HI/Prabhupada 1015 - जब तक पदार्थ के पीछे अात्मा नहीं होती है, कुछ भी निर्माण नहीं किया जा सकता है

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720200 - Lecture SB 01.01.01 - Los Angeles

ओम नमो भगवते वासुदेवाय
जन्माद्यस्य यतो अन्वयाद इतरश चार्थेषु अभिज्ञ: स्वराट
तेने ब्रह्म ह्रदा य अादि कवये मुह्यंति यत सूरय:
तेजो वारि मृदां यथा विनिमयो यत्र त्रि सर्गो अमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्त कुहकं सत्यं परं धीमहि
(श्री भ १।१।१)

यह एक प्रार्थना है श्रील व्यासदेव की श्रीमद-भागवत लिखने से पहले । वे अपना अादर प्रणाम करते हैं भगवते वासुदेव को । भगवते का अर्थ है भगवान, जो वासुदेव के रूप में जाने जाते हैं । वे अवतरित होते हैं, भगवान कृष्ण वसुदेव के पुत्र के रूप में अवतरित हुए । इसलिए उन्हें वासुदेव कहा जाता है । एक और अर्थ है कि वे सर्वव्यापी हैं । वे हर जगह मौजूद हैं । तो, वासुदेव, भगवान, मूल स्रोत सब के । "जन्माद्यस्य यत: ।" 'जन्म' का अर्थ है' सृजन । इस भौतिक दुनिया का सृजन, लौकिक अभिव्यक्ति वासुदेव से है । 'जन्म-अादि का अर्थ है, सृजन, पालन अौर विनाश । भौतिक दुनिया में हर चीज़ के तीन गुण होते हैं । इसका सृजन एक निश्चित तिथि पर होता है । यह निश्चित वर्षों के लिए रहता है, और फिर इसका विनाश हो जाता है । यही जन्माद्यस्य - जन्मस्थिति य: कहा जाता है तो हर चीज़ का सृजन होता है भगवान से । लौकिक अभिव्यक्ति भी उनसे ही अाती है । यह उनकी शक्ति पर विद्यमान है, बाहिरंगा शक्ति, या यह उनकी बहिरंगा शक्ति द्वारा पोषित है, और, क्योंकि हर भौतिक वस्तु समाप्त हो जाती है या अंतत: उसका विनाश हो जाता है, तो विनाश के बाद शक्ति उनमे विलीन हो जाती है । शक्ति, उनसे ही अाती है, अौर वे ही उसका पालन करते हैं । अौर जब वह समाप्त हो जाती है तो वह उनमें विलीन हो जाती है । यही सृजन, पालन अौर विनाश का तरीका है । अब सवाल यह है कि वह सर्वोच्च शक्ति या परम स्रोत, उस परम स्रोत का स्वभाव क्या है ? यह पदार्थ है या अात्मा ? भागवतम कहता है कि "नहीं, यह पदार्थ नहीं हो सकता ।"

पदार्थ से कुछ भी सृजन नहीं होता है स्वचालित रूप से । हमें ऐसी कोई अनुभव नहीं है । जब तक पदार्थ के पीछे कोई अात्मा न हो तब तक सृजन नहीं हो सकता है । हमें ऐसी कोई अनुभव नहीं है । जैसे कि कुछ भी भौतिक, मान लो मोटर कार । यह सुसज्जित है मशीनों से, सूक्ष्म मशीनें, लेकिन फिर भी मोटर कार स्वचालित रूप से नहीं चल सकती है । एक चालक होना चाहिए । और चालक एक अात्मा है । इसलिए, हर वस्तु का मूल स्रोत अात्मा ही होना चाहिए । यही भागवता का निष्कर्ष है । और किस तरह की अात्मा ? इसका अर्थ है कि वे सब कुछ जानते हैं । जैसे कि एक विशेषज्ञ मोटर मैकेनिक, वह सब कुछ जानता है, इसलिए वह पता लगा सकता है, जब मोटर कार बंद हो जाता है, वह तुरंत पता लगा सकता है कि कैसे मोटर कार रूक गया है । तो अगर वह एक पेंच को मजबूत करता है, या कुछ करता है ताकि वह फिर से चलने लगे इसलिए भागवतम कहता है कि उद्गम का मूल स्रोत सब कुछ जानता है । अन्वयाद् इतरतश चार्थेषु । सीधे और परोक्ष रूप से । वह इतना निपुण है । वैसे ही जैसे मैं इस शरीर के निर्माता हूँ । मैं एक आत्मा हूँ । जैसा मैंने चाहा, मैंने इस शरीर का निर्माण किया । शक्ति से । मेरी शक्ति से ।