HI/Prabhupada 0987 - यह मत सोचो कि भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम कभी भूखे नहीं रहोगे: Difference between revisions

 
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अब भगवान नें इस ब्रह्मांड को बनाया है । भगवान नें लौकिक अभिव्यक्ति को बनाया है, असंख्य ब्रह्मांड, लेकिन उन्हे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है । उन्हे दिलचस्पी है; उन्होंने बनाया है । उन्होंने हमें यहाँ रहने की सुविधा दी है, लेकिन वे इसका आनंद लेने के लिए यहां नहीं आते हैं । उनके पास बेहतर सुविधा है । या फिर वे इन सभी एश्वर्यों की परवाह नहीं करते हैं । यही भगवान का एक और योग्यता है । तो यह मनुष्य जीवन भगवान को समझने के लिए है, पूर्ण ज्ञान के साथ, वैज्ञानिक रूप से । यह श्रीमद-भागवतम में वर्णित है । इसलिए हम इस भागवत प्रवचन कस प्रचार कर रहे हैं । श्रीमद-भागवतम की शुरुआत में भगवान की प्रकृति क्या है ? यह वर्णित किया गया है, जन्मादि अस्य यत: अन्वयाद इतरतश च अर्थेषु अभिज्ञ: स्वराट ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री १।१।१]])(श्री १।१।१) । भगवान ... भगवान जानकार हैं, वे सब कुछ जानते हैं । वे एक संवेदनशील जीव हैं । न की एक मृत पत्थर । अगर भगवान एक संवेदनशील जीव नहीं है, अगर भगवान व्यक्ति नहीं हैं, कैसे इतने सारे शक्तिशाली व्यक्ति, संवेदनशील व्यक्ति उनसे आ रहे हैं ? अगर पिता बुद्धिमान नहीं है, तो बेटे और बेटियॉ बुद्धिमान कैसे बन सकते हैं ? एक कुत्ता एक बुद्धिमान व्यक्ति को जन्म नहीं दे सकता, जो बुद्धिमान है, वह बुद्धिमान बच्चों को जन्म दे सकता है । यह हमारा व्यावहारिक अनुभव है । इसलिए भगवान का यह विवरण, एश्वर्यस्य समग्रस्य वीरयस्य यशस: श्रिय: । हमें भगवान क्या है यह समझने की कोशिश करनी चाहिए । अगर तुम एक एसे व्यक्ति का पता लगा सकते हो जो हर चीज़ में बेहतर है, धन में, शक्ति में, सुंदरता में, प्रसिद्धि में, ज्ञान में, त्याग में, वो भगवान हैं । किसी भी चौथे वर्ग के भगवान को मत अपनाअो । अगर तुम बुद्धिमान हो, भगवान का अर्थ क्या है यह समझने की कोशिश करो और ... समझने की कोशिश करो
अब भगवान नें इस ब्रह्मांड को बनाया है । भगवान नें लौकिक अभिव्यक्ति, असंख्य ब्रह्मांड, को बनाया है, लेकिन उन्हे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है । उन्हे दिलचस्पी है; उन्होंने बनाया है । उन्होंने हमें यहाँ रहने की सुविधा दी है, लेकिन वे इसका आनंद लेने के लिए यहां नहीं आते हैं । उनके पास बेहतर सुविधा है । या फिर वे इन सभी एश्वर्यों की परवाह नहीं करते हैं । यही भगवान की एक और योग्यता है । तो यह मनुष्य जीवन भगवान को समझने के लिए है, पूर्ण ज्ञान के साथ, वैज्ञानिक रूप से । यह श्रीमद-भागवतम में वर्णित है । इसलिए हम इस भागवत प्रवचन का प्रचार कर रहे हैं ।  


