी, पहलवान लगाया जाएगा । इसी प्रकार ... वह भी सेवा है । क्योंकि श्री कृष्ण लड़ना चाहते हैं, इसलिए उनके कुछ भक्त अाते हैं उनका दुश्मन बनने के लिए । जैसे जय-विजय की तरह । यह हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । क्या तुम्हे लगता है कि वे साधारण जीव हैं ? अगर .... वह....नृसिं्हदेव, भगवान स्वयं अाए हैं उसे मारने । तुम्हे लगता है वे साधारण हैं ? नहीं, वे साधारण नहीं हैं । वे भक्त हैं । लेकिन श्री कृष्ण लड़ना चाहते थे । वैकुण्ठ जगत में लड़ाई की कोई संभावना नहीं है क्योंकि हर जगह वहाँ हर कोई वहाँ वे श्री कृष्ण की सेवा में लगे हैं । किसके साथ वे लड़ाई करेंगे ? (हंसी) इसलिए वे दुश्मन की आड़ में किसी भक्त को भेजते हैं और श्री कृष्ण उसके साथ लड़ने के लिए यहां आते हैं । उसी समय, हमें सिखाने के लिए कि दुश्मन बनना, कृष्ण का दुश्मन बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनना । यही लाभदायक होगा । (हंसी) इसलिए यह कहा जाता है कि : न कश्चिद भगवम्श चिकिर्षितम (श्री भ १।८।२९) । "कोई नहीं जानता है अापके प्रकट अौर अप्रकट होने का कारण ।" तव ईहमानस्य नृनाम् विड़म्बनम "अाप इस दुनिया में हैं साधारण इंसान की तरह । इस विस्मयकारी है ।" इसलिए आम आदमी विश्वास नहीं कर सकता है । "कैसे भगवान साधारण व्यक्ति बन सकते हैं ?" श्री कृष्ण अभिनय कर रहे हैं । हालांकि वे साधारण व्यक्ति का अभिनय नहीं कर रहे थे । वे भगवान का अभिनय कर रहे थे । जब भी आवश्यकता थी.......उन्होंने १६००० पत्नियों से विवाह किया । जब उन्होंने शादी की वे एक थे और १६००० लड़कियों नें श्री कृष्ण को आत्मसमर्पण किया : "अब हमारा अपहरण हो चुका है । अगर हम घर जाते हैं, कोई भी हमसे शादी नहीं करेगा ।" यही सख्त वैदिक प्रणाली है । अगर एक अविवाहित लड़की एक रात के लिए भी घर से बाहर जाती है, तो कोई भी उससे शादी नहीं करेगा । अभी भी यह चल रहा है । कोई भी शादी नहीं करेगा । तो यह पुरानी व्यवस्था है । सभी १६००० लड़कियॉ भौमासुर द्वारा अपहरण की गई..... तो उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की और श्री कृष्ण आए, भौमासुर का वध किया, सभी लड़कियों का उद्धार किया । तो जब श्री कृष्ण ने उन से पूछा : "अब तुम सुरक्षित रूप से अपने पिता के घर जा सकती हो," उन्हों ने कहा: "श्रीमान, अगर हम वापस हमारे पिता के घर जाते हैं, तो हमारे भाग्य क्या होगा ? कोई भी हमसे शादी नहीं करेगा। क्योंकि इस आदमी नें इस राक्षस नें, हमारा अपहरण किया। , " "तो फिर तुम क्या चाहते हो ।" "हम चाहते हैं कि अाप हमारे पति बनें ।" तो श्री कृष्ण इतने दयालु हैं । "हाँ।" तुरंत स्वीकार किया । यही श्री कृष्ण हैं । अब, जब वे घर लाए गए, एसा नहीं कि १६०००० पत्नियों को १६००० रातों का इंतजार करना पड़अ श्री कृष्ण से मिलने के लिए । (हंसी) श्री कृष्ण, नें १६००० रूपों में खुद का विस्तार किया, १६००० महल बनवाए, और प्रत्येक महल में...... वर्णन है....यही भगवान हैं । तो ये धूर्त, वे नहीं समझ सकते हैं । श्री कृष्ण की आलोचना करते हैं, कि वे कामुक हैं । उन्होंने १६००० पत्नियों से शादी की । (हंसी) अगर वे कामुक भी हैं तो असीमित कामुक । (हंसी) क्योंकि वे असीमित है । क्यों १६००० ? अगर वे १६ अरब पत्नियों से शादी करते, तो भी यह अपूर्ण है । यही श्री कृष्ण हैं ।  
तो, यहाँ कहा गया है: न वेद कश्चिद भगवंश चिकिर्षितम ([[Vanisource: SB 1.8.29 | श्रीमद भागवतम १.८.२९]]) | "कोई नहीं जानता है कि अापके प्रकट होने अौर अप्रकट होने का उद्देश्य क्या है । कोई नहीं जानता ।" तो तव, तव ईहमानस्य नृणाम विड़म्बनम ([[Vanisource: SB 1.8.29 | श्रीमद भागवतम १.८.२९]]) । यह विस्मयकारी है । कोई भी वास्तविक उद्देश्य क्या है यह समझ नहीं सकता । असली उद्देश्य है उनकी स्वतंत्र मर्जी । "मुझे जाने दो और देखने दो ।" उन्हें राक्षसों को मारने के लिए आने की आवश्यकता नहीं है । इतने सारे सेवक हैं, लकिन अगर एक तेज़ हवा हो, तो हजारों राक्षस एक पल में मारे जा सकते हैं ।  
 
