HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग: Difference between revisions

 
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प्रभुपाद: श्री कृष्ण को समझना कोई साधारण बात नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं,
प्रभुपाद: श्री कृष्ण को समझना कोई साधारण बात नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं,  


मनुष्यानाम् सस्रेशु
:मनुष्याणाम सस्रेशु  
कश्चिद यतति सिद्धये
:कश्चिद यतति सिद्धये  
यतताम अपि सिद्धानाम्क
:यतताम अपि सिद्धानाम्
श्चिन वेत्ति माम् तत्वत:
:कश्चिन वेत्ति माम तत्वत:  
:([[Vanisource:BG 7.3|भ गी ७।३]])
:([[HI/BG 7.3|भ.गी. ७.३]])


तो इस सत्य समझा जा सकता है माध्यम से ... श्री कृष्ण के माध्यम से या श्री कृष्ण के प्रतिनिधि के माध्यम से । श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं,
तो इस सत्य समझा जा सकता है माध्यम से... श्री कृष्ण के माध्यम से या श्री कृष्ण के प्रतिनिधि के माध्यम से । श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं,  


मयि अासक्त मना: पार्थ
:मयी अासक्त मना: पार्थ  
योगम् युन्जन मद अाश्रय:
:योगम युन्जन मद अाश्रय  
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:([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१])  


मद अाश्रय: । मद अाश्रय: मतलब "मेरे अाधीन....मेरे अाधीन ।" वास्तव में इसका मतलब है ....मद अाश्रय: मतलब, जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है, या जिसने आत्मसमर्पण कर दिया है श्री कृष्ण के समक्ष बिना किसी शर्त के । उसे मद अाश्रय: कहा जाता है, या पूर्ण तरह से जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है । तो यह योग, भक्ति योग, जैसे यहाँ कहा गया है, भगवद भक्ति-योगत: ... तो भगवद भक्ति-योग सीखा जा सकता है जब कोई भगवद भक्त के चरण कमलों का पूरी तरह से आश्रय लेता है । यही भगवद-भक्त कहा जाता है । वह स्वतंत्र रूप से भगवद भक्त नहीं बन सकता है, अपने आध्यात्मिक गुरु की परवाह किए बिना । यह बकवास है । यह धूर्तता है । वह कभी नहीं कर सकेगा । हम रोज़ गा रहे हैं, यस्य प्रसादाद भगवत प्रसादो । लेकिन तुम्हे अर्थ पता नहीं है, दुर्भाग्य से, यस्य प्रसादाद : अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न है, तो भगवान प्रसन्न हैं । ऐसा नहीं है कि स्वतंत्र रूप से ... यस्य, यस्य प्रसादाद । दस प्रकार के अपराधों में, पहला अपराध है गुरोर अवज्ञा, गुरु के आदेशों की अवहेलना, और विशेष रूप से गुरु का काम है कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना । और अगर कोई व्यक्ति निंदा करता है उस व्यक्ति का जो पूरी दुनिया में श्री कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहा है, यह सबसे बड़ा अपराध है । लेकिन हम दस प्रकार के अपराध पढ़ रहे हैं, गुरवाष्टक, और गुरु के ... तुम अर्थ जानते हो, क्या है वह, श्री गुरु-चरण-पद्म ? वह गाना क्या है? इसे पढ़ो
मद अाश्रय: । मद अाश्रय: मतलब "मेरे अाधीन... मेरे अाधीन ।" वास्तव में इसका मतलब है... मद अाश्रय: मतलब, जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है, या जिसने श्री कृष्ण के समक्ष बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया है । उसे मद अाश्रय: कहा जाता है, या पूर्ण तरह से जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है । तो यह योग, भक्ति योग, जैसे यहाँ कहा गया है, भगवद भक्ति-योगत: ... तो भगवद भक्ति-योग सीखा जा सकता है जब कोई भगवद भक्त के चरण कमलों का पूरी तरह से आश्रय लेता है । यही भगवद-भक्त कहा जाता है । वह स्वतंत्र रूप से भगवद भक्त नहीं बन सकता है, अपने आध्यात्मिक गुरु की परवाह किए बिना । यह बकवास है । यह धूर्तता है । वह कभी नहीं कर सकेगा ।  


भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म, केवल भकति-सदम, बंदो मुइ सावधान...
हम रोज़ गा रहे हैं, यस्य प्रसादाद भगवत प्रसादो । लेकिन तुम्हे अर्थ पता नहीं है, दुर्भाग्य से | यस्य प्रसादाद: अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न है, तो भगवान प्रसन्न हैं । ऐसा नहीं है कि स्वतंत्र रूप से... यस्य, यस्य प्रसादाद । दस प्रकार के अपराधों में, पहला अपराध है गुरोर अवज्ञा, गुरु के आदेशों की अवहेलना | और विशेष रूप से गुरु का काम है कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना । और अगर कोई व्यक्ति निंदा करता है उस व्यक्ति की जो पूरी दुनिया में श्री कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहा है, यह सबसे बड़ा अपराध है । लेकिन हम दस प्रकार के अपराध पढ़ रहे हैं, गुर्वाष्टक, और गुरु के... तुम अर्थ जानते हो, क्या है वह, श्री गुरु-चरण-पद्म ? वह गाना क्या है? इसे पढ़ो ।


प्रभुपाद: आह, सावधान माते, "बड़ी सावधानी के साथ ।" तुम यह गीत गाते हो - क्य तुम अर्थ जानते हो ? नहीं । कौन अर्थ समझा सकता है ? हाँ, तुम समझाअो ।
भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म, केवल भकति-सद्म, बंदो मुइ सावधान...


भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म मतलब "गुरु के चरण कमल ।" केवल भकति सदम, वह भक्ति भक्ति का सागर है बंदो मुइ सावधान मतलब कि हम बहुत श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं उनकी
प्रभुपाद: आह, सावधान मते, "बड़ी सावधानी के साथ ।" तुम यह गीत गाते हो - क्य तुम अर्थ जानते हो ? नहीं । कौन अर्थ समझा सकता है ? हाँ, तुम समझाअो ।  


प्रभुपाद: हम्म पढ़o । अन्य लाइनें पढ़ो
भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म मतलब "गुरु के चरण कमल " केवल भकति सदम, वह भक्ति का सागर है बंदो मुइ सावधान मतलब कि हम बहुत श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं उनकी |


भक्त: जाहार प्रसादे भाई ...
प्रभुपाद: हम्म । पढ़ो । अन्य पंक्तिया पढ़ो ।


प्रभुपाद: आह, जाहार प्रसादे भाई। अागे ?
भक्त: जाहार प्रसादे भाई...


भक्त: ए भव व तोरिया जाइ ।
प्रभुपाद: आह, जाहार प्रसादे भाई। अागे ?


प्रभुपाद: ए भव व तोरिया जाइ । अगर कोई, मेरे कहने का मतलब है, मेरे गुरु की कृपा के कारण, फिर पथ पार करने का अजान का स्पष्ट है । जाहार प्रसादे भाई ए भव तोरिया जाइ । फिर, अगली पंक्ति?
भक्त: ए भव व तोरिया जाइ ।  


भक्त: कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते
प्रभुपाद: ए भव तोरिया जाइ अगर कोई, मेरे कहने का मतलब है, गुरु की कृपा प्राप्त करता है, फिर अज्ञान को पार करने का पथ स्पष्ट है । जाहार प्रसादे भाई ए भव तोरिया जाइ । फिर, अगली पंक्ति?


प्रभुपाद: और कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते : गुरु की कृपा से कृष्ण मिलते हैं । यह ...यस्य प्रसादाद भगवत । हर जगह । यह भगवद भक्ति-योग है । तो जो इस स्तर पर नहीं है, यह भगवद भक्ति क्या है ? यह धूर्तता है यह भगवद नहीं है ...
भक्त: कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते ।  


:एवं प्रसन्न-मनसो
प्रभुपाद: और कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते: गुरु की कृपा से कृष्ण मिलते हैं । यह.. .यस्य प्रसादाद भगवत । हर जगह । यह भगवद भक्ति-योग है । तो जो इस स्तर पर नहीं है, यह भगवद भक्ति क्या है ? यह धूर्तता है । यह भगवद नहीं है...
:भगवद भक्ति-योगत:
 
:([[Vanisource:SB 1.2.20|श्री भ १।२।२०]])
:एवम प्रसन्न-मनसो  
:भगवद भक्ति-योगत: ([[Vanisource:SB 1.2.20|श्रीमद भागवतम १.२.२०]])
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