तो यहाँ श्रीमद-भागवतम में, यह कहा गया है कि यह प्रथम श्रेणी का धर्म है वो क्या हे ? जो अनुयायियों को अवसर देता है कि भगवान से कैसे प्रेम करें । हम क्यों नहीं करना चाहिए ? अगर ईश्वर महान हैं, अगर हमारे पिता इतने महान हैं, तो हम क्यों प्यार न करें ? हम किसी की चापलूसी यहाँ करते हैं, किसी के पास है, मान लो, कुछ लाख डॉलर, हम चापलूसी और सबसे अमीर कौन है, क्यों हम उसे प्यार नहीं करें ? क्यूँ ? क्या कारण है ? और वास्तव में वे हर चीज़ की आपूर्ति कर रहे हैं सब कुछ, एको बहुनाम विदधाति कामान । वे सभी जीवों को जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रहे हैं हाथी से चींटी तक । । तो हम क्यों नहीं ? हमने भगवान की सेवा के लिए हमारा पूरा जीवन समर्पित कर दिया है तो भगवान अगर हाथी को, चींटी को भोजन दे रहे हैं, तो हमें क्यों नहीं ? तो यह मत सोचो िक भगवान भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम भूखे कभी नहीं रहोगे । तुम अपना कर्तव्य करते रहो, भगवान से प्रेम करना और भगवान के प्रेम का प्रचार करो । तुम हमेशा भव्य रहोगे, सुनिश्चित रहो । एक साधारण आदमी है, अगर तुम उसके लिए काम करते हो, तो वह तुम्हे वेतन देगा, अच्छा वेतन । और हम भगवान के लिए काम कर रहे हैं, हम सभी को वेतन नहीं मिलता है ? वह कैसे ? (हंसी) हमे मिलना ही चाहिए । अगर तुम सच में भगवान के प्रेमी हो, भगवान के लिए कार्य करने वाले, अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में मत सोचो । इसे समर्थन मिलेगा । भगवद गीता में यह कहा गया है, योग-क्षेमम् वहामि अहम ([[Vanisource:BG 9.22|भ गी ९।२२]])  । वह व्यक्तिगत रूप से आपूर्ति करते हैं जिन चीज़ों की आवश्यकता है । जैसे एक पिता । एक छोटा बच्चा माता-पिता पर पूरी तरह से निर्भर है, माता-पिता उसके आराम का ख्याल रखते हैं । बच्चे नें माता पिता से पूछ नहीं, क्योंकि वह बात भी नहीं कर सकता है । तो वह केवल भगवान पर निर्भर करता है, केवल माता-पिता पर केवल अगर तुम बस भगवान पर निर्भर करते हो, तो तुम्हारे आर्थिक समस्या का कोई सवाल ही नहीं है । सुनिश्चित रहो । यह आम भावना है
श्रीमद-भागवतम की शुरुआत में भगवान की प्रकृति क्या है ? यह वर्णित किया गया है, जन्मादि अस्य यत: अन्वयाद इतरतश च अर्थेषु अभिज्ञ: स्वराट ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) । भगवान... भगवान जानकार हैं, वे सब कुछ जानते हैं । वे एक संवेदनशील जीव हैं । न की एक मृत पत्थर । अगर भगवान एक संवेदनशील जीव नहीं है, अगर भगवान व्यक्ति नहीं हैं, कैसे इतने सारे शक्तिशाली व्यक्ति, संवेदनशील व्यक्ति उनसे आ रहे हैं ? अगर पिता बुद्धिमान नहीं है, तो बेटे और बेटियॉ बुद्धिमान कैसे बन सकते हैं ? एक कुत्ता एक बुद्धिमान व्यक्ति को जन्म नहीं दे सकता, जो बुद्धिमान है, वह बुद्धिमान बच्चों को जन्म दे सकता है । यह हमारा व्यावहारिक अनुभव है । इसलिए भगवान का यह विवरण, एश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशस: श्रिय: ।  


