HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग: Difference between revisions
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तो इस सत्य समझा जा सकता है माध्यम से ... श्री कृष्ण के माध्यम से या श्री कृष्ण के प्रतिनिधि के माध्यम से । श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, | तो इस सत्य समझा जा सकता है माध्यम से... श्री कृष्ण के माध्यम से या श्री कृष्ण के प्रतिनिधि के माध्यम से । श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, | ||
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मद अाश्रय: । मद अाश्रय: मतलब "मेरे अाधीन | मद अाश्रय: । मद अाश्रय: मतलब "मेरे अाधीन... मेरे अाधीन ।" वास्तव में इसका मतलब है... मद अाश्रय: मतलब, जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है, या जिसने श्री कृष्ण के समक्ष बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया है । उसे मद अाश्रय: कहा जाता है, या पूर्ण तरह से जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है । तो यह योग, भक्ति योग, जैसे यहाँ कहा गया है, भगवद भक्ति-योगत: ... तो भगवद भक्ति-योग सीखा जा सकता है जब कोई भगवद भक्त के चरण कमलों का पूरी तरह से आश्रय लेता है । यही भगवद-भक्त कहा जाता है । वह स्वतंत्र रूप से भगवद भक्त नहीं बन सकता है, अपने आध्यात्मिक गुरु की परवाह किए बिना । यह बकवास है । यह धूर्तता है । वह कभी नहीं कर सकेगा । | ||
हम रोज़ गा रहे हैं, यस्य प्रसादाद भगवत प्रसादो । लेकिन तुम्हे अर्थ पता नहीं है, दुर्भाग्य से | यस्य प्रसादाद: अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न है, तो भगवान प्रसन्न हैं । ऐसा नहीं है कि स्वतंत्र रूप से... यस्य, यस्य प्रसादाद । दस प्रकार के अपराधों में, पहला अपराध है गुरोर अवज्ञा, गुरु के आदेशों की अवहेलना | और विशेष रूप से गुरु का काम है कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना । और अगर कोई व्यक्ति निंदा करता है उस व्यक्ति की जो पूरी दुनिया में श्री कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहा है, यह सबसे बड़ा अपराध है । लेकिन हम दस प्रकार के अपराध पढ़ रहे हैं, गुर्वाष्टक, और गुरु के... तुम अर्थ जानते हो, क्या है वह, श्री गुरु-चरण-पद्म ? वह गाना क्या है? इसे पढ़ो । | |||
भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म, केवल भकति-सद्म, बंदो मुइ सावधान... | |||
प्रभुपाद: आह, सावधान मते, "बड़ी सावधानी के साथ ।" तुम यह गीत गाते हो - क्य तुम अर्थ जानते हो ? नहीं । कौन अर्थ समझा सकता है ? हाँ, तुम समझाअो । | |||
भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म मतलब "गुरु के चरण कमल ।" केवल भकति सदम, वह भक्ति का सागर है । बंदो मुइ सावधान मतलब कि हम बहुत श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं उनकी | | |||
प्रभुपाद: हम्म । पढ़ो । अन्य पंक्तिया पढ़ो । | |||
भक्त: जाहार प्रसादे भाई... | |||
प्रभुपाद: आह, जाहार प्रसादे भाई। अागे ? | |||
भक्त: ए भव व तोरिया जाइ । | |||
प्रभुपाद: ए भव तोरिया जाइ । अगर कोई, मेरे कहने का मतलब है, गुरु की कृपा प्राप्त करता है, फिर अज्ञान को पार करने का पथ स्पष्ट है । जाहार प्रसादे भाई ए भव तोरिया जाइ । फिर, अगली पंक्ति? | |||
भक्त: कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते । | |||
: | प्रभुपाद: और कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते: गुरु की कृपा से कृष्ण मिलते हैं । यह.. .यस्य प्रसादाद भगवत । हर जगह । यह भगवद भक्ति-योग है । तो जो इस स्तर पर नहीं है, यह भगवद भक्ति क्या है ? यह धूर्तता है । यह भगवद नहीं है... | ||
:भगवद भक्ति-योगत | |||
