HI/Prabhupada 0974 - हमारी महानता बहुत, बहुत छोटी है, अत्यल्प । भगवान बहुत महान हैं

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730408 - Lecture BG 04.13 - New York

Prabhupāda:

चतुर वर्ण्यम मय सृष्टम
गुण कर्म विभाश:
तस्य कर्तारम अपि माम्वि
धि अकर्तारम अव्ययम
(भ गी ४।१३)

यह भगवद गीता से एक श्लोक है । तुम में से अधिकांश इस पुस्तक को जानते हो, भगवद गीता । यह ज्ञान की बहुत प्रसिद्ध किताब है । और हम भगवद गीता यथारूप पेश कर रहे हैं । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मतलब, किसी भी मिलावट के बिना, भगवद गीता यथारूप पेश करना ।

तो श्री कृष्ण कहते हैैं पुरुषों की चार वर्ग, चतुर वर्ण्यम ... चतुर मतलब "चार", और वर्ण मतलब "समाज का विभाजन" । जैसे वर्ण मतलब रंग । जैसे रंग में विभाजन होता है, लाल, नीला और पीला, इसी प्रकार मनुष्य, मानव समाज को गुणवत्ता के अनुसार विभाजित किया जाना चाहिए । गुणवत्ता को रंग भी कहा जाता है । चतुर वर्ण्यम् मया सृष्टम गुण कर्म विभागश: (भ गी ४।१३) तो इस भौतिक संसार में तीन गुण हैं । तीन गुण । या तीन रंग । लाल, नीला और पीला रंग । तुम मिश्रण करो । तो फिर तुम इक्यासी रंग पाअोगे । तीन रंग, तीन अौर तीन, गुणा करो, यह नौ हो जाता है । गुणा करो, नौ अौर नौ, यह इक्यासी हो जाता है । तो चौरासी लाख विभिन्न रूप हैं जीव के । कारण है विभिन्न गुणों के यह मिश्रण । प्रकृति विभिन्न प्रकार के शरीर का निर्माण कर रही है संग के अनुसार जीव का विशेष प्रकार के गुणों के साथ । जीव भगवान का अंशस्वरूप है । मान लो भगवान बड़ी आग हैं और जीव छोटी चिंगारी की तरह । चिंगारी, वे भी आग हैं । चिंगारी भी, अगर एक चिंगारी तुम्हारे शरीर पर गिरती है तुम्हारे वस्त्र पर, यह जला देती है । लेकिन यह बड़ी आग जितनी शक्तिशाली नहीं है । इसी तरह, भगवान सर्व शक्तिशाली हैं । भगवान महान हैं । हम भगवान का अंशस्वरूप हैं । इसलिए, हमारे महानता, बहुत, बहुत छोटी है, अत्यल्प । भगवान महान हैं । इसलिए, उन्होंने इतने सारे ब्रह्मांडों को बनाया है । हम एक ब्रह्मांड का भी हिसाब नहीं दे सकते हैं । यह एक ब्रह्मांद जो हम देखते हैं, आकाश, गुंबद, आकाश के भीतर, बाह्य अंतरिक्ष, लाखों और अरबों सितारे हैं, ग्रह । वे तैर रहे हैं । हवा में तैर रहे हैं । हर कोई जानता है ।