तो वर्तमान समय में भगवान के भक्तों की कमी है। लोगों ने भगवान को नकार दिया है । कोई कह रहा है "भगवान मर चुका है।" कोई किसी धूर्त को भगवान के रूप में स्वीकार कर रहा है । कोई स्वयं को भगवान के रूप में घोषित कर रहा है । नहीं, वैज्ञानिक रूप से भगवान को समझने की कोशिश करो और एक भक्त बनो, भगवान का एक प्रेमी, तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । यह नहीं कि " तुम्हारा भगवान, "" मेरा भगवान" "वह धर्म " " यह धर्म " भगवान एक हैं और धर्म एक है । धर्म क्या है? परमेश्वर का प्रेम । बस इतना ही । कोई अन्य दूसरा धर्म नहीं है । यही धर्म है । इसलिए भगवान आते हैं और कहते हैं, सर्व-धर्मन परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[Vanisource:BG 18.66|भ गी १८।६६]]) । यही धर्म है ।
हमें भगवान क्या है यह समझने की कोशिश करनी चाहिए । अगर तुम एक एसे व्यक्ति का पता लगा सकते हो जो हर चीज़ में बेहतर है, धन में, शक्ति में, सुंदरता में, प्रसिद्धि में, ज्ञान में, त्याग में, वो भगवान हैं । किसी भी चौथे वर्ग के भगवान को मत अपनाअो । अगर तुम बुद्धिमान हो, भगवान का अर्थ क्या है यह समझने की कोशिश करो और... समझने की कोशिश करो । तो यहाँ श्रीमद-भागवतम में, यह कहा गया है कि वो प्रथम श्रेणी का धर्म है | वो क्या हे ? जो अनुयायियों को अवसर देता है कि भगवान से कैसे प्रेम करें । हमें क्यों नहीं करना चाहिए ?
 
अगर ईश्वर महान हैं, अगर हमारे पिता इतने महान हैं, तो हम क्यों प्यार न करें ? हम किसी की चापलूसी यहाँ करते हैं, किसी के पास है, मान लो, कुछ लाख डॉलर, हम चापलूसी करते है, और सबसे अमीर कौन है, क्यों हम उनसे प्यार नहीं करें ? क्यूँ ? क्या कारण है ? और वास्तव में वे हर चीज़ की आपूर्ति कर रहे हैं सब कुछ, एको बहुनाम विदधाति कामान । वे सभी जीवों को जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रहे हैं हाथी से चींटी तक । तो हमें क्यों नहीं करेंगे ? हमने भगवान की सेवा के लिए हमारा पूरा जीवन समर्पित कर दिया है, तो भगवान अगर हाथी को, चींटी को भोजन दे रहे हैं, तो हमें क्यों नहीं देंगे ?
 
तो यह मत सोचो की भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम भूखे कभी नहीं रहोगे । तुम अपना कर्तव्य करते रहो, भगवान से प्रेम करना और भगवान के प्रेम का प्रचार करो । तुम हमेशा भव्य रहोगे, सुनिश्चित रहो । एक साधारण आदमी है, अगर तुम उसके लिए काम करते हो, तो वह तुम्हे वेतन देगा, अच्छा वेतन । और हम भगवान के लिए काम कर रहे हैं, हम सभी को वेतन नहीं मिलता है ? वह कैसे ? (हंसी) हमे मिलना ही चाहिए । अगर तुम सच में भगवान के प्रेमी हो, भगवान के लिए कार्य करने वाले, अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में मत सोचो । इसे समर्थन मिलेगा ।
 
