HI/Prabhupada 1016 - भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत

Revision as of 09:25, 25 June 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Hindi Pages - 207 Live Videos Category:Prabhupada 1016 - in all Languages Category:HI...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

720200 - Lecture SB 01.01.01 - Los Angeles

मेरी इच्छा के अनुसार, मैंने इस शरीर के प्राप्त किया है । लेकिन हालांकि मैं दावा करता हूँ शरीर मेरा होने का, मैं जानता नहीं हूं कि कैसे यह शरीर काम कर रहा है । यह मेरे लिए अज्ञात है । मैं अपने बालों को काटता हूं, लेकिन मुझे पता नहीं कि कैसे यह बाल फिर से बढ़ जाता है । मैं अपने नाखून काटता हूं । लेकिन मैं नहीं जानता कि कैसे, अंदर क्या प्रक्रिया है, कि नाखून और बाल काटने के बाद भी, यह फिर से बढ़ जाते हैं । न तो मुझे पता है ... मैं खा रहा हूँ, मुझे पता है, क्योंकि मैं पेट भर खा रहा हूँ, यह मेरे पेट के अंदर विभिन्न प्रकार के स्राव में बदल रहा है, और स्राव वितरित हो जाता है । मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुअा है किसी चिकित्सक या चिकित्सा विज्ञान से, लेकिन जहॉ तक मेरा सबाल है, मुझे नहीं पता है कि कैसे भोजन खून में तब्दील हो जाता है । कैसे खून मेरे शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है, और फिर मुझे शक्ति मिलती है । वास्तव में मैं नहीं जानता । लेकिन भगवान वे जानते हैं, परोक्ष रूप से और सीधे भी, दोनो, कैसे यह भौतिक लौकिक अभिव्यक्ति काम कर रही है । वे सब कुछ जानते हैं । कैसे सूरज उग रहा है । कैसे चाँद चढ़ रहा है । कैसे महासागर स्थिर रहते हैं । वे भूमि पर नहीं अाते हैं । इतना बड़ा महासागर - यह किसी भी शहर या किसी भी भूमि में फैल सकता है एक क्षण में । लेकिन यह एसा करता नहीं है । तो दिशा के तहत काम हो रहा है । इसलिए भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदन-समर्थ है । अभिज्ञ । और सतर्कता से सब कुछ नियंत्रित कर रहा है । अन्वयाद् इतरतश चार्थेषु अभिज्ञ: 'अभिज्ञ:' का अर्थ है पूरी तरह से जानकार । अगला सवाल उठाया जा सकता है, कि उन्हे कहॉ से ज्ञान प्राप्त हुअा ? वे मूल हैं । क्योंकि हमारा यह विचार है कि हर जीव, वह दूसरों से ज्ञान प्राप्त करता है । जैसे हमें अपने आध्यात्मिक गुरु से ज्ञान प्राप्त होता है । मेरे शिष्य मुझ से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, तो उनका ज्ञान भी किसी से प्राप्त हुअा है । उसका एक स्रोत है । लेकिन, अगर भगवान मूल हैं, उन्हे कहाॅ से यह ज्ञान मिला सृजन, पालन का ? जवाब है स्वराट । उन्हें किसी से भी ज्ञान नहीं मिला । ज्ञान में, वे स्वयं आत्मनिर्भर हैं । यही भगवान का स्वभाव है । उन्हें किसी अन्य से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान की तुलना में कोई अौर बेहतर नहीं हो सकता है । न तो भगवान के बराबर । "असमौर्ध्व "। कोई भी उनके बराबर नहीं है। कोई भी उनसे बेहतर नहीं है । अब हमें यह अनुभव है कि पहला जीव, जीव इस ब्रह्मांड में के भगवान ब्रह्मा हैं । तो उन्हे भी ज्ञान मिला बिना किसी की भी सहायता के, क्योंकि .....वे पहले जीव हैं । तो कोई अन्य जीवित प्राणी नहीं था, तो उनहे ज्ञान कैसे मिला ? तो क्या इसका यह मतलब है कि भगवान ब्रह्मा मूल स्रोत हैं ? लोग सवाल कर सकते हैं, लेकिन भागवतम कहता है नहीं । वर इस ब्रह्मांड के मूल जीव हैं, यह सही है, लेकिन वे भी एक जीव हैं । क्योंकि यह लौकिक अभिव्यक्ति भगवान द्वारा बनाई गई, परमेश्वर । और इस रचना के बाद ब्रह्मा को बनाया गया था । इसलिए वे भी जीव हैं । लौकिक अभिव्यक्ति के बाद । और क्योंकि भगवान, या परमेश्वर.... वे निर्माता है, तो वे बनाए गए जीवों में से एक नहीं हो सकते हैं । वे बनाते हैं, लेकिन वे स्वयं बनाए नहीं गए हैं । लेकिन ब्रह्मा बनाए गए हैं । इसलिए उन्हे ज्ञान मिलता है परम निर्माता से, जो स्वतंत्र हैं ।