तो श्री कृष्ण को राक्षसों को मारने के लिए आने की आवश्यकता नहीं है । और उन्हे भक्त को संरक्षण देने के लिए भी आने की आवश्यकता नहीं है । केवल इच्छा मात्र से, सब कुछ है । लेकिन यह उनकी अानंद लीला है, "मुझे जाने दो और देखने दो ।" कभी कभी वे लड़ना चाहते हैं । क्योंकि लड़ाई की भावना श्री कृष्ण में भी है । अन्यथा, हमें कहां से मिलती है ? क्योंकि हम श्री कृष्ण के अंशस्वरूप हैं, छोटी मात्रा में श्री कृष्ण के सभी गुण, वे हमारे भीतर हैं । हम कृष्ण का नमूना हैं, लेकिन कहॉ से लड़ाई की यह भावना हमें मिली ? लड़ाई की भावना श्री कृष्ण में है । इसलिए, कभी कभी एक बड़ा आदमी या राजा, वे लड़ने के लिए किसी पहलवान को संलग्न करते हैं । वे, वे वेतन देते हैं राजा के साथ लड़ने के लिए । लेकिन वह दुश्मन नहीं है । वह लड़ाई,नकली लड़ाई, राजा को खुशी दे रही है ।
 
इसी तरह, जब श्री कृष्ण लड़ना चाहते हैं, उसके साथ कौन लड़ेगा ? उनका कोई भक्त, महान भक्त उनके साथ लड़ेगा । साधारण नहीं । जैसे एक राजा, अगर वह नकली लड़ाई का अभ्यास करना चाहता है, कोई बहुत ऊंचा सेनानी, पहलवान लगाया जाएगा । इसी प्रकार... वह भी सेवा है । क्योंकि श्री कृष्ण लड़ना चाहते हैं, इसलिए उनके कुछ भक्त अाते हैं उनके दुश्मन बनने के लिए । जैसे जय-विजय की तरह । यह हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । क्या तुम्हे लगता है कि वे साधारण जीव हैं ? अगर... वह... नरसिंहदेव, भगवान स्वयं अाए हैं उसे मारने । तुम्हे लगता है वे साधारण हैं ? नहीं, वे साधारण नहीं हैं । वे भक्त हैं । लेकिन श्री कृष्ण लड़ना चाहते थे । वैकुण्ठ जगत में लड़ाई की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वहा हर जगह, हर कोई वहाँ श्री कृष्ण की सेवा में लगे हैं । किसके साथ वे लड़ाई करेंगे ? (हंसी)  
 
इसलिए वे दुश्मन की आड़ में किसी भक्त को भेजते हैं और श्री कृष्ण उसके साथ लड़ने के लिए यहां आते हैं । उसी समय, हमें सिखाने के लिए कि दुश्मन बनना, कृष्ण का दुश्मन बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनना । यही लाभदायक होगा । (हंसी) इसलिए यह कहा जाता है की: न कश्चिद भगवंश चिकिर्षितम ([[Vanisource: SB 1.8.29 | श्रीमद भागवतम १.८.२९]]) । "कोई नहीं जानता है अापके प्रकट अौर अप्रकट होने का कारण ।" तव ईहमानस्य नृणाम विड़म्बनम | "अाप इस दुनिया में हैं साधारण इंसान की तरह । इस विस्मयकारी है ।" इसलिए आम आदमी विश्वास नहीं कर सकता है । "कैसे भगवान साधारण व्यक्ति बन सकते हैं ?" श्री कृष्ण अभिनय कर रहे हैं । हालांकि वे साधारण व्यक्ति का अभिनय नहीं कर रहे थे । वे भगवान का अभिनय कर रहे थे ।  
 
