HI/Prabhupada 1021 - अगर बद्ध जीव से कोई सहानुभूति करता है, तो वह एक वैष्णव है

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730408 - Lecture SB 01.14.44 - New York

तो सभी जीव, बद्ध होने के कारण, वे सभी पीड़ित हैं । तो वैष्णव सहानुभूति वहा है । अगर वास्तव में बद्ध जीव से कोई सहानुभूति करता है, तो वह एक वैष्णव है | वह जानता है, कि क्यों वे पीड़ित हैं । इसलिए वह उसे ज्ञान देना चाहता है: "मेरे प्रिय मित्र, तुम पीड़ित हो केवल अपने वास्तविक प्रेमी श्री कृष्ण को भूलने की वजह से ।" "इसलिए तुम पीड़ित हो ।" यही संदेश है, वैष्णव संदेश । इस संदेश के लिए कृष्ण भगवान स्वयम परमेश्वर के रूप में आते हैं । वे यह भी कहते हैं,

सर्व-धर्मान परित्यज्य
माम एकम शरणम
(भ.गी. १८.६६) ।

तुम्हारे प्यार करने की प्रवृत्ति इतनी सारी चीज़ो में बट गई है, लेकिन तुम खुश नहीं हो, क्योंकि... अगर तुम श्री कृष्ण से प्रेम नहीं करते हो, तुम जो भी करते हो तथाकथित प्रेम के नाम पर तुम पाप करोगे, अवज्ञा । उदाहरणार्थ, अगर तुम राज्य के कानून की अवज्ञा करते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम्हारे सारे कार्य पापी हैं । तुम उन्हे ढक सकते हो "ओह, यह बहुत अच्छा है", लेकिन एसा है नहीं । प्रकृति, क्योंकि तुम श्री कृष्ण के दास हो, जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास (चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८) । तुम्हारी शाश्वत स्थिति है श्री कृष्ण की सेवा ।

तो इस ज्ञान के बिना, तुम जो भी सेवा करते हो किसी और के लिए, वह पाप है । वही उदाहरण । अगर तुम राज्य के कानूनों का पालन नहीं करते हो, और तुम एक परोपकारी हो जाते हो... तो मैंन भारत में देखा है । भारत में, जब स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था - भारत में ही नहीं, हर देश में जब स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था, कई लोगों को फॉसी हो गई, मौत के घाट उतारा गया । लेकिन तुम देश के एक महान प्रेमी हो । लेकिन अपने देश के प्रति बहुत प्रेम होने के कारण, उसे फांसी पर लटकाया गया, क्योंकि कानून ... उसने सरकार के कानून को नहीं माना । समझने का प्रयास करो ।

इसी तरह, अगर हम सर्वोच्च सरकार के कानूनों की अवज्ञा करें, जिन्हे धर्म कहा जाता है । धर्म का अर्थ है सर्वोच्च सरकार का कानून । धर्मम तु साक्षाद भगवत प्रणीतम (श्रीमद भागवतम ६.३.१९) । धर्म का अर्थ है... और क्या यह वह धर्म ? श्री कृष्ण कहते हैं, यह बहुत साधारण बात है, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम । असली धर्म है श्री कृष्ण या भगवान को आत्मसमर्पण करना । यही वास्तविक धर्म है । उस बात के बिना, सभी धर्म, वे केवल धोखा दे रहे हैं । धर्म: प्रोज्जहित कैतवो अत्र (श्रीमद भागवतम १.१.२) । श्रीमद-भागवतम अारम्भ होता है । धोखा देने वाला धर्म । अगर भगवान के लिए प्रेम नहीं है, तो यह नहीं है... बस कुछ कर्मकांड का कार्य । यह धर्म नहीं है ।

वैसे ही जैसे हिंदु जाते हैं, कर्मकांड कार्य, मंदिर में, या मुस्लिम मस्जिद में, या ईसाई चर्च में । लेकिन उनमे भगवान के लिए कोई प्रेम नहीं है; केवल अौपचारिकता । क्योंकि उन्हे थोडा धार्मिक दिखना है: "मैं ईसाई धर्म का हूं," "मैं हिन्दू धर्म का हूं ।" यही केवल लडाई है, बस, क्योंकि प्रेम नहीं है । अगर तुम... अगर तुम धार्मिक हो, इसका अर्थ है तुम्हे भगवद भावनाभावित होना होगा । तो अगर तुम भगवद भावनाभावति हो, अगर मैं भगवद भावनाभावित हूँ, तो लड़ने का कारण कहॉ रह जाता है ? तो ये बात वे समझ नहीं रहे हैं, इसलिए इस तरह का धर्म धोखा देने वाला धर्म है, क्योंकि प्रेम नहीं है ।