HI/Prabhupada 1020 - हृदय प्रेम के लिए ही है, परन्तु आप क्यों इतने कठोर हृदय के हो ?
730408 - Lecture SB 01.14.44 - New York
तो ये पांडव, वे भी उस स्तर पर हैं, कृष्ण से प्रेम करने के । हर कोई उस स्तर पर है, लेकिन मात्रा का अंतर है । वही प्रेम । कोई अपने परिवार से प्यार करता है , कोई अपनी पत्नी से प्यार करता है, कोई प्यार करता है अपने समाज से या दोस्ती, समाज, दोस्ती । वे विभाजित रहते हैं । लेकिन अाखरी, अंतिम प्रेम का स्तर है जब तुम श्री कृष्ण के पास अाते हो । स वै पुंसां परो धर्मो (श्री भ १।२।६) । धर्म का अर्थ है कर्तव्य । यही धर्म है । या विशेषताऍ । धर्म का अर्थ धार्मिक कट्टरता नहीं है । नहीं । यह संस्कृत अर्थ नहीं है । धर्म का अर्थ है वास्तविक विशेषता । मैंने कई बार समझाया है कि पानी तरल है ; यह पानी की शाश्वत विशेषता है । जब पानी जम जाता है, यह पानी की शाश्वत विशेषता नहीं है। जल स्वभाव से तरल होता है । जब पानी जम जाता है, बर्फ की तरह, प्रवृत्ति यही है कि फिर से तरल बन जाना । दुबारा । फिर तरल । इसलिए हमारी वास्तविक स्थिति, स्वभाविक स्थिति श्री कृष्ण से प्रेम करना है । लेकिन अब हम कठोर ह्रदय के हो गये हैं कि श्री कृष्ण से प्रेम नहीं करेंगे । जैसे पानी जम जाता है, बर्फ, कुछ परिस्थितिजन्य स्थिति के कारण । जब तापमान बहुत कम हो जाता है, पानी जम जाता है । इसी तरह, अगर हम श्री कृष्ण को प्रेम नहीं करते हैं, तो हमारे ह्रदय अौर कठोर अौर कठोर अौर कठोर होते चले जाऍगे । ह्रदय है प्रेम के लिए, तो क्यों तुम कठोर ह्रदय के बनते हो ? तुम क्यों इतने कठोर ह्रदय के हो कि तम दूसरे मनुष्य को या दूसरे जानवर को - हम इसकी परवाह नहीं करते हैं - मेरी जीभ की संतुष्टि के लिए ? क्योंकि हम कठोर ह्रदय के बन गए हैं । कठोर ह्रदय । कृष्ण के प्रेमी नहीं होने का कारण, हम सभी कठोर ह्रदय के हो गए हैं । इसलिए पूरी दुनिया दुखी है। लेकिन अगर तुम, ह्रदयेन.. इसलिए यह कहा गया है, प्रष्ठतमेनाथ ह्रदयेनात्म बन्धुना । अगर तुम श्री कृष्ण से प्रेम करते हो, जो हमारे वास्तविक मित्र हैं, जैसा कि श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, सुहृदं सर्व भूतानां (भ गी ५।२९) । तो जब तुम वास्तव में श्री कृष्ण के भक्त हो जाते हो, क्योंखि श्री कृष्ण के गुण तुम्हारे भीतर हैं, हालांकि छोटी मात्रा में, तो तुम भी हो जाते हो, सुहृदं सर्व भूतानां । सुहृदं सर्व भूतानां का अर्थ है सभी जीवों के मित्र । सुहृदं । वैष्णव का काम क्या है ? वैष्णव का काम है दयालु बनना उन लोगों के प्रति जो भौतिक दृष्टी से पीड़ित हैं । यही वैष्णव है। इसलिए वैष्णव का वर्णन है,
- वान्छा कल्पतरभ्यश् च
- कृपा सिन्धुभ्य एव च
- पतितानां पावनेभ्यो
- वैष्णवेभ्यो नमो नम:
- (श्री वैष्व प्रणाम )
पतितानां पावनेभ्यो । पतीत का अर्थ है "पतीत" ।