जब भी आवश्यकता थी... जैसे उन्होंने १६,००० पत्नियों से विवाह किया । जब उन्होंने शादी की वे एक थे और १६,००० लड़कियों नें श्री कृष्ण को आत्मसमर्पण किया की: "अब हमारा अपहरण हो चुका है । अगर हम घर जाते हैं, कोई भी हमसे शादी नहीं करेगा ।" यही सख्त वैदिक प्रणाली है । अगर एक अविवाहित लड़की एक रात के लिए भी घर से बाहर जाती है, तो कोई भी उससे शादी नहीं करेगा । अभी भी यह चल रहा है । कोई भी शादी नहीं करेगा ।  
 
तो यह पुरानी व्यवस्था है । सभी १६,००० लड़कियॉ भौमासुर द्वारा अपहरण की गई... तो उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की और श्री कृष्ण आए, भौमासुर का वध किया, सभी लड़कियों का उद्धार किया । तो जब श्री कृष्ण ने उन से कहा: "अब तुम सुरक्षित रूप से अपने पिता के घर जा सकती हो," उन्हों ने कहा: "प्रभु, अगर हम वापस हमारे पिता के घर जाते हैं, तो हमारा भाग्य क्या होगा ? कोई भी हमसे शादी नहीं करेगा । क्योंकि इस आदमी नें इस राक्षस नें, हमारा अपहरण किया। , " "तो फिर तुम क्या चाहते हो ।" "हम चाहते हैं कि अाप हमारे पति बनें ।" तो श्री कृष्ण इतने दयालु हैं । "हाँ।" तुरंत स्वीकार किया । यही श्री कृष्ण हैं । अब, जब वे घर लाए गए, एसा नहीं कि १६,०००० पत्नियों को १६,००० रातों का इंतजार करना पड़ा श्री कृष्ण से मिलने के लिए । (हंसी) श्री कृष्ण नें १६,००० रूपों में खुद का विस्तार किया, १६,००० महल बनवाए, और प्रत्येक महल में... वर्णन है.... यही भगवान हैं ।  
 
तो ये धूर्त, वे नहीं समझ सकते हैं । श्री कृष्ण की आलोचना करते हैं, कि वे कामुक हैं । उन्होंने १६,००० पत्नियों से शादी की । (हंसी) अगर वे कामुक भी हैं, तो असीमित कामुक । (हंसी) क्योंकि वे असीमित है । क्यों १६,००० ? अगर वे १६ अरब पत्नियों से शादी करते, तो भी यह अपूर्ण है । यही श्री कृष्ण हैं ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730421 - Lecture SB 01.08.29 - Los Angeles

तो, यहाँ कहा गया है: न वेद कश्चिद भगवंश चिकिर्षितम ( श्रीमद भागवतम १.८.२९) | "कोई नहीं जानता है कि अापके प्रकट होने अौर अप्रकट होने का उद्देश्य क्या है । कोई नहीं जानता ।" तो तव, तव ईहमानस्य नृणाम विड़म्बनम ( श्रीमद भागवतम १.८.२९) । यह विस्मयकारी है । कोई भी वास्तविक उद्देश्य क्या है यह समझ नहीं सकता । असली उद्देश्य है उनकी स्वतंत्र मर्जी । "मुझे जाने दो और देखने दो ।" उन्हें राक्षसों को मारने के लिए आने की आवश्यकता नहीं है । इतने सारे सेवक हैं, लकिन अगर एक तेज़ हवा हो, तो हजारों राक्षस एक पल में मारे जा सकते हैं ।

तो श्री कृष्ण को राक्षसों को मारने के लिए आने की आवश्यकता नहीं है । और उन्हे भक्त को संरक्षण देने के लिए भी आने की आवश्यकता नहीं है । केवल इच्छा मात्र से, सब कुछ है । लेकिन यह उनकी अानंद लीला है, "मुझे जाने दो और देखने दो ।" कभी कभी वे लड़ना चाहते हैं । क्योंकि लड़ाई की भावना श्री कृष्ण में भी है । अन्यथा, हमें कहां से मिलती है ? क्योंकि हम श्री कृष्ण के अंशस्वरूप हैं, छोटी मात्रा में श्री कृष्ण के सभी गुण, वे हमारे भीतर हैं । हम कृष्ण का नमूना हैं, लेकिन कहॉ से लड़ाई की यह भावना हमें मिली ? लड़ाई की भावना श्री कृष्ण में है । इसलिए, कभी कभी एक बड़ा आदमी या राजा, वे लड़ने के लिए किसी पहलवान को संलग्न करते हैं । वे, वे वेतन देते हैं राजा के साथ लड़ने के लिए । लेकिन वह दुश्मन नहीं है । वह लड़ाई,नकली लड़ाई, राजा को खुशी दे रही है ।