740724 - Lecture SB 01.02.20 - New York

प्रभुपाद: श्री कृष्ण को समझना कोई साधारण बात नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं,

मनुष्याणाम सस्रेशु
कश्चिद यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम्
कश्चिन वेत्ति माम तत्वत:
(भ.गी. ७.३) ।

तो इस सत्य समझा जा सकता है माध्यम से... श्री कृष्ण के माध्यम से या श्री कृष्ण के प्रतिनिधि के माध्यम से । श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं,

मयी अासक्त मना: पार्थ
योगम युन्जन मद अाश्रय
([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१])

मद अाश्रय: । मद अाश्रय: मतलब "मेरे अाधीन... मेरे अाधीन ।" वास्तव में इसका मतलब है... मद अाश्रय: मतलब, जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है, या जिसने श्री कृष्ण के समक्ष बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया है । उसे मद अाश्रय: कहा जाता है, या पूर्ण तरह से जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है । तो यह योग, भक्ति योग, जैसे यहाँ कहा गया है, भगवद भक्ति-योगत: ... तो भगवद भक्ति-योग सीखा जा सकता है जब कोई भगवद भक्त के चरण कमलों का पूरी तरह से आश्रय लेता है । यही भगवद-भक्त कहा जाता है । वह स्वतंत्र रूप से भगवद भक्त नहीं बन सकता है, अपने आध्यात्मिक गुरु की परवाह किए बिना । यह बकवास है । यह धूर्तता है । वह कभी नहीं कर सकेगा ।

हम रोज़ गा रहे हैं, यस्य प्रसादाद भगवत प्रसादो । लेकिन तुम्हे अर्थ पता नहीं है, दुर्भाग्य से | यस्य प्रसादाद: अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न है, तो भगवान प्रसन्न हैं । ऐसा नहीं है कि स्वतंत्र रूप से... यस्य, यस्य प्रसादाद । दस प्रकार के अपराधों में, पहला अपराध है गुरोर अवज्ञा, गुरु के आदेशों की अवहेलना | और विशेष रूप से गुरु का काम है कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना । और अगर कोई व्यक्ति निंदा करता है उस व्यक्ति की जो पूरी दुनिया में श्री कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहा है, यह सबसे बड़ा अपराध है । लेकिन हम दस प्रकार के अपराध पढ़ रहे हैं, गुर्वाष्टक, और गुरु के... तुम अर्थ जानते हो, क्या है वह, श्री गुरु-चरण-पद्म ? वह गाना क्या है? इसे पढ़ो ।

भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म, केवल भकति-सद्म, बंदो मुइ सावधान...

प्रभुपाद: आह, सावधान मते, "बड़ी सावधानी के साथ ।" तुम यह गीत गाते हो - क्य तुम अर्थ जानते हो ? नहीं । कौन अर्थ समझा सकता है ? हाँ, तुम समझाअो ।

भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म मतलब "गुरु के चरण कमल ।" केवल भकति सदम, वह भक्ति का सागर है । बंदो मुइ सावधान मतलब कि हम बहुत श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं उनकी |

प्रभुपाद: हम्म । पढ़ो । अन्य पंक्तिया पढ़ो ।

भक्त: जाहार प्रसादे भाई...

प्रभुपाद: आह, जाहार प्रसादे भाई। अागे ?

भक्त: ए भव व तोरिया जाइ ।

प्रभुपाद: ए भव तोरिया जाइ । अगर कोई, मेरे कहने का मतलब है, गुरु की कृपा प्राप्त करता है, फिर अज्ञान को पार करने का पथ स्पष्ट है । जाहार प्रसादे भाई ए भव तोरिया जाइ । फिर, अगली पंक्ति?

भक्त: कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते ।

प्रभुपाद: और कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते: गुरु की कृपा से कृष्ण मिलते हैं । यह.. .यस्य प्रसादाद भगवत । हर जगह । यह भगवद भक्ति-योग है । तो जो इस स्तर पर नहीं है, यह भगवद भक्ति क्या है ? यह धूर्तता है । यह भगवद नहीं है...

एवम प्रसन्न-मनसो
भगवद भक्ति-योगत: (श्रीमद भागवतम १.२.२०) ।