HI/Prabhupada 1016 - भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत: Difference between revisions
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मेरी इच्छा के अनुसार, मैंने इस शरीर | मेरी इच्छा के अनुसार, मैंने इस शरीर को प्राप्त किया है । लेकिन हालांकि मैं दावा करता हूँ ये शरीर मेरा है, मैं जानता नहीं हूं कि कैसे यह शरीर काम कर रहा है । यह मेरे लिए अज्ञात है । मैं अपने बालों को काटता हूं, लेकिन मुझे पता नहीं कि कैसे यह बाल फिर से बढ़ जाते है । मैं अपने नाखून काटता हूं । लेकिन मैं नहीं जानता कि कैसे, अंदर क्या प्रक्रिया है, कि नाखून और बाल काटने के बाद भी, यह फिर से बढ़ जाते हैं । न तो मुझे पता है... मैं खा रहा हूँ, मुझे पता है, क्योंकि मैं पेट भर खा रहा हूँ, यह मेरे पेट के अंदर विभिन्न प्रकार के स्राव में बदल रहा है, और स्राव वितरित हो जाता है । | ||
मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुअा है किसी चिकित्सक या चिकित्सा विज्ञान से, लेकिन जहॉ तक मेरा सवाल है, मुझे नहीं पता है कि कैसे भोजन खून में तब्दील हो जाता है । कैसे खून मेरे शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है, और फिर मुझे शक्ति मिलती है । वास्तव में मैं नहीं जानता । लेकिन भगवान वे जानते हैं, परोक्ष रूप से और सीधे भी, दोनो, कैसे यह भौतिक लौकिक अभिव्यक्ति काम कर रही है । वे सब कुछ जानते हैं । कैसे सूर्य उदय हो रहा है । कैसे चंद्र उदय हो रहा है । कैसे महासागर स्थिर रहते हैं । वे भूमि पर नहीं अाते हैं । इतना बड़ा महासागर - यह किसी भी शहर या किसी भी भूमि में फैल सकता है एक क्षण में । लेकिन यह एसा करता नहीं है । तो दिशा के तहत काम हो रहा है । इसलिए भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत । और सचेत अवस्था में सब कुछ नियंत्रित कर रहा है । | |||
"अन्वयाद इतरतश चार्थेषु अभिज्ञ:" ([[Vanisource: SB 1.1.1. |श्रीमद भागवतम १.१.१]]) | 'अभिज्ञ:' का अर्थ है पूरी तरह से जानकार । अगला सवाल उठाया जा सकता है, कि उन्हे कहॉ से ज्ञान प्राप्त हुअा ? वे मूल हैं । क्योंकि हमारा यह विचार है कि हर जीव, वह दूसरों से ज्ञान प्राप्त करता है । जैसे हमें अपने आध्यात्मिक गुरु से ज्ञान प्राप्त होता है । मेरे शिष्य मुझ से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, तो उनका ज्ञान भी किसी से प्राप्त हुअा है । उसका एक स्रोत है । लेकिन, अगर पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान मूल हैं, उन्हे कहाॅ से यह ज्ञान मिला सृजन, पालन का ? जवाब है स्वराट । उन्हें किसी से भी ज्ञान नहीं मिला । ज्ञान में, वे स्वयम आत्मनिर्भर हैं । यही भगवान का स्वभाव है । उन्हें किसी अन्य से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान की तुलना में कोई अौर बेहतर नहीं हो सकता है । न तो भगवान के बराबर । | |||
"असमौर्ध्व"। कोई भी उनके बराबर नहीं है । कोई भी उनसे बेहतर नहीं है । अब हमें यह अनुभव है कि पहला जीव, इस ब्रह्मांड के प्रथम जीव ब्रह्माजी हैं । तो उन्हे भी ज्ञान मिला बिना किसी की भी सहायता के, क्योंकि... वे पहले जीव हैं । तो कोई अन्य जीवित प्राणी नहीं था, तो उन्हें ज्ञान कैसे मिला ? तो क्या इसका यह मतलब है कि ब्रह्माजी मूल स्रोत हैं ? लोग सवाल कर सकते हैं, लेकिन भागवतम कहता है नहीं । वे इस ब्रह्मांड के मूल जीव हैं, ये ठीक है, लेकिन वे भी एक जीव हैं । क्योंकि यह लौकिक अभिव्यक्ति भगवान, परमेश्वर, द्वारा बनाई गई । और इस रचना के बाद ब्रह्मा को बनाया गया था । इसलिए वे भी जीव हैं । लौकिक अभिव्यक्ति के बाद । और क्योंकि भगवान, या परमेश्वर... वे निर्माता है, तो वे बनाए गए जीवों में से एक नहीं हो सकते हैं । वे बनाते हैं, लेकिन वे स्वयम बनाए नहीं गए हैं । लेकिन ब्रह्मा बनाए गए हैं । इसलिए उन्हे ज्ञान मिलता है परम निर्माता से, जो स्वतंत्र हैं । | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
