HI/Prabhupada 0963 - केवल कृष्ण का एक भक्त जो उनसे घनिष्टता के संबंध रखता है भगवद गीता को समझ सकता है

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तो, हमने भगवद गीता की हमारी भूमिका दी है, कि हमें भगवद गीता को समझना होगा जैसे भगवद गीता में निर्देशित है । निर्देश है । भगवद गीता को कैसे पढ़ना चाहिए । लोग निर्देश लिए बिना भगवद गीता को पढ़ रहे हैं । यह हमने इस तरीके से समझाया है कि अगर तुम्हे किसी अौषधि का सेवन करना है, बोतल पर कुछ निर्देश हैं, कि यह खुराक है । तुम इतनी सारी बूँदें इतनी बार ले सकते हो । यह निर्देश है । इसी तरह, भगवद गीता को समझने के लिए वास्तव में, तुम्हे निर्देश को स्वीकार करना होगा जैसे लेखक द्वारा स्वयं दिया गया है, श्री कृष्ण । वे कहते हैं कि, बहुत साल पहले, कुछ चालीस लाख साल पहले, उन्होंने पहली बार सूर्य भगवान को यह भगवद गीता कही थी । और सूर्य भगवान नें यह ज्ञान अपने बेटे मनु को ज्ञान दिया । और मनु ने अपने बेटे, इक्षवकु को यह ज्ञान दिया ।

इमां विवस्वते योगं
प्रोक्तवान अहम अव्ययम्वि
वस्वान मनवे प्राह
मनु: इक्षवाकवे अब्रवीत्
(भ गी ४।१)

तो, राज- ऋषि, वे सभी राजा हैं । मनु राजा हैं, महाराज इक्षवाकु भी राजा हैं, और सूर्य भगवान विस्वान, वे भी राजा हैं । वे सूर्य ग्रह के राजा हैं । और उनके पोते इक्षवाकु इस ग्रह के राजा बने, महाराज इक्षवाकु । और इस वंश में, जो रघु-वंश के रूप में जाना जाता है, प्रभु रामचंद्र अवतरित हुए । यह बहुत पुराना राजतंत्रीय परिवार है । इक्षवाकु वंश, रघु वंश । वंश का मतलब है परिवार । तो पूर्व में, राजा, प्रशासनिक कार्यकारी के अध्यक्ष, वे थीसिस या भगवान द्वारा दिए गए निषेधाज्ञा को सीखते थे । तो भगवद गीता के अनुसार, केवल श्री कृष्ण का एक भक्त ही, जो श्री कृष्ण के साथ घनिष्ट संबंध रखता है, वह समझ सकता है कि भगवद गीता क्या है । श्री कृष्ण ... अर्जुन, श्री कृष्ण से भगवद गीता सुनने के बाद, उसने उन्हे संबोधित किया:

परं ब्रह्म परं धाम
पवित्रं परमं भवान्पु
रुषं शाश्वतं दिव्यम्
अादि देवम् अजम् विभुम्
(भ गी १०।१२)

उसने परब्रह्म के रूप में श्री कृष्ण को समझा । पब्रम का अर्थ है परम सत्य । परम सत्य, परब्रह्म । ब्रह्म, जीव, वे भी ब्रह्म कहे जाते हैं, लेकिन जीव परब्रह्म नहीं हैं । परब्रह्म मतलब सर्वोच्च । तो अर्जुन उन्हे संबोधित करते हैं परब्रह्म कहकर और परंधामं । परंधामं मतलब हर वस्तु के अाश्रय । सब कुछ भगवान की शक्ति पर अाश्रित है । इसलिए वे परंधामं कहलाते हैं । जैसे ये सभी ग्रह सर्य के प्रकाश पर अाश्रित हैं । सूर्य का प्रकाश सूर्य ग्हर की शक्ति है । इसी तरह, यह भौतिक शक्ति श्री कृष्ण की शक्ति है । और सब कुछ, भौतिक या आध्यात्मिक, सब कुछ श्री कृष्ण की शक्ति पर अाश्रित है । अाश्रय है श्री कृष्ण की शक्ति । एक और स्थान पर, श्री कृष्ण कहते हैं:

मया ततम इदं सर्वं
जगद अव्यक्त मूर्तिना
मत स्थानि सर्व भूतान
न चाहं तेषु अवस्थित:
(भ गी ९।४)

श्री कृष्ण कहते हैं कि "मेरे अव्यक्त रूप में, मैं सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हूं ।" सर्वव्यापी । भगवान सर्वव्यापी हैं अपने अव्यक्त रूप में, मतलब उनकी शक्ति । उदाहरण दिया जाता है, जैसे ताप आग की शक्ति है, आग फैलती है अपने ताप और प्रकाश के द्वारा । आग एक जगह पर है, लेकिन ताप और प्रकाश फैल रहा है । इसी तरह, श्री कृष्ण अपने धाम में हैं, जो गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । आध्यात्मिक दुनिया में एक ग्रह है, सर्वोच्च ग्रह ।