भगवद गीता में यह कहा गया है, योग-क्षेमम वहामि अहम ([[HI/BG 9.22|भ.गी. ९.२२]]) । वह व्यक्तिगत रूप से आपूर्ति करते हैं जिन चीज़ों की आवश्यकता है । जैसे एक पिता । एक छोटा बच्चा माता-पिता पर पूरी तरह से निर्भर है, माता-पिता उसके आराम का ख्याल रखते हैं । बच्चा माता पिता से पूछता नहीं, क्योंकि वह बात भी नहीं कर सकता । तो वह केवल भगवान पर निर्भर करता है, केवल माता-पिता पर । केवल, अगर तुम बस भगवान पर निर्भर करते हो, तो तुम्हारी आर्थिक समस्या का कोई सवाल ही नहीं है । सुनिश्चित रहो । यह सामान्य ज्ञान है । तो वर्तमान समय में भगवान के भक्तों की कमी है। लोगों ने भगवान को नकार दिया है । कोई कह रहा है "भगवान मर चुका है।" कोई किसी धूर्त को भगवान के रूप में स्वीकार कर रहा है । कोई स्वयं को भगवान के रूप में घोषित कर रहा है ।  
 
नहीं, वैज्ञानिक रूप से भगवान को समझने की कोशिश करो और एक भक्त बनो, भगवान का एक प्रेमी, तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । यह नहीं की" मेरा भगवान, " "तुम्हारा भगवान" "यह धर्म" "वह धर्म |" भगवान एक हैं और धर्म एक है । धर्म क्या है? परमेश्वर का प्रेम । बस इतना ही । कोई अन्य दूसरा धर्म नहीं है । यही धर्म है । इसलिए भगवान आते हैं और कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । यही धर्म है ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



720905 - Lecture SB 01.02.07 - New Vrindaban, USA

अब भगवान नें इस ब्रह्मांड को बनाया है । भगवान नें लौकिक अभिव्यक्ति, असंख्य ब्रह्मांड, को बनाया है, लेकिन उन्हे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है । उन्हे दिलचस्पी है; उन्होंने बनाया है । उन्होंने हमें यहाँ रहने की सुविधा दी है, लेकिन वे इसका आनंद लेने के लिए यहां नहीं आते हैं । उनके पास बेहतर सुविधा है । या फिर वे इन सभी एश्वर्यों की परवाह नहीं करते हैं । यही भगवान की एक और योग्यता है । तो यह मनुष्य जीवन भगवान को समझने के लिए है, पूर्ण ज्ञान के साथ, वैज्ञानिक रूप से । यह श्रीमद-भागवतम में वर्णित है । इसलिए हम इस भागवत प्रवचन का प्रचार कर रहे हैं ।

श्रीमद-भागवतम की शुरुआत में भगवान की प्रकृति क्या है ? यह वर्णित किया गया है, जन्मादि अस्य यत: अन्वयाद इतरतश च अर्थेषु अभिज्ञ: स्वराट (श्रीमद भागवतम १.१.१) । भगवान... भगवान जानकार हैं, वे सब कुछ जानते हैं । वे एक संवेदनशील जीव हैं । न की एक मृत पत्थर । अगर भगवान एक संवेदनशील जीव नहीं है, अगर भगवान व्यक्ति नहीं हैं, कैसे इतने सारे शक्तिशाली व्यक्ति, संवेदनशील व्यक्ति उनसे आ रहे हैं ? अगर पिता बुद्धिमान नहीं है, तो बेटे और बेटियॉ बुद्धिमान कैसे बन सकते हैं ? एक कुत्ता एक बुद्धिमान व्यक्ति को जन्म नहीं दे सकता, जो बुद्धिमान है, वह बुद्धिमान बच्चों को जन्म दे सकता है । यह हमारा व्यावहारिक अनुभव है । इसलिए भगवान का यह विवरण, एश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशस: श्रिय: ।

हमें भगवान क्या है यह समझने की कोशिश करनी चाहिए । अगर तुम एक एसे व्यक्ति का पता लगा सकते हो जो हर चीज़ में बेहतर है, धन में, शक्ति में, सुंदरता में, प्रसिद्धि में, ज्ञान में, त्याग में, वो भगवान हैं । किसी भी चौथे वर्ग के भगवान को मत अपनाअो । अगर तुम बुद्धिमान हो, भगवान का अर्थ क्या है यह समझने की कोशिश करो और... समझने की कोशिश करो । तो यहाँ श्रीमद-भागवतम में, यह कहा गया है कि वो प्रथम श्रेणी का धर्म है | वो क्या हे ? जो अनुयायियों को अवसर देता है कि भगवान से कैसे प्रेम करें । हमें क्यों नहीं करना चाहिए ?