720200 - Lecture SB 01.01.01 - Los Angeles
मेरी इच्छा के अनुसार, मैंने इस शरीर को प्राप्त किया है । लेकिन हालांकि मैं दावा करता हूँ ये शरीर मेरा है, मैं जानता नहीं हूं कि कैसे यह शरीर काम कर रहा है । यह मेरे लिए अज्ञात है । मैं अपने बालों को काटता हूं, लेकिन मुझे पता नहीं कि कैसे यह बाल फिर से बढ़ जाते है । मैं अपने नाखून काटता हूं । लेकिन मैं नहीं जानता कि कैसे, अंदर क्या प्रक्रिया है, कि नाखून और बाल काटने के बाद भी, यह फिर से बढ़ जाते हैं । न तो मुझे पता है... मैं खा रहा हूँ, मुझे पता है, क्योंकि मैं पेट भर खा रहा हूँ, यह मेरे पेट के अंदर विभिन्न प्रकार के स्राव में बदल रहा है, और स्राव वितरित हो जाता है ।
मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुअा है किसी चिकित्सक या चिकित्सा विज्ञान से, लेकिन जहॉ तक मेरा सवाल है, मुझे नहीं पता है कि कैसे भोजन खून में तब्दील हो जाता है । कैसे खून मेरे शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है, और फिर मुझे शक्ति मिलती है । वास्तव में मैं नहीं जानता । लेकिन भगवान वे जानते हैं, परोक्ष रूप से और सीधे भी, दोनो, कैसे यह भौतिक लौकिक अभिव्यक्ति काम कर रही है । वे सब कुछ जानते हैं । कैसे सूर्य उदय हो रहा है । कैसे चंद्र उदय हो रहा है । कैसे महासागर स्थिर रहते हैं । वे भूमि पर नहीं अाते हैं । इतना बड़ा महासागर - यह किसी भी शहर या किसी भी भूमि में फैल सकता है एक क्षण में । लेकिन यह एसा करता नहीं है । तो दिशा के तहत काम हो रहा है । इसलिए भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत । और सचेत अवस्था में सब कुछ नियंत्रित कर रहा है ।
"अन्वयाद इतरतश चार्थेषु अभिज्ञ:" (श्रीमद भागवतम १.१.१) | 'अभिज्ञ:' का अर्थ है पूरी तरह से जानकार । अगला सवाल उठाया जा सकता है, कि उन्हे कहॉ से ज्ञान प्राप्त हुअा ? वे मूल हैं । क्योंकि हमारा यह विचार है कि हर जीव, वह दूसरों से ज्ञान प्राप्त करता है । जैसे हमें अपने आध्यात्मिक गुरु से ज्ञान प्राप्त होता है । मेरे शिष्य मुझ से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, तो उनका ज्ञान भी किसी से प्राप्त हुअा है । उसका एक स्रोत है । लेकिन, अगर पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान मूल हैं, उन्हे कहाॅ से यह ज्ञान मिला सृजन, पालन का ? जवाब है स्वराट । उन्हें किसी से भी ज्ञान नहीं मिला । ज्ञान में, वे स्वयम आत्मनिर्भर हैं । यही भगवान का स्वभाव है । उन्हें किसी अन्य से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान की तुलना में कोई अौर बेहतर नहीं हो सकता है । न तो भगवान के बराबर ।
"असमौर्ध्व"। कोई भी उनके बराबर नहीं है । कोई भी उनसे बेहतर नहीं है । अब हमें यह अनुभव है कि पहला जीव, इस ब्रह्मांड के प्रथम जीव ब्रह्माजी हैं । तो उन्हे भी ज्ञान मिला बिना किसी की भी सहायता के, क्योंकि... वे पहले जीव हैं । तो कोई अन्य जीवित प्राणी नहीं था, तो उन्हें ज्ञान कैसे मिला ? तो क्या इसका यह मतलब है कि ब्रह्माजी मूल स्रोत हैं ? लोग सवाल कर सकते हैं, लेकिन भागवतम कहता है नहीं । वे इस ब्रह्मांड के मूल जीव हैं, ये ठीक है, लेकिन वे भी एक जीव हैं । क्योंकि यह लौकिक अभिव्यक्ति भगवान, परमेश्वर, द्वारा बनाई गई । और इस रचना के बाद ब्रह्मा को बनाया गया था । इसलिए वे भी जीव हैं । लौकिक अभिव्यक्ति के बाद । और क्योंकि भगवान, या परमेश्वर... वे निर्माता है, तो वे बनाए गए जीवों में से एक नहीं हो सकते हैं । वे बनाते हैं, लेकिन वे स्वयम बनाए नहीं गए हैं । लेकिन ब्रह्मा बनाए गए हैं । इसलिए उन्हे ज्ञान मिलता है परम निर्माता से, जो स्वतंत्र हैं ।