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:भगवद भक्ति-योगत: ([[Vanisource:SB 1.2.20|श्रीमद भागवतम १.२.२०]]) । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
740724 - Lecture SB 01.02.20 - New York
प्रभुपाद: श्री कृष्ण को समझना कोई साधारण बात नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं,
- मनुष्याणाम सस्रेशु
- कश्चिद यतति सिद्धये
- यतताम अपि सिद्धानाम्
- कश्चिन वेत्ति माम तत्वत:
- (भ.गी. ७.३) ।
तो इस सत्य समझा जा सकता है माध्यम से... श्री कृष्ण के माध्यम से या श्री कृष्ण के प्रतिनिधि के माध्यम से । श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं,
- मयी अासक्त मना: पार्थ
- योगम युन्जन मद अाश्रय
- ([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१])
मद अाश्रय: । मद अाश्रय: मतलब "मेरे अाधीन... मेरे अाधीन ।" वास्तव में इसका मतलब है... मद अाश्रय: मतलब, जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है, या जिसने श्री कृष्ण के समक्ष बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया है । उसे मद अाश्रय: कहा जाता है, या पूर्ण तरह से जिसने श्री कृष्ण की शरण ले ली है । तो यह योग, भक्ति योग, जैसे यहाँ कहा गया है, भगवद भक्ति-योगत: ... तो भगवद भक्ति-योग सीखा जा सकता है जब कोई भगवद भक्त के चरण कमलों का पूरी तरह से आश्रय लेता है । यही भगवद-भक्त कहा जाता है । वह स्वतंत्र रूप से भगवद भक्त नहीं बन सकता है, अपने आध्यात्मिक गुरु की परवाह किए बिना । यह बकवास है । यह धूर्तता है । वह कभी नहीं कर सकेगा ।
हम रोज़ गा रहे हैं, यस्य प्रसादाद भगवत प्रसादो । लेकिन तुम्हे अर्थ पता नहीं है, दुर्भाग्य से | यस्य प्रसादाद: अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न है, तो भगवान प्रसन्न हैं । ऐसा नहीं है कि स्वतंत्र रूप से... यस्य, यस्य प्रसादाद । दस प्रकार के अपराधों में, पहला अपराध है गुरोर अवज्ञा, गुरु के आदेशों की अवहेलना | और विशेष रूप से गुरु का काम है कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना । और अगर कोई व्यक्ति निंदा करता है उस व्यक्ति की जो पूरी दुनिया में श्री कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहा है, यह सबसे बड़ा अपराध है । लेकिन हम दस प्रकार के अपराध पढ़ रहे हैं, गुर्वाष्टक, और गुरु के... तुम अर्थ जानते हो, क्या है वह, श्री गुरु-चरण-पद्म ? वह गाना क्या है? इसे पढ़ो ।
भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म, केवल भकति-सद्म, बंदो मुइ सावधान...
प्रभुपाद: आह, सावधान मते, "बड़ी सावधानी के साथ ।" तुम यह गीत गाते हो - क्य तुम अर्थ जानते हो ? नहीं । कौन अर्थ समझा सकता है ? हाँ, तुम समझाअो ।
भक्त: श्री गुरु-चरण-पद्म मतलब "गुरु के चरण कमल ।" केवल भकति सदम, वह भक्ति का सागर है । बंदो मुइ सावधान मतलब कि हम बहुत श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं उनकी |
प्रभुपाद: हम्म । पढ़ो । अन्य पंक्तिया पढ़ो ।
भक्त: जाहार प्रसादे भाई...
प्रभुपाद: आह, जाहार प्रसादे भाई। अागे ?
भक्त: ए भव व तोरिया जाइ ।
प्रभुपाद: ए भव तोरिया जाइ । अगर कोई, मेरे कहने का मतलब है, गुरु की कृपा प्राप्त करता है, फिर अज्ञान को पार करने का पथ स्पष्ट है । जाहार प्रसादे भाई ए भव तोरिया जाइ । फिर, अगली पंक्ति?
भक्त: कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते ।
प्रभुपाद: और कृष्ण-प्राप्ति होय जाहा हाते: गुरु की कृपा से कृष्ण मिलते हैं । यह.. .यस्य प्रसादाद भगवत । हर जगह । यह भगवद भक्ति-योग है । तो जो इस स्तर पर नहीं है, यह भगवद भक्ति क्या है ? यह धूर्तता है । यह भगवद नहीं है...
- एवम प्रसन्न-मनसो
- भगवद भक्ति-योगत: (श्रीमद भागवतम १.२.२०) ।