अगर ईश्वर महान हैं, अगर हमारे पिता इतने महान हैं, तो हम क्यों प्यार न करें ? हम किसी की चापलूसी यहाँ करते हैं, किसी के पास है, मान लो, कुछ लाख डॉलर, हम चापलूसी करते है, और सबसे अमीर कौन है, क्यों हम उनसे प्यार नहीं करें ? क्यूँ ? क्या कारण है ? और वास्तव में वे हर चीज़ की आपूर्ति कर रहे हैं सब कुछ, एको बहुनाम विदधाति कामान । वे सभी जीवों को जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रहे हैं हाथी से चींटी तक । तो हमें क्यों नहीं करेंगे ? हमने भगवान की सेवा के लिए हमारा पूरा जीवन समर्पित कर दिया है, तो भगवान अगर हाथी को, चींटी को भोजन दे रहे हैं, तो हमें क्यों नहीं देंगे ?

तो यह मत सोचो की भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम भूखे कभी नहीं रहोगे । तुम अपना कर्तव्य करते रहो, भगवान से प्रेम करना और भगवान के प्रेम का प्रचार करो । तुम हमेशा भव्य रहोगे, सुनिश्चित रहो । एक साधारण आदमी है, अगर तुम उसके लिए काम करते हो, तो वह तुम्हे वेतन देगा, अच्छा वेतन । और हम भगवान के लिए काम कर रहे हैं, हम सभी को वेतन नहीं मिलता है ? वह कैसे ? (हंसी) हमे मिलना ही चाहिए । अगर तुम सच में भगवान के प्रेमी हो, भगवान के लिए कार्य करने वाले, अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में मत सोचो । इसे समर्थन मिलेगा ।

भगवद गीता में यह कहा गया है, योग-क्षेमम वहामि अहम (भ.गी. ९.२२) । वह व्यक्तिगत रूप से आपूर्ति करते हैं जिन चीज़ों की आवश्यकता है । जैसे एक पिता । एक छोटा बच्चा माता-पिता पर पूरी तरह से निर्भर है, माता-पिता उसके आराम का ख्याल रखते हैं । बच्चा माता पिता से पूछता नहीं, क्योंकि वह बात भी नहीं कर सकता । तो वह केवल भगवान पर निर्भर करता है, केवल माता-पिता पर । केवल, अगर तुम बस भगवान पर निर्भर करते हो, तो तुम्हारी आर्थिक समस्या का कोई सवाल ही नहीं है । सुनिश्चित रहो । यह सामान्य ज्ञान है । तो वर्तमान समय में भगवान के भक्तों की कमी है। लोगों ने भगवान को नकार दिया है । कोई कह रहा है "भगवान मर चुका है।" कोई किसी धूर्त को भगवान के रूप में स्वीकार कर रहा है । कोई स्वयं को भगवान के रूप में घोषित कर रहा है ।

नहीं, वैज्ञानिक रूप से भगवान को समझने की कोशिश करो और एक भक्त बनो, भगवान का एक प्रेमी, तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । यह नहीं की" मेरा भगवान, " "तुम्हारा भगवान" "यह धर्म" "वह धर्म |" भगवान एक हैं और धर्म एक है । धर्म क्या है? परमेश्वर का प्रेम । बस इतना ही । कोई अन्य दूसरा धर्म नहीं है । यही धर्म है । इसलिए भगवान आते हैं और कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) । यही धर्म है ।