इसी तरह, जब श्री कृष्ण लड़ना चाहते हैं, उसके साथ कौन लड़ेगा ? उनका कोई भक्त, महान भक्त उनके साथ लड़ेगा । साधारण नहीं । जैसे एक राजा, अगर वह नकली लड़ाई का अभ्यास करना चाहता है, कोई बहुत ऊंचा सेनानी, पहलवान लगाया जाएगा । इसी प्रकार... वह भी सेवा है । क्योंकि श्री कृष्ण लड़ना चाहते हैं, इसलिए उनके कुछ भक्त अाते हैं उनके दुश्मन बनने के लिए । जैसे जय-विजय की तरह । यह हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । क्या तुम्हे लगता है कि वे साधारण जीव हैं ? अगर... वह... नरसिंहदेव, भगवान स्वयं अाए हैं उसे मारने । तुम्हे लगता है वे साधारण हैं ? नहीं, वे साधारण नहीं हैं । वे भक्त हैं । लेकिन श्री कृष्ण लड़ना चाहते थे । वैकुण्ठ जगत में लड़ाई की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वहा हर जगह, हर कोई वहाँ श्री कृष्ण की सेवा में लगे हैं । किसके साथ वे लड़ाई करेंगे ? (हंसी)

इसलिए वे दुश्मन की आड़ में किसी भक्त को भेजते हैं और श्री कृष्ण उसके साथ लड़ने के लिए यहां आते हैं । उसी समय, हमें सिखाने के लिए कि दुश्मन बनना, कृष्ण का दुश्मन बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनना । यही लाभदायक होगा । (हंसी) इसलिए यह कहा जाता है की: न कश्चिद भगवंश चिकिर्षितम ( श्रीमद भागवतम १.८.२९) । "कोई नहीं जानता है अापके प्रकट अौर अप्रकट होने का कारण ।" तव ईहमानस्य नृणाम विड़म्बनम | "अाप इस दुनिया में हैं साधारण इंसान की तरह । इस विस्मयकारी है ।" इसलिए आम आदमी विश्वास नहीं कर सकता है । "कैसे भगवान साधारण व्यक्ति बन सकते हैं ?" श्री कृष्ण अभिनय कर रहे हैं । हालांकि वे साधारण व्यक्ति का अभिनय नहीं कर रहे थे । वे भगवान का अभिनय कर रहे थे ।

जब भी आवश्यकता थी... जैसे उन्होंने १६,००० पत्नियों से विवाह किया । जब उन्होंने शादी की वे एक थे और १६,००० लड़कियों नें श्री कृष्ण को आत्मसमर्पण किया की: "अब हमारा अपहरण हो चुका है । अगर हम घर जाते हैं, कोई भी हमसे शादी नहीं करेगा ।" यही सख्त वैदिक प्रणाली है । अगर एक अविवाहित लड़की एक रात के लिए भी घर से बाहर जाती है, तो कोई भी उससे शादी नहीं करेगा । अभी भी यह चल रहा है । कोई भी शादी नहीं करेगा ।

तो यह पुरानी व्यवस्था है । सभी १६,००० लड़कियॉ भौमासुर द्वारा अपहरण की गई... तो उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की और श्री कृष्ण आए, भौमासुर का वध किया, सभी लड़कियों का उद्धार किया । तो जब श्री कृष्ण ने उन से कहा: "अब तुम सुरक्षित रूप से अपने पिता के घर जा सकती हो," उन्हों ने कहा: "प्रभु, अगर हम वापस हमारे पिता के घर जाते हैं, तो हमारा भाग्य क्या होगा ? कोई भी हमसे शादी नहीं करेगा । क्योंकि इस आदमी नें इस राक्षस नें, हमारा अपहरण किया। , " "तो फिर तुम क्या चाहते हो ।" "हम चाहते हैं कि अाप हमारे पति बनें ।" तो श्री कृष्ण इतने दयालु हैं । "हाँ।" तुरंत स्वीकार किया । यही श्री कृष्ण हैं । अब, जब वे घर लाए गए, एसा नहीं कि १६,०००० पत्नियों को १६,००० रातों का इंतजार करना पड़ा श्री कृष्ण से मिलने के लिए । (हंसी) श्री कृष्ण नें १६,००० रूपों में खुद का विस्तार किया, १६,००० महल बनवाए, और प्रत्येक महल में... वर्णन है.... यही भगवान हैं ।

तो ये धूर्त, वे नहीं समझ सकते हैं । श्री कृष्ण की आलोचना करते हैं, कि वे कामुक हैं । उन्होंने १६,००० पत्नियों से शादी की । (हंसी) अगर वे कामुक भी हैं, तो असीमित कामुक । (हंसी) क्योंकि वे असीमित है । क्यों १६,००० ? अगर वे १६ अरब पत्नियों से शादी करते, तो भी यह अपूर्ण है । यही श्री कृष्ण हैं ।